Supporters of the far right group Golden Dawn demonstrate in Greece. Image: Shutterstock
दुनिया भर में अति-दक्षिण चरमपंथी समूहों पर मीडिया की नजर रहती है। इनकी गतिविधियों के कारण कई तरह के सुरक्षा खतरे रहते हैं। खोजी पत्रकारों के लिए इनसे बहुत सी खबरें मिलने की संभावना रहती है।
इस क्षेत्र में खोजी रिपोर्टिंग के भी अनगिनत पहलू सामने आ रहे हैं। उपद्रवी संगठनों को चंदा कहां से मिल रहा है? सरकारी अधिकारियों, पुलिस, न्यायाधीश और कानून निर्माताओं और नव-नाजी संगठनों के बीच क्या संबंध है? ऐसे विषयों में खोजी पत्रकारों की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है।
इस बीट के अनुभवी पत्रकारों के अनुसार इन समूहों के सदस्यों को अक्सर अपनी घृणित विचारधारा पर एक नाजुक भरोसा होता है। इसके कारण उनसे गोपनीयता बरतने में चूक हो सकती है। वे लोग अपने गलत कामों के सबूत तेजी से नष्ट कर सकते हैं। व्यक्तिगत अपमान का बदला लेने के लिए पत्रकारों के खिलाफ अप्रत्याशित हिंसा की संभावना हो सकती है। खबरों में उनकी ग़लतियों का मज़ाक उड़ाने से पत्रकारों पर उतनी ही आसानी से हमला हो सकता है, जितनी आसानी से उनके अपराधों का खुलासा होना संभव है।
इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टर्स एंड एडीटर्स कॉन्फ्रेंस 2024 के एक पैनल में इस पर चर्चा हुई। इन समूहों की निगरानी कैसे करें? ऐसा करते समय सुरक्षित कैसे रहें? अनुभवी पत्रकारों ने इस पर सुझाव साझा किए। पैनल में निम्नलिखित पत्रकार शामिल थे-
- डेविड आर्मियाक, खोजी शोधकर्ता, सेंटर फॉर मीडिया एंड डेमोक्रेसी
- जेसिका गैरीसन, खोजी रिपोर्टर, लॉस एंजिल्स टाइम्स
- एमिली रसेल, रिपोर्टर, नॉर्थ कंट्री पब्लिक रेडियो
- ए.सी. थॉम्पसन, प्रोपब्लिका और पीबीएस फ्रंटलाइन के लिए इनकी रिपोर्टों ने हलचल पैदा कर दी। उनके खुलासों के कारण कई हिंसक श्वेत वर्चस्ववादियों पर मुकदमा चलाया गया।
चरमपंथी चैट की ऑनलाइन खोज और निगरानी
अति-दक्षिण चरमपंथी समूहों की वजह से कई प्रकार के नए खतरे देखने को मिल रहे हैं। इन खतरों को देखते हुए जेसिका गैरीसन एक महत्वपूर्ण बात कहती हैं- “इस काम में कई बार मैं डर जाती हूं। हमें कोई काम डरकर नहीं करना चाहिए। इसलिए ऐसा कुछ भी न करें जिससे आपको डर लगे।”
ऐसे समूहों की ऑनलाइन चैट की निगरानी करना काफी जटिल काम लग सकता है। इसमें समय की काफी ‘बर्बादी‘ होती हुई भी दिख जाएगी। लेकिन अप्रिय होने के बावजूद यही सबसे अच्छा तरीका है। चरमपंथी क्या कहते हैं, इसे पढ़ने, सुनने या खोजने का कोई विकल्प नहीं है। उनकी बातचीत सोशल मीडिया पर हो, पॉडकास्ट में या सड़कों पर, हर जगह उनकी चैट पर नजर रखकर ही कोई ठोस जानकारी निकाली जा सकती है।
