Image: Courtesy of Mukhriz Hazim / Malaysiakini

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मलेशियाकिनी: एक स्वतंत्र न्यूजरूम का निर्माण, जो सत्ता के लिए चुनौती बना

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मलेशिया के इस ऑनलाइन मीडिया संगठन की कहानी काफी दिलचस्प है। वर्ष 2003 में न्यूज वेबसाइट ‘मलेशियाकिनी‘ ने एक गुमनाम पत्र प्रकाशित किया था। देश की सत्तारूढ़ पार्टी की युवा शाखा ने इस पत्र पर आपत्ति जताई। ऐसे प्रकाशन को ‘देशद्रोह‘ कहा गया। सरकार ने पत्रलेखक का नाम बताने का निर्देश दिया। लेकिन ‘मलेशियाकिनी‘ ने उसका नाम बताने से इनकार कर दिया। तब पुलिस ने उनके कार्यालय में छापा मारकर कंप्यूटर और सर्वर जब्त कर लिया।

इसके खिलाफ नागरिकों में तीखी प्रतिक्रिया हुई। कुछ ही घंटों में लगभग 200 नागरिक मोमबत्ती जुलूस के साथ उनके कार्यालय के बाहर एकत्र हो गए। एक पाठक अपने साथ एक कंप्यूटर सेट लेकर आ गया। कहा कि अभी इस कम्प्यूटर की मेरे बच्चे से ज्यादा मलेशियाकिनी के पत्रकारों को जरूरत है।

इस संकट से टीम मुश्किल से संभली थी, कि एक और संकट आ गया। उनका कार्यालय किराए के एक भवन में था। भवन मालिक ने उसे खाली करने का नोटिस दे दिया। मलेशियाकिनी की स्वतंत्र पत्रकारिता के कारण सरकार के दबाव में मकान मालिक को ऐसा करना पड़ा।

ऐसी संघर्षपूर्ण शुरुआत से अब दो दशकों से अधिक समय बीत चुका है। इस दौरान निर्भीक पत्रकारिता के कारण मलेशियाकिनी पर कई तरह का जुर्माना और कई कानूनी मुकदमे लगाए गए। लेकिन हर बार यह बच निकलने में कामयाब रहा है।

वर्ष 2021 में मलेशियाकिनी पर अवमानना के लिए लगभग 122,000 अमेरिकी डॉलर का जुर्माना लगा। यह जुर्माना इस वेबसाइट द्वारा लिखी गई अपनी किसी सामग्री के लिए नहीं, बल्कि पाठकों की पांच टिप्पणियों के लिए लगाया गया। अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोपी एक पूर्व वरिष्ठ मंत्री के खिलाफ मुकदमा बंद कर दिया था। इस फैसले संबंधी रिपोर्ट पर पाठकों की टिप्पणियों को अदालतों की अवमानना के बतौर देखा गया।इससे पहले भी मलेशियाकिनी को सरकार की नाराजगी का सामना करना पड़ा था। लेकिन यह बड़ा झटका था। इस जुर्माने को इस वेबसाइट के वित्तीय संसाधन ध्वस्त करके प्रकाशन बंद कराने के प्रयास के बतौर देखा गया।

ऐसे में मलेशियाकिनी ने एक बार फिर अपने पाठकों से मदद मांगी। पांच घंटों के भीतर पाठकों के योगदान से जुर्माना भरने लायक राशि आ गई। साथ ही, प्रकाशन के कानूनी रक्षा कोष के लिए अतिरिक्त धनराशि भी मिल गई। उन दिनों की याद करते हुए मलेशियाकिनी के सह-संस्थापक और पूर्व प्रधान संपादक स्टीवन गन कहते हैं- “हमें एहसास तक नहीं था कि जनता हमारे साथ इतना गहरा रिश्ता महसूस करती है।“

स्टीवन गन, (बाईं ओर) और प्रेमेश चंद्रन (मलेशियाकिनी के सह-संस्थापक)। इमेज : मलेशियाकिनी के सौजन्य से।

