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सरकारों द्वारा ‘जासूसी तकनीक’ खरीद प्रकरणों पर रिपोर्टिंग कैसे करें?

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इंग्लैंड के फोरेंसिक आर्किटेक्चर द्वारा डिजाइन किया गया ‘डिजिटल वाॅयलेंस प्लेटफाॅर्म‘  (Digital Violence platform)।  इसमें सरकारों द्वारा निगरानी तकनीक का उपयोग करके पत्रकारों, आंदोलनकारियों और नागरिक समाज समूहों पर हमलों की जानकारी मिलती है। फोटो – फोरेंसिक आर्किटेक्चर के सौजन्य से।

जून 2021 में पेरिस (फ्रांस) की एक अदालत ने दो कंपनियों के चार अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोपों का अभियोग चलाया। इन कंपनियों पर लीबिया और मिस्र की निरंकुश सरकारों को जासूसी के तकनीकी उपकरण बेचने का आरोप था। ऐसे उपकरणों का उपयोग उन देशों में लोगों पर अत्याचार के लिए किया गया। पत्रकारों ने इन कंपनियों द्वारा लीबिया और मिस्र को जासूसी उपकरण बेचने का खुलासा किया था। इसके बाद यह मामला अदालत पहुंचा था।

लीबिया का मामला – ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल‘ के पत्रकारों ने लीबिया द्वारा आयातित जासूसी तकनीकों पर रिपोर्ट की थी। मुअम्मर अल कद्दाफी के शासन के पतन के बाद त्रिपोली में एक परित्यक्त निगरानी मुख्यालय में तलाशी के दौरान यह खबर सामने आई थी।

मिस्र का मामला – फ्रांसीसी समाचारपत्र टेलेरामा Télérama के पत्रकार ओलिवियर टेस्क्वेट ने मिस्र के मामले का खुलासा किया था। उन्होंने जासूसी उपकरणों की अवैध बिक्री की जांच करते हुए निर्यात लाइसेंस और सरकारी अनुबंधों की पड़ताल की। इस दौरान मिस्र के अल-सिसी शासन को जासूसी उपकरण बेचने के मामले सामने आए।

दोनों आरोपित कंपनियों – ‘एमेसिस‘ और ‘नेक्सा टेक्नोलॉजी‘ ने आरोपों से इनकार किया। लेकिन दुनिया भर में मानवाधिकार समूहों के लिए ऐसे मामले काफी चिंताजनक है। डिजिटल निगरानी या जासूसी तकनीक की बिक्री में वैश्विक उछाल आया है। दुनिया भर में खतरे की घंटी बज रही है। निरंकुश सरकारें दमन के लिए उन्नत जासूसी उपकरण जुटा रही हैं। यहां तक कि लोकतांत्रिक सरकारें भी अपराध रोकने, राष्ट्रीय सुरक्षा या कोविड-19 की ट्रैकिंग की आड़ में जासूसी तकनीकों का उपयोग कर रही हैं।

गोपनीय जासूसी या निगरानी उपकरणों का यह कारोबार अरबों रुपयों का है। इस धंधे में दर्जनों तकनीकी फर्मों और सरकारों के बीच गुप्त सौदे शामिल हैं। यह मानवाधिकारों और गोपनीयता के लिए खतरनाक है। इसके कारण पत्रकारों को अपने गोपनीय स्रोतों की रक्षा करना भी मुश्किल हो सकता है।

खोजी पत्रकार कैसे पता लगाएं कि सरकारें जासूसी की कौन सी गुप्त तकनीकें ख़रीद रही हैं? क्या सरकार उन डिजिटल उपकरणों का दुरुपयोग करके दमन या भेदभाव कर रही है?

Image: Shutterstock

मानवाधिकार समूहों ने इन प्रौद्योगिकियों के वैश्विक प्रसार पर नजर रखने के लिए काफी महत्वपूर्ण कार्य किए हैं।

इंग्लैंड की शोध एजेंसी Forensic Architecture  ‘फोरेंसिक आर्किटेक्चर‘ ने Amnesty International  ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल‘ और Citizen Lab ‘सिटीजन लैब‘ के साथ साझेदारी की है। इसके तहत जुलाई 2021 में एक शक्तिशाली इंटरेक्टिव ट्रैकिंग टूल जारी किया है। इसे  Digital Violence platform ‘डिजिटल वाॅयलेंस प्लेटफाॅर्म‘   कहा जाता है। यह दुनिया भर की सरकारों को कुख्यात ‘पेगासस‘ स्पाइवेयर की बिक्री पर नजर रखता है। यह स्पाइवेयर किसी व्यक्ति के फोन से गोपनीय तरीके से कॉल, ईमेल और संपर्क डेटा निकाल सकता है। दुनिया भर के नागरिक अधिकार रक्षकों और पत्रकारों पर डिजिटल हमलों के लिए इसका उपयोग होता है।

