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अपनी डिजिटल सामग्री को संरक्षित कैसे करें?

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संपादकीय टिप्पणी : हार्वर्ड लॉ स्कूल की एक शोध टीम ने ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स‘ की वेबसाइट का महत्वपूर्ण अध्ययन किया। इसके 1996 से 2019 तक के 2.3 मिलियन हाइपरलिंक को देखा। पता चला कि इसमें प्रकाशित आर्टिकल्स में उद्धृत किए गए लगभग एक-चौथाई स्रोत के लिंक खोलना अब मुश्किल है। साथ ही, 53 प्रतिशत लेखों के एक या अधिक लिंक गायब हो चुके हैं। इस अध्ययन से स्पष्ट है कि ‘डिजिटल न्यूज‘ को संरक्षित करना जरूरी है। ‘डोनाल्ड डब्ल्यू. रेनॉल्ड्स जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट‘ ने इस पर एक रिपोर्ट  प्रकाशित की है “The State of Digital News Preservation, ‘द स्टेट ऑफ डिजिटल न्यूज प्रिजर्वेशन।‘ उसके प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत हैं।

आज मीडिया संस्थानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें विभिन्न आर्थिक चुनौतियों, डिजिटल प्रतिस्पर्धा और प्रौद्योगिकी का तीव्र विकास और  राजनीतिक हमले शामिल हैं। वर्ष 2020 से कोरोना महामारी के कारण भी मीडिया संस्थान अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्षरत हैं।

उल्लेखनीय है कि स्थानीय समाचार पत्रों, रेडियो, टीवी स्टेशनों, तथा अन्य स्थानीय मीडिया संस्थानों को सार्वजनिक रिकॉर्ड का एक भरोसेमंद स्रोत माना जाता है। इन पर दुनिया भर के नागरिक भरोसा करते हैं। लेकिन आज जब मीडिया संस्थानों को अस्तित्व के संकट से जूझना पड़ रहा है, तो ऐसे सार्वजनिक रिकॉर्ड का संरक्षण जरूरी है।

अगर वह रिकॉर्ड हमसे छिन जाए, तो क्या होगा? उन सूचनाओं के महत्वपूर्ण हिस्से और डिजिटल सामग्री खो जायें तो क्या होगा? अगर इन्हें मिटा दिया जाए, या प्रौद्योगिकी की मशीनरी द्वारा नष्ट हो जाए, तो भावी पीढ़ियों को इतिहास का पता कैसे चलेगा?

जाहिर है कि ऐसे दस्तावेज अगर वित्तीय संघर्ष के कारण या डिजिटल रूप से क्षय होने के कारण नष्ट हो जाएं, तो बड़ा नुकसान होगा। यदि आधुनिक डिजिटल प्रकाशन प्रणालियों में किसी गड़बड़ी के कारण सारे डिजिटल दस्तावेज नष्ट हो जाएं, तो मानव जाति का बड़ा नुकसान होगा।

मीडिया संस्थानों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। मीडिया उद्योग इसे बचाने की कोशिश जरूर करता है। लेकिन हमारे दैनिक समाचारों को संरक्षित करने के प्रयास नाकाफी हैं।

‘डोनाल्ड डब्ल्यू. रेनॉल्ड्स जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट‘ ने अपनी ताजा रिपोर्ट “The State of Digital News Preservation”  ‘द स्टेट ऑफ डिजिटल न्यूज प्रिजर्वेशन‘ में इस पर प्रकाश डाला गया है। कोई भी न्यूजरूम किसी खर्च के बगैर ही डिजिटल समाचार का संरक्षण कर सकता है। संभव है कि आप तत्काल सब कुछ न कर सकें। लेकिन अभी प्रारंभ कर दें, तो इस दिशा में लगातार बढ़ सकते हैं।

आप अपनी डिजिटल सामग्री को संरक्षित कैसे करें, इस पर शोधकर्ताओं के सुझाव यहां प्रस्तुत हैं।

1. अपनी ‘सामग्री संरक्षण नीति‘ बनाएं

प्रत्येक मीडिया संस्थान को अपनी एक लिखित ‘सामग्री संरक्षण नीति‘ बनानी चाहिए। यह कोई लंबा दस्तावेज न हो। मात्र एक पेज की नीति बनाना काफी होगा। इसमें अपने लक्ष्य निर्धारित करें। यह स्पष्ट करें कि आप किन सामग्री को संरक्षित करना चाहते हैं। किन लोगों के, किस उपयोग के लिए उसे सुरक्षित करना है? वह सामग्री किस उद्देश्य में उपयोगी होगी? क्या आपके आंतरिक समाचार अनुसंधान के लिए उसका इस्तेमाल होगा?