सत्ता के सामने सच बोलने का यह शानदार लंबा रिकॉर्ड है। लगातार उन मुद्दों को कवर करना, जिनसे अन्य प्रकाशन बचते हैं। शक्तिशाली लोगों की नजर में एक ‘कांटा‘ होने पर मलेशियाकिनी को गर्व है। 2000 के दशक की शुरुआत में मलयेशियाकिनी ने देश के रिफॉर्मासी आंदोलन का शानदार कवरेज किया था। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद का इस्तीफा मांगा गया था। इस कवरेज के कारण इस वेबसाइट को ‘देशद्रोही‘ कहा गया। सरकारी प्रेस कॉन्फ्रेन्स से इसके पत्रकारों को प्रतिबंधित कर दिया गया। महाथिर मोहम्मद ने पद छोड़ने के वर्षों बाद कहा- “मेरे कार्यकाल के दौरान मलेशियाकिनी मेरी गले की हड्डी के समान था।“

‘मलेशियाकिनी‘ जीआईजेएन का सदस्य संगठन है। ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉन्फ्रेंन्स 2025 का आयोजन अगले साल कुआलालंपुर में होगा। मलेशियाकिनी इसमें सह-आयोजक है।

स्टीवन गन कहते हैं- “एशिया के कई देशों में सत्तावादी सरकारों का प्रभाव है। दुनिया के इस हिस्से में पहला वैश्विक खोजी पत्रकारिता सम्मेलन आयोजित होगा। ऐसा करके जीआईजेएन एक स्पष्ट संदेश देना चाहता है कि इन सरकारों को अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इन देशों में नागरिकों को अक्सर अंधेरे में रखा जाता है। वे भ्रष्टाचार की दुर्गंध को सूंघ सकते हैं, लेकिन देख नहीं सकते। पत्रकार के रूप में हमारा काम इन चीजों पर रोशनी डालना है।“

मलेशिया एक ऐसा देश है, जहां मीडिया पर सरकार का कड़ा नियंत्रण है। मीडिया को जीवित रहने के लिए स्वयं सेंसरशिप का पालन करना पड़ता है। लेकिन ऐसे देश में मलेशियाकिनी ने अपनी स्वतंत्र पत्रकारिता के जरिए पाठकों का भरोसा और समर्थन हासिल किया है। इसके कारण आलोचनात्मक रिपोर्टिंग की मांग पैदा हुई है। इसने मीडिया परिदृश्य को बदल दिया है।

स्वतंत्र पत्रकारिता जहां एकक्रांतिहै

स्टीवन गन और उनके सह-संस्थापक प्रेमेश चंद्रन ने 1999 में मलेशियाकिनी को डिजिटल न्यूज वेबसाइट के रूप में शुरू किया था। दोनों पहले मलेशिया के अखबार ‘द सन‘ में काम करते थे। लेकिन सरकार या राजनीतिक दलों द्वारा संचालित मीडिया संगठनों में काम करते हुए सत्ता के पक्ष में रिपोर्टिंग करते हुए वे दोनों थक चुके थे।

मलेशिया में मीडिया पर राजनीतिक दलों के स्वामित्व संबंधी कुछ उदाहरण देखें। ‘मीडिया प्राइमा ग्रुप‘ इस देश का सबसे बड़ा मीडिया समूह है। इस पर मलेशिया में 2018 तक शासन करने वाली पार्टी से जुड़े लोगों का आंशिक स्वामित्व है। यह ग्रुप मलेशिया के प्रमुख नेटवर्क टीवी-3 का संचालन करता है। इसी तरह, सरकार के स्वामित्व वाला रेडियो टेलीविज़न मलेशिया (आरटीएम) तीस से अधिक रेडियो स्टेशन और तीन टीवी चैनल चलाता है। विपक्षी दल भी स्वयं अपने प्रकाशनों का समूह चलाते हैं।