जीआईजेएन ने निगरानी बीट के खोजी पत्रकारों और शोधकर्ताओं के साथ साक्षात्कार किया। उनका कहना है कि जासूसी उपकरणों के सौदे गोपनीय होते हैं। इसके बावजूद ऐसी खरीद बिक्री के कई सुराग मिल जाते हैं। निगरानी संबंधी मामलों के विनियमन की कमी के कारण ऐसा है। निजी क्षेत्र के विक्रेता अपने उत्पादों की मार्केटिंग करना चाहते हैं। दूसरी ओर, कुछ निरंकुश सरकारों का मानना है कि इन जासूसी तकनीकों के बारे में नागरिकों को बताना ठीक नहीं। अगर लोगों को ऐसी जासूसी का पता चलेगा, तो वे लोग सेल्फ़ सेंसरशिप या स्वयं सतर्क होने का प्रयास करेंगे। इसके कारण निरंकुश सरकारों को लोगों की गोपनीय जानकारी नहीं मिल पाएगी।

कुछ सरकारेें अपराध रोकने के मकसद से जासूसी तकनीक या उपकरण खरीदती हैं। ऐसे खरीद समझौते कानूनी होते हैं। लेकिन कुछ सरकारें ऐसी खरीद अवैध तरीके से करती हैं। उनका मकसद पत्रकारों, असंतुष्ट समूहों या आंदोलनकारियों की जासूसी करना होता है। लिहाजा, पत्रकारों को यह जानना चाहिए कि किस सरकार के पास कौन से जासूसी उपकरण हैं? इसका विश्लेषण करना भी मीडिया के लिए जरूरी है।

जैसा कि पहले बताया गया, फ्रांसीसी समाचार पत्र ‘टेलेरामा‘ के पत्रकार ओलिवियर टेस्क्वेट ने मिस्र द्वारा जासूसी उपकरणों की अवैध खरीद का खुलासा किया था। वह दस्तावेजों की गहराई में जाने वाले पत्रकार हैं। उन्होंने लीबिया में जासूसी उपकरणों की अवैध बिक्री के संबंध में वर्ष 2013 की फ्रांसीसी न्यायिक जांच के सैकड़ों पृष्ठों का अध्ययन किया। इस दौरान उन्होंने देखा कि एक कंपनी के कर्मचारी ने ‘मिस्र‘ का उल्लेख किया है। उस संदर्भ को उन्होंने एक अन्य रिपोर्ट के परिशिष्ट में मौजूद एक ईमेल पत्राचार से जोड़कर देखा। उन्होंने पाया कि कंपनी ने चुपचाप अपना नाम बदलकर जासूसी उपकरणों को बेचना जारी रखा था। उसे अब ‘सेरेब्रो‘ के रूप में पुनः ब्रांडेड किया गया था। लीबिया में इसके दुरुपयोग के गंभीर आरोपों के बावजूद निरंकुश दमनकारी सरकारों के हाथों इसे बेचना जारी रखा गया।

जीआईजेएन के साथ साक्षात्कार में पत्रकार ओलिवियर टेस्क्वेट ने कहा- “मैं समझ गया था कि यह व्यवसाय अब भी चल रहा है। इसके लिए संयुक्त अरब अमीरात स्थित इस मूल कंपनी का उपयोग किया जाता है। उस कंपनी ने अल-सिसी को भी वही जासूसी उपकरण बेच दिए, जो पहले कद्दाफी को बेचे गए थे।“

पत्रकार ओलिवियर टेस्क्वेट ने पाया कि एक फ्रांसीसी कंपनी ने एक दर्जन विदेशी सरकारों को जासूसी तकनीकों की बिक्री के लिए निर्यात लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। पत्रकार ने खरीद अनुबंधों की प्रतियां भी प्राप्त कर ली। ऐसे सौदे करते समय सरकारों द्वारा आतंकवादी या आपराधिक गतिविधियों का मुकाबला करने जैसी भाषा का उपयोग किया जाता है। इस रिपोर्ट से अन्य पत्रकारों को ऑनलाइन सर्च में काफी मदद मिल सकती है।

पत्रकार ओलिवियर टेस्क्वेट ने कहा कि इस अदालती कार्रवाई से उन कंपनियों को स्पष्ट संदेश मिला है, जो निरंकुश सरकारों के साथ व्यापार करती हैं।

अब जासूसी/निगरानी सामग्री के निर्यात का दुरुपयोग होने के मामले में किसी भी कॉरपोरेट जवाबदेही का अभाव दिखता है। 

एमनेस्टी इंटरनेशनल के राशा अब्दुल रहीम  ने ‘एमेसीस‘ और ‘नेक्सा‘ के अधिकारियों पर अभियोग को अभूतपूर्व कहा। उनके अनुसार  ”जासूसी या निगरानी करने वाली एजेंसियों को अगर अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो उनकी गतिविधियां मानवाधिकार का गंभीर उल्लंघन कर सकती हैं। इससे दमन के रास्ते भी खुलते हैं।”

इस तरह की ख़रीद की जानकारी कैसे मिलेगी

‘कार्नेगी एआई ग्लोबल सर्विलांस इंडेक्स‘ के अनुसार, 75 देशों की सरकारें निगरानी के लिए बड़े पैमाने पर एआई तकनीक का उपयोग कर रही हैं।‘ छवि : स्क्रीनशॉट

