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खोजी पत्रकारिता क्या है?

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खोजी रिपोर्टिंग की परिभाषा पर दशकों से पत्रकारों और विद्वानों ने विचार किया है। किसी सरकारी अधिकारी या व्यावसायिक तंत्र के भ्रष्ट आचरण से लेकर प्रणालीगत खामियों को उजागर करने तक को इसके दायरे में रखा गया है। उस सिस्टम की जांच करना, जिसमें भ्रष्टाचार की प्रथाओं या अक्षमता को फलने-फूलने का अवसर मिलता है।

खोजी पत्रकारों के संगठन द्वारा अनुमोदित पहली परिभाषा देखें। Investigative Reporters and Editors (IRE) की स्थापना वर्ष 1975 में अमेरिका हुई थी। इसने खोजी पत्रकारिता को इस तरह परिभाषित किया- “किसी पत्रकार की अपनी पहल और मेहनत के कारण सामने आई खबर, जो पाठकों के लिए कोई महत्वपूर्ण मामला हो। यह रिपोर्टिंग जिसके खिलाफ हो, वे लोग उस खबर को छिपाना चाहते हों।”

पिछले कुछ वर्षों में इस परिभाषा के साथ ‘वॉचडॉग रिपोर्टिंग‘ और ‘जवाबदेही पत्रकारिता‘ जैसे शब्द और विचार भी जुड़ गए हैं। अब ऐसी जांच में अक्सर समाधान शामिल होते हैं। इसलिए ‘समाधान पत्रकारिता‘ का नया ब्रांड भी ध्यान केंद्रित करता है। डेटा-संचालित कहानियों में खोजी पत्रकारिता सबसे आगे रही है। आम तौर पर ऐसी जांच में नियम-कानूनों और सामाजिक मानदंड के विरुद्ध लोगों या संस्थानों के कार्यों की माप की जाती है।

कई बार पत्रकारों को किसी स्रोत के माध्यम से कुछ दस्तावेज स्वतः मिल जाते हैं। लेकिन किसी रिपोर्टिंग के बिना तथा अतिरिक्त स्रोतों से गुज़रे बिना, सिर्फ लीक हुए ऐसे दस्तावेज़ों के आधार पर खबर के प्रकाशन को खोजी पत्रकारिता नहीं माना जाता है। हालांकि, ऐसी लीक एक नई जांच की शुरुआत हो सकती है। इसके बाद सार्वजनिक रिकॉर्ड, जैसे अदालती दस्तावेज, संपत्ति रिकॉर्ड, कंपनी रिकॉर्ड, प्रतिबंध सूची और विषय पर जानकार व्यक्तियों और विशेषज्ञों के साक्षात्कार सहित अतिरिक्त कई स्रोत के आधार पर खोजी पत्रकारिता करने की संभावना रहती है।

समय के साथ अब यह भी स्पष्ट हो गया है कि खोजी पत्रकारिता केवल बड़ी परियोजना नहीं है, जिसमें वर्षों या महीनों लग जाते हैं। कोई खोजी स्टोरी बेहद कम समय में मिल सकती है। कई बार एक प्रभावी जांच में कुछ दिनों का समय लग सकता है। यह एक रोलिंग जांच या सिलसिलेवार जांच हो सकती है। यानी कहानियों की एक श्रृंखला, जो समय के साथ बनती है। यह एक ब्रेकिंग न्यूज़ जांच हो सकती है। आईआरई के पास इसके लिए अब एक पुरस्कार भी है। जैसे, किसी इमारत या पुल के ढहने के कारणों के संबंध में कुछ दिनों के भीतर पता लगाना। यह एक ‘छोटी जांच‘ हो सकती है, जिसके लिए केवल कुछ सप्ताह की आवश्यकता होगी।

