

Иллюстрация: Марсель Лув для GIJN
डिजिटल खतरों की जांच : परिचय
डिजिटल उपकरणों का उपयोग अब सामान्य बात है। डिजिटल उत्पाद और सेवाएं हमारे आधुनिक जीवन के लगभग हर पहलू में शामिल हैं। इस व्यापकता ने डिजिटल हमलों और खतरों को भी जन्म दिया है। इनमें कई तरह के उत्पीड़न, पहचान की चोरी, डिजिटल घोटाले शामिल हैं। इनके अलावा विभिन्न स्पाइवेयर, मैलवेयर, रैंसमवेयर और विभिन्न सेवाओं को बाधित करने वाले हमले भी हमारी चिंता का विषय हैं।
डिजिटल खतरे हरेक सीमा, भाषा, प्लेटफार्म और बीट से परे हैं। कुछ उदाहरण देखें-
- वैक्सीन-विरोधी एक दुष्प्रचार अभियान में स्पेन और जर्मनी के प्रभावशाली लोगों को नियुक्त करने की कोशिश की गई थी। पता चला कि इसके पीछे एक रूसी फर्म का हाथ था ।
- अल-साल्वाडोर में एक मीडिया संस्थान पर स्पाइवेयर हमला हुआ। इसमें एक इज़राइली कंपनी द्वारा बनाए गए सॉफ़्टवेयर का उपयोग हुआ। यह पत्रकारों के कंप्यूटर सिस्टम हैक करने के खतरों का उदाहरण है।
- एक स्पेनिश फर्म ने राजनेताओं और अपराधियों से जुड़ी नकारात्मक ऑनलाइन खबरों को हटाने के लिए अनुचित तरीकों का उपयोग किया। इसे रेपुटेशन लाउंडरिंग कहा जाता है। डिजिटल मीडिया संगठनों के लिए यह चिंताजनक है। ऐसे साइबर अपराधी किसी न्यूजपोर्टल की मूल सामग्री से छेड़छाड़ कर सकते हैं।
- ब्राज़ील में दवाओं और इलाज के बारे में झूठा तथा आक्रामक प्रचार किया गया। इसके पीछे अमेरिकी कंपनी का हाथ सामने आया ।
ऊपर के उदाहरणों में सरकारों, कंपनियां अथवा साइबर अपराध गिरोहों की भूमिका रही। इसलिए पत्रकारों को इन खतरों से अवगत होना जरूरी है।
नकली सोशल मीडिया अकाउंट और एआई से बने फोटो, वीडियो से डिजिटल धोखेबाजी होती है। ब्रिगेडिंग और हैशटैग अभियान भी चलाए जाते हैं। ब्रिगेडिंग का अर्थ सैनिकों की ब्रिगेड की तरह सामूहिक तौर पर प्रचार का हमला करना है। सोशल मीडिया में ऐसे अभियान चलाए जाते हैं। हैशटैग का उपयोग किसी पोस्ट के विषय की पहचान के लिए किया जाता है। इन तरीकों का उपयोग लोगों को आकर्षित करने, पैसा कमाने और दूसरे पक्ष को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है।
डिजिटल खतरे और इससे जुड़े लोग जांच के लायक विषय हैं। लेकिन यह विषय पत्रकारों के लिए तत्काल बेहद जरूरी हो गया है। मीडिया को चुप कराने और प्रेस पर भरोसा कम करने के लिया पत्रकारों और समाचार संगठनों पर हमले बढ़ रहे हैं। सभी देशों और हर बीट के पत्रकारों को डिजिटल खतरे समझने की जरूरत है। इन्हें उजागर करके खुद को और सहयोगियों को सुरक्षित रखने पर ध्यान दें।
‘ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म नेटवर्क‘ ने एक ‘डिजिटल खतरा प्रशिक्षण कार्यक्रम‘ बनाया है। इसका उद्देश्य डिजिटल दुनिया की जांच करके हमलों और धोखेबाजी का पर्दाफाश करने में पत्रकारों की मदद करना है। अधिकतम पत्रकारों और मीडिया संगठनों में खोजी कौशल बढ़ाने के अपने मिशन के तहत जीआईजेएन ने डिजिटल खतरों की जांच के लिए रिपोर्टर गाइड बनाई है।
- यह परिचय अध्याय – डिजिटल जांच के बुनियादी सिद्धांत
- गाइड का पहला भाग – दुष्प्रचार
- दूसरा भाग डिजिटल – इंफ्रास्ट्रक्चर
- तीसरा भाग – डिजिटल खतरे के परिदृश्य
- चौथा भाग – ट्रोलिंग अभियान
यह गाइड डिजिटल खतरों की जांच के लिए पत्रकारों की मानसिकता विकसित करना चाहता है। इसके लिए तकनीक और उपकरणों की जानकारी दी गई है। आइए देखें, इसकी शुरुआत कैसे करें।
खोजी मानसिकता विकसित करें
डिजिटल जांच के तरीके सीखना अब पत्रकारों के लिए जरूरी है। इसके लिए अवलोकन, विश्लेषण, सोर्सिंग, उपकरण और तकनीकों का मिश्रण करना होगा। यह काम अच्छी तरह करने के लिए इन तरीकों के साथ पारंपरिक रिपोर्टिंग के तरीकों को भी जोड़ दें। जैसे, स्रोत का विकास, जांच योग दस्तावेज़ों और संदेशों की तलाश करना। डिजिटल कौशल और उपकरण चाहे जितना भी उपयोगी हों, यह पारंपरिक रिपोर्टिंग का स्थान नहीं ले सकते। लेकिन उनसे किसी भी कहानी को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकती है। खासकर डिजिटल खतरों की जांच के लिए ऐसे उपकरण महत्वपूर्ण हैं।