एली फंक (वरिष्ठ शोध विश्लेषक, फ्रीडम हाउस) ने मानवाधिकारों और जवाबदेही के लिए डिजिटल खतरों पर कई रिपोर्ट तैयार की हैं। उनकी एक रिपोर्ट है कि कैसे सरकारों ने अपने नागरिकों पर निगरानी के लिए कोविड-19 महामारी का फायदा उठाया।

एली फंक ने पत्रकारों को इन चार प्रमुख क्षेत्रों में उपयोग की जा रही तकनीक पर फोकस करने का सुझाव दिया:

जासूसी उपकरण बेचने वाली कंपनियां कहती हैं कि वे अपराध रोकने के लिए सरकारों को कानूनी रूप से उत्पाद बेचती हैं। Cellebrite ‘सेलेब्राइट‘ के अनुसार हमारे उपकरण लोगों की जान बचाने, न्याय को बढ़ावा देने और डेटा गोपनीयता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। ‘पेगासस सिस्टम‘ का विपणन करने वाले NSO Group ‘एनएसओ ग्रूप‘ का बुल्गारिया की इंटरसेप्शन टेक फर्म ‘सर्कल्स‘ के साथ विलय हो गया है। यह ग्रुप अपना लक्ष्य ‘लाइसेंस प्राप्त‘ सरकारी एजेंसियों की मदद करना बताता है। इसका दावा है कि उनकी कंपनी आज की दुनिया में सबसे खतरनाक मुद्दों को कानूनी रूप से संबोधित कर रही है। चीन की कंपनी ‘हुआवेई‘ का कहना है कि उसकी एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) निगरानी तकनीक से अपराध में कटौती होती है और सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार आता है।

एली फंक (वरिष्ठ शोध विश्लेषक, फ्रीडम हाउस) ने सरकारों द्वारा लोगों की जासूसी संबंधी मामलों में जांच-पड़ताल के लिए पत्रकारों को निम्नलिखित महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं-

  • अदालत के दस्तावेज देखें और वकीलों का साक्षात्कार लें – जिन मामलों में केवल डिजिटल जासूसी के जरिए प्राप्त साक्ष्य के आधार पर आरोप लगाए गए हों। उन मामलों को भी देखें जहां आरोपी का फोन जब्त कर लिया गया हो और अधिकारियों द्वारा अनुचित रूप से निगरानी की गई हो।
  • जासूसी तकनीक कंपनियों के प्रतिनिधियों के अंतर्राष्ट्रीय दौरों पर नजर रखें। कुछ कंपनियां कहती हैं कि वे अपनी तकनीक केवल राष्ट्र-राज्यों को बेचते हैं। ऐसी दो फर्म हैं- इजराइल स्थित ‘एनएसओ समूह‘ और बुल्गारिया स्थित ‘सर्किल‘ नामक उसकी सहयोगी कंपनी। इसके अलावा, ‘सेलेब्राइट‘ कंपनी ने कहा कि वह केवल सुरक्षा अनुसंधान समूहों के लिए विशेष उत्पादों की मार्केटिंग करती है। ऐसी कंपनियों के प्रतिनिधियों के विभिन्न देशों में दौरे पर पत्रकारों को नजर रखते हुए पूछना चाहिए कि उन देशों में जाकर कंपनियां क्या हासिल करना चाहती हैं?
  • विभिन्न देशों की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के डिजिटल प्रशिक्षण सत्रों पर नजर रखें।Freedom House ‘फ्रीडम हाउस‘ ने पाया कि बांग्लादेश की सरकार आक्रामक सोशल मीडिया निगरानी तकनीक का उपयोग कर रही थी। वहां की कुख्यात ‘रैपिड एक्शन बटालियन‘ (आरएबी) को संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका प्रशिक्षण दिया गया था। आरएबी गैर-न्यायिक हत्याओं, लोगों को गायब करने और यातना देने सहित मानवाधिकार उल्लंघन के लिए बदनाम है। इस एजेंसी को वास्तविक समय में निगरानी की तकनीक से लैस करने के लिए 14 मिलियन डाॅलर जैसी बड़ी राशि का उपयोग किया गया।
  • डिजिटल ट्रेड शो में निजी निगरानी कंपनी के प्रतिनिधियों से बात करें। संभव है कि कुछ कंपनियों के प्रतिनिधि काफी स्पष्टवादी हों और उनसे अच्छी जानकारी मिल जाए। ऐसे ट्रेड शो में शामिल सरकारी अधिकारियों का भी पता लगाए।
  • जिन देशों में सूचना का अधिकार कानून लागू हो, वहां सरकार के बजट और खरीद रिकॉर्ड की समीक्षा करें। डिजिटल सेवाओं संबंधी सौदों और अनुबंध भाषा की बारीकी से जांच करें। गोलमटोल या अस्पष्ट भाषा में लिखी गई बातों पर विशेष ध्यान दें, जैसे- ‘सोशल मीडिया सूट‘ जैसे शब्द का अर्थ समझने का प्रयास करें।
  • नागरिक समाज और कार्यकर्ताओं के साथ अपना संबंध गहरा करें। उनसे पता लगाएं कि किन समुदायों की लक्षित निगरानी हो रही है। अनगिनत संगठन और शोधकर्ता हैं, जो इन चीजों पर नजर रखते हैं कि जासूसी उपकरणों का उपयोग किसके द्वारा और कैसे हो रहा है।

