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जियो-लोकेशन और ओपन सोर्स डेटा के माध्यम से इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग पर 10 टिप्स

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एक संदिग्ध व्यक्ति के फेसबुक पेज पर सरसरी नजर डालने के क्रम में एक डिजिटल रिपोर्टर को कुछ असामान्य सी चीज नजर आ गई। जिस आदमी की खोजबीन में यह रिपोर्टर जुटा था, उसे अपनी शान-शौकत दिखाने वाली सेल्फी खींचने की आदत थी। लेकिन यह शॉट अलग था।

लीबिया के तट से थोड़ी दूर समुद्र में एक नाव के डेक पर खड़ा होकर वह आदमी कैमरे में झांक रहा था। लेकिन उसके बैकग्राउंड को जूम करने पर कई गाड़ियां और दूसरे ब्यौरे भी देखे जा सकते थे, जिनसे इस बात का पता चल गया कि यह लाव-लश्कर कहां से आ रहा था।

टुकड़े जोड़कर आकृति बनाने वाली पहेली (जिगसॉ पजल) का यह वही टुकड़ा था, जिसने लीबिया में हथियारों पर लगी रोक के उल्लंघन को लेकर एक रिपोर्ट तैयार करने में खासी मदद पहुंचाई। ‘सेंटर फॉर इन्फॉर्मेशन रेजिलिएंस’ में जांच-पड़ताल के निदेशक बेंजामिन स्ट्रिक और उनकी टीम ने यह रिपोर्ट तैयार की। दो साल पहले स्थापित यह सेंटर ब्रिटेन में स्थित एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संस्था है। इसका मिशन ‘गुमराह करने वाली सूचनाओं का मुकाबला करने, मानवाधिकार हनन के मामलों को उजागर करने और महिलाओं-अल्पसंख्यकों के प्रति हानिकारक ऑनलाइन व्यवहार का मुकाबला करने’ पर केंद्रित है।

अभी इसमें लगभग 60 का स्टाफ है। इसके सलाहकारों में एस्तोनिया के पूर्व राष्ट्रपति टूमास हेंड्रिक इल्वेस और अनुभवी पत्रकार तथा डॉक्युमेंट्री फिल्म निर्माता साइमन ओस्त्रोवोस्की शामिल हैं। म्यांमार विटनेस और आइज ऑन रशिया इसकी प्रमुख परियोजनाओं में हैं। इनमें पहला 2021 में फौज द्वारा म्यांमार की सत्ता पर कब्जे के बाद से मानवाधिकारों के हनन की जांच-पड़ताल का एक ओपन सोर्स है। दूसरी परियोजना के तहत यूक्रेन में चल रहे युद्ध का एक ब्यौरेवार, रोज-ब-रोज हो रहे बदलावों को दर्ज करने वाला नक्शा मुहैया कराया जाता है।

लीबिया की उस घटना और वहां से जुड़ी उन परियोजनाओं का बुनियादी सबक दूरगामी है : डिजिटल दुनिया गलत कामों की जांच-पड़ताल में जुटे लोगों को बहुत सारे अवसर प्रदान करती है। डिजिटल युग में खोजी पत्रकारों को ऐसी सेल्फियों की शक्ति का ध्यान हमेशा रखना चाहिए, जो इन्हें खींचने वाले व्यक्ति को कठघरे तक खींच लाने में मददगार साबित हो सकती हैं।

बेन स्ट्रिक की महारत डेटा, नक्शों और जियोलोकेशन या जियोपोजिशनिंग से जुड़े अन्य उपकरणों का उपयोग करके डिजिटल जांच करने में – किसी घटना की भौगोलिक स्थिति को निर्धारित करने की प्रक्रिया में है। स्ट्रिक इन तकनीकों का उपयोग गलत कामों, विशेष रूप से मानवाधिकारों के हनन को उजागर करने के लिए करते हैं। उन्होंने बीबीसी अफ्रीका-आई और बेलिंगकैट के साथ जुड़कर कैमरून की सरकारी हत्याओं की जांच, म्यांमार में बर्बाद कर दिए गए गांवों के दस्तावेजीकरण और सूडान में एक जनसंहार के मामले को नए सिरे से दुनिया के सामने लाने जैसे बड़े काम किए हैं।

पेरुगिया, इटली में अंतरराष्ट्रीय पत्रकारिता महोत्सव-2022  में बोलते हुए, और इस आयोजन के बाद जीआईजेएन से बात करते हुए स्ट्रिक ने पत्रकारों को अपने काम में जियोलोकेशन और ओपन सोर्स तकनीकों का उपयोग करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए।