इसके बाद आप अन्य फाइलों के लिए भी संरक्षण नीति बना सकते हैं। उस सामग्री तक किन लोगों की पहुंच होगी? प्रकाशित होने के बाद उनमें किस प्रकार के परिवर्तन संभव हैं? यह परिवर्तन कौन कर सकेगा? इसके लिए कैसी अनुमति की आवश्यकता होगी? संरक्षण नीति में इन विषयों पर स्पष्ट दिशानिर्देश हो। आप समाचारों की अनपब्लिशिंग के संबंध में भी अपनी नीति स्पष्ट कर सकते हैं। (अनपब्लिशिंग- यानी प्रकाशित समाचारों को एक समय के बाद वेबसाइट से हटाना।)

न्यूजरूम के अलावा अन्य विभागों को भी इसमें शामिल कर सकते हैं। खासकर तकनीकी कर्मचारियों को, जो बेहतर सामग्री संग्रह के जरिए नए बाजार के अवसर पैदा करते हैं। हमारे शोध से पता चला कि प्रौद्योगिकी के लिए लिखित नीति होने से संरक्षण प्रक्रिया में काफी मदद मिलती है।

शोध से पता चला कि अधिकांश मीडिया संस्थानों के न्यूज़रूम में सामग्री संरक्षण की नीति नहीं थी। इसलिए सबने हमारी पहल का स्वागत किया। उम्मीद है, आप भी ऐसा ही करेंगे। एक बार अपनी ‘सामग्री संरक्षण नीति‘ बनाने के बाद उसे अपने संस्थान के सभी विभागों को भेज दें। समय-समय पर उसमें सुधार करके अद्यतन करते रहें। इस तरह, एक सिस्टम बनाना महत्वपूर्ण होगा।

2. किसी को सामग्री संरक्षण का प्रभारी बनाएं

अपने न्यूज रूम के किसी एक सदस्य को सामग्री संरक्षण का दायित्व सौंपना जरूरी है। ज्यादा संभावना यही है कि आपके न्यूज रूम में कोई लाइब्रेरियन नहीं होगा। इसलिए यह दायित्व किसी एक सदस्य को लेना होगा। अपनी डिजिटल समाचार सामग्री का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित करने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अपने न्यूज रूम में किसी सदस्य को प्रभारी बना दें।

इस काम को व्यवस्थित करने में कई महीने लगेंगे। लेकिन यह तभी शुरू हो सकता है, जब कोई इसका दायित्व लेने वाला हो।

इसके लिए एक मीडिया आर्काइविस्ट को नियुक्त करना बेहतर होगा। वह डिजिटल समाचार सामग्री संरक्षण योजना बनाने, मेटाडेटा और वर्कफ्लो का प्रबंधन करने में मदद करेगा। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि जिन मीडिया संस्थानों में ऐसे मीडिया आर्काइविस्ट हैं, वहां डिजिटल सामग्री का संरक्षण बेहतर हो रहा है।

3. मेटाडेटा की समीक्षा करें

अपनी मौलिक और बहुमूल्य सामग्री के बेहतर संरक्षण के लिए मेटाडेटा की जानकारी जरूरी है। मेटाडेटा के जरिए हमें किसी भी फोटो या वीडियो या अन्य डिजिटल सामग्री के रचयिता या मालिक का नाम, तारीख, स्थान, अवसर इत्यादि की जानकारी मिलती है।