फोटो कैप्शन – ‘फ्रीडम हाउस‘ ने पाया कि जांच किए गए 65 देशों में से 40 देशों द्वारा नागरिकों की निगरानी के लिए उन्नत सोशल मीडिया निगरानी उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। फोटो: फ्रीडम हाउस

‘फ्रीडम हाउस‘ ने पाया कि जांच किए गए 65 देशों में से 40 देशों द्वारा नागरिकों की निगरानी के लिए उन्नत सोशल मीडिया निगरानी उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है। फोटो: फ्रीडम हाउस

एली फंक ने कहा कि सभी देश के निगरानी उपकरणों का व्यापक इंटरेक्टिव मानचित्र बनना उपयोगी होगा। वह पत्रकारों को सलाह देती हैं कि ‘फ्रीडम हाउस‘ की वार्षिक ‘फ्रीडम ऑन द नेट‘ रिपोर्ट के ‘देश‘ पृष्ठ पर जाकर शोध शुरू करें। इसमें 65 देशों में डिजिटल स्वतंत्रता का आकलन किया गया है। किसी भी देश के नाम पर क्लिक करके वहां उपलब्ध जानकारी का लाभ उठाएं।

क्राउडसोर्सिंग से मिला डेटा

अमेरिका में Electronic Frontier Foundation ‘इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फाउंडेशन‘ (ईएफएफ) की एक परियोजना है Atlas of Surveillance. ‘एटलस ऑफ सर्विलांस‘। इसने अमेरिका की कानून प्रवर्तन निगरानी प्रौद्योगिकियों का एक मैप बनाया है। इस मैप में लगभग 8,000 डेटा पॉइंट शामिल हैं। इन पर क्लिक करके विभिन्न तकनीकों पर उपयोगी जानकारी मिल सकती है। जैसे- एरियल ड्रोन, ऑटोमेटेड लाइसेंस प्लेट रीडर, सेल साइट सिम्युलेटर, चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर इत्यादि। इनका उपयोग लगभग 3500 कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा किया जाता है।

‘एटलस ऑफ सर्विलांस‘ ने यह डेटाबेस कैसे बनाया? यह बेहद दिलचस्प प्रयोग है। इसे ओपन सोर्स इंटेलिजेंस के जरिए बनाया गया है। इसमें पत्रकारिता के छात्रों और स्वैच्छिक शोधकर्ताओं के नेटवर्क से क्राउडसोर्सिंग के तौर पर मंगाया जाता है। इस दौरान प्राप्त सारे डेटा की तथ्य-जांच की जाती है। ईएफएफ ने ‘रिपोर्ट बैक‘ नामक एक ऑनलाइन टूल विकसित किया है। यह छात्रों और स्वैच्छिक शोधकर्ताओं को स्वचालित तरीके से छोटे कार्य भेजता है। इसके तहत सरकारी खरीद रिकॉर्ड, अनुदान रिपोर्ट और किसी विशेष तकनीक पर समाचार या लेख भेेजने का आग्रह किया जाता है।

ईएफएफ की शोधकर्ता बेरिल लिप्टन ने अन्य लोकतांत्रिक देशों के मीडिया संस्थान भी ऐसे मैप या ‘एटलस ऑफ सर्विलांस‘ बनाने का सुझाव दिया है। बेरिल लिप्टन पहले एक गैर-लाभकारी समाचार साइट ‘मकराॅक‘ में एक खोजी रिपोर्टर रह चुकी हैं। उन्होंने कहा- “हमारे एटलस में अलग-अलग जगहों से मिली जानकारी है। इसे इकट्ठा करना किसी एक मीडिया संस्थान के लिए मुश्किल है। इसलिए हमने डेटा को क्राउडसोर्स करके मंगाने का तरीका निकाला।“

बेरिल लिप्टन कहती हैं- “निगरानी उपकरणों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं की तलाश के लिए आप विभिन्न प्रकार की वेबसाइटों पर सर्च कर सकते हैं। .gov टाइप साइटों की तलाश करें। सेलब्राइट, सेल टावर जैसे शब्दों का भी सर्च करें। किसी कंपनी की साइट पर लिखा मिल सकता है कि फलां-फलां सरकारें हमारी मौजूदा ग्राहक हैं।“

बेरिल लिप्टन ने सरकारों के जासूसी उपकरणों की पहचान के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए-