विभिन्न मीडिया संगठनों ने व्यवस्थित निगरानी करके दुनिया में कई उग्रवादी समूहों की हिंसक गतिविधियों का पर्दाफाश किया है। इसका उदाहरण ‘मौत का हथियार : किशोर आतंकवादियों के नेटवर्क की अंदरूनी कहानी‘ शीर्षक रिपोर्ट में देखने को मिल सकता है। वर्ष 2023 की इस रिपोर्ट में यूरोप के चरमपंथी किशोरों के सोशल मीडिया समूह के भीतर से खबर निकाली गई थी। इस जांच में वेल्ट एम सोनटैग, पोलिटिको और इनसाइडर के पत्रकारों ने 98,000 टेलीग्राम संदेशों का विश्लेषण किया। इसके लिए पत्रकारों ने गोपनीय तरीके से इन चरमपंथियों के चैट समूहों में घुसपैठ की।
ए.सी. थॉम्पसन कहते हैं- “गैब और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया पर इन चरमपंथी चैनलों की चैट पढ़ना एकदम बेकार काम लगता है। लेकिन जब भी मैं ऐसा करना छोड़ देता हूं, तो मुझे इसका पछतावा होता है।”
अन्य पैनलिस्टों ने भी अपने इसी प्रकार के अनुभव साझा किए। एमिली रसेल कई घंटों तक दक्षिणपंथी फेसबुक लाइव को सुनती रहीं। इसके कारण उन्हें एक स्थानीय न्यायिक अधिकारी की स्वीकारोक्ति के बतौर एक बड़ी जानकारी हासिल हुई। डेविड आर्मियाक ने कहा कि मैं देर रात तक टेलीग्राम चैनल की चैट देखता रहता हूं।
ए.सी. थॉम्पसन के अनुसार, इस जांच को अधिक कुशल और कम बोझिल बनाने के लिए ‘ओपन मेज़र्स‘ भी उपयोगी है। इसके बारे में अभी ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं हुई है। यह एक ओपेनसोर्स उपकरण है। इसे 8-कुन, ब्लूस्की, बिटच्यूट, ओडिसी जैसे कम लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से डेटा निकालने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आश्चर्य की बात है कि सम्मेलन के अधिकांश श्रोताओं ने इस उपकरण का उपयोग नहीं किया था। उन्होंने इसके बारे में पहले सुना भी नहीं था।
पायरा (Pyrra) नामक एक अन्य उपकरण इस फ़िल्टरिंग प्रक्रिया के लिए उपयोगी है। यह भुगतान पर आधारित है। ए.सी. थॉम्पसन इस उपकरण का भी उपयोग करते हैं। इसमें एआई की मदद भी ली जाती है। एक खोजी पत्रकार के लिए जिन नफरत फैलाने वाली घृणास्पद बातों और संभावित हिंसा से संबंधित पोस्ट को पहचानने की जरूरत है, उन्हें एआई की मदद से यह उपकरण पहचान लेता है।
उन्होंने कहा- “ओपन मेज़र्स वैकल्पिक सोशल मीडिया के लिए एक स्क्रैपिंग टूल है। यह इन सभी प्लेटफार्मों पर एक साथ जांच करने के लिए काफी उपयोगी है। यह 4-चैन, टेलीग्राम और कई अन्य को जोड़ता है। आप ओपन मेज़र्स के माध्यम से व्यक्तिगत खातों को फॉलो कर सकते हैं। आप बार-बार किसी सर्च को दोहरा सकते हैं।”
‘ओपन मेज़र्स‘ टूल को ‘मोज़िला फाउंडेशन‘ का सहयोग प्राप्त है। डिस्ट्रीब्यूटेड डेनियल ऑफ सीक्रेट्स (डीडू सीक्रेट्स) जर्नलिज्म कलेक्टिव जैसे लीक क्यूरेशन समूहों द्वारा इसका उपयोग किया जाता है। इस टूल का होमपेज कहता है- “पत्रकारों की मदद के लिए ओपन मेज़र्स को बनाया गया है। यह उग्रवाद और दुष्प्रचार जैसी हानिकारक ऑनलाइन गतिविधियों की जांच करता है। हम खतरनाक ऑनलाइन उपयोगकर्ताओं, दुर्भावनापूर्ण सरकारी अथवा राजनीतिक प्रभावशाली लोगों और व्यापक नुकसान पहुंचाने की साजिशों का पर्दाफाश करते हैं।”
