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खोजी खबरों की तथ्य-जांच

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आपने खोजी खबर का प्रारूप तैयार कर लिया है। अब क्या करना है?

आपने इस कहानी पर कड़ी मेहनत की है। कई हफ्तों या महीनों से शोध और रिपोर्टिंग कर रहे हैं। आप और संपादक एक मसौदे पर सहमत हो गए हैं। अब इसकी तथ्य-जांच का कठिन काम करना है। यह सुनिश्चित करना कि आपकी स्टोरी के प्रत्येक कथन की जांच कर ली गई है।

इसके लिए अपने शोध की शुरुआत से ही व्यवस्थित रहना होगा। स्रोत सामग्री को ट्रैक करने के लिए अपनी रिपोर्टिंग में तथ्य-जांच के सही उपकरणों को सचेत तौर पर शामिल करें। इसके बगैर आपकी कहानी की तथ्य-जांच करना मुश्किल होगा। हालांकि यह इतना कठिन नहीं है। यह अध्याय ऐसी प्रक्रिया विकसित करने का तरीका बताता है, जो जथ्य-जांच को सहज और आसान बना दे।

न्यूज़रूम के भीतर अपनी या किसी अन्य पत्रकार की कहानी की तथ्य-जांच कैसे होती है? प्रकाशन या प्रसारण से पहले आंतरिक फैक्ट चेकिंग का क्या तरीका है? ध्यान रहे कि इस अध्याय में संस्थान के भीतर खुद की गई तथ्य-जांच की बात हो रही है। यह अपनी स्टोरी की फैक्ट चेक का मामला है। इसमें दूसरों की स्टोरी या किसी स्वतंत्र तथ्य-जांच को शामिल नहीं किया गया है। कुछ तथ्य-जांच संगठन सोशल मीडिया के फेक न्यूज और दुष्प्रचार का फैक्ट-चेक जारी करते हैं। जैसे, पॉलिटिफैक्ट (Politifact), फैक्ट चेक डॉट ओआरजी (FactCheck.org), रॉयटर्स फैक्ट चेक (Reuters Fact Check), अफ्रीकन फैक्ट-चेकिंग एलायंस (African Fact-Checking Alliance), फैक्टचेकर्स डॉट इन (FactChecker.in) । इस पर अधिक जानकारी के लिए जीआईजेएन की खोजी कहानियों की तथ्य-जांच मार्गदर्शिका देखें।

तथ्य-जांच का वर्तमान तरीका

शिकागो गाइड टू फैक्ट-चेकिंग। इमेज : स्क्रीनशॉट, शिकागो विश्वविद्यालय प्रेस

Chicago Guide to Fact-Checking – यह ब्रुक बोरेल की चर्चित पुस्तक है। इसमें जॉन बंटा (रिसर्च हेड, वैनिटी फेयर मैगजीन) का एक कथन है- “फैक्ट-चेकर किसी चीज के अंदर जाकर सब कुछ अलग कर देते हैं। जैसे, वे कार से इंजन को निकाल देते हैं। उसके सभी हिस्सों को फर्श पर फेंक देते हैं। फिर उसे दोबारा जोड़ते हैं।“

तथ्य-जांच का काम रिपोर्टिंग से अलग प्रक्रिया है। इसके जरिए यह सुनिश्चित करना है कि आपकी स्टोरी बिल्कुल ठोस, सटीक और निष्पक्ष है। समाचार कक्षों में एक महत्वपूर्ण कार्य है। पहले यह कहीं अधिक व्यापक था, जब पत्र-पत्रिकाओं की संपादकीय टीम में तथ्य-जांचकर्ता की नियुक्ति होती थी।

अब पूर्णकालिक तथ्य-जांचकर्ता की नियुक्ति का प्रचलन कम हुआ है। पिछले कुछ दशकों में बजट कम हो गया है। न्यूज़रूम अब इस खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं। हालांकि कुछ मीडिया संस्थानों में अब भी तथ्य-जांच विभाग हैं। जैसे, ‘द न्यू यॉर्कर‘ (The New Yorker)। अन्य अमेरिकी मीडिया संगठन अपने पास मौजूद संसाधनों का उपयोग करके तथ्य-जांच करते हैं। जैसे, द नेशन (The Nation) में प्रशिक्षुओं के एक सशक्त समूह को तथ्य-जांच का काम सौंपा जाता है। आम तौर पर न्यूज़रूम में खुद पत्रकारों को अपनी खबरों के फैक्ट चेक के लिए पूर्ण जिम्मेदार समझा जाता है। इसमें अंतिम निर्णय कानूनी विभाग का होता है।