  • यदि आपके देश में सूचना का अधिकार कानून नहीं है, तो आप वैसे देश से सूचना मांगें, जहां यह कानून लागू है। जासूसी उपकरणों की बड़ी कंपनियों की ‘बहुराष्ट्रीय‘ प्रकृति के कारण ऐसा करना सार्थक होगा। विभिन्न देशों की सरकारों के बीच सुरक्षा संबंधी सहयोग मौजूद है। जहां सूचना का अधिकार लागू है, पत्रकार उन देशों के सार्वजनिक रिकॉर्ड खोज सकते हैं। उन दस्तावेजों से आपको अन्य देशों की सूचना मिलना संभव है। उसमें स्थानीय निगरानी तकनीकों का सुराग मिल सकता है। दुनिया भर में सूचना के अधिकार या आरटीआई कानूनों का उपयोग करने के लिए जीआईजेएन की मार्गदर्शिका और विदेशों से सूचना का अनुरोध करने के लिए आईआरई की मार्गदर्शिका देखें। अंतरराष्ट्रीय पत्रकारों को अमेरिका के सार्वजनिक रिकॉर्ड का भरपूर उपयोग करना चाहिए। यह पता लगाएं कि दो देशों में काम करने वाली कंपनियां क्या कर रही हैं। गैर-अमेरिकी नागरिक भी अमेरिका से सूचना का अधिकार के तहत सूचना ले सकते हैं। कई अन्य देशों में भी यह सुविधा उपलब्ध है। अगर आप ऐसे किसी देश से सूचना लेते हैं, तो उससे दूसरे देशों में मौजूद जासूसी उपकरणों की भी जानकारी मिल सकती है। अन्य देशों के कानून प्रवर्तन अधिकारियों के किसी विदेशी प्रशिक्षण की जानकारी के साथ उन उपकरणों का सुराग मिल सकता है, जिनका अन्य देशों में उपयोग हो रहा है।
  • एकीकृत निगरानी उत्पादों पर कंपनियों की नीतियों की पड़ताल करें। उनकी आंतरिक नैतिकता समिति के दस्तावेज पढ़ें। एक प्रमुख कंपनी ‘एक्सॉन‘ (पूर्व में टेसर) ने वर्ष 2019 में घोषणा की- “हम बाॅडी कैमरों फेस मैचिंग उत्पादों का व्यवसायीकरण नहीं करेंगे।“ इस घोषणा से पता चलता है कि ये कंपनियां चाहें तो चेहरे की पहचान को बॉडी कैमरों से जोड़ सकती हैं। संभव है कि अन्य कंपनियों ने ऐसे कई विकल्प बनाए हों, या बना सकती हों।
  • विभिन्न देशों की सरकारें कई तरह के निगरानी उपकरणों एवं तकनीक की खरीद के लिए निविदा आमंत्रित करती हैं। इसमें शामिल होने वाली असफल कंपनियों की खरीद बोलियों को देखना भी सार्थक होगा। सूचना का अधिकार के तहत ऐसे दस्तावेज हासिल करें। निगरानी उपकरणों की खरीद संबंधी प्रस्तावों के जवाब में सभी बोलियों की जानकारी लें। इसमें हारने वाले निविदादाताओं के प्रस्ताव भी शामिल हों। संभव है कि आपको बहुत कुछ जानकारी मिल जाए। जैसे, किसी कंपनी ने अपने प्रस्ताव में बताया हो कि उसने अपनी उस तकनीक को अन्य किन देशों में बेचा है।

कानून प्रवर्तन एजेंसियों पर नजर रखें

वास्तविक दुनिया में इन जासूसी तकनीकों का उपयोग कैसे किया जाता है? इसकी ठोस जानकारी हासिल करना एक पत्रकार के लिए बेहद जरूरी है।

जॉन फासमैन (यूएस डिजिटल एडिटर, ‘द इकोनॉमिस्ट‘) ने अपनी पुस्तक पर शोध के लिए अमेरिका और इक्वाडोर में पुलिस के साथ काम किया। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक प्रौद्योगिकी विरोधी नहीं, बल्कि लोकतंत्र समर्थक है और विनियमन की पक्षधर है। पुस्तक का शीर्षक है- “We See It All: Liberty and Justice in an Age of Perpetual Surveillance.”

लेखक जाॅन फासमैन के अनुसार, लोकतंत्र में सरकारों द्वारा निगरानी तकनीकों की खरीद सामान्यतः सकारात्मक उद्देश्य से की जाती है। लेकिन किन लोगों की निगरानी की गई और इस दौरान प्राप्त डेटा का ऊपर से लेकर निचले स्तर तक अधिकारियों ने किस तरह उपयोग किया, यह कहना मुश्किल है। इससे नागरिक स्वतंत्रता को गंभीर खतरा हो सकता है। कई बार सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोग भी अनुमान नहीं लगा सकते कि इसका किस स्तर पर क्या दुरुपयोग हो सकता है।