इसके अलावा, साझेदारी पर आधारित कॉलाबोरेटिव खोजी पत्रकारिता में आश्चर्यजनक प्रगति हुई है। इसमें विभिन्न समाचार संगठनों या पत्रकारों का समूह किसी जांच टीम का हिस्सा होते हैं। यह जांच टीम सीमा पार या वैश्विक जांच करके कॉरपोरेट और संगठित अपराध के नेटवर्क को उजागर करती है। इसमें विभिन्न विषयों की जांच की जाती है। खासकर मनी लॉन्ड्रिंग, कॉरपोरेट अपराध, संगठित अपराध और भ्रष्टाचार जैसे मामले प्रमुख होते हैं। साथ ही, मानवाधिकार हनन, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य देखभाल इत्यादि भी शामिल होते हैं।

खोजी पत्रकारिता में इसके सिद्धांतों, तत्वों और साक्ष्य के साथ ही सटीकता और निष्पक्षता की आवश्यकता होती है। इसके लिए एक ठोस और विस्तृत योजना भी होनी चाहिए। साथ ही, इसकी विशेष कार्यप्रणाली और सिद्ध रिपोर्टिंग आदतों की भी आवश्यकता होती है। ऐसी एक ‘आदत‘ को चर्चित खोजी रिपोर्टर जेम्स स्टील ने पहले ‘दस्तावेज आश्रित मानसिक स्थिति‘ कहा था। इसके अनुसार यह धारणा रहती है कि किसी दावे का समर्थन करने या खंडन करने के लिए हमेशा दस्तावेज़ (और अब डेटा भी) जरूरी हैं। ऐसा दावा किसी सरकारी अधिकारी या व्यवसायी समूह का हो सकता है।

खोजी पत्रकारिता के चरण

बदलते समय के साथ खोजी पत्रकारिता के चरण औपचारिक हो गए हैं। हालांकि इन चरणों की प्रस्तुति में कई विविधता मौजूद है। पहली बार वर्ष 1970 के दशक में इसे विस्तार से रेखांकित किया गया था। इसे आम तौर पर इन भागों में विभाजित किया जाता है:

  • स्टोरी आइडिया की कल्पना करना – यह किसी स्रोत से मिली टिप पर आधारित हो सकती है। किसी दस्तावेज़ को पढ़ने या किसी अन्य स्टोरी या डेटा विश्लेषण से भी आपको एक स्टोरी आइडिया मिल सकता है। जैसे, आपकी एक परिकल्पना हो सकती है कि ठोस कानूनों की कमी के कारण घटिया भवन निर्माण हो रहा है। कोई ऐसा प्रश्न, जिसका आप उत्तर देना चाहते हैं, उसे ‘स्टोरी पिच‘ कहा जाता है। एक ‘स्टोरी पिच‘ का मतलब केवल यह बताना नहीं है कि आपके पास एक अच्छा विचार है। इसके बाद आपको एक मेमो तैयार करना है, जो बताता हो कि जांच का मुख्य बिंदु क्या है, कहानी के लिए किन दस्तावेजों और मानव स्रोतों की आवश्यकता है, और किन अधिकारियों या संस्थानों को