इसका पहला कदम एक खोजी मानसिकता विकसित करना है। डिजिटल दुनिया की कमजोरियों के प्रति सचेत रहें। अपने भीतर की कमजोरियों के प्रति भी सावधान हों। एक मनुष्य के रूप में किसी जानकारी के साथ हमारा भावनात्मक रिश्ता होता है। हम अपने अनुभव और संज्ञानात्मक कार्यों से पैदा हुए पूर्वाग्रह के अधीन है। इसलिए एक पत्रकार को भी धोखा दिया जा सकता है। आप किसी कुप्रचार अभियान का शिकार हो सकते हैं। इसलिए किसी भी उपकरण या तकनीक से अधिक महत्वपूर्ण है आपकी सचेत मानसिकता, जो इन खतरों के प्रति जागरूक हो।
रिचर्ड्स जे. ह्यूअर, जूनियर ने अपनी पुस्तक “The Psychology of Intelligence Analysis.” में लिखा है- “कोई जानकारी मिलने के बाद लोग क्या समझते हैं? कितनी आसानी से समझते हैं? किसी जानकारी को पाने के बाद लोग उसे कैसे संसाधित करते हैं? दरअसल यह सब कुछ उनके अनुभव, शिक्षा, सांस्कृतिक मूल्यों, भूमिका, संगठनात्मक मानदंडों और जानकारी की बारीकियों से प्रभावित होता है।“ यह पुस्तक सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के लिए लिखी गई थी। लेकिन यह पत्रकारों के लिए भी उपयोगी है।
इस पुस्तक में लेखक ने सुझाव दिया- “केवल लोगों के निर्णयों और निष्कर्षों के बारे में नहीं सोचें। इस बारे में भी सोचें कि वे कैसे निर्णय लेते हैं और निष्कर्ष तक कैसे पहुंचते हैं। हमें अपनी सोच के बारे में सोचने की जरूरत है।“
पत्रकारिता मुख्यतः एक मानसिक क्रिया है। हमारे कुछ निर्णय और कार्य सचेत होते हैं। अपने सहकर्मियों, संपादकों, विशेषज्ञों और स्रोतों के साथ विचार और परामर्श के बाद हम कोई फैसला लेते हैं। कुछ काम स्वचालित होते हैं, जो हमारी आदत पर निर्भर हैं।
डैनियल कन्नमैन ने ‘थिंकिंग फ़ास्ट, थिंकिंग स्लो‘ में लिखा है- “मानसिक कार्य हमारे दिमाग में चुपचाप चलता रहता है। यह कई चीजों का प्रभाव ग्रहण करने, अंतर्ज्ञान हासिल करने और कई निर्णयों में मदद करता है।“
सफल जांचकर्ता अपने निर्णयों और धारणाओं की खुद ही जांच करने का सचेत प्रयास करते हैं। अपने भीतर पहले से मौजूद जिस ज्ञान और जिन अनुभवों से वे प्रेरित होते हैं, उनकी स्वयं समीक्षा करते हैं। वे इस बात पर ध्यान देते हैं कि उन्होंने वह जानकारी कैसे एकत्र करते हैं और उसकी व्याख्या कैसे करते हैं।
सत्यापन के मूल पत्रकारिता सिद्धांत के साथ यह मानसिकता फिट बैठती है। पत्रकारिता दरअसल ‘सत्यापन का अनुशासन‘ है। टॉम रोसेनस्टील और बिल कोवाच ने The Elements of Journalism में इसे स्पष्ट किया है। हम किसी जानकारी को सत्यापित किए बिना उसे स्वीकार नहीं करते। न ही प्रकाशित करते हैं।
सत्यापन की आवश्यकता किसी भी रिपोर्टिंग के लिए जरूरी सलाह है। लेकिन डिजिटल दुनिया को धोखे और हेराफेरी ने खास तौर पर खतरे में डाल दिया है। इसलिए ऐसी चीजों का सत्यापन तत्काल आवश्यक हो जाता है। नकली सोशल मीडिया अकाउंट, फर्जी वेबसाइट, भ्रामक विज्ञापन, छलपूर्ण हैशटैग वगैरह के मामले बढ़े हैं। अगर हम इन खतरों को उजागर नहीं करते, तो खुद को धोखे से बचा नहीं सकते हैं। इसलिए, खोजी मानसिकता अपनाना पहला कदम है।
एबीसी फ्रेमवर्क
वर्ष 2019 में शोधकर्ता केमिली फ्रेंकोइस का एक पेपर प्रकाशित हुआ – “ABC” framework for thinking about and investigating “viral deception इसमें ‘वायरल धोखाधड़ी‘ के ए-बी-सी को बताया गया है-
- ‘ए‘ से एक्टर (मैनिपुलेटिव एक्टर) – धोखेबाज लोग, बुरे अभिनेता
- ‘बी‘ से बिहेवियर (डिसेप्टिव बिहेवियर) – धोखापूर्ण व्यवहार
- ‘सी‘ से कंटेंट (हार्मफुल कंटेंट) – हानिकारक सामग्री
इनमें प्रत्येक बिंदु की अलग-अलग विशेषता, कठिनाइयां और निहितार्थ हैं।
यह ‘एबीसी फ्रेमवर्क‘ मुख्यतः दुष्प्रचार पर केंद्रित है। लेकिन डिजिटल खतरों की जांच में भी यह उपयोगी है। किसी डिजिटल धोखेबाजी की जांच किसी धोखेबाज व्यक्ति, किसी कपटपूर्ण व्यवहार या हानिकारक सामग्री की जांच से शुरू हो सकती है। यह जांच इन तीनों के संयोजन से भी कर सकते हैं।