यह लगभग पच्चीस साल पहले की बात है, जब इंटरनेट नेटवर्क को डायल करना पड़ता था। कंप्यूटर भारी-भरकम डिब्बों जैसे थे। उन्हें डेस्क पर रखा जाता था। मोबाइल फोन भी बड़े आकार के होते थे। उनका वजन भी ज्यादा था। उन दिनों सरकार ने वेब मीडिया को सेंसर नहीं करने का वादा किया था। डिजिटल माध्यमों से महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित होती थी। इनके जरिए नागरिकों को देश की राजनीतिक स्थिति के बारे में एक गैर-पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण देने का अवसर मिलता था।

यह राजनीतिक सक्रियता का एक नया युग था। वर्ष 1998 में उप प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी के बाद तीखे विरोध की लहर देखी गई थी। विरोध प्रदर्शनों पर सरकार की कठोर प्रतिक्रिया सामने आई। इन विषयों पर मलेशियाकिनी की ऑनलाइन रिपोर्टिंग ने सूचना पर सरकार के गढ़ को तोड़ दिया था।

स्टीवन गन कहते हैं- “हमारी रिपोर्टिंग का राजनीतिक असर साफ दिख रहा था। अपनी रिपोर्टिंग के साथ ही हम मलेशियाई नागरिकों को अपनी राय व्यक्त करने के लिए मंच प्रदान करते थे। इसके कारण हम पहले से ही कुछ अलग थे।“

जेनेट स्टील (जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर तथा मीडिया इतिहासकार) ने मलेशियाकिनी की पत्रकारिता को नजदीक से देखा है। वह इसके न्यूज़ रूम, संपादकीय बैठकों और संवेदनशील मुद्दों की वास्तविक समय की कवरेज में भी शामिल होती रही हैं। उन्होंने इस वेबसाइट के विकासक्रम पर शोध किया है। इसके लिए उन्होंने मलेशियाकिनी के पत्रकारों एवं स्टाफ के साथ साक्षात्कार करके पंद्रह वर्षों तक प्रकाशन पर अध्ययन प्रस्तुत किया- ‘मलेशियाकिनी और मलेशिया में स्वतंत्र मीडिया की शक्ति।‘

जेनेट स्टील कहती हैं- “मलेशियाकिनी ने कुछ ऐसा काम किया जिसकी बेहद जरूरत थी। इसने स्पष्ट रूप से अभिजात्य वर्ग को चुनौती दी। इसने आम मलेशियाई नागरिकों को नस्ल, राजघराने और धर्म जैसे वर्जित विषयों पर अपनी राय व्यक्त करने का सुरक्षित मंच प्रदान किया।“

जेनेट स्टील ने मुख्यधारा के मीडिया में आत्म-सेंसरशिप की प्रवृति देखी है। पत्रकार खुद ही उन खबरों से बचते थे, जिन्हें संपादकीय अनुमोदन मिलना मुश्किल हो, अथवा जो सरकार को नाराज करती हों। जो पत्रकार अपने मीडिया संस्थान में कोई खबर नहीं प्रकाशित करा पाते हों, वैसी खबरें मलेशियाकिनी के पत्रकारों के पास भेज देते थे। जब मलेशियाकिनी को प्रेस कॉन्फ्रेंस में आने से प्रतिबंधित कर दिया गया, तो अन्य पत्रकार अपनी ऑडियो रिकॉर्डिंग साझा करके मदद करते थे।

जेनेट स्टील कहती हैं- “मलेशियाकिनी एक स्वतंत्र मीडिया संगठन है। यह सरकार समर्थक या विपक्ष समर्थक नहीं है। यह हर किसी पर रिपोर्ट करता है। ऐसा करना आसान सरल लग सकता है। लेकिन एक गैर-लोकतांत्रिक मीडिया माहौल में यह आसान काम नहीं है। मलेशियाकिनी की स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता वास्तव में एक क्रांति के समान है। उनकी अनूठी ताकत उनके पाठक हैं, जो मलेशियाकिनी के लिए अपने समर्थन पर गर्व करते हैं और भविष्य के लिए अपना दृष्टिकोण साझा करते हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के माध्यम से अपने सपनों का मलेशिया बनाने का विचार प्रेरणादायक और व्यापक प्रसार के योग्य है।“