जवाबदेह ठहराया जाएगा। इसके अलावा, पत्रकारों को यह विचार करने की आवश्यकता है कि ‘न्यूनतम कहानी‘ क्या होगी। इसका अर्थ है कि प्रकाशन या प्रसारण के लायक कोई कहानी, जो भले ही अपनी प्रारंभिक परिकल्पना को साबित न करे या जांच पूरी न करे। ‘अधिकतम कहानी‘ न केवल परिकल्पना का समर्थन करने वाला साक्ष्य होगी, बल्कि किसी सिस्टम पर मात्र संदेह नहीं बल्कि वास्तविक दुरुपयोग या त्रुटियों का भी पता लगाएगी।
  • स्टोरी की व्यवहार्यता पर विचार करना – इसका मतलब यह तय करना है कि आपके पास ऐसी जांच करने के लिए संसाधन, संपर्क, विशेषज्ञता और समय है, अथवा नहीं। आपको यह जोखिम मूल्यांकन भी करना पड़ सकता है कि ऐसी जांच में कोई शारीरिक या कानूनी खतरा है, अथवा नहीं। यह खतरा रिपोर्टिंग के दौरान या कहानी प्रकाशित या प्रसारित होने के बाद सामने आ सकता है। व्यवहार्यता मूल्यांकन के आधार पर आपके प्रस्तावित स्टोरी आइडिया को संशोधित किया जा सकता है।
  • शोध – साक्ष्य का एक आधार बनाने के लिए शोध करना। इसमें रिपोर्टिंग के तीन स्तंभ शामिल हों- दस्तावेज़, साक्षात्कार और अवलोकन।
  • विस्तृत योजना – रिपोर्टिंग के अनुक्रम और शेड्यूल पर आधारित एक समुचित योजना आवश्यक है। इसे एक ‘स्टोरी बोर्ड‘ में किया जा सकता है जो जांच के लिए रोडमैप के रूप में कार्य करे।
  • निरंतरता – अपनी रिपोर्टिंग जारी रखते हुए सभी जानकारियों को सुव्यवस्थित रखना।
  • नियमित समीक्षा – आप जिस विषय की जांच कर रहे हैं, उसके संबंध में साप्ताहिक मेमो या अन्य तरीकों से नियमित समीक्षा करें। यह मूल्यांकन करें कि आपका फोकस सही है, अथवा उसमें किसी परिवर्तन की जरूरत है।
  • पहला ड्राफ्ट – अपनी रिपोर्टिंग में कमियों की पहचान करने के लिए पहला ड्राफ्ट लिखना और तैयार करना।
  • संपादन – प्रथम ड्राफ्ट का बारीकी से संपादन करते हुए दोबारा लिखना और कहानी की हरेक पंक्ति का सत्यापन करना। यह सुनिश्चित करना कि कहानी की प्रत्येक पंक्ति और भाग ठोस रूप से स्रोत पर आधारित है। उसे कई स्वतंत्र और क्रॉस-रेफरेंस स्रोतों द्वारा प्रमाणित होना चाहिए।
  • प्रकाशन – फीडबैक और सुझावों का उपयोग करने की योजना के साथ स्टोरी का वास्तविक प्रकाशन, ताकि उससे जुड़ी और अधिक कहानियां सामने आ सकें।