1. भूगोल की पहचान के लिए दृश्य की छानबीन करें

मानवाधिकारों के हनन से संबंधित जांच पर काम करने का मतलब साफ है। स्ट्रिक जिस सामग्री पर काम करते हैं, वह अक्सर जटिल और चुनौतीपूर्ण होती है। लेकिन एक खास तौर पर दिल दहला देने वाली कहानी की शुरुआत कैमरून में महिलाओं और बच्चों को धूल भरे रास्ते पर जबर्दस्ती ले जाए जाने के एक वीडियो से हुई। एक महिला की पीठ पर एक बच्चा बंधा हुआ था, जबकि दूसरी महिला अपने बच्चों के साथ चल रही थी। सैनिक उसके साथ गाली-गलौज, मारपीट कर रहे थे। वीडियो भयावह और निर्मम था। पीड़ितों की आंखों पर पट्टी बांधी गई और फिर उन्हें गोली मार दी गई- उनके मारे जाने का एक-एक ब्यौरा फिल्माया गया था।

स्ट्रिक ने कहा – “‘इस तरह की खून जमा देने वाली घटनाएं होती हैं। संयोगवश यह कैमरे में कैद हो गया। जब यह वीडियो सामने आया, तो कैमरून सरकार कहने लगी कि यह खबर झूठी है, इसमें दिखाया जा रहा फुटेज नकली है, और इसे कैमरून में फिल्माया ही नहीं गया था। हमने सोचा… आपको तो हम गलत साबित करके रहेंगे।”

बीबीसी अफ्रीका-आई के लिए एक टीम के हिस्से के रूप में काम करते हुए स्ट्रिक और उनके साथी जांचकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए, कि यह हत्याकांड कहां हुआ और कौन इसके लिए जिम्मेदार था, इस वीडियो का एक-एक फ्रेम खंगाल डाला। सबसे पहले उन्होंने उस पर्वतमाला का विश्लेषण किया, जो वीडियो की पृष्ठभूमि में दिखाई दे रही थी। फिर इस पहाड़ी की रीढ़ (रिज) के मिलान के लिए गूगल अर्थ का सहारा लिया। इसके बाद उन्होंने धूल भरे रास्ते में दिखने वाली एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा और उसके आसपास मौजूद इमारतों का मिलान सैटेलाइट इमेजरी से किया। इस क्रम में सामने आई वीडियो जांच- ‘एनाटमी ऑफ ए किलिंग’ ने पीबॉडी और डीआईजी पुरस्कार जीते।

अपने काम की व्याख्या स्ट्रिक ने इस तरह की- “हम लगातार छोटे से छोटे ब्यौरे में जाने की कोशिश कर रहे थे। सैटेलाइट इमेज में दिखने वाले हर एक पेड़ का हम मिलान कर लेना चाहते थे, ताकि कह सकें- ‘हमारी बात को गलत साबित करने की कोशिश करके तो देखो।“

एक अन्य अवसर पर उनकी टीम यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के एक वीडियो की जांच करते हुए ट्रेन की पटरियों और इमारतों के पैटर्न तक की पहचान करने में कामयाब रही, जिससे पत्रकारों को ठीक-ठीक इस बात की पहचान करने में मदद मिल गई कि गोलाबारी कहाँ हुई थी।

इस तरह की जाँच के लिए स्ट्रिक गूगल अर्थ के अलावा हर पांच दिनों में अपडेट होने वाली सैटेलाइट इमेजरी पर आधारित ‘सेंटिनल हब’ की मुफ्त उपग्रह छवियां और कभी-कभी मैक्सर द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरें इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। हालांकि मैक्सर को आम तौर पर फीस देनी पड़ती है, लेकिन स्ट्रिक का कहना है कि जब-तब इसमें प्रेस ऑफिस का हवाला देने पर बात बन जाती है।

वह बताते हैं कि मारियुपोल में बमबारी के शिकार हुए एक थिएटर की मैक्सर वाली हाई-रिजॉल्यूशन वाली छवि ‘इतनी अच्छी’ थी कि इमारत के बाहर जमीन पर लिखे सिरिलिक भाषा के शब्द ‘चिल्ड्रन’ को आप बम फटने से ठीक पहले तक पढ़ सकते थे। “यही इसकी शक्ति है, उस तरह की सैटेलाइट इमेजरी की शक्ति”, उन्होंने कहा।