डेविड आर्मियाक ने कहा- “आपराधिक आचरण से जुड़े लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट आमतौर पर परमाणु बम की तरह विस्फोटक हो जाते हैं। अपनी किसी गतिविधि से पहले वे लोग अपनी चैट में क्या बातें कर रहे थे, इसे आप खंगाल सकते हैं। सोशल मीडिया में पोस्ट की गई जानकारियों में उनकी मीटिंग में उपस्थित लोगों और इवेंट के प्रायोजकों की सूची तथा फोटो या वीडियो आपके पास महत्वपूर्ण सबूत हैं। लेकिन जैसे ही आप इस पर स्टोरी करेंगे, तमाम चीजों सोशल मीडिया से डिलीट कर दी जाएंगी। आपके सारे सबूत गायब हो जाएंगे। इसलिए उन चीज़ों को तत्काल वेबैक मशीन, इंटरनेट आर्काइव में संग्रहित कर लें। ऐसा नहीं करने पर आप उनका लगभग पूरा इतिहास खो सकते हैं।”
पैनलिस्टों ने लीक हुए दस्तावेज़ों और संग्रहित डेटाबेस की तलाश करके उनकी पुष्टि करने का सुझाव दिया। यह ऐसी जांच का अधिक लक्षित तरीका है। उदाहरण के लिए, 2022 में डीडू सीक्रेट्स ने एक हैक किया गया डेटाबेस प्रकाशित किया था। इससे पता चला कि संयुक्त राज्य अमेरिका में अति-दक्षिणपंथी ओथ कीपर्स मिलिशिया के कई सदस्य निर्वाचित जनप्रतिनिधि या सेना के अधिकारी थे। डेविड आर्मियाक ने चेतावनी दी कि ऐसी चरमपंथी ताकतों के कवरेज में लक्षित साइबर हमले का अतिरिक्त जोखिम होता है। पत्रकारों को ’लीक’ डिजिटल दस्तावेज़ों से सावधान रहना चाहिए। संभव है कि ऐसे दस्तावेज पत्रकारों के कंप्यूटर को संक्रमित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हों। आपको वहां काफी लीक मिल सकते हैं। लेकिन सावधान रहें। उनमें कोई वायरस न हो।”
‘डेंजर-ज़ोन‘ नामक एक मुफ़्त टूल के बारे में जानना उपयोगी होगा। यह अपलोड किए गए दस्तावेज़ों की पीडीएफ फाइलों से छिपे हुए मैलवेयर को साफ़ कर देता है। साथ ही, यह मूल अपलोड को एक सुरक्षित डिजिटल स्थान पर रख देता है। जीआईजेएन ने हाल ही में इस पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है।
ओपनसोर्स ‘जंकीपीडिया टूल‘ (Junkipedia tool) – ऑडियो पर नजर रखने के लिए यह एक नई दक्षता वाला टूल भी आया है। यह पत्रकारों को उग्र भाषणों को पूरा सुनने की कठिन मेहनत से भी बचा सकता है। यह अंग्रेजी भाषा के पॉडकास्ट को स्वचालित रूप से ट्रांसक्राइब कर सकता है। साथ ही, कीवर्ड के आधार पर खोज करने में भी कारगर है। यह पत्रकारों द्वारा पत्रकारों के लिए बनाया गया है। यह एक सीमित लेकिन बहुआयामी उपकरण है। इसे ‘एल्गोरिथम ट्रांसपेरेंसी इंस्टीट्यूट‘ ने विकसित किया है। गेटर और गैब जैसे दक्षिणपंथी समूहों के प्लेटफार्मों पर आपके द्वारा चुने गए खातों की पोस्ट को यह स्वचालित रूप से प्रदर्शित कर सकता है।
डेविड आर्मियाक ने कहा कि ये समूह अक्सर शुरूआती बैठकों और आयोजनों में अनजान लोगों के लिए आश्चर्यजनक रूप से खुले होते हैं। भले ही वे अपने कार्यकर्ताओं या मीडिया को बाहर कर देते हैं, या उन आयोजनों में कुछ गलत होने पर जानकारी हटा देते हैं।