मलेशियाकिनी के साथ 2018 के एक साक्षात्कार में इब्राहिम अनवर ने कहा- “उस दौर में मीडिया पर भारी प्रतिबंध था। मीडिया का काम सरकारी प्रचार के अलावा कुछ नहीं था। लेकिन उस वक्त मलेशियाकिनी भी था। मैं ऐसा कह रहा हूं इसलिए नहीं कि आप मेरे प्रति दयालु रहे हैं। लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में आप मेरे खिलाफ भी सख्त रहे हैं। एक स्वतंत्र मीडिया को इसी तरह काम करना चाहिए।“

जेल से रिहाई के बाद 2022 में इब्राहिम अनवर प्रधानमंत्री बने। उन्होंने आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए मलेशियाकिनी की सराहना की।

एमडीबी घोटाले की मलेशियाकिनी टीम द्वारा जांच। इमेज: स्क्रीनशॉट

मलेशिया में मीडिया का जटिल परिदृश्य 

एशियाई महाद्वीप के कई देशों में निरंकुश शासन द्वारा मीडिया पर नियमित रूप से अत्याचार की स्थिति बनी हुई है। लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में एशिया के अन्य देशों की तुलना में मलेशिया की स्थिति बेहतर है। हालांकि इसमें भी गिरावट आई है। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स‘ (आरएसएफ) के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में यह बात देखी जा सकती है। इसमें मलेशिया 73वें स्थान से गिरकर 107वें स्थान पर आ गया। इस रिपोर्ट के अनुसार मलेशिया की सरकार अब भी मीडिया को संवेदनशील विषयों पर रिपोर्टिंग से रोकने के लिए काफी राजनीतिक दबाव डालती है। राजनेताओं और सरकारी अधिकारियों की आलोचना करने से भी रोका जाता है। ध्यान रहे कि मलेशिया का रैंक 107 है, जबकि एशिया के अन्य कई देशों का रैंक इससे भी काफी नीचे है।

मलेशिया का ऑनलाइन मीडिया भी अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में वृद्धि से काफी प्रभावित है। आरएसएफ के अनुसार, पिछले एक साल के भीतर मलेशिया में ऐसी न्यूज वेबसाइटों को ब्लॉक कर दिया गया, जो कथित संवेदनशील खबरें प्रकाशित करती हों।

एलेक्जेंड्रा बायलाकोव्स्का (आरएसएफ के लिए ताइपे स्थित एडवोकेसी मैनेजर) ने जीआईजेएन को बताया- “हमारे उत्तरदाताओं के अनुसार मलेशिया में समाज के भीतर ’वर्जित’ माने जाने वाले विषयों में वृद्धि के कारण ऐसा हो रहा है। हाल के वर्षों में दक्षिण पूर्व एशिया में प्रेस की स्वतंत्रता और सूचना के अधिकार में चिंताजनक गिरावट आई है। पत्रकार काफी दबाव में काम कर रहे हैं। उन्हें कानूनी उत्पीड़न के साथ ही शारीरिक और ऑनलाइन हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इससे सार्वजनिक हित के विषयों पर रिपोर्ट करने की उनकी क्षमता में बाधा आती है।”

प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में एशियाई महाद्वीप में मलेशिया सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है। लेकिन 2023 और 2024 के बीच आरएसएफ के वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इन्डेक्स में यह 34 स्थान नीचे गिर गया। इमेज: स्क्रीनशॉट, रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रैंकिंग में अपने देश की गिरावट पर मलेशिया के संचार मंत्री फहमी फडज़िल ने प्रेस की स्वतंत्रता में सुधार के लिए ‘स्थायी प्रयास‘ का वादा किया।