2. तिथियां निर्धारित करने के लिए सैटेलाइट इमेज का उपयोग करें

एक बार जब पत्रकार किसी घटनास्थल विशेष की पहचान कर लेते हैं, तो उन्हें यह पता लगाने की जरूरत पड़ती है कि वह घटना कब हुई थी।

स्ट्रिक कहते हैं – “पत्रकारों के लिए यह ‘अंतर बताओ’ वाला बच्चों का खेल खेलने जैसा है, लेकिन उस खेल का वयस्क संस्करण।  कैमरून वाले मामले में वे नई इमारतों की पहचान कर सकते थे, जो हमले के समय वीडियो में नहीं थीं। इससे उन्हें घटना के संभावित समय का दायरा छोटा करने में मदद मिली। यह इमारत 2014 में नहीं थी, लेकिन 2016 में थी …इससे हमें एक टाइम विंडो मिल जाती है, जो काफी उपयोगी सिद्ध होती है।“

3. सूर्य के प्रकाश और छाया के माध्यम से किसी साल में समय विशेष की पहचान करें

‘सन डायल आमतौर पर पार्क में मौजूद ठोस वस्तुएं होती हैं जो थोड़ी सी छाया डालती हैं। इस आदमी की तरह।’ स्ट्रिक ने आईजेएफ के आयोजन के दौरान कैमरून वीडियो में दिखने वाले सैनिकों में से एक की ओर इशारा करते हुए कहा, जिसकी छाया रेत पर पड़ रही थी। सूरज की स्थिति से तारीख और वक्त का अनुमान लगाने के लिए लोकप्रिय उपकरणों में सनकैल्क (SunCalc) और नोआ सोलर पोजिशन कैलकुलेटरNOAA Solar Position Calculator) शामिल हैं।

स्ट्रिक ने कहा कि सूर्य के प्रकाश की दिशा को पहचानना संभव था, और इस उदाहरण में सूर्य के प्रकाश का वह विशेष कोण केवल विशिष्ट समय पर और कुछ खास वर्षों में ही घटित हुआ था। इस जानकारी के बल पर उनकी टीम वीडियो का 20 मार्च से 5 अप्रैल 2015 के बीच फिल्माया जाना साबित कर सकी। यानी लोगों के मारे जाने का वीडियो अपलोड होने से तीन साल पहले।

 4. छोटे लेकिन संभावित रूप से महत्वपूर्ण ब्यौरों की जांच करें

सोशल मीडिया पोस्ट या ऑनलाइन साझा किए गए वीडियो की गहराई में जाने पर अधिक आपत्तिजनक साक्ष्य या जानकारी के टुकड़े मिल सकते हैं, जिनसे किसी पहेली को सुलझाने में जांचकर्ताओं की मदद हो सकती है। कैमरून वाले वीडियो में सैनिक जो ब्रांडेड बंदूकें लेकर चल रहे थे, उनमें से एक पर हथियार का आईडी नजर आ रहा था। कैमरून सरकार ने कहा कि वर्दी उसके सैनिकों की नहीं थी, तो जांचकर्ताओं ने पाया कि फेसबुक पर सैनिकों ने अपनी तस्वीरें अपलोड कर रखी थीं, और वे क्या पहने हुए थे? वीडियो में दिख रहे पुरुषों जैसी ही वर्दी।

‘एक बार फिर फेसबुक और स्नैपचैट का शुक्रिया कि सैनिकों ने इस हत्याकांड के पांच किलोमीटर के दायरे में ही अपनी तस्वीरें अपलोड की थीं’, स्ट्रिक ने कहा। टीम ने जब एक बार सेना की लड़ाकू चौकी की पहचान कर ली, फिर उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की कि हमले के समय उस बेस पर कौन-कौन लोग मौजूद थे।

 5. घमंड की ताकत को कभी अनदेखा न करें, यह अक्सर दोषियों को फंसाती है

कैमरून में स्ट्रिक और उनके साथी जांचकर्ताओं ने तीन खास पुरुषों की पहचान मुख्यतः उन वीडियो और तस्वीरों से की, जिन्हें तीनों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। ‘इसे स्वतंत्र रूप से दर्ज करना काफी आसान था।’