व्यवस्थित रहना जरूरी

शोध और रिपोर्टिंग के दौरान अपने निष्कर्षों पर नज़र रखना जरूरी है। डेटा और दस्तावेज़ों के साथ ही मानव स्रोतों से मिली जानकारी को व्यवस्थित करना महत्वपूर्ण है। जानकारी को विभिन्न तरीकों से व्यवस्थित किया जा सकता है। जैसे, स्प्रेडशीट, टाइम लाइन, दस्तावेजों में नोट्स और फ़ुटनोट के माध्यम से। इससे आपको बाद में तथ्य-जांच प्रक्रिया में मदद मिलती है। यह जानने में मदद मिलती है कि कौन से निष्कर्षों का दस्तावेजीकरण हो गया, किनकी पुष्टि हो चुकी है। किन सुरागों के लिए अधिक रिपोर्टिंग की आवश्यकता हो सकती है, यह भी पता चल सकेगा। बेहतर होगा कि इसको एक तालिका के रूप में रखें।

किन दस्तावेज़ों और लोगों का पता लगाना है?

  • प्रारंभिक शोध – जिस विषय की जांच करनी है, उसके बारे में प्रकाशित खबरों पर प्रारंभिक शोध करें। इससे आप संभावित मानव स्रोतों और दस्तावेजों का अनुमान लगा सकते हैं।
  • लोगों के जरिए अन्य व्यक्तियों तक पहुंच (पिपुल ट्रेल) – सही लोग आपको अन्य लोगों और दस्तावेज़ों तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं। इसे लोगों का अनुसरण करना यानी ‘पिपुल ट्रेल‘ कहा जाता है। आप संबंधित लोगों या स्रोतों से पूछ लें कि क्या कोई अन्य व्यक्ति भी उस विषय के बारे में जानता है। वे आपको बात ऐसे अन्य लोगों से बात करने की सलाह देंगे। यदि स्रोत कोई ऐसी जानकारी दे, जो फाइल में उपलब्ध हो सकती है, तो इसकी भी जानकारी लें। यह भी पूछ लें कि क्या उनके पास कोई सहायक दस्तावेज़ है, जो उनकी बात की पुष्टि करता है या उसमें कुछ जोड़ता है? क्या उन फ़ाइलों तक पहुंच संभव है, जो किसी विशिष्ट दावे का समर्थन करे। ऐसे प्रयासों से आपको अपनी रिपोर्ट के लिए कोई महत्वपूर्ण चीज मिल सकती हैं।
  • दस्तावेजों के जरिए अन्य दस्तावेजों तक पहुंच (पेपर ट्रेल) – किसी दस्तावेज अथवा सार्वजनिक डेटा के माध्यम से आपको अन्य दस्तावेजों तक पहुंच मिल सकती है। इसे ‘पेपर ट्रेल‘ कहा जाता है। ऐसे दस्तावेजों के जरिए आप अन्य लोगों तक भी पहुंच सकते हैं। इसमें कोई शैक्षणिक कागजात, प्रेस विज्ञप्ति, सार्वजनिक डेटाबेस और रिकॉर्ड हो सकते हैं। इनमें उन लोगों का उल्लेख या उस विषय में जानकारी मिल सकती है, जिसकी जांच की जा रही है। ऐसे लोग आपके लिए संभावित स्रोत बन सकते हैं। वे अन्य उपयोगी दस्तावेज़ों का भी हवाला दे सकते हैं। दस्तावेजों के फ़ुटनोट की जांच करना याद रखें। इनमें आपको महत्वपूर्ण अतिरिक्त लोगों और दस्तावेज़ों का उल्लेख मिल सकता है।
  • आरटीआई का उपयोग- सूचना का अधिकार के तहत आवेदन करना संभव हो तो इसे यथासंभव प्रारंभ में ही करने का प्रयास करें। ऐसे आवेदनों के बाद सूचना मिलने में अक्सर विलंब होता है। समय पर सूचना नहीं मिल पाने पर आपकी स्टोरी के लिए बहुमूल्य जानकारी पाना मुश्किल होगा।

खोजी रिपोर्टिंग की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में अब ओपन सोर्स अनुसंधान विधियों का काफी उपयोग हो रहा है। जैसे, सोशल मीडिया या सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग। वर्ष 2023 में फाइनेंशियल टाइम्स ने 2312 मस्जिदों की तस्वीरों का विश्लेषण किया। इनमें कभी इस्लामी वास्तुकला दिखाई देती थी। पाया कि पूरे चीन में 2018 के बाद से तीन-चौथाई इमारतों को बदल दिया गया अथवा नष्ट कर दिया गया है। युद्ध अपराधों का दस्तावेजीकरण करने के लिए सैटेलाइट इमेजरी का भी उपयोग हो रहा है।

किसी पत्रकारीय जांच में काफी मात्रा में डेटा मिल सकता है। ऐसे डेटा का स्रोत जानना महत्वपूर्ण है। यह समझना होगा कि क्या एकत्र की गई जानकारी डेटासेट का एक हिस्सा है, अथवा यह पूर्ण डेटासेट है। डेटा संरचना और जानकारी के लिए कोड को समझना महत्वपूर्ण है। त्रुटियों का पता लगाकर यह आकलन करना होगा कि डेटा कितना सही है। साथ ही, डेटा विश्लेषण के दौरान और उसके बाद डेटा को समझकर उसका विश्लेषण करने और अतिरिक्त रिपोर्टिंग करने के लिए समय की आवश्यकता होगी। इस तरह आप क्षेत्र में लोगों से साक्षात्कार और उनकी टिप्पणियों के साथ अपने डेटा की सटीकता का मिलान करके उसकी सत्यता का परीक्षण कर सकते हैं।