मलेशिया के पत्रकार शायद ही कभी शारीरिक हमलों का निशाना बनते हैं। फिर भी संवेदनशील विषयों पर रिपोर्टिंग करते समय उन्हें जुर्माने तथा कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। विदेशी पत्रकारों के वर्क परमिट रद्द करने जैसे मामले भी देखे गए हैं।

पिछले कुछ वर्षों में मलेशियाकिनी को भी लगातार निशाना बनाया गया है। ‘कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स‘ (सीपीजे) ने इसके कर्मचारियों पर उत्पीड़न की घटनाओं का दस्तावेजीकरण किया है। राजनीतिक कार्टूनिस्ट ज़ुल्किफ़ली अनवर उलहक (ज़ुनार) और रिपोर्टर सुसान लून को हिरासत में लेकर पुलिस ने पूछताछ की। सुसान लून ने पुलिस ने हिरासत में एक विपक्षी नेता के साथ अनुचित व्यवहार पर रिपार्ट की थी। इसके कारण उन पर भी कार्रवाई हो गई।

टेस्सी बतख। इमेज: मलेशियाकिनी के सौजन्य से

मलेशियाकिनी को बंद कराने के अनगिनत प्रयास हुए। महत्वपूर्ण राजनीतिक अवसरों और चुनावों के आसपास साइबर हमले कराए गए । कथित काला जादू भी कराया गया। गुंडागर्दी भी कराई गई। मलेशियाकिनी के कार्यालय की दीवारों पर लाल रंग छिड़ककर चावल के नूडल्स से भरा एक डिब्बा और लगभग मृत बत्तख उनके दरवाजे पर छोड़ दी गई। यह एक प्रकार की धमकी थी। इसकी प्रतिक्रिया में उस बत्तख को मलेशियाकिनी ने गोद ले लिया। उसकी देखभाल करके स्वस्थ कर दिया गया। मलेशियाकिनी ने पाठकों को उस बत्तख का नाम सुझाने के लिए आमंत्रित किया। उसे ‘टेस्सी‘ नाम दिया गया। वह अगले पांच वर्ष तक जीवित रहा।

स्वतंत्र रिपोर्टिंग को जिंदा रखना

मलेशियाकिनी की शुरुआत मुट्ठी भर स्टाफ के साथ हुई थी। मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर के बाहर एक आवासीय उपनगर पेटलिंग जया में एक साधारण कार्यालय में यह आरंभ किया गया था। लेकिन उनका कार्यालय अब व्यापक गतिविधियों का केंद्र है। लगभग 60 से 70 पत्रकार, ग्राफिक डिजाइनर और वीडियो निर्माता चार भाषाओं (अंग्रेजी, बहासा मलेशिया, चीनी और तमिल) में काम करते हैं। मल्टीमीडिया कहानियां और वीडियो का प्रकाशन होता है।

मलेशियाकिनी की 15वीं वर्षगांठ पर वर्ष 2014 में ‘किनी‘ नामक इमारत का लोकार्पण किया गया। यह वेबसाइट की दृढ़ता और स्वतंत्र पत्रकारिता को समर्थन देने के लिए पाठकों की इच्छा का प्रमाण है। मलेशियाकिनी ने ‘एक ईंट खरीदें‘ अभियान चलाया था। पाठकों ने इस इमारत की एक ईंट पर अपना नाम लिखवाने के लिए लगभग 260 यूएस डॉलर का योगदान दिया था।

मलेशियाकिनी को बंद कराने की तमाम कोशिशों के बावजूद यह सभी खतरों से बच गया। एक प्रधानमंत्री ने इसे ‘देशद्रोही‘ करार दिया था। दूसरे ने इसे बंद करने का आह्वान किया था। सह-संस्थापक प्रेमेश चंद्रन कहते हैं- “हम एक मच्छर की तरह हैं। बड़ा ख़तरा पैदा करने के लिए बहुत छोटे दिखते हैं। लेकिन हमेशा भिनभिनाते रहते हैं। कठिन सवाल पूछते हैं। सरकार को परेशान करते हैं।“