लीबिया सेल्फी मामले में वह आदमी ऑनलाइन ‘लड़कियों से चैट करने’ की कोशिश में उन्हें हथियारों पर लगा प्रतिबंध तोड़ने की एक ऐसी कहानी सुना बैठा, जो इस मामले में एक पुख्ता सबूत बन गई।

 6. लंबा खेल खेलें

टीम द्वारा कैमरून हमले को लेकर अपनी खबर प्रकाशित करने के बाद वीडियो में दिख रहे सैनिकों पर मुकदमा चलाने की कई कोशिशें हुईं। स्ट्रिक ने बताया – “अंततः 2020 में, इनमें से चार लोगों को 10 साल की सजा सुनाई गई। इससे इंसाफ और जवाबदेही के नाम पर कुछ तो हुआ। खोजी पत्रकारों के रूप में हमारे पास जितनी भी शक्ति है, वह पीड़ितों को प्रतिनिधित्व दे रही है। अंततः ये महिलाएं और बच्चे ही हैं, जिनके लिए हमें यह काम करना है।”

इसमें लंबा समय लग सकता है, लेकिन खोजी पत्रकार कई मामलों में मानवाधिकार हनन के ब्यौरे इकट्ठा कर रहे हैं, जिनका इस्तेमाल किसी दिन इन अपराधों को अंजाम देने वाले लोगों को सजा दिलाने के लिए किया जा सकता है।

7. अपने निष्कर्षों की जांच और क्रॉस-रेफरेंस के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करें

क्राउडसोर्स्ड फुटेज बेजोड़ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं। इनसे पत्रकारों को इसका लाइव लेखा-जोखा मिलता है कि घटनास्थल पर हुआ क्या था। सूडान में एक विरोध प्रदर्शन में गोलियां चलाई गईं तो स्ट्रिक ने फेसबुक लाइव फुटेज का इस्तेमाल यह स्थापित करने के लिए किया कि वहां क्या हो रहा था और प्रत्येक वीडियो पर लगे टाइम स्टैंप का उपयोग ‘यह चिह्नित करने के लिए किया कि बंदूकें कब चलनी शुरू हुईं, हमला वास्तव में किस समय किया गया।’

लेकिन ये जमीनी वीडियो कभी-कभी भ्रमित करने वाले, अस्थिर और अक्सर कहानी कासिर्फ एक हिस्सा दिखाने वाले भी हो सकते हैं। इस मामले में, स्ट्रिक ने घटना से जुड़े तीन लाइवस्ट्रीम वीडियो उठाए और उन्हें क्रॉस-रेफर किया, ताकि वे सटीक तौर पर उन स्थानों को चिह्नित कर सकें जहां हमले हुए थे।

स्ट्रिक ने कहा, ‘भगदड़ के दौरान बनाए गए वीडियो फुटेज का कोई ठोस मतलब निकालने का यह वास्तव में एक अच्छा तरीका है – उपग्रह इमेजरी का उपयोग करना, नक्शे पर ठीक-ठीक जगहें चिह्नित करना, कहानियों को जगहों के साथ जोड़कर सुनाने की कोशिश करना, ताकि दर्शकों के लिए इनका अर्थ स्पष्ट किया जा सके।’

छवि : स्क्रीनशॉट

वे बताते हैं कि दिसंबर के बाद से, जब जांचकर्ताओं को रूस में चलती ट्रेनों के पीछे टैंक लदे दिखने शुरू हुए, तभी से ‘आइज ऑन रशिया’ परियोजना के माध्यम से फुटेज की जांच को लेकर आपसी सहयोग का एक बड़ा प्रयास किया गया है। आक्रमण के बाद से सेंटर के जांचकर्ता और उनके सहयोगी लड़ाई की व्यापक मैपिंग के प्रयास में सोशल मीडिया पर आने वाली तस्वीरों और वीडियो फुटेज का जितना संभव हो सके, मिलान करते हैं, उनकी भौगोलिक स्थिति को दर्ज करते हैं और उनका सत्यापन भी करते हैं।

ऐसे एक उदाहरण में, टीम ने टिकटॉक पर दिखाए गए एक फुटेज को सत्यापित करने के लिए सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग किया। इस वीडियो में खारकीव के पास गोलाबारी होती हुई दिख रही थी। ‘एक ऐसी जगह, जिसपर फरवरी के अंत में बमबारी हुई थी।’ एक साथ काम करते हुए, उन्होंने पहचान लिया कि गोले कहाँ से दागे गए होंगे, जबकि उस समय तक यह स्पष्ट नहीं था कि जमीन पर चल क्या रहा है।