कोई भी तथ्य-जांचकर्ता इस काम के लिए आमतौर पर कुछ चरणों के साथ एक समयरेखा बनाता है। चाहे वह कोई स्वतंत्र फैक्ट-चेकर हो या किसी जांच परियोजना का सदस्य, या खुद रिपोर्टर। किसी समाचार कक्ष में एक तथ्य-जांचकर्ता किस तरह काम करता है? दरअसल पत्रकार अपनी स्टोरी का मसौदा (प्रारूप) तैयार करने के बाद अपने स्रोतों, नोट्स सहित तमाम चीजें तथ्य-जांचकर्ता को सौंप देता है। तथ्य-जांचकर्ता उन चीजों के आधार पर स्टोरी के मसौदे की जांच करता है। इसके बाद वह रिपोर्टर से यह चर्चा कर सकता है कि कहानी के किन हिस्सों की समीक्षा करनी चाहिए, और कैसे। कुछ न्यूज़रूम ‘पत्रिका-शैली‘ में तथ्य-जांच का पालन करते हैं, जिसमें तथ्य के हरेक बयान को सत्यापित किया जाता है।

स्टोरी की तथ्य-जांच पूरी होने के बाद तथ्य-जांचकर्ता आवश्यक बदलावों के बारे में अपने तर्क के साथ अपनी राय देगा। संपादक यह तय कर सकते हैं कि कौन से बदलाव उचित हैं। इसके बाद अंतिम मसौदा कानूनी विभाग में भेजा जाता है। कभी-कभी तथ्य-जांच को अंतिम रूप देने से पहले कानूनी विभाग द्वारा मसौदे की समीक्षा की जाती है। यह सब पूरा होने के बाद स्टोरी को प्रकाशित होने से पहले कॉपी डेस्क के पास भेजा जाता है।

भले ही यह रिपोर्टर खुद करे, या कोई अन्य व्यक्ति, लेकिन हर स्टोरी की तथ्य-जांच जरूरी है। यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है? ब्रुक बोरेल ने अपनी पुस्तक में इसे सरलता से बताया है – “आपके द्वारा दस्तावेजों को पढ़ने, स्रोत से साक्षात्कार करने और विश्लेषण के दौरान स्टोरी की बुनियाद टूटकर ढह सकती है। हो सकता है कि समस्या मामूली हो। एक साधारण गलतफहमी या मामूली त्रुटि। यदि दरार छोटी है और शेष स्रोत ठोस हैं, तो आपकी कहानी जीवित रह सकती है। हालांकि तब भी एक दरार दिखेगी। कोई जागरूक पाठक आपकी शेष स्टोरी के बारे में संदेह कर सकता है। यदि स्टोरी में छोटी दरारें दिखाई देती हैं, तो इससे विश्वसनीयता कम हो सकती है। यदि किसी स्रोत को गलत तरीके से उद्धृत किया गया हो, अथवा किसी उद्धरण के लिए आवश्यक संदर्भ नहीं यि गया हो, तो ऐसी चूक नुकसानदायक है।“

आपके मीडिया संगठन में कोई फैक्ट-चेकर उपलब्ध न हो, तो आपकी स्टोरी की तथ्य-जांच कराना मुश्किल काम लग सकता है। इसलिए यहां हम चर्चा करेंगे कि आप किसी स्टाफ फैक्ट-चेकर के ही समान कठोरता के साथ अपनी खोजी कहानियों की तथ्य-जांच कैसे करें।

 

सुझाव और उपकरण

व्यवस्थित तरीके से काम करें

तथ्य-जांच प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए जरूरी है कि आप एक सुसंगत संगठनात्मक प्रणाली स्थापित करें। आप जिसमें सहज हों, वही तरीका अपनाएं। ड्रॉप-बॉक्स अथवा गूगल ड्राइव का उपयोग कर सकते हैं। इसके बदले सिर्फ अपने कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन सुनिश्चित करें कि आपके पास एक बैकअप ड्राइव है। आसानी से पहचान के लायक नाम से अलग अलग फ़ोल्डर बना लें। यदि आप किसी टीम के साथ काम कर रहे हैं, तो सदस्यों के साथ चर्चा करें कि आप साझेदारी कार्य को कैसे व्यवस्थित करेंगे। उस तरीके पर लगातार बने रहना जरूरी है। आप जिस भी स्रोत से बात करते हैं, उसके लिए एक कॉन्टेक्ट शीट बनाएं। उनसे बात के बाद उसका दस्तावेजीकरण करें। साक्षात्कारों की रिकॉर्डिंग के लिए एक अलग फ़ोल्डर बनाएं।