जाॅन फासमैन ने कहा- “एएलपीआर या सिटीजन वर्चुअल पेट्रोल (जो शहर की सड़कों के वीडियो को लैपटॉप पर स्ट्रीम करता है) जैसी चीजें ऐसा कुछ भी नहीं कर रही हैं, जो एक पुलिस अधिकारी सार्वजनिक स्थान पर नहीं कर सकता। दरअसल उनकी सर्वव्यापकता, सहजता और अदृश्यता से खतरा है। कुछ कंपनियां ‘फेशियल रिकाॅग्निशन‘ का इस्तेमाल करती हैं, खासकर इजराइल में। चेहरा पहचानने की यह तकनीक मुझे ‘स्टींग्रेज‘ (जो फोन को ट्रैक करने के लिए सेल टावरों की नकल करती है) जैसे उपकरणों से भी ज्यादा चिंतित करती है। हम अपने फोन को घर पर छोड़ सकते हैं, लेकिन अपने चेहरे को घर पर नहीं छोड़ सकते।“

अपने शोध के दौरान जाॅन फॉसमैन ने नेवार्क, न्यू-जर्सी, लॉस एंजिल्स, कैलिफोर्निया में पुलिस के साथ काम किया। कई बार वह पुलिस गश्ती टीम के साथ भी गए। ऐसे अनुभवों के आधार पर उन्होंने बताया- “पुलिस के फोन में शॉटस्पॉटर ऐप होते हैं, जो सड़क पर तेज धमाकों का पता चलने पर अलर्ट भेजते हैं। लास एंजेल्स में एक उच्च अधिकारी को ऐसे पुलिसिंग ऐप की जानकारी थी। ऐसे अधिकारी अपने दैनिक कार्यों में तकनीक को एकीकृत करते हैं।“

जाॅन फैसमैन ने इक्वाडोर में एक पुलिस विभाग में भी अध्ययन किया कि कैसे अधिकारियों ने चाइनीज ईसीयू-911 प्रणाली का उपयोग किया। इसमें एक विशाल स्मार्ट कैमरा नेटवर्क शामिल था जो नागरिकों के फोन को ट्रैक कर सकता है। वे कहते हैं- “ऐसी निगरानी का दोहरा उद्देश्य होता है। ऐसे उपकरणों से पुलिस, एम्बुलेंस और अग्निशमन विभागों की क्षमता बढ़ती है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि राजनीतिक विरोधियों और पत्रकारों की निगरानी के लिए सरकार इस सिस्टम का अनुचित उपयोग कर सकती है।“ which includes a massive smart camera network and can track citizens’ phones

जाॅन फैसमैन ने निगरानी मामलों की जानकारी के लिए पत्रकारों को निम्नलिखित सुझाव दिए-

  • आप पुलिस अधिकारियों से उनके निगरानी आपरेशन के संबंध में जानकारी मांग सकते हैं। आप कुछ दिनों के लिए ऐसी पुलिस टीम के साथ जुड़कर देखने का भी अनुरोध कर सकते हैं। बशर्ते कि ऐसा करना सुरक्षित हो। कई देशों में पुलिस के साथ पत्रकार को ‘एम्बेड‘ करने के ऐसे अनुरोध को अस्वीकार कर दिया जाएगा। लेकिन किसी देश के अधिकारी सहमत हो सकते हैं। कुछ पुलिस अधिकारियों को तकनीक से लगाव होता है। कुछ पुलिस अधिकारियों को ऐसा लग सकता है कि मीडिया को जानकारी देना जनहित में है।
  • अपने क्षेत्र में मौजूद किसी ‘सार्वजनिक सड़क निगरानी प्रणाली‘ में लॉग ऑन करें। जैसे, Newark’s Citizen Virtual Patrol नेवार्क के ‘सिटिजन वर्चुअल पेट्रोल‘ में लॉग ऑन करके कई घंटों तक उस फीड की निगरानी करें, जो पुलिस देखती है। इससे आपको गोपनीयता के मुद्दों की कुछ जानकारी मिल सकती है।
  • पुलिस से किसी जानकारी के लिए अनुरोध करते समय ईमानदार रहें, लेकिन अत्यधिक स्पष्टवादी बनने की जरूरत नहीं है। एक पत्रकार के रूप में आप झूठ नहीं बोल सकते हैं। लेकिन अगर आपको जानकारी चाहिए, तो अपने अनुरोध को यथासंभव अस्पष्ट या गोलमटोल रखें। जैसे, आप कहें कि इन जटिल मामलों में पुलिस कैसे काम करती है, इस पर मैं एक रिपोर्ट लिखना चाहता हूं। ऐसा कहने पर आपको पुलिस से मदद मिल सकती है। लेकिन अगर आप कहेंगे कि मैं इस पर रिपोर्ट लिख रहा हूं कि इन तकनीकी उपकरणों से नागरिक स्वतंत्रता को क्या खतरे हैं, तो आपको पुलिस से कुछ भी नहीं मिलेगा।
  • Stingrays- स्टींग्रेज‘ के डेटा के लिए ऐसी कंपनियों के आंतरिक स्रोत या पूर्व कर्मचारियों की तलाश करें। पुलिस टीम के साथ एम्बेड करने से ‘स्टींग्रेज‘ के उपयोग का विवरण नहीं दिखेगा। सेल साइट सिम्युलेटर को अंतरराष्ट्रीय मोबाइल ग्राहक पहचान (आईएमएसआई) की पकड़ करने वाला भी कहा जाता है। पुलिस विभागों के बीच इन प्रणालियों के बारे में चुप रहने का एक सख्त कोड है। इसलिए सार्वजनिक रिकॉर्ड खोजना ज्यादा उपयोगी होगा। विभिन्न नागरिक स्वतंत्रता समूहों के डेटाबेस की भी तलाश करें। जैसे, एसीएलयू ने अमेरिका में ‘स्टींग्रेज‘ के उपयोग का मैप बनाया है। इसने ऐसी 75 एजेंसियों की पहचान की है, जिनके पास यह डिवाइस हैं।