आप यह समीक्षा करें कि आपके पास मौलिक सामग्री का मेटाडेटा सही रूप में उपलब्ध है। अपनी सामग्री के स्वामित्व की भी समीक्षा करें, ताकि उसके मेटाडाटा का संरक्षण किया जा सके। इसके लिए आपकी मौजूदा तकनीक में परिवर्तन की आवश्यकता पड़ सकती है। खासकर विभिन्न प्रकार की सामग्री के साथ आवश्यक मेटाडेटा का फील्ड जोड़ने या संशोधित करने के लिए कॉन्फिगरेशन परिवर्तन की जरूरत आएगी।

जैसे, कई संस्थानों में रिपोर्टर्स को समाचार के असाइनमेंट किसी सीएमएस में नहीं बल्कि गूगल डॉक्स या गूगल शीट्स में दिए जाते हैं। कुछ दिनों बाद इन्हें डिलीट कर दिया जाता है। लेकिन ऐसी जानकारी भी संरक्षण के योग्य है। इनमें समाचार की योजना, उद्देश्य, समय और तारीख इत्यादि के साथ ही उस खबर, फोटो या वीडियो को बनाने वाले लोगों की भी सूचना शामिल होती है।

लिहाजा, अपनी सामग्री के मेटाडेटा फील्ड में ऐसी जानकारियां देने की व्यवस्था करें। तकनीकी लोगों की मदद से यह संभव है। इससे आपको पता चलेेगा कि कोई फोटो या वीडियो आपके पास कहाँ से आया, इसे किसने और कब शूट किया था, किस स्टोरी या किस कार्य के लिए इसे शूट किया गया था।

स्टेट ऑफ डिजिटल न्यूज प्रिजर्वेशन रिपोर्ट मिसौरी विश्वविद्यालय के रेनॉल्ड्स पत्रकारिता संस्थान की नई रिपोर्ट।

यह अमूल्य जानकारी है। लेकिन अधिकांश मीडिया संगठन इसका लाभ नहीं उठाते हैं। जो डेटा आपके उत्पादन या प्रकाशन सिस्टम में नहीं है, उसे भी संरक्षित करने का प्रयास करें। जैसे, स्टिल फोटो प्रिंट, राॅ वीडियो और ऑडियो फाइलें। अभी संरक्षित की गई सभी सामग्री से जुड़ी पूरी जानकारी को भविष्य के लिए रख सकते हैं।

इसके लिए सीएमएस द्वारा आइपीटीसी फोटो और वीडियो मेटाडेटा का उपयोग सबसे बेहतर होगा। मेटाडेटा मानकों के आधार पर यह बेहतर है। जब फोटो खींची गई है, उसी वक्त यह कैमरे द्वारा बन जाता है। इसमें टाइम-स्टैम्प और जियो-लोकेशन डेटा भी शामिल है। आम तौर पर, आईपीटीसी फील्ड में कैप्शन और अन्य जानकारी जोड़ दी जाती है क्योंकि फोटो के उपयोग से पहले उसे संपादन और पैकेजिंग के वर्कफ्लो के माध्यम से गुजरना पड़ता है।

कुछ वेब सीएमएस सिस्टम या तो आईपीटीसी फील्ड को नहीं पढ़ पा़ते, या उसका केवल एक अंश ही पकड़ते हैं। यदि वह आपका एकमात्र सिस्टम है, तो संभव है कि आपकी प्राथमिक फोटो फाइल में महत्वपूर्ण मेटाडेटा उपलब्ध न हो। अगर सार्वजनिक वेब पेज के लिए एचटीएमएल बनाने में यह डेटा हटा दिया गया है, तो यह ठीक है। लेकिन अपने न्यूजरूम के लिए इस प्रक्रिया को समझने का प्रयास करें। यह सुनिश्चित करें कि किसी स्थान पर पूर्ण मेटाडेटा वाली मूल इमेज फाइलें संग्रहित हैं।

4. अनपब्लिशिंग की नीति

प्रत्येक मीडिया संस्थान में किसी पूर्व प्रकाशित सामग्री को हटाने, डी-इंडेक्स करने या बदलने की जरूरत पड़ती है। इसका समुचित प्रबंध करने के लिए अपने न्यूजरूम की ठोस नीति बनाएं। इस प्रक्रिया को ‘अनपब्लिशिंग‘ कहा जाता है। इंटरनेट गोपनीयता, प्रतिष्ठा, प्रबंधन सेवाओं के प्रसार और यूरोपीय संघ के डेटा गोपनीयता कानून के संदर्भ में हरेक समाचार संगठन के लिए यह जरूरी है।