स्ट्रिक ने बताया कि पूरे समुदाय के साथ काम करके सोशल मीडिया पर आए फुटेज को सत्यापित कर ले जाना यह बताता है कि ‘कई संगठन मिलकर ऐसी सूचना को न्यूजरूम तक ला सकते हैं और न्याय तथा उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिए इसे संचित भी कर सकते हैं।’

सेंटर फॉर इनफॉर्मेशन रेजिलिएंस और अन्य ओपन सोर्स भागीदारों ने अपनी आइज ऑन रशा परियोजना के अंग के रूप में यूक्रेन के खिलाफ रूस द्वारा छेड़े गए युद्ध का एक विस्तृत और रीयल-टाइम के करीब का नक्शा विकसित किया है। छवि: स्क्रीनशॉट

 

8. सहयोग की शक्ति को याद रखें

ऐसा ही एक अन्य सहयोग उपक्रम ‘रशिया यूक्रेन मॉनिटर मैप’ सेंटर फॉर इंफॉर्मेशन रेजिलिएंस और बेलिंगकैट के जांचकर्ताओं को एक साथ लाता है। साथ ही जियो-कन्फर्म्ड, कॉन्फ्लिक्ट इंटेलिजेंस टीम और एडवांस डेमोक्रेसी जैसे ओपन-सोर्स ट्रैकिंग ग्रुप्स के अलावा अन्य स्वयंसेवकों को भी यह यूक्रेन में हो रही घटनाओं का खाका तैयार करने, दस्तावेजीकरण और संचयन करने तथा उसकी जांच के काम में जुटाता है। स्ट्रिक का कहना है कि जब गहन ओपन सोर्स और जियोलोकेशन रिसर्च की जरूरत पड़ती है तो यह सहयोग अक्सर एक कामयाब जांच-पड़ताल की कुंजी साबित हो सकता है।

इससे मिलती-जुलती एक डेटाबेस खोजबीन सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज की ‘ओसेली परियोजना’ थी, जिसकी  सह-स्थापना स्ट्रिक ने म्यांमार के रखाइन राज्य में रोहिंग्या गांवों के विनाश के सबूत जुटाने के लिए की थी।

‘हमारे पास कोई फंडिंग नहीं थी और इस परियोजना के लिए हमने विश्वविद्यालयी छात्रों के एक समूह के साथ काम किया’, स्ट्रिक ने बताया। ‘गूगल अर्थ के जरिये हमने जलाई गई हर एक इमारत की मैपिंग की, और जब हम इसकी एक स्प्रेडशीट तैयार करने बैठे तो ऐसी हजारों इमारतें हमें मिल गईं।’ अंततः, टीम ने 38,000 बर्बाद इमारतों का दस्तावेजीकरण किया।

उनका कहना है कि ऑनलाइन जांच का अर्थ यह है कि बहुत दूर-दूर स्थित टीमें एक साथ काम कर सकती हैं। इससे पत्रकारों को यह शक्ति मिल जाती है कि वे कहीं भी रहते हुए किसी भी देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी जांच कर सकते हैं। ‘लंदन में सोफे पर बैठकर मजे से गूगल अर्थ देख रहा कोई व्यक्ति भी मानवाधिकारों के हनन का प्रत्यक्षदर्शी बनने में सक्षम है’, उन्होंने कहा।

‘इन उपकरणों ने वास्तव में युद्ध रिपोर्टिंग जैसी चीजों को देखने का हमारा नजरिया बदल दिया है’, पैनल डिस्कशन के बाद स्ट्रिक ने जीआईजेएन को बताया। ‘हमें बात-बात पर फोन करने या लोगों से यह पूछने की जरूरत नहीं है कि ‘यह कहाँ फिल्माया गया था? इसे कब फिल्माया गया था? या हम क्या देख रहे हैं?’ सैटेलाइट इमेजरी के साथ हम क्रॉस-रेफरेंसिंग कर सकते हैं और नए ब्यौरे उठा सकते हैं, जिनसे हमें स्वतंत्र रूप से चीजों को साबित करने की क्षमता हासिल हो जाती है।’

9. अधिक से अधिक डेटा स्रोतों पर नजर रखें

स्ट्रिक ने कहा, ‘पत्रकार अभी ऑनलाइन सूचना स्रोतों की एक विशाल विविधता का फायदा उठा सकते हैं, चाहे वह फ्लाइट रडार और शिपिंग तथा समुद्री यातायात का डेटा हो, या विकीमैपिया और नासा एफआईआरएमएस हीट मैप हो, या फिर सीसीटीवी कैमरे का फुटेज हो।’