स्टीवन गण और प्रेमेश चंद्रन ने काफी दूरदर्शिता के साथ काम किया। उन्हें अपनी स्वतंत्र एवं कठिन पत्रकारिता के लिए ऐसे व्यवसाय मॉडल की आवश्यकता थी, जो किसी एक राजस्व स्रोत पर निर्भर न हो। उन्होंने अब दिन-प्रतिदिन के कामों का दायित्व अपनी टीम पर छोड़ दिया है। स्टीवन गण प्रमुख संपादक हैं। प्रेमेश चंद्रन एक सीईओ के बतौर निदेशक मंडल में हैं। अपनी उत्तराधिकार योजना के बतौर दोनों संस्थापक मलेशियाकिनी की निरंतर स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए अपने कुछ शेयर छोड़ रहे हैं।

जिस दूरदर्शिता ने उन्हें 20 साल पहले निर्देशित किया था, आज भी समाचार उत्पादन और उपभोग पर सोशल मीडिया के प्रभाव और अन्य ऑनलाइन समाचार आउटलेट्स के बीच प्रतिस्पर्धा के युग में सच है। रॉयटर्स इंस्टीट्यूट डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2024 ने ‘पब्लिक ट्रस्ट‘ रेटिंग कराई। इसमें साठ प्रतिशत वोटों के साथ मलेशियाकिनी को देश में सबसे व्यापक रूप से एक्सेस किए जाने वाले ऑनलाइन समाचार आउटलेट का स्थान मिला। प्रेमेश चंद्रन कहते हैं- “न्यूज वेबसाइटों को अपना विकास जारी रखना चाहिए। वेबसाइटें अब समाचार पत्रों की राह पर जा रही हैं। मलेशियाकिनी के पास एक स्थापित ब्रांड है। लेकिन अगर हम आगे नहीं बढ़ेंगे, तो नोकिया और कोडेक जैसे बड़े ब्रांडों की तरह नष्ट हो सकते हैं।“

प्रेमेश चंद्रन वर्ष 2022 में सीईओ की भूमिका से हट गए। उनके बाद के बाद सीनहाउ थाम ने मलेशियाकिनी के व्यापार पक्ष को संभाला। सीनहाउ थाम कहते हैं- “मलेशियाकिनी का वर्तमान व्यवसाय मॉडल विभिन्न तरीकों का मिश्रण है। इसमें पाठकों से सदस्यता राशि लेना, वेबसाइट पर विज्ञापनों का प्रकाशन, भुगतान आधारित सामग्री का प्रकाशन इत्यादि शामिल है। इन तरीकों के कारण राजनीतिक उतार-चढ़ाव के बावजूद हमारे राजस्व में स्थिरता बनी रहती है।“

राजनीतिक रिपोर्टिंग और चुनावों की पुरस्कार विजेता कवरेज के अलावा मलेशियाकिनी ने कई अन्य विषयों में अपनी प्रतिष्ठा बनाई है। पर्यावरण और लिंग जैसे मुद्दों पर मल्टीमीडिया जांच रिपोर्टों ने इसकी समाचार सामग्री में विविधता प्रदान की है।

‘एक ईंट खरीदें‘ अभियान ने पाठकों से मलेशिया में ‘स्वतंत्र मीडिया के लिए घर बनाने‘ में मदद का आग्रह किया। इमेज: मलेशियाकिनी के सौजन्य से।

वर्तमान में, मलेशियाकिनी चार भाषाओं में रिपोर्ट करने वाला देश का एकमात्र समाचार आउटलेट है। चंद्रन और थाम के अनुसार विभिन्न भाषाओं में रिपोर्टिंग केवल अनुवाद का मामला नहीं है। यह प्रत्येक दर्शक की जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे अच्छा माध्यम ढूंढने का प्रयास है।

उदाहरण के लिए, मलेशियाकिनी को तमिल में लॉन्च किया गया था। इसकी शुरुआत तमिल पाठकों की जरूरतों को पूरा करने और एक भाषा के रूप में तमिल का उपयोग करने वाले वीडियो के साथ हुई। चंद्रन बताते हैं- “तमिल की अपनी वर्णमाला है। यह उतनी व्यापक रूप से नहीं पढ़ी जाती जितनी व्यापक रूप से बोली जाती है।“