आम तौर पर तकनीकी कर्मचारी अपने मन से ही किसी सामग्री की ‘अनपब्लिशिंग‘ कर देते हैं। संपादकों को इसका पता भी नहीं चलता। इसे नियंत्रित करने की योजना बनाकर सबको प्रशिक्षित करें। अपनी योजना को सार्वजनिक करने से पारदर्शिता और जवाबदेही का माहौल बनेगा।

5. सामग्री का स्वामित्व सीएमएस में स्पष्ट करें

प्रकाशित की जाने वाली हरेक सामग्री का स्वामित्व और लाइसेंसिंग स्पष्ट करें। पुरानी सामग्री के साथ ऐसा करना मुश्किल होगा। लेकिन नई सामग्री के लिए अपने रिपोर्टर्स और फ्रीलांसर के स्वामित्व संबंधी जानकारी देना बेहद आसान है।

वर्तमान में प्रकाशित हरेक सामग्री के संबंध में अपनी कंपनी की मौजूदा नीतियों, अनुबंधों और सेवा अनुबंधों पर कुछ शोध करें। उदाहरण के लिए, क्या स्पष्ट है कि आपके स्टाफ फोटोग्राफरों द्वारा लिए गए फोटो या वीडियो का स्वामी कौन है? साक्षात्कार या डेटाबेस पत्रकारिता परियोजनाओं से समाचारों, ग्राफिक्स, ऑडियो और वीडियो पर किसका अधिकार है? इन सवालों का जवाब सबके लिए उपयोगी होगा।

खासकर, फ्रीलांसरों की सामग्री का स्वामित्व स्पष्ट करना जरूरी है। वर्ष 2001 का ‘तासिनी बनाम द न्यूयॉर्क टाइम्स‘ का अदालती फ़ैसला महत्वपूर्ण है। आप इसके दिशानिर्देशों का पालन करें । यदि आपके पास स्पष्ट नीति है, तो हर सामग्री अपडेट कर सकते हैं। जैसे, वीडियो शूट करने वाले रिपोर्टर, सोशल मीडिया और अन्य जानकारियां स्पष्ट करना।

6. मेटाडेटा की जांच करें

आपके पास उपरोक्त मुद्दों का क्या समाधान है? इसकी जांच करें। आप कुछ सरल परीक्षण करके एक मूल्यांकन करें। यह देखें कि आपके पास अपनी अनूठी सामग्री के संरक्षण, पहचान और स्वामित्व को सुनिश्चित करने का क्या सिस्टम है।

इसके लिए यहां कुछ प्रश्न और प्रक्रिया प्रस्तुत है:

▪️ सामान्य परीक्षण – आपके समाचार वर्कफ्लो और सिस्टम में क्या चल रहा है, यह पता लगाएं। आप किसी एक दिन सामान्य परीक्षण करें। जाँच करें कि क्या आज प्रकाशित प्रत्येक स्टिल फोटो और वीडियो के मूल संस्करण की पहचान कर सकते हैं? उसके स्टोरेज पता लगा सकते हैं? उसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं? आपके सीएमएस में दिखने वाली छोटे आकार का री-सैंम्पल वर्जन नहीं, बल्कि उच्च-रिजॉल्यूशन वाला ओरिजिनल वर्जन मिल सकता है या नहीं? क्या उस सामग्री में पर्याप्त मेटाडेटा है जिससे पता चले कि आपकी कंपनी उस इमेज या वीडियो का मालिक है?

