आलेख

टूल्स और टिप्स

 

भारतीय उपमहाद्वीप में पत्रकारिता विशेष तौर से इन्वेस्टिगेटिव रिर्पोटिंग करने में बहुत सी चुनौतियां हैं।

इन सबसे निपटने के लिए खोजी पत्रकारों के लिए विशेष तरह के कौशल और तकनीकों की आवश्यकता पड़ती है। हमने 2019 की हैम्बर्ग ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉन्फ्रेंस GIJC19 तथा विश्व के अनेक विशेषज्ञों द्वारा निर्मित मार्गदर्शिकाओं को यहां प्रस्तुत किया है।

हर एक मार्गदर्शिका, जिसे हम टिपशीट कहते हैं अपने आप में विलक्षण है। इनमें वरिष्ठ खोजी पत्रकारों द्वारा अपने अनुभवों को साझा किया गया है। उन्होंने खोजी पत्रकारों के सामने आने वाली कठिनाइयों से निपटने की युक्तियां भी सुझाईं हैं।

भारत में विशेष तौर पर हिंदी भाषा में खोजी पत्रकारिता करने वाले रिपोर्टरों के लिए यह बहुत उपयोगी होंगी। इन मार्गदर्शिकाओं में विस्तार से बताया गया है कि किस तरह से इंटरनेट के आधुनिक टूल्स और नई तकनीकों का प्रयोग करके पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारियों का इस्तेमाल कर खोजी रिपोर्टिंग की जा सकती है ।

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जीआईजेएन गाइड: महिला पत्रकारों के लिए एकजाई संसाधनों का संकलन।

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A reporter holding a magnifying glass peers out of the Indian flag.

सदस्यों के बारे में

कठिन सवाल, निर्भीक पत्रकारिता: ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’

आज ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ में छह पूर्णकालिक कर्मचारी कार्यरत हैं। स्वतंत्र पत्रकारों का एक अच्छा नेटवर्क है। यह हर महीने दो से तीन लंबी जांच-पड़ताल पर ध्यान केंद्रित करता है। इसकी कार्यप्रणाली ‘मितव्ययी’ है। यह पूरी तरह से पाठकों द्वारा वित्त पोषित है। यह उनके दान पर निर्भर है। नितिन सेठी कहते हैं- “पहले दिन से ही हमारी 85% राशि का उपयोग खबरों के उत्पादन में लग रहा है।”

An illustration shows the shadows of four reporters in the choppy seas of data journalism, making their way towards a lighthouse.

एशिया में डेटा पत्रकारिता : मीडिया, समुदाय और साक्ष्यों के नए रिश्ते

इंडिया-स्पेंड धीमे और धैर्यपूर्ण डेटा कार्य की ताकत को दर्शाता है। लेकिन एल्गोरिदम की गति डेटा पत्रकारिता में एक कमज़ोर बिंदु को उजागर करती है। रॉयटर्स 2025 फ़ेलो और बूम लाइव की उप-संपादक, करेन रेबेलो कहती हैं – “एल्गोरिदम के सामाजिक प्रभाव पर अधिकांश डेटा-संचालित शोध अनुदान-वित्त पोषित हैं। मुख्यधारा के समाचार संस्थान इसमें कोई निवेश नहीं कर रहे हैं।”

एशिया : सरकारी खजाने की लूट पर साझा खोजी पत्रकारिता

एक समय किर्गिज़स्तान की गिनती मध्य एशिया के सबसे लोकतांत्रिक गणराज्यों में होती थी। यहां वास्तविक चुनाव होते थे। एक सशक्त नागरिक समाज और एक जीवंत मीडिया परिदृश्य था। लेकिन एक लोकलुभावन और निरंकुश राष्ट्रपति के शासन में कई स्वतंत्र मीडिया संस्थानों पर भारी दबाव हैं।

Asia Focus environmental exploitation

एशिया में घटती प्रेस की स्वतंत्रता के बावजूद पर्यावरण अपराधों पर साझा पत्रकारिता कैसे हो रही है

पर्यावरण संबंधी ज़रूरी मुद्दे स्वाभाविक तौर पर देशों की सीमाओं से परे होते हैं। इसलिए अच्छी जांच के लिए विभिन्न देशों में काम करना आवश्यक है। लेकिन भाषा, दूरी, प्रेस की स्वतंत्रता से जुड़े मामलों और संसाधनों की कमी के कारण साझा पत्रकारिता काफी चुनौतीपूर्ण है। इसके बावजूद, स्थानीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण विषयों पर खोजी पत्रकारिता के उदाहरण देखने को मिलते हैं।