इमेज : स्क्रीनशॉट
बेन निम्मो ने Verification Handbook for Disinformation and Media Manipulation में लिखा है- “ऐसी धोखेबाजी की पहली कड़ी को पहचानने के लिए कोई एक नियम नहीं है। असंगत चीजों की तलाश करना सबसे प्रभावी रणनीति है। यह टेनेसी स्थित कोई ट्विटर अकाउंट हो सकता है, जो एक रूसी मोबाइल फोन नंबर पर पंजीकृत हो। यह कोई फेसबुक पेज हो सकता है, जो नाइजर में स्थित होने का दावा करे, लेकिन वास्तव में सेनेगल और पुर्तगाल से प्रबंधित होता हो।“
यह कोई संदिग्ध सामग्री हो सकती है, किसी जगह पर बेमेल लगती हो। यह कोई खराब सामग्री या अनावश्यक लगती हो। यह सोशल मीडिया की कोई पोस्ट, एक वेब पेज या कोई एक टेक्स्ट संदेश हो सकता है। इस गाइड में दुष्प्रचार (डिस-इनफोरमेशन) की जांच वाले अध्याय में जेन लिट्विनेंको ने सामग्री का विश्लेषण करने का दृष्टिकोण इस तरह बताया है-
“कई संकेतक और प्रश्न आपकी मदद कर सकते हैं। जैसे, खाते कब बनाए गए? सामग्री कब साझा की गई? सामग्री को विभिन्न प्लेटफार्मों पर किसने शेयर किया? सामग्री में क्या समानताएं हैं? किसी एक ही वेबसाइट की सामग्री को फेसबुक और ट्विटर दोनों पर प्रचारित किया गया हो। किसी मुद्दे पर प्रभावशाली लोग टिकटॉक में समान भाषा का उपयोग कर रहे हों। किस चीज को किस वक्त पोस्ट किया गया, इसका समय भी आपको बहुत कुछ बता सकता है। क्या समान विशेषताओं वाली कुछ सामग्री कुछ खातों से मिनटों या सेकंड के भीतर साझा की गई है?“
डिजिटल दुनिया में कोई भी फर्जी इमेज, वीडियो, वेब सामग्री और सोशल मीडिया पोस्ट बनाना बेहद आसान है। किसी बात को उसके वास्तविक संदर्भ से हटाकर भ्रम फैलाना भी आम बात है। इसलिए पत्रकारों को अतिरिक्त सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, डिजिटल वातावरण में सत्यापन महत्वपूर्ण काम है, जहां सामग्री और संदर्भ का हेरफेर बेहद आसान और सर्वव्यापी है।
सत्यापन केवल एक अवधारणा नहीं है। यह एक दोहराने योग्य अनुशासित प्रक्रिया है। ‘प्रथम ड्राफ्ट‘ (गैर-लाभकारी मंच) के अनुसार, डिजिटल सत्यापन के पांच स्तंभ हैं –
- प्रामाणिकता : क्या यह मूल खाता, लेख या सामग्री है?
- स्रोत : खाता, लेख या सामग्री को किसने बनाया अथवा शेयर किया?
- दिनांक : खाता या सामग्री को कब बनाया अथवा शेयर किया गया?
- स्थान : खाता या वेबसाइट को कहां बनाया गया, सामग्री कहां शेयर की गई?
- प्रेरणा : खाता या वेबसाइट को क्यों बनाया गया, सामग्री क्यों शेयर की गई?
किसी फोटो, वीडियो, दावे या अन्य जानकारी का मूल स्रोत खोजना आवश्यक है। दिनांक, स्थान और अन्य विवरणों की पुष्टि होने पर सामग्री के मौलिक होने तथा उसके संदर्भ पर भरोसा कायम होता है। इसके लिए ‘रिवर्स इमेज सर्च‘ और ‘बूलियन सर्च क्वेरी‘ जैसे उपकरण और तकनीक उपयोगी है। इस संबंध में जेन लिटविनेन्को ने अपने अध्याय में बताया है ।
केमिली फ्रेंकोइस के ‘एबीसी फ्रेमवर्क‘ में मैनिपुलेटिव एक्टर का उल्लेख किया गया है। उसकी जांच कहीं से भी शुरू हो सकती है। जैसे, कोई व्यक्ति, कोई कंपनी फिर कोई सरकार। शुरुआत में जिस फ़ोन नंबर से दुर्भावनापूर्ण या परेशान करने वाला टेक्स्ट आया हो, उससे भी शुरू कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर किसी एक या अनेक खातों अथवा किसी वेबसाइट के गुमनाम प्रकाशक को भी इस श्रेणी में रख सकते हैं।
सोशल मीडिया खाते के विश्लेषण में इन प्रश्नों पर विचार करें-
- खाता कब बनाया गया?
- इसके बायो में क्या जानकारी, संबद्धता और लिंक है?
- प्रोफ़ाइल फ़ोटो क्या है?
- क्या इस फ़ोटो का अन्यत्र उपयोग किया गया है?
- क्या फोटो उसी व्यक्ति की है? (रिवर्स इमेज सर्च करें)
- यह किन लोगों के साथ इंटरैक्ट करता है?
- क्या अन्य सोशल मीडिया पर इस व्यक्ति या संस्था के खाते हैं?
- क्या हरेक प्लेटफ़ॉर्म पर एक ही यूजरनेम है?