▪️ क्या आपके सीएमएस में पता चलता है कि कोई सामग्री आपके स्टाफ ने तैयार की है, या एक स्वतंत्र रिपोर्टर ने या फोटोग्राफर, या किसी तीसरे स्रोत से आई है? यदि उसमें ऐसे फील्ड उपलब्ध नहीं हैं, तो उन्हें अपने सामग्री प्रबंधन सिस्टम में जोड़ने, दिखने और संपादन योग्य बनाने के लिए कदम उठाएं। न्यूज वर्कफ्लो में इसके चरण जोड़ें। प्रत्येक फील्ड में सूचना भरना अनिवार्य हो।

▪️ यह जांच करें कि किस सामग्री को कितने समय के लिए सहेजा जा रहा है? कौन सी सामग्री सहेजी नहीं जा रही है, यह भी देखें। न्यूजरूम में यह काम अक्सर तकनीकी कर्मचारियों भरोसे छोड़ दिया जाता है। उनके पास ऐसे मामलों में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं होते हैं। इसके कारण तकनीकी कर्मचारी सिर्फ अपने सिस्टम की क्षमता और जरूरत के अनुरूप सामग्री रखकर आपकी बहुमूल्य सामग्री नष्ट कर सकते हैं। ऐसा करना अपनी सामग्री के समुचित संरक्षण प्रथाओं के खिलाफ जाता है।

सभी फोटो और वीडियो की मूल प्रतियों के संरक्षण का प्रयास करें। पूर्ण मूल मेटाडेटा के साथ पूर्ण रिजॉल्यूशन, पूर्ण रंग-गहराई, पूर्ण आकार के समाचार फोटोग्राफ और समाचार वीडियो की प्रतियों को संरक्षित करना अच्छा होगा। अपनी अमूल्य सामग्री के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए ऐसे उपाय तलाशने होंगे।  बेहतर होगा, अगर आप इन फाइलों को अतिरिक्त भंडारण का डेटाबेस बनाकर सूचीबद्ध कर दें। लेकिन इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए आपके पास उपलब्ध ड्राइव की एक साधारण प्रणाली से भी काम चल सकता है। फोटो को कैमरा-राॅ इमेज फाइलों के बजाय जेपीईजी प्रारूप में रखना बेहतर है, क्योंकि यह एक सर्वस्वीकृत मानक है।

ऐतिहासिक रिकॉर्ड के रूप में डिजिटल समाचार

मानव जाति को अपने इतिहास से बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलता है। लेकिन वास्तविक लाभ तभी मिल सकता है, जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सही  रिकॉर्ड पहुँचे।  यदि 100 साल बाद फिर कोई महामारी आती है, तो क्या वर्ष 2121 में पत्रकारों, इतिहासकारों और शोधकर्ताओं को हमारे वर्तमान अनुभवों का लाभ मिलेगा?

इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट नहीं है। वर्तमान में डिजिटल समाचार सामग्री को संरक्षित रखने वाली कई प्रणालियां हैं। लेकिन इन्हें भविष्य में उपयोग हेतु सुलभ अभिलेखागार के बतौर रखने का कोई स्पष्ट रास्ता नहीं है। अपने अध्ययन में हमने पाया कि विभिन्न चुनौतियों के बावजूद समकालीन समाचार सामग्री को पर्याप्त महत्व देकर संरक्षित किया जा रहा है। लेकिन डिजिटल समाचार सामग्री के दीर्घकालिक संरक्षण के लिए ठोस प्रयास करना एक बड़ा दायित्व है। इसके लिए अपार अवसर हैं। बेहतर होगा कि हम इस जरूरत को समझें और समुचित कदम उठाएं।

यह पोस्ट मिसौरी विश्वविद्यालय स्थित ‘डोनाल्ड डब्ल्यू रेनॉल्ड्स जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट‘ द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट का संपादित अंश है। रिपोर्ट का शीर्षक है “The State of Digital News Preservation” ‘द स्टेट ऑफ डिजिटल न्यूज प्रिजर्वेशन।‘ इसे क्रिएटिव कॉमन्स एट्रिब्यूशन लाइसेंस के तहत यहां पुनर्प्रकाशित किया गया है।

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एडवर्ड मैककेन, मिसौरी विश्वविद्यालय के डोनाल्ड डब्ल्यू. रेनॉल्ड्स जर्नलिज्म इंस्टीट्यूट में क्यूरटेर हैं। उन्होंने यह रिपोर्ट नील मारा, कारा वैन मालसेन, डोरोथी कार्नर, बर्नार्ड रेली, केरी विलेट, सैंडी शिफर, जो आस्किन्स और सारा बुकानन के साथ मिलकर तैयार की है ।  

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