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दीर्घकालिक खोजी रिपोर्टिंग को जारी रखने या रोकने का निर्णय कैसे लें?

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खोजी पत्रकारिता की दीर्घकालिक रिपोर्टिंग परियोजनाओं को जारी रखने में कई प्रकार की चुनौतियां आती हैं। इसमें आर्थिक लागत के साथ ही कई जोखिम तथा अन्य पहलू शामिल होते हैं। इसलिए यह विचार करना जरूरी है कि किसी खोजी परियोजना को कब तक जारी रखना है या कब रोक देना है। परियोजना जारी रखने को ‘ग्रीन-लाइटिंग’ कहा जाता है। परियोजना रोकने संबंधी निर्णय को ‘रेड-लाइटिंग’ कहते हैं।

किसी संपादक को अपने किसी रिपोर्टर को सामान्य बीट के बजाय किसी दीर्घकालिक खोजी परियोजना में कब लगाना चाहिए? ऐसी परियोजना के लिए हवाई यात्रा की लागत तथा अन्य कई खर्च आएंगे। किसी अन्य मीडिया संस्थान के साथ सहयोग के समझौते पर हस्ताक्षर करने की जरूरत पड़ सकती है। इसलिए किसी परियोजना को स्वीकृति देने से पहले संपादक के पास उस मामले से जुड़ी कई प्रकार की सत्यापित जानकारी होना आवश्यक है। ठोस जानकारी के बगैर कोई संपादक ऐसे बड़े निर्णय कैसे ले सकता है?

दीर्घकालिक खोजी जांच के लिए सहमति प्रदान करना ‘ग्रीन-लाइटिंग’ है। कोई संपादक ऐसा निर्णय अचानक नहीं ले सकता है। उस परिकल्पना का समर्थन करने के लिए जोखिम की जानकारी और विश्वसनीय स्रोत का आकलन जरूरी है। जोखिमों में आर्थिक व्यय और समय की लागत, स्रोतों या व्हिसल-ब्लोअर्स की विश्वसनीयता पर भरोसा करना, पत्रकारों की सुरक्षा को जैसे मामले प्रमुख हैं। एक संभावना यह भी हो सकती है कि किसी प्रतिद्वंद्वी मीडिया संस्थान द्वारा उसी विषय पर आपसे पहले कोई छोटी स्टोरी प्रकाशित कर दी जाए। ऐसा होने पर उसे संस्थान को उस स्टोरी को ‘स्कूप’ करने का लाभ मिल सकता है।

‘इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टर्स एंड एडिटर्स‘ (Investigative Reporters and Editors) ने जून 2023 में अमेरिका में आईआरई-23 (IRE23) का आयोजन किया। यह खोजी पत्रकारों और संपादकों का वार्षिक निगरानी पत्रकारिता शिखर सम्मेलन था। इस दौरान जीआइजेएन ने पांच अनुभवी खोजी संपादकों से बात की। उनसे पूछा कि किसी खोजी परियोजना को आगे बढ़ाने से पहले कैसी जानकारी चाहिए। हमने यह भी पूछा कि किन परिस्थितियों में किसी खोजी रिपोर्टिंग को प्रकाशित करने के बजाय उस परियोजना को रोक देने का निर्णय लेंगे। यानी ‘रेड-लाइटिंग’ का निर्णय कब लेंगे?

संपादकों ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिया। इसमें एक सामान्य सूत्र निकलकर सामने आया। कोई संपादक सबसे पहले उस खोजी परियोजना के संबंध में एक ‘नट-ग्राफ’ (nut graph) या उसका संक्षिप्त सारांश देखना चाहेगा। इससे यह पता चले कि यह स्टोरी अंततः क्या कवर करेगी? कौन-सी बात निकलकर आने की संभावना है? इसके अलावा, उसी विषय पर पहले हुई रिपोर्टिंग भी देखना चाहते हैं, जिसमें किसी विश्वसनीय स्रोत से कोई बात निकलकर सामने आई हो। उस स्टोरी से जुड़े दावे का प्रारंभिक सत्यापन और स्टोरी के संभावित प्रभाव की जानकारी भी उपयोगी होती है। यह जानना महत्वपूर्ण है कि किसी प्रतिद्वंद्वी मीडिया संस्थान द्वारा उसी विषय पर पहले की गई किसी कम विस्तृत स्टोरी के कारण किसी पिच को अस्वीकार नहीं किया जाता।