‘व्हाट्स माई नेम डॉट ऐप (https://whatsmyname.app/) – यह सैकड़ों ऑनलाइन सेवाओं में किसी यूजरनेम को खोजने का शानदार तरीका है। ध्यान रखें। एक समान यूजरनेम होने का मतलब यह नहीं है कि दोनों एक ही व्यक्ति के हों। उसी यूजरनेम से किसी अन्य व्यक्ति का खाता हो सकता है। इसकी सावधानी से जांच करें।
किसी वेबसाइट की जांच के लिए उसके मालिक का पता लगाना होगा। इसके लिए कुछ प्रारंभिक प्रश्नों और दृष्टिकोणों पर विचार करें। यह चेकलिस्ट उपयोगी है।
वेबसाइट के सभी मुख्य मेनू पर क्लिक करें। नीचे की ओर स्क्रॉल करके देखने लायक अन्य सभी पेज की खोज करें। बहुत सारे पेज खोलकर देखें। ढेर सारे लिंक पर क्लिक करें। उस वेबसाइट से अच्छी तरह परिचित हो जाएं। ध्यान दें कि इसमें ‘अबाउट‘ पेज है अथवा नहीं। अगर हां, तो क्या अपने बारे में जानकारी के इस पेज पर मालिक या किसी संस्थान का नाम दिया गया है? क्या वेबसाइट के होमपेज या किसी अन्य पेज के बिल्कुल नीचे कॉपीराइट नोटिस में किसी कंपनी या व्यक्ति का नाम है? क्या इसमें गोपनीयता नीति, नियम और शर्तों में किसी नाम, पते या कंपनी का विवरण है? क्या नीचे फुटर, अबाउट, या साइट के अन्य स्थानों पर दिए गए नाम अलग हैं। यदि वेबसाइट में कोई लेख प्रकाशित हो, तो किन के नाम से हैं? क्या वे क्लिक करने पर खुलते हैं? क्या वहां से लेखक के बारे में अधिक जानकारी वाले पेज पर जाना संभव है। आलेख और ‘अबाउट‘ के टेक्स्ट को गूगल करके देखें कि यह मौलिक है, अथवा नकल या साहित्यिक चोरी है। क्या वेबसाइट में इससे संबंधित सोशल मीडिया खातों का लिंक मौजूद हैं? क्या वेबसाइट पर कोई उत्पाद, ग्राहक, प्रशंसापत्र आदि उपलब्ध है, जिसे खोलकर देखना संभव है?
केमिली फ्रेंकोइस के ‘एबीसी फ्रेमवर्क‘ में तीसरा तत्व ‘धोखापूर्ण व्यवहार‘ है। यानी डिसेप्टिव बिहेवियर। संदिग्ध व्यक्ति या खाते के व्यवहार पर ध्यान दें। वह किस तरह की सामग्री और खातों को शेयर अथवा लाइक करता है? वह कितनी बार पोस्ट या री-पोस्ट करता है? क्या वह खाता अपनी सामग्री पोस्ट करने से ज़्यादा दूसरों को उत्तर देता है? क्या यह समान विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाले अन्य खातों के साथ समन्वित गतिविधि में संलग्न है? क्या खाता चालू होने से पहले महीनों या वर्षों तक निष्क्रिय था? क्या समय के साथ किसी वेबसाइट का फोकस और उद्देश्य बदल गया? क्या कोई स्पाइवेयर अभियान केवल टेक्स्ट अथवा अन्य तरीकों से लक्ष्य से संपर्क करता है?
दुष्प्रचार और ट्रोलिंग के लिए कई प्रकार के भ्रामक और कपटपूर्ण व्यवहार देखने को मिलते हैं। इनमें से कुछ का सारांश केमिली फ्रेंकोइस ने दिया है। उन्होंने लिखा- “इसके लिए कुछ स्वचालित उपकरणों का उपयोग भी है। जैसे, किसी संदेश की पहुंच और प्रभाव बढ़ाने के लिए ‘बॉट सेना‘ का उपयोग करना। मैन्युअल चालबाज़ी के उदाहरण भी देखने को मिलते हैं। जैसे, भुगतान आधारित लोगों और ट्रोल के जरिए पोस्टिंग कराना। ऐसे कपटी व्यवहार का स्पष्ट लक्ष्य होता है- कुछ कम संख्या के लोग मिलकर सोशल मीडिया में इस तरह पोस्टिंग करते हों, जो अधिक संख्या के लोगों द्वारा चलाए गए जैविक अभियान जैसा दिखाई दे।“
ध्यान रहे कि अलग-अलग प्रेरणा वाले लोग भी एक समान व्यवहार कर सकते हैं। ऐसा करते हुए वे लोग एक ही प्रकार की सामग्री के उत्पादन या विस्तार में सहयोग कर सकते हैं। वर्ष 2016 के अमेरिकी चुनाव के दौरान एक उदाहरण सामने आया। रूसी इंटरनेट रिसर्च एजेंसी (आईआरए) के लिए काम करने वाले पेशेवर ट्रोल्स ने कुछ खास सामग्री बनाई या प्रचारित की। ठीक वैसी ही सामग्री ट्रम्प समर्थक या क्लिंटन विरोधी दर्जनों फेसबुक पेजों में भी आ रही थी। उत्तरी मैसेडोनिया में आर्थिक रूप से प्रेरित स्पैमर्स द्वारा चलाए जा रहे वेबसाइटों में भी वैसा ही कंटेंट देखा गया।

क्रेग सिल्वरमैन ने 2016 के अमेरिकी चुनाव के दौरान उत्तरी मैसेडोनिया में ट्रम्प समर्थक और क्लिंटन विरोधी स्पैम अभियानों की जांच का सह-लेखन किया। इमेज : स्क्रीनशॉट, बज़फीड न्यूज़