रिपोर्टिंग, संपादन और तथ्य-जांच के लिए अपने शेड्यूल के अनुसार काम पूरा करना सुनिश्चित करें। इस बात पर नज़र रखें कि किन नए स्रोत का उपयोग करना है। किसी कहानी को प्रस्तुत करने के संभावित तरीकों संबंधी योजना जल्दी बनानी चाहिए। उसमें दृश्य और इंटरैक्टिव तत्वों का समावेश भी शामिल करना बेहतर होगा।

स्टोरी पर काम करना

जांच के विभिन्न चरणों में संपादकीय प्रक्रिया को ध्यान में रखना जरूरी है। शुरुआत में यह आकलन करें कि कौन सी बात नई है? क्या यह विषय सार्वजनिक हित का है? जांच के लिए आवश्यक स्रोतों और संसाधनों तक पहुंचने में कठिनाई का भी आकलन करें। अनुसंधान और रिपोर्टिंग प्रक्रिया में नोट्स रखना जरूरी है। यह आकलन भी करना होगा कि कौन से निष्कर्ष किन स्रोतों द्वारा समर्थित हैं। वे कहानी से कैसे जुड़ते हैं।

ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कांफ्रेंस, 2023 के दौरान पैनल चर्चा में खोजी संपादकों के लिए निम्नलिखित सुझाव सामने आए । संपादकों के इस पैनल में रॉन निक्सन (एसोसिएटेड प्रेस), एलेजांद्रा ज़ेनिक (क्विंटो एलिमेंटो लैब), विनोद जोस (द कारवां), ड्रू सुलिवन (ओसीसीआरपी) शामिल थे।

  1. कहानी की पहचान करें
  2. एक अच्छी जांच योजना बनाएं
  3. कहानी पर फोकस करें
  4. व्यवस्थित तौर पर काम करें
  5. जीवंत दस्तावेज़ बनाएं
  6. पंक्तियों का संपादन
  7. जानिए कब रुकना है
  8. अपने पत्रकारों को सुरक्षित रखें

किसी कहानी की योजना बनाने और क्रियान्वयन के लिए जोखिम मूल्यांकन करना जरूरी है। खतरों के प्रकार और सुरक्षा प्रोटोकॉल पर विचार करें। ऐसे प्रोटोकॉल में यह तय करना है कि प्राप्त जानकारी किस तरह संग्रहित की जाएगी? आपका रिपोर्टर किसी स्रोत से किस माध्यम से संवाद करेगा? प्राप्त जानकारी को अन्य पत्रकारों या संपादकों के साथ किस तरह साझा किया जाएगा? क्या इसके लिए एन्क्रिप्शन या गोपनीय संचार का उपयोग करना आवश्यक है? इस स्टोरी से जुड़े कानूनी जोखिम क्या हैं?

जांच प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है सत्यापन करना। इसके लिए भी आपको समय आवंटित करना होगा। कुछ जांच टीमें इस सत्यापन प्रक्रिया के लिए अलग से विशेष पत्रकारों की मदद लेती हैं। लेकिन कई बार सत्यापन का यह काम उस कहानी की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों द्वारा स्वयं किया जाता है। कहानियों में प्रत्येक स्रोत का सटीक संदर्भ होना चाहिए जो प्रत्येक तथ्य का समर्थन करता हो। इनमें दस्तावेज़, व्यक्ति या अवलोकन, सब शामिल हैं। सत्यापन प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए इन संदर्भों को फ़ुटनोट के रूप में जोड़ सकते हैं। सभी डेटा विश्लेषण या गणना की समीक्षा करके उसे दुबारा जांच करनी चाहिए।

कहानी में शामिल लोगों और संस्थानों से उनका कमेंट मांगना जरूरी है। भले ही उनका जवाब ‘नो कमेंट‘ हो। ऐसा करके उन्हें किसी भी प्रश्न का उत्तर देने या अपने बचाव का अवसर देना चाहिए। इससे उन्हें आपकी कहानी में अपना पक्ष रखने अथवा तथ्यों या डेटा की व्याख्या का मौका मिलेगा। इस प्रक्रिया के दौरान कोई मूल्यवान जानकारी सामने आ सकती है। किसी जांच की विश्वसनीयता के लिए कानूनी समीक्षा भी महत्वपूर्ण है। खासकर इस वजह से कि हर देश के अनुसार नियम और कानून अलग-अलग होते हैं।