‘न्यूनतम’ और ‘अधिकतम’ स्टोरीज

कुछ पत्रकारों के पास किसी संस्थान या बीट के संबंध में काफी गहरी जानकारी होती है। उस भरोसे के आधार पर कोई संपादक किसी स्टोरी को हरी झंडी दे सकता है। एंड्रयू लेहरन (वरिष्ठ संपादक, एनबीसी न्यूज इन्वेस्टिगेशंस, अमेरिका) के अनुसार कुछ मामलों में कोई टिप या नया डेटा नहीं होने पर भी संपादक किसी रिपोर्टिंग प्रस्ताव (पिच) को मंजूरी दे सकता है। यदि कोई रिपोर्टर कहे- “मुझे यकीन है कि ‘एक्स’ हो रहा है, जिससे ‘वाई’ को नुकसान होगा।” रिपोर्टर की इस बात पर भरोसा करके संपादक ऐसी खोजी रिपोर्टिंग परियोजना को स्वीकार कर सकता है।

एंड्रयू लेहरन ने इस संबंध में खुद से जुड़ा एक उदाहरण दिया। उत्तर कोरिया द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग पर उन्होंने वर्ष 2020 में एक खोजी रिपोर्ट की थी। अमेरिका ने उत्तर कोरिया के खिलाफ काफी आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। इसके बावजूद उत्तर कोरिया ने न्यूयॉर्क बैंकों के माध्यम से मनी लॉन्ड्रिंग की। इस मामले में एंड्रयू लेहरन के सारे अनुमान सही साबित हुए। हालांकि एंड्रयू लेहरन ने यह भी स्पष्ट किसा कि खोजी रिपोर्टिंग संबंधी ऐसे कई प्रस्ताव खारिज कर दिए जाते हैं। इन्हें शायद ही कभी वित्तीय सहायता मिलती है। इसलिए पत्रकारों को ऐसी पिच करते समय समानांतर रूप से प्रकाशित करने योग्य कुछ निश्चित स्टोरी का भी प्रस्ताव देना चाहिए, जिन्हें वाकई डिलीवर करना संभव हो।

अधिकांश संपादकों ने कहा कि एक खोजी परियोजना को बीच में शायद ही कभी पूरी तरह रोका जाता है। भले ही प्राथमिक लक्ष्य पूरा न हुआ हो। किसी स्टोरी को तभी रोकते हैं, जब किसी प्राथमिक स्रोत के बारे में कोई नई समस्यापूर्ण जानकारी सामने आए। कुछ मामलों में रिपोर्टिंग टीम को मनगढ़ंत डेटा या धोखे का सबूत मिलने पर भी परियोजना के मूल रूप को बदलना पड़ता है। ऐसे मामलों में उस परियोजना से जुड़ी ‘न्यूनतम’ और ‘अधिकतम’ स्टोरीज की परिकल्पना की जाती है। यानी कम-से-कम किस तरह की स्टोरी मिल सकती है और अधिकतम क्या हासिल कर सकते हैं।

‘अधिकतम’ स्टोरी का मतलब ऐसी खबर से है, जिसमें किसी नुकसानदायक या भ्रष्ट आचरण में गुप्त भागीदारी वाले अधिकारी का नाम खुलकर सामने आए। इसके आधार पर उस अधिकारी को बर्खास्त करना या मुकदमा चलाना संभव हो।

‘न्यूनतम’ स्टोरी का मतलब ऐसी खबर से है, जिसमें दोषी लोगों का नाम बताना संभव न हो। इसमें केवल किन्हीं प्रवृतियों या करतूतों को उजागर किया जा सकता है। उसके पीड़ितों के नाम और उन्हें हुए नुकसान का पता चल सकता है। लेकिन दोषी लोगों का पता नहीं चल पाता।

इस तरह, ‘अधिकतम’ स्टोरी में भ्रष्ट आचरण करने वालों की पहचान स्पष्ट तौर पर उजागर होती है जबकि ‘न्यूनतम’ स्टोरी में सिर्फ पीड़ितों का पता चल पाता है।