इससे पहले कि आपको इस बात का ठोस अंदाजा हो कि कहानी कहां जा रही है, एक सिस्टम स्थापित करना और उस पर कायम रहना महत्वपूर्ण है। ताल्या कूपर (आर्काइव विशेषज्ञ) ने रिपोर्टिंग को व्यवस्थित करने के लिए कई बेहतरीन सुझाव दिए हैं। यह संवेदनशील सामग्री से निपटने के लिए खास उपयोगी है।

अपनी स्टोरी के संबंध में टिप्पणी करें

अपनी स्टोरी और उसकी प्रक्रिया के संबंध में टिप्पणी करें।  इससे यह सुनिश्चित करना संभव होता है कि आप प्रत्येक तथ्य कथन का आसानी से समर्थन कर सकते हैं।

स्टोरी का मसौदा लिखते समय ध्यान दें कि तथ्य का प्रत्येक विवरण कहां से आया है। ऐसा करने के कई तरीके हैं। लेकिन मेरी व्यक्तिगत प्राथमिकता प्रत्येक वाक्य के बाद स्रोत का दस्तावेजीकरण करने के लिए फ़ुटनोट का उपयोग करना है। कुछ पत्रकार एक टेक्स्ट एडिटर के माध्यम से अपनी कहानियां चलाते हैं और प्रत्येक तथ्य कथन को एक स्प्रेडशीट में अलग करते हैं। इसमें प्रत्येक तथ्य कथन के लिए एक कॉलम होता है। विभिन्न कॉलम इसके स्रोत को दर्शाते हैं। इसमें लिंक, फ़ाइल नाम और ऑडियो टाइमकोड शामिल होते हैं।

आप सुसंगत रहना सुनिश्चित करें। सामग्री को संग्रहित और व्यवस्थित करने की आपकी प्रणाली यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण होगी कि स्पष्ट व्याख्या करना संभव हो। जो लोग आपके मसौदे से अपरिचित हैं, वे भी प्रत्येक तथ्य के स्रोत को आसानी से समझ सकें।

स्रोत का ठोस होना जरूरी

अपनी तथ्य-जांच में सहायता के लिए, सुनिश्चित करें कि जिन स्रोतों पर आप भरोसा कर रहे हैं, वे भरोसेमंद, निष्पक्ष और सटीक हैं। अपनी रिपोर्ट में आप प्राथमिक स्रोतों को प्रमुख आधार बनाते हैं। इनमें सरकारी एजेंसियों के दस्तावेज़ और डाटासेट, अभिलेख सामग्री, अदालती रिकॉर्ड, साक्षात्कार, प्रेस विज्ञप्ति इत्यादि शामिल हैं। लेकिन ऐसे सोशल मीडिया या ब्लॉग पोस्ट पर भरोसा न करें, जो अपनी जानकारी का स्रोत नहीं बताते हों।

अपनी कहानी पर शोध के आरंभ में विकिपीडिया एक अच्छा संसाधन हो सकता है। लेकिन यह उद्धृत करने के योग्य नहीं है। यह कोई भरोसेमंद या स्वीकार्य स्रोत नहीं है। इसके पेज का संपादन कोई भी व्यक्ति कर सकता है। बिना स्रोत के इसमें कोई भी जानकारी जोड़ना संभव है।

चैट-जीपीटी (कृत्रिम बुद्धिमत्ता ऐप) भी आजकल प्रयोग में आ रहा है।  लेकिन इस पर भरोसा नहीं कर सकते। अमेरिका का वर्ष 2023 का दिलचस्प उदाहरण देखें। एक एयरलाइंस कंपनी के खिलाफ मामले में एक वकील ने चैट-जीपीटी की मदद से आवेदन तैयार किया। इस पर ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स‘ के लिए बेंजामिन वीज़र ने रिपोर्ट में लिखा- “इस मामले में एक समस्या आई। एयरलाइंस के वकील और खुद न्यायाधीश भी उस वकील द्वारा पेश किए गए किसी निर्णय या उदाहरण को ढूंढ नहीं पाए। कारण यह था कि चैट-जीपीटी ने हर बात अपनी कल्पना से खुद मनगढंत तरीके से लिख दी थी।“ स्पष्ट है कि चैट-जीपीटी कई बार खुद ही कोई मनमानी बात लिख सकता है। इसका प्रयोग करते समय सावधानी जरूरी है।