रूसी इंटरनेट रिसर्च एजेंसी (आईआरए) राजनीतिक कारणों से चुनाव को बाधित और प्रभावित करने का काम मिला था। जबकि मैसेडोनिया के लोग सिर्फ पैसा कमाने के लिए निकले थे। लेकिन उन्होंने समान किस्म की सामग्री का उपयोग किया। यदि आप ऐसे मामले की जांच में सिर्फ सामग्री और व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करके अभिनेताओं और उनकी प्रेरणाओं को नजरअंदाज कर देंगे, तो पूरी तस्वीर सामने लाना मुश्किल होगा। अभियान के पीछे मौजूद लोगों और उनकी प्रेरणा की जांच से ही सच का पता लग सकता है।
हमें सामग्री और व्यवहार के संदर्भ को समझने के लिए यथासंभव अभिनेताओं की प्रेरणाओं को समझना और जांचना चाहिए। यह इस बात का उदाहरण है कि एबीसी मॉडल का प्रत्येक तत्व कितना महत्वपूर्ण है। यह अन्य दो तत्वों से कैसे संबंधित है।
निगरानी, दस्तावेज़ीकरण और विश्लेषण
अब डिजिटल जांच के तीन प्रमुख चरणों पर नज़र डालें- निगरानी, दस्तावेज़ीकरण और विश्लेषण।
निगरानी
निगरानी के दौरान आप उस मामले से संबंधित डिजिटल परिसंपत्तियों को एकत्र करके उसका निरीक्षण करते हैं। इसमें सोशल मीडिया खाते, ग्रूप, वेबसाइट, चैनल, आईपी पते तथा अन्य चीजें शामिल हैं। आप ट्विटर सूची में सामग्री और व्यवहार को ट्रैक कर सकते हैं। खातों और सामग्री के लिंक की एक स्प्रेडशीट बनाए रख सकते हैं। हेराफेरी करने वाले लोगों, सामग्री और व्यवहार की पहचान के लिए खोज इंजन और सोशल नेटवर्क पर बार-बार खोज क्वेरी चला सकते हैं। अपनी जांच से संबंधित सूचनाएं पाने के लिए गूगल अलर्ट और डिस्टिल जैसे टूल का उपयोग कर सकते हैं।
निगरानी के पांच तत्व हैं –
- खोजें और नई जानकारी हासिल करें – खातों और संबंधित विषय से जुड़ी अन्य संपत्तियों की पहचान करने के लिए सर्च करें, विभिन्न प्लेटफार्मों के लिए प्रश्नावली बनाएं और मिले जवाब के अनुसार परिष्कृत करें।
- एकत्र और संग्रहित करें – प्रासंगिक जानकारियों को एक स्प्रेडशीट में संग्रहित करें। जांच योग्य लोगों, खातों, वेबसाइटों का लगातार अनुसरण करें। उनसे जुड़ें, सदस्यता लें और अलर्ट प्राप्त करें।
- निरीक्षण और सुधार करें – सामग्री और व्यवहार की लगातार समीक्षा करें। जांच के विषय संबंधी नई संपत्तियां और नए संदिग्ध लोगों की जांच करें, अप्रासंगिक लोगों पर समय नष्ट न करें।
- दस्तावेज़ और आर्काइव – उपयोग सामग्री का स्क्रीनशॉट और यूआरएल एकत्र करें। प्रासंगिक सामग्री को आर्काइव करें। सामग्री के पैटर्न, उनमें बदलाव, डिलीट की गई सामग्री और निष्कर्षों पर नोट्स बनाएं।
- दोहराएं – निगरानी की हर प्रक्रिया को दोहराना जारी रखें।
धोखाधड़ी के संदिग्ध लोगों और सामग्री की जांच के बगैर कोई भी दिन या सप्ताह न गुज़रे। सुसंगत तरीके अपनाने से आपकी जांच के लिए व्यवहारिक पैटर्न, उल्लेखनीय सामग्री और प्रासंगिक नए लोगों का पता लगाने की संभावना बढ़ जाती है।
इसे एक पुनरावृत्ति योग्य क्रॉस-प्लेटफ़ॉर्म प्रक्रिया के रूप में देखें। अपने दृष्टिकोण को अनुकूलित और परिष्कृत करने के लिए कीवर्ड और संपत्तियों को जोड़ने और हटाने का काम जारी रखें। सभी प्लेटफार्मों पर सामग्री तथा उसके प्रवाह के साथ ही संदिग्ध लोगों की जांच करें। लक्ष्य यह हो कि आपको प्रासंगिक जानकारी का एक स्थिर प्रवाह जैसा दिखने लगे। आप इसे व्यवस्थित करके विश्लेषण कर सकें।
दस्तावेज़ीकरण
यह डिजिटल जांच का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निगरानी के साथ मिलकर काम करता है। यह विश्लेषण प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करता है।
वेबसाइटों और इंटरनेट का लगातार बढ़ना जारी हैं। कई तरह के विकास हो रहे हैं। लेकिन कुछ चीजें ख़त्म भी हो रही हैं। किसी आलेख का लिंक टूट जाता है। वेबसाइटें और वेबपेज बंद हो जाते हैं। संचालन का बुनियादी ढांचा बदल जाता है। सोशल मीडिया खाते बंद हो जाते हैं। कोई पोस्ट डिलीट कर दी जाती है। आपने कुछ मिनटों या कुछ दिन पहले जो पोस्ट देखी थी, वह गायब हो सकती है। यहां कुछ भी स्थाई नहीं है। याददाश्त पर भरोसा करना भी खतरनाक है। आपको वह सब कुछ याद नहीं रहेगा जो आपने देखा। आप उस विशेष संपत्ति तक कैसे पहुंचे थे, यह खोजना भी मुश्किल हो सकता है।