संपादकों के अनुसार न्यूनतम स्टोरीज प्रकाशित करने का भी काफी महत्व है। ऐसी स्टोरी आने के बाद विस्सल-ब्लोअर सामने आते हैं। किसी संगठन के भीतर के लोग आकर कोई बड़ी जानकारी देते हैं। संपादकों के अनुसार ऐसी खबरें प्रकाशित करने के दौरान पारदर्शिता महत्वपूर्ण है। पाठकों को स्पष्ट रूप से बताना सुनिश्चित करें कि क्या साबित किया जा सकता है और क्या नहीं।

लाल बत्ती को हरी बत्ती में बदलना

फरवरी 2023 में एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के खोजी संपादकों को एक परियोजना को हरी झंडी दिखाने को लेकर दुविधा का सामना करना पड़ा। उनके पश्चिम अफ्रीका संवाददाता, सैम मेडनिक ने एक जांच परियोजना का प्रस्ताव दिया था- ‘क्या बुर्किना फासो में सात लड़कों की हत्या में सैनिक जिम्मेदार थे’

बुर्किना फासो की सरकार ने इस हत्याकांड में अपने सैनिकों की भागीदारी से साफ इंकार किया था। लेकिन सेनेगल निवासी रिपोर्टर सैम मेडनिक ने सोशल मीडिया पर 83 सेकंड का एक ग्राफिक वीडियो देखा था। इसमें सैनिक वर्दी पहने लोगों द्वारा एक बच्चे को मारते हुए दिखाया गया था। एक क्लिप में कुछ स्थानीय इमारतें, सैनिकों के जूते और वाहन भी दिख रहे थे। लेकिन इसके अलावा कुछ और विवरण नहीं दिख रहा था।

एपी के वैश्विक खोजी रिपोर्टर माइकल बिसेकर के अनुसार, संपादकों ने इस बात को स्वीकार किया कि यह एक महत्वपूर्ण स्टोरी है। लेकिन इस स्टोरी के लिए रिपोर्टर सैम मेडनिक द्वारा सेनेगल से बुर्किना फासो की यात्रा के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। संपादकों को चिंता थी कि उस खतरनाक माहौल में जाकर वीडियो की पुष्टि करना काफी जटिल होगा।

माइकल बिसेकर के अनुसार इस परियोजना को एक नया जीवन मिल गया। एपी में हम लोग संभावित स्टोरीज के बारे में लगातार बातें करते रहते हैं। इस दौरान एपी में वैश्विक जांच प्रमुख रॉन निक्सन ने वह वीडियो क्लिप देखा। उन्होंने सुझाव दिया कि माइकल बिसेकर अपने विजुअल फोरेंसिक कौशल का उपयोग करके वीडियो को सत्यापित करने और सैन्य इकाई की पहचान करने की कोशिश करें। वह अमेरिका में अपने डेस्क से ही ऐसी मदद करें। इस तरह, सैम मेडनिक को घटनास्थल की यात्रा के प्रस्ताव पर पुनर्विचार किया गया।

सैनिकों द्वारा बुर्किना फासो में सात किशोरों की हत्या के वीडियो के आधार पर एपी अफ्रीकी संवाददाता ने खोजी परियोजना का प्रस्ताव दिया था। इसे शुरू में अस्वीकृत कर दिया गया। लेकिन एपी की विजुअल इन्वेस्टिगेशन यूनिट ने वीडियो के कई विवरणों की पुष्टि की। तब परियोजना को फिर से शुरू किया। इमेज: स्क्रीनशॉट, एपी

एक ही दिन में माइकल बिसेकर ने जांच करके इन बिंदुओं को सत्यापित किया:

हत्याकांड का स्थान – एक सैन्य अड्डे के पास, क्षेत्रीय राजधानी औआहिगौया से लगभग दो किलोमीटर उत्तर में। इस जियोलोकेशन की जानकारी के लिए गूगल अर्थ और उच्च रिजॉल्यूशन वाले मैक्सर उपग्रह इमेजरी का उपयोग किया गया। सैनिकों के जूतों का भी पता चल गया। जर्मनी में बने ये जूते यूरोपीय संघ द्वारा बुर्किना फासो सेना को भेजे गए एक ब्रांड से मेल खाते थे। हत्या सुबह 11 बजे से दोपहर के बीच हुई, इसकी भी पुष्टि हुई। सनकैल्क टूल के माध्यम से छाया विश्लेषण का उपयोग करके यह पता लगाया गया। वर्ष 2011 में पेंटागन की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार बुर्किना फासो सरकार को दान में मर्सिडीज ट्रक दिए गए थे। ट्रकों का वह ब्रांड इस क्षेत्र में दुर्लभ था। वीडियो के ट्रकों से वह सटीक रूप से मेल खा रहा था।