अब आप स्टोरी के प्रकाशन के लिए तैयार हैं। लेकिन कहानी की प्रस्तुति कैसे करनी है, यह भी विचारणीय है। विभिन्न चरणों में इसकी समीक्षा और योजना बनाई जा सकती है। यह इस बात पर निर्भर है कि कहानी किस प्रारूप या स्वरूप में प्रकाशित होगी। कुछ प्रकाशनों में कथात्मक कहानियां, इंटरैक्टिव तत्व, मल्टीमीडिया, वीडियो और डेटाबेस का प्रकाशन शामिल है। कुछ मीडिया संगठनों ने पॉडकास्ट और थिएटर नाटकों सहित अन्य प्रारूपों जैसा प्रयोग भी किया है। कहानी के प्रकाशन पर विचार करते समय देखना होगा कि निष्कर्षों का समर्थन करने वाले दर्शकों के साथ क्या साझा करना संभव है। जैसे दस्तावेज़, चित्र, डेटा, वीडियो और साक्ष्य।

एक अंतिम सुझाव: आपके पास रिपोर्टिंग संबंधी काम बंद करके स्टोरी लिखने लायक पर्याप्त जानकारी कब आ चुकी है, यह जानना जरूरी है।

केस स्टडीज

अवैध हवाई पट्टियों के कारण ब्राज़ील में जहरीला खनन (The Illegal Airstrips Bringing Toxic Mining to Brazil’s Indigenous Land)

न्यूयॉर्क टाइम्स ने पिछले साल यह खोजी रिपोर्ट प्रकाशित की। इसमें ब्राजील के अमेज़ॅन वर्षावन में 1269 अपंजीकृत हवाई पट्टियों का खुलासा हुआ। इन हवाई पट्टियों के कारण अवैध खनन उद्योग को बढ़ावा मिला। ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारो के शासनकाल में यह धंधा काफी बढ़ गया। यह खोजी रिपोर्टिंग परियोजना एक व्यापक साझेदारी (कोलाबोरेशन) के तहत की गई। इसमें न्यूयार्क टाइम्स के पत्रकारों ने अवैध हवाई पट्टियों के संभावित स्थानों की जानकारी के लिए साझेदारों से मदद ली। इनमें वाशिंगटन स्थित एक एनजीओ तथा पुलित्जर सेंटर के रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट ‘रेनफॉरेस्ट इन्वेस्टिगेशन नेटवर्क‘ की मदद मिली। ‘द इंटरसेप्ट ब्रासील‘ के रिपोर्टर ह्यूरी पॉटर (पुलित्जर सेंटर फेलो) ने भी साझदारी निभाई। भू-स्थानिक विश्लेषकों तथा अन्य सहयोगियों के माध्यम से क्राउडसोर्स्ड डेटाबेस, उपग्रह तस्वीरों को एकत्र किया गया।

फिनसेन फ़ाइल्स (FinCEN Files)

‘इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स‘ ने खोजी पत्रकारिता का एक बड़ा साझेदारी प्रोजेक्ट किया। इसमें ‘बज़फीड न्यूज‘ तथा 88 देशों के 108 मीडिया संगठन शामिल हुए। इसमें दस्तावेजों को व्यवस्थित करके उनका विश्लेषण करने में सोलह महीने लगे। इसे फिनसेन फाइल्स कहा जाता है। आईसीआईजे और उसके सहयोगियों ने स्रोतों से अतिरिक्त लीक दस्तावेज़ एकत्र किए। बड़े पैमाने पर अदालत और अभिलेखीय रिकॉर्ड को पढ़ा गया। वित्तीय अपराधियों और उनके पीड़ितों सहित सैकड़ों लोगों का साक्षात्कार लिया गया। इस जांच के प्रकाशन में कहानियों के साथ ही वीडियो व्याख्या और एक इंटरैक्टिव मानचित्र भी शामिल है। इनसे दर्शकों को 18000 से अधिक वित्तीय लेनदेन के बारे में जानकारी मिलती है, जिन्हें बैंकों ने संदिग्ध के रूप में चिह्नित किया।