आप जो कुछ भी उपयोगी सामग्री पाते हैं, उसका उसी रूप में दस्तावेज़ीकरण करना आवश्यक है।
निगरानी के दौरान ही आप यह काम जारी रखें। किसी सामग्री के उल्लेखनीय हिस्सों, व्यवहार के दिलचस्प उदाहरणों तथा अपनी टिप्पणियों का दस्तावेजीकरण करें। अपने विचारों और अनुभूति के नोट्स बना लें। उन्हें व्यवस्थित करें ताकि आपके लिए उनकी समीक्षा करना और दस्तावेज़ीकरण जारी रखना आसान हो सके। जरूरी चीजों का स्क्रीनशॉट लेकर उन्हें अपने कंप्यूटर में व्यवस्थित तरीके से रखें। साथ ही, आर्काइव उपकरण का उपयोग करें। (उस पर अधिक जानकारी नीचे दी गई है)।
दस्तावेज़ीकरण डिजिटल जांच का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह निगरानी के साथ मिलकर काम करता है। यह विश्लेषण प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करता है। दस्तावेज़ीकरण के दो प्रमुख तत्व हैं- आर्काइव करना और नोट करना।
आर्काइव करना
आर्काइव करना आपकी जांच में मिली सामग्री और डिजिटल परिसंपत्तियों को सहेजने और संरक्षित करने की प्रक्रिया है। यह सुनिश्चित करता है कि आप उस सामग्री तक वापस पहुंच सकते हैं। जो आपने देखा उसकी समीक्षा कर सकते हैं। यह साक्ष्य को सुरक्षित रखता है।
Wayback Machine – यह सबसे उपयोगी इंटरनेट आर्काइव उपकरण है। यह अधिकांश वेब पेजों के सार्वजनिक रूप से सुलभ संस्करण को सहेज सकता है। यह सभी सोशल नेटवर्क के साथ काम कर सकता है। वेबैक मशीन और इसके उत्कृष्ट ब्राउज़र एक्सटेंशन का उपयोग करने के लिए विभिन्न सुविधाओं और सर्वोत्तम प्रथाओं की रूपरेखा मैंने इस लेख में तैयार की है।
अन्य सार्वजनिक आर्काइव उपकरण – Archive.today, Perma.cc
अपने कंप्यूटर या स्मार्टफोन में व्यक्तिगत आर्काइव बनाना भी एक अच्छा तरीका है। काम करते समय आप स्क्रीनशॉट लेकर या कैप्चर प्रक्रिया को स्वचालित करने वाले टूल का उपयोग करके ऐसा कर सकते हैं। कुछ विकल्प देखें – Go Full Page Chrome plugin (निःशुल्क), Hunchly (सशुल्क), Webrecorder (निःशुल्क), Screenpresso (निःशुल्क) Bellingcat’s Auto Archiver (निःशुल्क)
ऐसे उपकरण वेब सामग्री से स्क्रीनशॉट और अन्य डेटा कैप्चर करते हैं। कुछ मामलों में व्यवस्थित भी करते हैं। आप जिसे भी चुनें, यह सुनिश्चित करें कि आप अपने स्क्रीनशॉट और आर्काइव को व्यवस्थित और व्याख्यायित करने की दिशा में अनुशासित हैं। बिना लेबल वाले स्क्रीनशॉट का एक विशाल फ़ोल्डर बनाना किसी काम नहीं आएगा।
आर्काइव भी अनुसंधान प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब आप सोशल मीडिया खातों और वेबसाइटों की जांच करते हैं, तो आपको यह देखना चाहिए कि वेबैक मशीन, आर्काइव डॉट टुडे तथा अन्य सेवाओं ने समय के साथ उनसे क्या हासिल किया है।

वेबैक मशीन वेबपेज कैप्चर करती है। यह ऑनलाइन इतिहास पर नज़र रखने का अमूल्य संसाधन हो सकती है। इमेज : शटरस्टॉक
नोट लेना
आर्काइव करने का काम नोट लेने के साथ-साथ चलता रहता है। यह पत्रकारों के लिए मानक अभ्यास है। डिजिटल जांच के लिए आमतौर पर संरचित और असंरचित नोट्स के मिश्रण की आवश्यकता होती है। संरचित नोट लेने का एक उदाहरण एक स्प्रेडशीट है। इसमें आप एक ही ऑपरेशन या इकाई से जुड़े सभी सोशल मीडिया खातों, पेजों, चैनलों, वेबसाइटों और अन्य संपत्तियों को सूचीबद्ध करते हैं। यह आपकी निगरानी को सूचित रखने में मदद करता है। आपको मिली डिजिटल संपत्तियों को व्यवस्थित करने का एक तरीका प्रदान करता है।
बेन निम्मो ने ‘वेरिफिकेशन हैंडबुक फॉर डिस-इनफोरमेशन एंड मीडिया मेनिपुलेशन‘ में नोट लेने का तरीका बताया है। उन्होंने स्प्रेडशीट में शामिल करने योग्य की जानकारी की रूपरेखा प्रस्तुत की है। उनके अनुसार –