इस तरह प्रारंभिक सबूतों की पुष्टि हुई। इस आधार पर एपी संपादकों ने परियोजना को हरी झंडी दिखाई। सैम मेडनिक को बुर्किना फासो जाने की अनुमति मिली। सभी संसाधन उपलब्ध कराए गए। माइकल बिसेकर ने अमेरिका में रहते हुए इस जांच में सहयोग किया। सैम मेडनिक को एक मृत बच्चे की मां और चाचा का पता चल गया। इसके बाद उनके लिए यह स्टोरी करना संभव हुआ

रिपोर्टिंग टीम को एक आंतरिक सरकारी दस्तावेज भी मिल गया। हत्याकांड के दूसरे दिन बुर्किनाबे सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सैनिकों को यह चेतावनी दी थी कि हत्याकांड संबंधी ऐसे वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर पोस्ट न करें। माइकल बिसेकर बताते हैं कि विजुअल फोरेंसिक सत्यापन तथा अन्य कई तरीकों से किसी रुकी हुई जांच परियोजना को फिर से शुरू किया जा सकता है। अन्य तरीकों में कोई विश्वसनीय मानव स्रोत उपलब्ध होना, किसी डेटा से निकलने वाले पैटर्न और सहयोगी भागीदारों से मिले इनपुट शामिल हैं। किसी खोजी रिपोर्टिंग प्रस्ताव को आसानी से खारिज करने के बजाय ऐसे तत्वों की तलाश करनी चाहिए।

एक खोजी पिच को मंजूरी दिलाने में मददगार तत्व

सत्यापन और ताजा समाचार

होदा उस्मान, एआरआइजे की कार्यकारी संपादक। इमेज एआरआइजे के सौजन्य से।

अरब रिपोर्टर्स फॉर इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (एआरआईजे) की कार्यकारी संपादक होडा उस्मान (Hoda Osman) कहती हैं- “किसी खोजी परियोजना के संबंध में समुचित पूर्व-रिपोर्टिंग करना जरूरी है। सिर्फ कुछ टिप होने से काम नहीं चलेगा। खासकर हमलोग दुनिया के जिस हिस्से में रहते हैं, वहां पत्रकारों की सुरक्षा के साथ यह मूल्यांकन करना भी जरूरी है कि हमें प्राप्त साक्ष्यों की पुष्टि होने की कितनी संभावना है। रिपोर्टरों के पास अपनी स्टोरी को वैध साबित करने के लिए पर्याप्त आधार और दस्तावेज हो सकते हैं। लेकिन संपादकों के लिए दो बड़े कारक महत्वपूर्ण हैं। पहला, जिस क्षेत्र में जानकारी तक पहुंचना बहुत मुश्किल है, वहां क्या आप मामले को साबित करने में वाकई सक्षम हैं? दूसरा, क्या ऐसी रिपोर्ट के कारण रिपोर्टर की हत्या अथवा गिरफ्तारी हो सकती है?”

होडा उस्मान के अनुसार, ‘मेना क्षेत्र’ (मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका) में किसी खोजी परियोजना को अगर अन्य स्वतंत्र स्रोतों से नई जानकारी नहीं मिल पाए, तो उसे फीचर स्टोरी के रूप में विकसित कर सकते हैं। ऐसी स्टोरी अपनी विशिष्टता या नवीनता के कारण स्थानीय पाठकों के लिए महत्वपूर्ण होंगी।

वह कहती हैं- “आपको यह देखना होगा कि उस मामले में पहले किस तरह की स्टोरी लिखी गई थी? उसमें किन चीजों का खुलासा हुआ था? अगर आपके पास कोई नई जानकारी है, तो क्या उससे वाकई यह स्टोरी आगे बढ़ा सकती है? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके स्रोत कितने प्रभावशाली हैं। एक पत्रकार के रूप में यदि आप किसी नई जानकारी का खुलासा नहीं करते, तो आप जांच में सफल नहीं हो सकते।”