कैमरून में अवैध लकड़ी तस्करी की जांच

‘इन्फोकांगो‘ तथा ‘ले मोंडे‘ ने यह साझेदारी खोजी रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट किया। इसमें विभिन्न स्रोतों से डेटा संग्रह और विश्लेषण किया गया। कांगो बेसिन वर्षावन के कैमरून वाले हिस्से में अवैध लकड़ी तस्करी की जांच हुई। इन आपराधिक गतिविधियों को उजागर किया गया। इस अपराध में कई उच्च सैन्य अधिकारी शामिल थे। इस जांच में ‘पुलित्जर सेंटर‘ ने सहयोग किया। जोसियन कौघेउ और मेडेलीन नगेउंगा ने इस जांच का नेतृत्व किया। यह जांच कैमरून जैसे देश में हुई, जहां पत्रकारों को उच्च जोखिम का सामना करना पड़ता है। उन्हें रिपोर्टिंग करते समय सावधानीपूर्वक सुरक्षा की जरूरत पड़ती है। बारह महीने की इस परियोजना के आधार पर कैमरून सरकार ने इस क्षेत्र में अधिक कठोर नियंत्रण की मांग की गई।


ब्रेंट ह्यूस्टन – इलिनोइस विश्वविद्यालय में खोजी रिपोर्टिंग में नाइट चेयर हैं। एक दशक से अधिक समय तक ‘इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टर्स एंड एडिटर्स‘ के कार्यकारी निदेशक रहे। वहां उन्होंने इसकी सदस्यता को 4000 से अधिक तक पहुंचा दिया। इससे पहले उन्होंने अमेरिकी अखबारों में पुरस्कार विजेता खोजी रिपोर्टर और डेटाबेस संपादक के बतौर काम किया। वह कैनसस सिटी स्टार के स्टाफ का हिस्सा थे, जिसने होटल की इमारत ढहने संबंधी स्टोरी के लिए पुलित्जर पुरस्कार जीता था। इस घटना में 114 लोग मारे गए थे। इसमें जीवित बचे लोगों की यह पहली कहानी लिखी गई थी।

Emilia Díaz-Struckएमिलिया डियाज़-स्ट्रक – जीआईजेएन की कार्यकारी निदेशक हैं। पहले वह ‘इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स‘ (आईसीआईजे) में डेटा व शोध संपादक तथा लैटिन अमेरिकी समन्वयक थीं। एक दशक से अधिक समय तक उन्होंने 20 से अधिक आईसीआईजे पुरस्कार विजेता खोजी साझेदारी रिपोर्टिंग परियोजनाओं में हिस्सा लिया। इनमें शामिल हैं – ऑफशोर लीक्स, इंप्लांट फाइल्स, फिनसेन फाइल्स, पेंडोरा पेपर्स और पुलित्जर विजेता पनामा पेपर्स। वह अपने मूल स्थान वेनेजुएला में डेटा पत्रकारिता और खोजी सहयोग में अग्रणी रहीं। वह सैकड़ों लैटिन अमेरिकी पत्रकारों की मार्गदर्शक भी रही हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में डेटा पत्रकारिता और खोजी सीमा पार सहयोग पर ग्रीष्मकालीन सेमिनार में पढ़ाया है। वह वेनेजुएला के केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रही हैं। साथ ही, वाशिंगटन पोस्ट, पत्रिका पोडर वाई नेगोसियोस, वेनेजुएला मीडिया एल यूनिवर्सल, एल मुंडो और अरमांडो डॉट इन्फो के लिए योगदानकर्ता रही हैं। वह इसकी सह-संस्थापक भी हैं।

अनुवाद : डॉ. विष्णु राजगढ़िया

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