उन्होंने कहा- “इसलिए मैं हर चीज़ के लिए साइन अप करता हूं। उनके ईमेल की लिस्ट, उनके वेबिनार वगैरह से जुड़ता हूं। आश्चर्य होगा कि आपको कितने आयोजनों में आमंत्रित किया जा सकता है। कई लोग कहते हैं कि इसमें मीडिया शामिल नहीं हो सकता। लेकिन अगर मैं आमंत्रित ईमेल सूची में हूं, तो इसके बावजूद शामिल हो सकता हूं।”
उन्होंने बताया कि चरमपंथी हिंसक घटनाओं के तुरंत बाद उससे संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट जुटाना काफी उपयोगी है। इसके लिए ट्वीटडेक (जिसे अब ‘एक्स प्रो‘ कहा जाता है) काफी महत्वपूर्ण उपकरण है। साथ ही, वेबैक मशीन (Wayback Machine) के जरिए इंटरनेट आर्काइव में संग्रहित पृष्ठों को खोजना भी एक आवश्यक संसाधन है। (एपी के माइकल बिसेकर ने बताया है कि आर्काइव टुडे (Archive Today) टूल पूरे वेबपेजों को संग्रहित कर सकता है। बेलिंगकैट ऑटो आर्काइवर ( Bellingcat Auto Archiver) टूल स्वचालित रूप से वीडियो के लिए सबसे अच्छी डाउनलोडिंग रणनीति ढूंढता है। इससे पत्रकारों को किसी पोस्ट के यूआरएल को स्प्रेडशीट में पेस्ट करने और एक ईवेंट की खोज जारी रखने की सुविधा मिलती है।)
डिजिटल और भौतिक खतरों से बचाव
डेविड अर्मियाक ने चेतावनी दी- “बहुत से पत्रकार अपने ऑफिस या निजी फ़ोन नंबरों के माध्यम से चरमपंथी लोगों को कॉल करते हैं। चरमपंथी लोग आपका नंबर अपने लोगों में बांट देते हैं। इसके बाद आपके मोबाइल में नफरत भरे कॉलों की बौछार हो जाती है।”
ऐसी स्थिति से बचने के लिए बुनियादी डिजिटल स्वच्छता के कदम उठाने चाहिए। इसके अलावा टू-फैक्टर प्रमाणीकरण , एन्क्रिप्टेड संचार और पासवर्ड मैनेजर का उपयोग करना चाहिए। पैनलिस्ट इस बात पर सहमत हुए कि अति-दक्षिण चरमपंथ की बीट के पत्रकार निम्नलिखित सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाते हैं।
डिलीट-मी (DeleteMe) गोपनीयता सेवा के लिए साइन अप करें। यह इंटरनेट से आपकी व्यक्तिगत जानकारी को हटा देती है। एमिली रसेल ने कहा- “मैंने पिछले साल अति-दक्षिण उग्रवाद संबंधी एक पॉडकास्ट पर काम किया। उस दौरान मैंने महसूस किया कि अब कुछ सोशल मीडिया से खुद को दूर करने का समय आ चुका है।”
डेविड आर्मियाक ने कहा- “मैंने डिलीट-मी की सदस्यता ली है। जो लोग डिलीट-मी पर नहीं हैं, उन्हें अब इसका उपयोग शुरू कर देना चाहिए।”
‘Google Voice जैसी कॉलर आईडी मास्किंग सेवा का उपयोग करें। इससे आपके उत्पीड़न का जोखिम कम होगा। साथ ही, स्पैम को ब्लॉक करने और लिखित वॉइसमेल खोजने में भी इसका उपयोग होगा। डेविड आर्मियाक ने कहा- “आप ‘गूगल वॉइस‘ नंबर या एक अलग फ़ोन का उपयोग कर सकते हैं। कंप्यूटर के उपयोग में भी ऐसी ही सावधानी जरूरी है। यदि आप चरमपंथी वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर खोज कर रहे हैं, तो एक अलग कंप्यूटर या वर्चुअल कंप्यूटर का उपयोग करना बेहतर होगा। कम से कम, हर समय एक वीपीएन का उपयोग करें।”