शुरूआत की अच्छी योजना बनाओ

‘सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क’ में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म के एडजंक्ट प्रोफेसर एंड्रयू लेहरेन कहते हैं- “आदर्श रूप से एक संपादक किसी खोजी परियोजना के प्रस्ताव में कोई थीसिस देखना चाहता है। उस स्टोरी में क्या मिल सकता है, इसका एक नट-ग्राफ मिलना उपयोगी होता है। किस तरह की ‘न्यूनतम’ और ‘अधिकतम’ स्टोरी के विकल्प हैं, यह देखना चाहता है। एक रिपोर्टिंग मेमो का होना भी उपयोगी होता है। यहां ‘मेमो’ का मतलब सिर्फ एक ऐसे ईमेल से है, जिसमें रिपोर्टर अपने स्रोतों और अपने पास उपलब्ध दस्तावेजों जानकारी देता है। इसमें यह रूपरेखा भी हो कि परियोजना में कितना समय और कितने संसाधन लगने का अनुमान है। यदि रिपोर्टर कहता है कि सूचना का अधिकार के माध्यम से एक सप्ताह के भीतर एक दस्तावेज मिलने की उम्मीद है, तो मैं कहूंगा कि परियोजना को हरी झंडी देने से पहले वह सूचना मिलने की प्रतीक्षा करें।”

किसी स्टोरी के प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिए कैसी जानकारी मिलना आवश्यक है? एंड्रयू लेहरन ने इसके लिए अपने एक पिच का उदाहरण दिया। ‘इराक में निजी सैन्य ठेकेदारों द्वारा हिंसा की जांच’  हेतु वह प्रस्ताव पेश किया था। इस पिच की थीसिस में उन्होंने लिखा था- “इराक में निजी सैन्य ठेकेदारों ने अनुमान से काफी अधिक इराकी नागरिकों को मारा और घायल किया है।”

संपादकों को दिए गए अपने रिपोर्टिंग मेमो में एंड्रयू लेहरन ने बताया था कि उन्हें पहले ही लीक हुए इराक युद्ध के लॉगबुक में इन कंपनियों से जुड़ी कई हिंसक घटनाओं की जानकारी मिली है। सभी सैन्य ठेकेदारों का डेटाबेस बनाने में लगभग एक सप्ताह लगेगा। मेमो में बताया गया कि फिर वॉर लॉग्स और अन्य डेटा के जरिए उन नामों का परीक्षण किया जाएगा। फिर मानव स्रोतों को सत्यापित करने और उनसे जानकारी हासिल करने में थोड़ा और समय लगेगा।

एंड्रयू लेहरन कहते हैं- “मैं किसी पिच को हरी झंडी दिखाने से पहले स्टूडेंट्स से कहता हूं कि आप अपनी थीसिस को प्रमाणित करना शुरू करो। संभव है कि उन्होंने संघीय अदालत के मामले में ऐसे तथ्य देखे हों, जिस पर अन्य किसी ने ध्यान नहीं दिया। संभव है कि किसी के एनजीओ के दस्तावेजों या एसईसी फाइलिंग से पुष्टि हो।”

खुद पर भरोसा रखें

कॉक्स मीडिया ग्रुप में खोजी सामग्री की प्रबंध संपादक जोडी फ्लेशर कहती हैं- “टीवी रिपोर्टर के लिए ग्रीनलाइटिंग संभवतः तब होती है जब आप शूटिंग शुरू करते हैं। इसलिए रिपोर्टर को अपना बुनियादी शोध कर लेना चाहिए। टिप से आगे बढ़कर कुछ ठोस आधार जुटाना बेहतर होता है। किसी प्रोजेक्ट को रोकने का फैसला अक्सर यह एहसास होने पर लिया जाता है कि आपको आगे बढ़ने के लिए लीड नहीं मिल रहे हैं। यदि आपकी टीम अपनी जांच को लेकर आश्वस्त नहीं हो, तब भी दुविधा होती है। यदि कोई मुख्य स्रोत बाहर हो जाए, या कहे कि परिस्थितियाँ बदल गई हैं, और मैं अब ऐसा नहीं कर सकता, तब भी जांच रोकनी पड़ सकती है। यहां तक कि यदि स्टोरी मैनेजरों को जांच अच्छी लग रही हो, तब भी जांच कर रहे पत्रकार को कोई संदेह हो सकता है। मैं इसका सम्मान करती हूं। अगर पत्रकार कहे है कि यह मुझे अच्छा नहीं लग रहा तो मैं उनकी बात मान लेती हूं और उन चीजों को हटा देती हूं।”