अपने लिंक सेव कर लें

पुराने वेबपेजों की तथ्य-जांच के लिए वेबैक मशीन काफी महत्वपूर्ण है। इमेज : शटरस्टॉक

अपनी जांच के दौरान आप कई तरह के ऑनलाइन स्रोत का उपयोग करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्रोत का लिंक सेव कर लें। किसी ऑनलाइन दस्तावेज़, सार्वजनिक रिकॉर्ड और स्रोत साक्षात्कार इत्यादि स्रोत सामग्री उपयोगी हैं। लेकिन इनके वेबपेज, लेख और सोशल मीडिया पोस्ट को किसी भी समय हटाया अथवा बदला जा सकता है। इसलिए इनके लिंक को सहेजना जरूरी है। लेकिन इससे भी आगे बढ़कर आप उन्हें वेबैक मशीन (Wayback Machine) में संग्रहित कर सकते हैं। यह एक आवश्यक उपकरण है। यह पुराने वेबपेजों के संग्रहित संस्करणों तक पहुंचने का शानदार तरीका भी है। आप इसमें देख सकते हें कि कोई वेबपेज वर्षों या दशकों पहले कैसा दिखता होगा। जैसे, यदि आप एक्स (ट्विटर) की सोशल मीडिया पोस्ट को सहेजना चाहते हैं, तो आप इसे ‘आर्काइव डॉट आईएस‘ (archive.is) में सेव कर सकते हैं।

तथ्य-जांच से जुड़े प्रमुख सवाल

मैंने पूर्णकालिक तथ्य-जांच संबंधी काम पहले ‘द इंटरसेप्ट‘ में किया था। वहां तथ्य-जांच डेस्क ने एक गाइड विकसित किया था। जब मुझे किसी ऐसे तथ्य की जाँच करनी हो, जिसमें पर्याप्त स्रोत न हों, या बयान की पुष्टि करने वाला कोई स्रोत न हों, तब मैं उस गाइड का उपयोग करती थी। ऐसे मामलों में हमारी तथ्य-जांच टीम खुद से निम्नलिखित प्रश्न पूछती थी –

  • क्या हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यह कथन सत्य है?
  • क्या हमारे पास ऐसे सबूत हैं, जो किसी को संदेह होने के बावजूद हम पर विश्वास करने के लिए प्रेरित कर सके?
  • कल्पना करें, क्या हमारी स्टोरी के तथ्यों को गलत साबित करने वाला कोई विरोधी साक्ष्य सामने आ सकता है? क्या ऐसे में हम अपनी गलती के लिए खेद प्रकट करके भूल सुधार प्रकाशित करने के लिए मजबूर होंगे?

यदि इन तीन में किसी एक प्रश्न का उत्तर हमें भरोसेमंद नहीं लगे, तो हमें स्टोरी के अन्य स्रोत ढूंढने होंगे। हम रिपोर्टर को किसी वैकल्पिक शब्द का सुझाव दे सकते हैं ताकि स्टोरी के प्रकाशन के बाद कोई समस्या न आए। खुद अपने काम की तथ्य-जांच करते समय भी इन प्रश्नों को ध्यान में रखें।

तथ्य-जांच की खास प्राथमिकता

यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि स्टोरी में प्रत्येक तथ्य सही है। लेकिन आपको यह भी पहचानना होगा कि किस प्रकार के तथ्य गलत होने पर ज्यादा विवाद हो सकता है। कौन से तथ्य गलत होने पर उनकी जांच का अधिक मामला बन सकता है? इस आसान सूची को देखें। तथ्य-जांच में इन्हें खास प्राथमिकता देना आवश्यक है-