स्पाइवेयर की तलाश कब और कैसे करें?

पिछले पैटर्न के आधार पर निगरानी उपकरणों की खरीद का अनुमान लगाया जा सकता है। जैसे कि सरकारों द्वारा जासूसी उपकरणों की ऐसी खरीद, जिसके बाद किन्हीं प्रतिबंधों में छूट देनी पड़ती हो। लीबिया के जासूसी तकनीकी खरीद सौदों की जांच ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल‘ ने की। इसमें कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यापार प्रतिबंधों को हटाने के बाद लीबिया ने निगरानी उपकरणों की खरीदारी की होड़ शुरू कर दी।

सिटीजन लैब के शोधकर्ताओं ने पाया कि 25 देशों ने ‘सर्किल स्पाइवेयर‘ तैनात किए हैं, जो मोबाइल फोन का पता लगाकर इंटरसेप्ट कर सकते हैं। फोटो – स्क्रीनशॉट

विशेषज्ञों के अनुसार सबसे कठिन तकनीक यह है कि फोन को हैक किए बिना ही फोन के संचार को हैक कर लिया जाता है। खासकर ‘सर्किल‘ सिस्टम द्वारा ऐसा किया जाता है। यह फोन में घुसपैठ का कोई निशान नहीं छोड़ता है। यह विभिन्न दूरसंचार नेटवर्कों के बीच कॉल को रूट करने के लिए उपयोग की जाने वाली एक सामान्य सिग्नलिंग प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाता है। यह होम वायरलेस नेटवर्क को यह विश्वास दिलाता है कि फोन रोमिंग पर है। यह कुछ ही सेकंड में फोन के अनुमानित स्थान की पहचान कर करके कॉल और टेक्स्ट को भी इंटरसेप्ट कर सकता है।

सरकारों द्वारा ‘सर्किल‘ उत्पादों की तैनाती का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं और पत्रकारों ने आम तौर पर ओपन सोर्स टूल्स और इनसाइडर टिप्स पर भरोसा किया है।

पिछले साल टोरंटो विश्वविद्यालय के Citizen Lab सिटीजन लैब के शोधकर्ताओं को एक नए तरीके की जानकारी मिली। Internet of Things (IoT) search engines, जैसे Shodan और Censys, इंटरनेट ऑफ थिंग्स सर्च इंजन (जैसे शोडन और सेन्सिस) को स्कैन करना, जिनके होस्टनाम में ‘सर्किल‘ से जुड़ा कोई टेल्टेल डोमेन नाम हो। डोमेन नाम ट्रेकसिस्टम डाॅट इन्फो की खोज करके सिटीजन लैब ने 25 सरकारों की पहचान की, जिन्होंने सर्किल सिस्टम खरीदे थे। यह भी पता चला कि इनका उपयोग करने वाली कई विशेष एजेंसियों पर मानवाधिकार हनन के गंभीर मामले हैं।

सिटिजन लैब ने अपनी रिपोर्ट ‘रनिंग इन सर्किल्स‘ के ‘फिंगरप्रिंटिंग एंड स्कैनिंग फोर सर्किल्स‘ खंड में इस पर विस्तार से जानकारी दी है।

मानवाधिकार समूह Access Now i ‘एक्सेस नाऊ‘  ने लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में सरकारों द्वारा निगरानी प्रौद्योगिकियों की खरीद पर जांच पूरी की है। जुलाई में ‘एक्सेस नाऊ‘ की वेबसाइट पर रिपोर्ट देख सकते हैं। शोधकर्ताओं से सीधे संपर्क भी कर सकते हैं।

RightsCon summit हाल ही में ‘राइट्सकॉन सम्मेलन‘ हुआ। इसे डिजिटल युग में मानव अधिकारों पर दुनिया का अग्रणी सम्मेलन कहा गया। इसमें ‘एक्सेस नाऊ‘ के लैटिन अमेरिका के नीति प्रबंधक गैस्पर पिसानू ने कहा कि उनकी रिपोर्ट में साक्षात्कार और सूचना का अधिकार से मिली जानकारी के अलावा कॉरपोरेट प्रेस विज्ञप्ति शामिल हैं।