स्प्रेडशीट में यह दर्ज हो कि कोई संपत्ति किस तरह प्राप्त हुई। यह एक आवश्यक बिंदु है। इसका नाम और यूआरएल, इसे बनाने की तारीख (यदि ज्ञात हो), फॉलोइंग और फ़ॉलोअर्स की संख्या, लाइक और व्यू का विवरण शामिल करें। उनमें संपत्ति का एक बुनियादी विवरण भी शामिल हो। जैसे, एम्मा वॉटसन प्रोफ़ाइल चित्र के साथ अरबी-भाषा समर्थक सऊदी खाता। इससे आपको याद रहे कि 500 अन्य संपत्तियों को देखने के बाद यह क्या था। यह जांच कोई टीम कर रही हो, तो टीम के किस सदस्य ने किस संपत्ति को देखा, यह भी नोट करें।
कुछ मामलों में बिना किसी संरचना के आप ‘अन-स्ट्रक्चर्ड‘ नोट भी ले सकते हैं। इसके लिए गूगल डॉक या अन्य वर्ड प्रोसेसिंग टूल का उपयोग हो सकता है। इनमें आप अपने विचारों, अनुभूति, परिकल्पना इत्यादि दर्ज कर सकते हैं। निगरानी और रिपोर्टिंग के दौरान मिली जानकारी को इसमें रिकॉर्ड करते हैं। इस जानकारी को दर्ज करने का कोई एक सही तरीका नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे ऐसे प्रारूप में नोट किया जाए जिसे आप आसानी से एक्सेस और नेविगेट कर सकें। आपके लिए पल भर में विचारों और सूचनाओं को निकालना भी आसान हो। आर्काइव करने की तरह, इस मामले में भी स्मृति पर निर्भर न रहें, हर चीज तत्काल नोट कर लें।
आर्काइव करना और नोट लेना, दोनों चीज एक साथ मिलकर अच्छा काम करती है। आप जो देख रहे हैं और आपने इसे कैसे पाया, उसके बारे में नोट्स लेते समय सामग्री को आर्काइव कर लें।
आपका लक्ष्य संभावित महत्व की हर चीज़ को रिकॉर्ड और आर्काइव करना है। ऐसा करके आप चीजों को एक साथ जोड़ सकते हैं। कुछ दिनों या हफ्तों पहले आपके सामने आई किसी चीज़ को याद रखने में कठिनाई आती है। कई बार यदि आप एक महत्वपूर्ण पोस्ट या वेबपेज को आर्काइव करना भूल गए हों और उसे बाद में हटा दिया गया हो, तो आपकी मेहनत बेकार चली जाएगी।
विश्लेषण करना
आप एकत्र जानकारी की समीक्षा और मूल्यांकन करते हैं। उसके मूल्य और वैधता का आकलन करते हैं। उसके निष्कर्ष निर्धारित करते हैं। इन सबके बाद विश्लेषण का चरण आरंभ होता है।
इस प्रक्रिया के संबंध में इस गाइड के विभिन्न अध्यायों में कई दृष्टिकोणों की जानकारी मिल जाएगी। यहां ऊपर हमने ‘एबीसी फ्रेमवर्क‘ की चर्चा की है। विश्लेषण में इसका उपयोग किया जा सकता है। इसके तहत धोखाधड़ी करने वाले लोगों और प्राप्त सामग्री के बीच संबंधों की पहचान करना और स्थापित करना शामिल है। आदर्श परिदृश्य में, अब आप दुष्प्रचार, ट्रोलिंग या स्पाइवेयर ऑपरेशन के पीछे व्यक्ति, समूह या अन्य इकाई की पहचान करने में सक्षम होंगे। इसके लिए पुख्ता सबूत की जरूरत है। विश्लेषण का लक्ष्य यह उजागर करना है कि डिजिटल हमलों के पीछे कौन जिम्मेदार है। उन्हें जवाबदेह ठहराना है। लेकिन यदि आप इसे प्रकाशित करने में सक्षम होने लायक पुष्टि नहीं कर सकते, तो निराश न हों।
डिजिटल खतरों की जांच करते समय इसके पीछे जिम्मेवार लोगों के व्यवहार और सामग्री के साथ उनके ऑनलाइन ऑपरेशन को दिखाने में सक्षम होना सामान्य बात है। उन लोगों द्वारा किसी एक ही डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग भी एक गौरतलब बात होगी। जैसे, एनालिटिक्स या विज्ञापन आईडी या आईपी पते के माध्यम से कई वेबसाइटों जैसी संपत्तियों को एक साथ जोड़ना। हमारे गाइड के ‘डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर अध्याय‘ में एटियेन मेनियर ने इस पर जानकारी दी है।
इन अध्यायों में अनेक डिजिटल उपकरण और तकनीक की जानकारी दी गई है। इनसे आपको महत्वपूर्ण कनेक्शन और समन्वय स्थापित करने में मदद मिलेगी। लेकिन कोई जरूरी नहीं कि हर मामले में आप यह साबित कर सकें कि खाते, वेबसाइट या अन्य संपत्ति कौन चला रहा है।
संभव है कि आप उसमें शामिल किसी व्यक्ति या कुछ लोगों की पहचान कर लें। लेकिन यह निश्चित रूप से नहीं जान सकते कि यह काम वह अकेले अपनी प्रेरणा से कर रहे हैं, या इसके लिए उन्हें भुगतान किया गया है।
इसलिए किसी डिजिटल खतरे के पीछे कौन है, इसकी पूरी जानकारी के बिना भी आप कोई स्टोरी कर सकते हैं। लेकिन ऐसी स्टोरी में आपको पाठकों के साथ खुलकर बात करनी होगी। आपने जिस हद तक सत्यापित और उजागर किया है, उससे आगे कभी नहीं जाना चाहिए।