  • ऐसी चीज, जो किसी व्यक्ति या संगठन का अपमान करती हो। किसी भी अपमानजनक तथ्य अथवा बात की अच्छी तरह तथ्य-जांच करें।
  • कोई तकनीकी या वित्तीय जानकारी, जो स्टोरी में महत्व रखती हो। खासकर यदि वह पहले रिपोर्ट न की गई हो।
  • विद्वत्तापूर्ण अध्ययनों का सारांश।
  • कानूनी तर्कों का विवरण, किसी मुकदमे में दोनों पक्षों के दस्तावेज़ों की समीक्षा।
  • सांख्यिकी, मृत और घायलों के आंकड़े, कोई संख्यात्मक डेटा।
  • तारीख, घटनाओं का कालक्रम।
  • रिपोर्टर का अपना सांख्यिकीय या अन्य विश्लेषण;
  • सरकारी नीतियों या कानूनों का विवरण या सारांश।
  • किसी अन्य की रिपोर्टिंग का विवरण।
  • किसी के नाम की वर्तनी।
  • प्रसिद्ध ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण।
  • कोई बड़ा दावा, जैसे – ‘सर्वोच्च दर।‘
  • साक्षात्कार से प्राप्त जीवनी संबंधी जानकारी।

सामान्य गल्तियों से बचें

किसी फैक्ट-चेकर से पूछें कि कैसी ग़लतियां सबसे ज्यादा आती हैं। उनका जवाब होगा- ”ऐसी गलती, जिन्हें पत्रकार अपनी स्मृति से लिखते हैं। इन त्रुटियों में कई सामान्य मुद्दे रहते शामिल हैं।”

  • नाम और पद : चेयरमैन या सीईओ जैसे कॉरपोरेट कार्यकारी के पद की जांच आसान है।
  • अतिशयोक्ति : यदि आप लिखते हैं- ‘फलां तूफान सबसे खराब तूफान था।‘ तब कोई पूछ सकता है कि यह ‘सबसे ख़राब‘ कैसे था? यह तूफान किस श्रेणी में आता है? क्या यह मृतकों की अधिक संख्या के लिहाज से सर्वाधिक खराब है? इसलिए ऐसी अतिशयोक्ति वाली बात लिखने के बजाय सिर्फ स्पेसिफिक तथ्य लिखें।
  • प्रासंगिक जानकारी : दिनांक, समय, स्थान।
  • संख्यात्मक आंकड़े और सांख्यिकी।
  • उद्धरण।

जिस चीज़ के बारे में आपको लगता है कि आप जानते हैं, उसकी भी जांच कर लें। मानवीय स्मृति कई बार अनुभवी पत्रकारों को भी धोखा दे सकती है। कोई विशेष कानून किस वर्ष बना था या किसी कॉरपोरेट के अधिकारी का पद क्या था, ऐसी बातों में कोई गल्ती हो सकती है। स्रोत के रूप में स्मृति पर भरोसा न करें। हमेशा दोबारा जांच करें।

बेहतर पत्रकार, प्रभावशाली कहानियां

इस गाइड का सारांश: किसी स्टोरी में अपने द्वारा उपयोग की गई सामग्री को आसानी से निकालने लायक एक प्रणाली स्थापित करें। इसके कारण स्टोरी पर काम करते समय आके ड्राफ्ट की व्याख्या करना आसान होगा। स्मृति पर भरोसा न करें। हर तथ्य की जांच करके ही लिखें और फिर दोबारा जांचें। ऐसी आदतें तथ्य-जांच को रिपोर्टिंग प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाने में मदद करेंगी। इससे आप बेहतर पत्रकार बन सकेंगे। आपकी जांच अधिक विश्वसनीय तथा प्रभावशाली होगी।


मरियम एल्बा – न्यूयॉर्क स्थित समाचार शोधकर्ता हैं। वर्तमान में वह प्रोपब्लिका, अमेरिका में स्थानीय जांच में मदद करने वाली शोध रिपोर्टर हैं। पहले वह ‘द इंटरसेप्ट‘ में एसोसिएट रिसर्च एडिटर के बतौर तथ्य-जांच डेस्क का नेतृत्व करती थीं।

 

मार्गोट विलियम्स – ‘द इंटरसेप्ट‘ में रिसर्च एडीटर फॉर इन्वेस्टिगेशंस हैं। उन्हे ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स‘, ‘एनपीआर और ‘इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स‘ में भी काम का अनुभव है। उन्होंने ‘द वाशिंगटन पोस्ट‘ में भी काम किया। इसमें 14 वर्षों के दौरान वह दो पुलित्जर पुरस्कार विजेता टीमों की सदस्य रहीं। इनमें एक जांच वाशिंगटन, डीसी में वर्ष 1998 में नागरिकों पर पुलिस गोलीबारी पर केंद्रित थी। इसके अलावा, आतंकवाद पर राष्ट्रीय कवरेज के लिए वर्ष 2001 में पुरस्कृत जांच में भी वह शामिल थीं।

अनुवाद : डॉ. विष्णु राजगढ़िया

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