मलेशियाकिनी ने बदलते समाचार परिदृश्य में अपने पाठकों की ज़रूरतों को ध्यान में रखा है। ऐसी कहानियों का अनुसरण किया है जो राजनीति के दायरे से परे बदलाव लाती हैं।

एडिला रज़ाक (विशेष रिपोर्ट संपादक, मलेशियाकिनी) ने बोर्नियो द्वीप स्थित सबा अस्पताल में बच्चे छीन लेने संबंधी पुरस्कार विजेता रिपोर्ट का उल्लेख किया। यह खबर बताती है कि कानून व्यवस्था के अभाव में कैसे स्वास्थ्य सेवा तक लोगों की पहुंच में बाधा आ रही है। साक्षात्कारों में काफी परेशान करने वाली बात सामने आई।

एडिला रजाक कहती हैं- “गर्भवती महिलाएं अस्पताल जाने से डरती थीं। वे घर पर ही बच्चे को जन्म देना पसंद करती थीं। उन्होंने अन्य महिलाओं से उनके बच्चे छीन लेने की कहानियां सुनी थीं। मलेशियाकिनी की खबर ने इस आश्चर्यजनक प्रथा का खुलासा किया। बताया कि कैसे महिलाओं से उनके बच्चों को उनकी सहमति के बिना गोद लेकर किसी अन्य को दिया जा रहा था।

“अब महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। वे जानती हैं कि कल्याण विभाग उन्हें अयोग्य मां के रूप में घोषित नहीं कर सकता है। वे उनके बच्चों को नहीं छीन सकते हैं।“ एडिला रजाक ने खबर का यह प्रभाव बताया।

मलेशियाकिनी ने स्वतंत्र पत्रकारिता की इच्छा का सबसे हालिया उदाहरण पेश किया है। मलेशिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य जोहोर का मामला है। यहां के क्राउन प्रिंस के अंगरक्षक ने एक बधिर ड्राइवर पर शारीरिक हमला किया था। दरअसल शाही दल के वाहनों लिए रास्ता छोड़ने के लिए बजाए गए हॉर्न को वह बधिर ड्राइवर सुन नहीं पाया था। इसके कारण प्रिंस के अंगरक्षक ने उसकी पिटाई कर दी। यह घटना किसी ने डैशकैम में कैद कर ली। इसे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया गया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल अधिकांश मीडिया संगठनों ने इस पर रिपोर्ट नहीं की। उन्हें क्राउन प्रिंस की नाराजगी का डर था। कुछ अन्य वेबसाइटों ने खबर चलाने के बाद अपनी रॉयल्टी पर खतरे के डर से खबर हटा ली।

लेकिन मलेशियाकिनी? एडिला कहती हैं- “हमने सामान्य तौर पर इस खबर को कवर किया।“

इसके बाद क्राउन प्रिंस ने एक बयान जारी करके उस बधिर ड्राइवर के लिए न्याय की मांग की। साथ ही, इस घटना की जांच में कोई बाधा नहीं डालने का वादा भी किया।


एना पी. सैंटोस को पत्रकारिता का दस से अधिक वर्षों का अनुभव है। उनकी लिखी खबरें रैपर, डीडब्ल्यू जर्मनी, द अटलांटिक और द लॉस एंजिल्स टाइम्स में प्रकाशित हुई हैं। उन्होंने यौन प्रजनन स्वास्थ्य, एचआईवी और यौन हिंसा से संबंधित लैंगिक मुद्दों पर रिपोर्टिंग में विशेषज्ञता हासिल की है। पुलित्जर सेंटर 2014 पर्सेफोन माइल फेलो के रूप में उन्होंने यूरोप और मध्य-पूर्व में श्रमिक प्रवासन पर रिपोर्टिंग की है।

अनुवाद: डॉ. विष्णु राजगढ़िया

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