गैस्पर पिसानू ने जीआईजेएन को बताया कि लिंक्ड-इन भी शोध के लिए उपयोगी साबित हुआ है। रिपोर्टर लिंक्ड-इन के माध्यम से निगरानी उपकरणों के आपूर्तिकर्ताओं के अधिकारियों और खासकर हाल के पूर्व कर्मचारियों की पहचान करके उनसे साक्षात्कार कर सकते हैं।

‘राइट्सकॉन सम्मेलन‘ में  Laboratório de Políticas Públicas e Internet के प्रमुख थियागो मोरेस ने एक हैरान करने वाली जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ब्राज़ील में अधिकारियों ने कई महंगे ‘निगरानी उपकरणों‘ की नियमानुसार खरीद नहीं की। इसके बजाय विदेशी कंपनियों ने ‘पायलट परीक्षण‘ के रूप में दान कर दिया।

हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के ‘अफ्रीकी और अफ्रीकन अमेरिकी अध्ययन विभाग‘ के शोधकर्ता बुललानी जिली ने ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल‘ की वर्ष 2019 की एक खोजपूर्ण खबर का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट से यह पूर्व धारणा बदल गई कि ‘निगरानी तकनीक‘ का उपयोग महज एक पश्चिमी मुद्दा है।

उक्त खोजपूर्ण खबर में पत्रकारों ने पाया कि युगांडा साइबर सुरक्षा पुलिस ने विपक्षी नेता बोबी वाइन के संचार को हैक करने के लिए चीनी तकनीशियनों को बहाल किया था। पुलिस को बोबी वाइन के व्हाट्सएप अकाउंट को हैक करने में सफलता नहीं मिल सकी। इसके बाद डिजिटल आपूर्तिकर्ता ‘हुआवेई के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की मदद से युगांडा पुलिस ने बोबी वाइन के ‘फायरबेस क्रू‘ चैट समूह में प्रवेश करने में सफलता पाई। इसके बाद पुलिस ने विपक्षी रैलियों को रोक दिया और बोबी वाइन को कई समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया।

‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल‘ के अनुसार यह पता नहीं चल पाया कि हुआवेई के चीन स्थित अधिकारियों को युगांडा में ऐसी फोन हैकिंग की जानकारी थी, अथवा नहीं। लेकिन कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि ‘हुआवेई कभी भी हैकिंग गतिविधियों में शामिल नहीं रहा है।‘

जिली ने पत्रकारों को ‘सॉफ्ट लोन‘ की बढ़ती संख्या की जांच का सुझाव दिया। खासकर चीन से – जिसका उपयोग कई अफ्रीकी सरकारें निगरानी तकनीक खरीदने के लिए कर रही हैं। उन्होंने पूछा- “युगांडा जैसा अपेक्षाकृत कम आय वाले देश ने चीन से 126 मिलियन डॉलर का ऋण लेकर कैमरा निगरानी प्रणाली क्यों खरीदी? जबकि आंकड़े बताते हैं कि वहां अपराध के साथ इसका कोई सीधा संबंध नहीं है?“

निगरानी तकनीक के विस्तार में चीन के प्रभाव का दायरा बढ़ता जा रहा है। पिछले साल Carnegie Endowment for International Peace ‘कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस‘ ने अमेरिकी सरकार के एक आयोग के समक्ष एक रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया गया कि 13 अफ्रीकी सरकारों ने उन्नत चीनी निगरानी तकनीक हासिल कर ली है। इनमें जिम्बाब्वे में ‘क्लाउडवॉल चेहरे की पहचान‘ से लेकर केन्या और युगांडा में हुआवेई के ‘सेफ सिटीज‘ नागरिक निगरानी जैसे उपकरण शामिल हैं।

फ्रांसीसी पत्रकार टेस्केट ने चेतावनी दी है स्थिति काफी विस्फोटक हो रही है। अभी जो दिख रहा है, वह सिर्फ हिमशैल का सिरा दिखता है। विशाल हिस्सा तो पानी के नीचे होने के कारण दिख नहीं रहा है।

Additional Resources

How Journalists Are Coping with a Heightened Surveillance Threat

The Rapid Rise of Phone Surveillance

The Secret Trade in Tools Used to Hack the Press: An Interview with The New York Times’ Nicole Perlroth


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रोवन फिलिप ने एक दशक तक दक्षिण अफ्रीका के ‘संडे टाइम्स‘ के मुख्य संवाददाता के बतौर काम किया। उन्होंने ‘द वॉशिंगटन पोस्ट‘ और एमआईटी में फैलोशिप के तहत पुस्तक पर काम भी किया। रोवन ने 27 देशों से रिपोर्टिंग की है। उन्होंने 2014 की रिपोर्ट में रूस द्वारा दक्षिण अफ्रीका सरकार को आठ परमाणु रिएक्टर बेचने के गुप्त प्रयास का खुलासा किया गया था। इस रिपोर्ट को उस सौदे को खत्म करने का श्रेय दिया गया था। जीआईजेएन में वह नियमित योगदान करते हैं। रोवन फिलिप जीआईजेएन के रिपोर्टर हैं। पहले वह दक्षिण अफ्रीका के ‘संडे टाइम्स‘ में मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्ट दी है।

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