यदि आप उग्रवादी समूहों की बीट पर रिपोर्टिंग करते हैं, तो अपनी पारिवारिक जानकारी पर अत्यधिक गोपनीयता की नीति पर विचार करें। डेविड अर्मियाक ने बताया- “मैं अपने परिवार की तस्वीरें या वीडियो पोस्ट नहीं करता। मैं इसे लेकर बहुत सावधान हूं।”
सड़क पर साक्षात्कार लेने के दौरान निजी सुरक्षाकर्मियों के माध्यम से अपनी सुरक्षा करना पत्रकारों के लिए एक विकल्प है। साथ ही, पैनल के सदस्यों का मानना है कि सावधानीपूर्वक योजना बनाना जरूरी है। जोखिम से बचाव के निर्णय आम तौर पर सुरक्षा के लिए अधिक प्रभावी साबित हुए हैं। पत्रकारों को छोटे स्तर के अति-दक्षिण विरोध प्रदर्शनों की रिपोर्टिंग में सतर्क रहना चाहिए। वहां प्रदर्शन के विरोध की ताकतें भी मौजूद हो सकती हैं। छोटे प्रदर्शनों में पुलिस की उपस्थिति कम होती है। वहां पत्रकारों को प्रदर्शन विरोधी के बतौर गलत रूप में समझा जा सकता है। इससे पत्रकारों के लिए खतरा हो सकता है।
ए.सी. थॉम्पसन ने एक हिंसक श्वेत वर्चस्ववादी का साक्षात्कार लेने के दौरान बरती गई सावधानी का उदाहरण दिया। उनकी टीम ने उस व्यक्ति के घर पर संक्षिप्त मुलाकात की थी। उस व्यक्ति को होटल के कमरे में बुलाकर बातचीत के लिए आमंत्रित किया गया। ए.सी. थॉम्पसन कहते हैं- “हमारे लिए यह हैरानी का समय था। हम अंदर-बाहर होते रहे। अगर हमने उसे अपना पता बता दिया होता और उसके गुंडों को आने का समय मिल जाता, तो हम सभी अस्पताल में पहुंच सकते हैं।”
अल्पसंख्यकों को डराने वाले नव-नाजी समूहों द्वारा पत्रकारों को भी उसी तरह डराने-धमकाने का प्रयास किया जाता है। हाल ही में अमेरिका में जब एक अति-दक्षिणपंथी नेटवर्क के पांच सदस्यों ने एक रॉ स्टोरी रिपोर्टर के घर जाकर आतंक फैलाया । इन लोगों ने हिटलर की नाजी सलामी का चिन्ह बनाकर हुए लिखा- “प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब इसके बुरे नतीजों से आजादी नहीं है।”
ए.सी. थॉम्पसन ने एक अत्यंत मनोरंजक किस्सा साझा किया। बोले- “अमेरिका में आयोजित स्टॉप द स्टील इवेंट के दौरान मैं वीडियोग्राफरों की एक टीम के साथ था। उन लोगों को लगा कि हम लोग एफबीआई या सीआईए के लिए काम कर रहे हैं। इसलिए वे लोग हमारे वीडियोग्राफरों को पीटने की योजना बना रहे थे। लेकिन फिर उन्होंने हमारे कैमरों को करीब से देखा, और बोले किये वास्तव में अच्छे कैमरे हैं, आप लोग सरकार के लिए काम नहीं कर रहे होंगे।” यह उदाहरण बताता है कि दक्षिणपंथी चरमपंथियों के कदम बेहद अप्रत्याशित हो सकते हैं।
रोवन फिलिप जीआईजेएन के वरिष्ठ पत्रकार हैं। पहले वह संडे टाइम्स (दक्षिण अफ्रीका) के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में, उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्टिंग की है।
अनुवाद : डॉ. विष्णु राजगढ़िया