डिजिटल हमलों के जिम्मेवार लोगों की पहचान सामने लाने के लिए आपको पारंपरिक सोर्सिंग और दस्तावेज़ीकरण के साथ डिजिटल जांच कार्य को जोड़ना होगा। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के अंदर और स्पाइवेयर और सूचना सुरक्षा उद्योग के भीतर अपने स्रोतों की पहचान करें और उन्हें विकसित करें। डिजिटल हेराफेरी से जुड़ी कंपनी के वेतन रिकॉर्ड, ग्राहकों के डेटाबेस और आंतरिक संचार जैसे दस्तावेज पाने की कोशिश करें, जो किसी ऑपरेशन पर से पर्दा हटाते हैं। दस्तावेजी सबूत या उस टीम के लोगों द्वारा पुष्टि अक्सर किसी खतरे या ऑपरेशन के जिम्मेदार लोगों को सामने लाने में मदद करती है।
बेस्ट प्रेक्टिसेस का प्रकाशन
डिजिटल खतरों पर रिपोर्टिंग करने के अपने जोखिम हैं। संभव है कि जिस बुरे अभिनेता पर आप रिपोर्ट कर रहे हैं, वह आपको तथा आपको मीडिया संगठन को अपना निशाना बना ले। वह आपके खिलाफ किसी ऑपरेशन या दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर का उपयोग कर सकता है। इसके अलावा, जो पीड़ित लोग या समुदाय हैं, उन पर भी जोखिम है। पर्याप्त संदर्भ के अभाव में किसी डिजिटल खतरे का विवरण देने से संबंधित पीड़ितों को अनजाने में नुकसान का जोखिम भी होता है। इससे पीड़ितों को भविष्य में निशाना बनाए जाने के के लिए उजागर होने का भी खतरा है। साथ ही, इससे बुरे अभिनेताओं को अतिरिक्त प्रचार हासिल करने में मदद मिल सकती है।
दुष्प्रचार पर रिपोर्टिंग करते समय यह खास चिंता का विषय है। इसके संबंध में ‘फर्स्ट ड्राफ्ट‘ में मुफ्त ऑनलाइन गाइड है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में सर्वोत्तम प्रथाओं की रूपरेखा मिलती हैं। जेन लिटविनेंको ने अपने अध्याय में विवरण प्रस्तुत किया है। ट्रोलिंग पर लुइस अस्सार्डो का अध्याय आपकी रिपोर्टिंग में नुकसान को कम करने संबंधी अच्छी सलाह देता है। इसमें अभियान के प्रभाव को सनसनीखेज बनाने या बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने जैसी चीजों से बचना शामिल है। स्पष्ट पत्रकारिता उद्देश्य के बिना आपत्तिजनक या हानिकारक सामग्री प्रस्तुत करने से भी परहेज करना आवश्यक है। सहमति के बिना संवेदनशील जानकारी या चित्र साझा करके लक्षित व्यक्तियों की गोपनीयता या सुरक्षा का उल्लंघन करना भी बिल्कुल गलत होगा।
क्या आपकी जांच में तकनीकी विश्लेषण भी शामिल है? यदि हां, तो पाठकों को अपने निष्कर्षों को समझाना और साबित करना आवश्यक है। लेकिन इसके साथ यह सुनिश्चित करें कि आप किसी डिजिटल हमले या अभियान के लिए बुरे अभिनेताओं को आपकी रिपोर्ट का अनुचित लाभ न मिल जाए। वे अपने किसी खेल में आपकी रिपोर्ट का दुरूप्योग न कर लें।
अटकलों से बचें। अपनी धारणाओं और निष्कर्षों की जाँच करें। उसे दोबारा जाँचें। जो चीज आप साबित कर सकते हैं, उस पर टिके रहें।
औजारों से ज्यादा महत्वपूर्ण है मानसिकता
इन बुनियादी बातों को ध्यान में रखते हुए, आप शेष गाइड को समझने के लिए अच्छी तरह से तैयार हैं। प्रत्येक अध्याय पत्रकारों को डिजिटल खतरे उजागर करने में मदद करने के लिए ढेर सारी सलाह, तकनीक और उपकरण प्रदान करता है। यह भी बताया गया है कि कैसे यह कार्य अंततः सत्यापन, सूचना एकत्रीकरण और विश्लेषण, स्रोत विकास और निर्णय के बुनियादी कौशल पर निर्भर करता है।
आप गहराई में उतरकर नए उपकरणों और तकनीकों के बारे में सीखेंगे। याद रखें कि जानकारी को सत्यापित करने, सबूतों पर टिके रहने और अपनी सोच के बारे में सोचने के प्रति आपकी मानसिकता और प्रतिबद्धता ही अंततः सफलता प्रदान करेगी।
जीआईजेएन ने गोथेनबर्ग (स्वीडन) में ‘ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉन्फ्रेंस, 2023‘ के दौरान एक सत्र ‘वाचडॉग जर्नलिज्म इन द एज ऑफ डिजिटल सबवर्जन‘ आयोजित किया। आप पूरा सत्र यहां देख सकते हैं।
क्रेग सिल्वरमैन प्रोपब्लिका के राष्ट्रीय रिपोर्टर हैं। वोटिंग, प्लेटफ़ॉर्म्स, दुष्प्रचार और ऑनलाइन हेरफेर को कवर करते हैं। वह पहले बज़फीड न्यूज के मीडिया संपादक थे। वहां उन्होंने डिजिटल दुष्प्रचार के कवरेज में अग्रणी भूमिका निभाई।
अनुवाद : डॉ. विष्णु राजगढ़िया