जोडी फ्लेशर कहती हैं- “जब आप किसी परियोजना को रोकते हैं तो रिपोर्टर आम तौर पर नाराज नहीं होते हैं। वे खुद भी ऐसी किसी चीज की रिपोर्ट नहीं करना चाहते हैं जो पूरी तरह से पकी हुई नहीं है।” हालाँकि वह कहती हैं कि अन्य मीडिया संस्थानों द्वारा पहले की स्टोरीज थोड़ी विचारणीय होती हैं, बशर्ते उनमें गहराई हो और उनके दर्शकों के लिए मायने रखती हो।

अपने स्रोतों और दर्शकों को जानें

एबीसी न्यूज इन्वेस्टिगेटिव यूनिट की कार्यकारी निर्माता सिंडी गैली कहती हैं- “आपको सबसे पहले अपने दावे को मजबूत बनाने की जरूरत है। इसके लिए उचित परिश्रम करें। यह दिखाएँ कि आपकी स्टोरी में दम है। यह सुनिश्चित करने में आपको एक सप्ताह या महीने भर का भी समय लगे तो कोई हर्ज नहीं। आप साबित करें कि आपके पास एक व्यावहारिक जांच का प्रोजेक्ट है। मैं किसी कमजोर प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए समय और पैसा खर्च नहीं कर सकती। मुझे यह जानना है कि आपने अपने मुख्य स्रोत की जांच कर ली है।”

सिंडी गैली, कार्यकारी निर्माता, एबीसी न्यूज इन्वेस्टिगेटिव यूनिट। इमेज: स्क्रीनशॉट, आईआरई

सिंडी गैली के अनुसार हर मीडिया संस्थान के लिए किसी स्टोरी को हरी झंडी देने के मायने अलग हो सकते हैं। मेरे लिए इसका मतलब किसी परियोजना के लिए धन आवंटित करना हो सकता है। कोई अन्य संपादक कानूनी विभाग की सहमति के बाद यह करेगा। लेकिन हर संपादक को मालूम है कि उनके पाठकों को अच्छी स्टोरी की परवाह है। यदि आप सबूतों का कोई संबंध नहीं ढूंढ पा रहे हैं, तो आपके पाठकों को ऐसी स्टोरी में दिलचस्पी क्यों होगी? तब आप इसमें निवेश नहीं करेंगे।

सिंडी गैली ने कहा- “किसी एक ही मुद्दे पर अन्य मीडिया आउटलेट्स द्वारा पहले प्रकाशित स्टोरी के कारण नई स्टोरी के पिच को रोकना नहीं चाहिए। मैंने अच्छी कहानियों को खत्म होते देखा है क्योंकि किसी और ने उस विषय पर कोई कम तथ्यों वाला स्टोरी कर दी थी। लेकिन अगर आप उस पर ज्यादा बेहतर कर सकते हैं, या अधिक गहराई से कर सकते हैं, या आपके पास ऐसे तथ्य हैं जो दूसरों के पास नहीं हैं, तो आपको विस्तृत स्टोरी जरूर करनी चाहिए। हमारे पास अलग-अलग दर्शक वर्ग हैं। बहुत से पाठकों में आपके ब्रांड के प्रति निष्ठा है। इसलिए हमारे स्थानीय पाठकों को उस मुद्दे के बारे में जानकारी नहीं होगी।”

गैली के अनुसार ग्रीनलाइटिंग अब सिर्फ किसी एक रिपोर्टर द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव तक सीमित नहीं है। इस पर न्यूजरूम में आम सहमति शामिल हो सकती है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि अब सहयोग आधारित खोजी रिपोर्टिंग का भविष्य है।

अतिरिक्त संसाधन

A Tiered Approach to Researching and Pitching Investigative Stories for Freelance Writers

Freelancing Investigative Journalism: How to Pitch

Guide to Internal Fact-Checking of Investigative Stories


रोवन फिलिप जीआईजेएन के वरिष्ठ पत्रकार हैं। पहले वह दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्टिंग की है।

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