उन्होंने ग्रामीण यूक्रेन से वीडियो फुटेज का एक नमूना दिखाया- एक सीसीटीवी नेटवर्क, जो संभवतः कभी किसी किसान द्वारा अपनी फसलों और जानवरों पर नजर रखने के लिए स्थापित किया गया था, लेकिन जिसे पासवर्ड के जरिये सुरक्षित नहीं किया गया था। इस साल की शुरुआत में ओपन सोर्स जांचकर्ताओं द्वारा इसके कैमरा फुटेज की जाँच की गई तो उन्हें ऐसा लगा कि इसमें एक रूसी बटालियन द्वारा अपने संचार उपकरणों को खड़ा करने और इस कोशिश के दौरान बार-बार नाकाम होने की हरकतें दर्ज हुई पड़ी हैं। हालांकि यह फुटेज कुछ भी साबित नहीं करता है। बकौल स्ट्रिक, ‘यह सिर्फ हमारी समझ बढ़ाता है कि जमीन से हम क्या-क्या हासिल कर सकते हैं।’

10. कहानी कैसे कही जाती है, यह बात भी मायने रखती है – और रिपोर्टिंग का अलग-अलग पाठक-दर्शक वर्ग पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है

यह दिखाना कि आपकी जांच कैसे हुई, एक प्रस्थापना को साबित करने के तरीकों में गहराई से उतरना, और अपने दर्शकों-पाठकों को इन तरीकों का विवरण देना भी एक ताकतवर बात है। स्ट्रिक ने इसे अलग से रेखांकित किया।

‘मुझे लगता है कि जब आप इन विशिष्ट तकनीकों और उपकरणों का उपयोग कर रहे होते हैं, तो यह काफी उपयोगी होता है। क्योंकि आप न केवल लोगों को बता रहे होते हैं, बल्कि उनको दिखा भी रहे होते हैं। यानी आप दर्शकों को तथ्य दिखाने में सक्षम होते हैं’, उन्होंने कहा।

आगे उन्होंने बताया कि ‘ओपन सोर्स की यह पूरी अवधारणा कुछ इस तरह की है कि जैसे मैं आपको एक केक दे रहा हूं, लेकिन साथ में इसकी रेसिपी और इसे बनाने में काम आने वाली सामग्री भी दे रहा हूं। अगर मैं आपको एक खबर देता और कहता कि ‘यहां यह जानकारी हमें हासिल हुई है’, तो यह एक बात होती। लेकिन इसके साथ में हम आपको वे उपकरण भी दे रहे हैं जो आपके लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, ताकि आप खुद खबर का फॉलो-अप कर सकें और हमारे जैसा या हमसे अलग निष्कर्ष निकाल सकें। यह बात खुद में एक मायने रखती है।’

स्वयं देखकर सत्यापित की जा सकने वाली सूचना पर आधारित खबरें राजनीतिक सनसनी से भरे हुए माहौल में भी एक कहानी सुनाने में मददगार हो सकती हैं। स्ट्रिक ने पेरुगिया में पत्रकारों से कहा, ‘रूसी जनता अभी के समय में संसार के सबसे महत्वपूर्ण ऑडिएंस में से एक है … सच्चाई को हम ऐसे दर्शकों तक पहुंचा सकते हैं, जिनके लिए वह सबसे ज्यादा मायने रखती है। उनके लिए उस सूचना के खास मायने इसलिए हैं, क्योंकि सरकारी शह पर चलने वाले टीवी पर रोज-ब-रोज जो किस्से वे देख रहे हैं, उनको इससे चुनौती मिलती है। और हमारे लिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि दर्शकों को कहानी के दोनों पहलू पता हों।’

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लौरा डिक्सन जीआईजेएन की सहयोगी संपादक और ब्रिटेन की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उन्होंने कोलंबिया, अमेरिका और मैक्सिको से रिपोर्ट की है। उनका काम  द टाइम्स, द वाशिंगटन पोस्ट और द अटलांटिक द्वारा प्रकाशित किया गया है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय महिला मीडिया फाउंडेशन और पुलित्जर सेंटर फॉर क्राइसिस रिपोर्टिंग से कुछ रिपोर्टिंग फेलोशिप्स भी मिल चुकी हैं।

 

 

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