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मानव तस्करी और बंधुआ मजदूरी पर रिपोर्टिंग कैसे करें

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Illustration: Kata Máthé / Remarker

जब हम गुलामी प्रथा या बंधुआ मजदूरी की बात सुनते हैं, तो ऐसा लगता है मानो यह महज इतिहास की बात है। लेकिन हकीकत यह है कि आधुनिक रूप में ऐसी चीजें आज भी मौजूद हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी) के आंकड़ों से इस भयावह सच का पता चलता है। आइएलओ के अनुसार आज भी दुनिया में लगभग चार करोड़ महिलाएं, पुरुष और बच्चे आधुनिक गुलामी के शिकार हैं। जबरन मजदूरी और मानव तस्करी न केवल आज भी विभिन्न रूपों में प्रचलित है, बल्कि ऐसा अपराध है, जो कुछ लोगों के लिए काफी लाभदायक है। भले ही समाज को इसकी जो भी कीमत चुकानी पड़ रही हो। इसलिए खोजी पत्रकारों के लिए यह जांच का महत्वपूर्ण विषय है।

बारहवीं ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉन्फ्रेंस 2021  में मानव तस्करी और जबरन मजदूरी पर भी एक सत्र रखा गया। एसोसिएटेड प्रेस की संवाददाता मार्था मेंडोजा ने इसका संचालन किया। उन्हें दो बार पुलित्जर पुरस्कार मिला है। उनकी रिपोर्टिंग के कारण 2000 से अधिक गुलाम मछुआरों को बंधुआगिरी से मुक्ति मिली।

मार्था मेंडोजा ने इस सत्र में चार पैनलिस्टों के साथ बात की। इनमें पुरस्कार विजेता दो पत्रकार थे, जो जबरन मजदूरी कवर करने में विशेषज्ञता रखते हैं। एक संपादक ने ऐसी खबरों की रिपोर्टिंग को उन्हें पिच करने संबंधी सुझाव दिए। एक विशेषज्ञ ने इन मामलों पर रिपोर्टिंग संबंधी टूलकिट साझा किया।

दक्षिण-पूर्व एशिया स्थित एपी की संवाददाता रॉबिन मैकडॉवेल को वर्ष 2016 में मार्था मेंडोजा के साथ पुलित्जर पुरस्कार मिला था। मैकडॉवेल ने अपनी एक चर्चित न्यूज स्टोरी से जुड़े अनुभव शेयर किए। उन्होंने मार्गी मेसन के साथ मिलकर यह स्टोरी की थी। यह मलेशिया और इंडोनेशिया में ताड़ के तेल उद्योग में जबरन मजदूरी पर लेखों की श्रृंखला थी। यह खोजी रिपोर्टिंग इस वर्ष पुलित्जर पुरस्कार के लिए फाइनलिस्ट की श्रेणी में आई।

उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में ताड़ के तेल (पाम तेल) से बनी वस्तुओं का डॉलर का बड़ा उद्योग चलता है। इनमें दुर्गन्ध मिटाने वाले उत्पादों से लेकर टूथपेस्ट, सौंदर्य प्रसाधन, खाद्य तेल और विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल हैं। दुनिया के कई बड़े ब्रांडों द्वारा ऐसे अनगिनत उत्पाद बनाए जाते हैं।

रॉबिन मैकडॉवेल के साथ काम करने वाले पत्रकारों की टीम ने 24 पाम तेल कंपनियों के 130 से अधिक श्रमिकों का साक्षात्कार लिया। इनमें से कई श्रमिकों ने बताया कि उनके साथ दुर्व्यवहार और शोषण हुआ, धोखा दिया गया, धमकी दी गई और भारी कर्ज चुकाने के लिए अत्यधिक काम करने के लिए मजबूर किया गया। यहां तक कि कई श्रमिकों को उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरन रखा गया। कुछ महिलाओं ने यौन शोषण का भी आरोप लगाया।

रॉबिन मैकडॉवेल ने बताया कि ताड़ के फल का भार उठाने और ढोने के दौरान लगातार झुकने के कारण भी महिलाओं के शरीर पर बुरा असर पड़ा। लेकिन कंपनियों ने इन चीजों की परवाह नहीं की। श्रमिकों पर काम का बोझ अत्यधिक होने के कारण उन्हें अक्सर अपने बच्चों और पूरे परिवार को ताड़ के खेतों में काम के लिए लाना पड़ता है।

रॉबिन मैकडॉवेल ने कहा कि आम उपभोक्ताओं को शायद एहसास भी नहीं होता कि वे ताड़ के तेल से बने जिन उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं, वे जबरन श्रम का परिणाम हैं। लोग विभिन्न बिंदुओं को जोड़कर नहीं देख पाते कि यह क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, ये उत्पाद कहां से आ रहे हैं।

फोटो: मलेशिया और इंडोनेशिया में ताड़ के तेल से उत्पादित सामान दिखाती हुई महिलाएं, जो जबरन मजदूरी की शिकार हैं। एपी के एक फोटोग्राफर द्वारा ली गई इन तस्वीरों को रॉबिन मैकडॉवेल ने जीआईजेसी-21 में साझा किया।

इस सत्र में पैनलिस्टों ने मजदूरों पर कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव पर भी चर्चा की। यह बात निकालकर सामने आई कि कमजोर समुदायों और श्रमिकों पर इस महामारी तथा लॉकडाउन का काफी बुरा असर पड़ा। भारत में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की संवाददाता रोली श्रीवास्तव  ने प्रवासी मजदूरों और मानव तस्करी पर व्यापक रिपोर्टिंग की है। उन्होंने भारत में सख्त लॉकडाउन लागू होने के बाद प्रवासी श्रमिकों पर आए संकट की जानकारी दी। रोली ने बताया कि इस दौरान लाखों लोगों को रोजी-रोटी का नुकसान हुआ और भारत की पूरी परिवहन व्यवस्था ठप हो गई। प्रवासी मजदूर घर और गांवों तक पहुंचने के लिए तरस गए और काफी संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान करीब दस लाख प्रवासी श्रमिकों को रहने और खाने तक के संकट से जूझना पड़ा।

रोली श्रीवास्तव ने कहा कि मजदूरों को पैदल ही घरों की ओर पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। इस दौरान सड़क दुर्घटनाओं में सैकड़ों लोग मारे गए। रेल की पटरियों पर सोए ऐसे प्रवासी मजदूर भी मौत का शिकार हुए जिन्होंने सोचा था कि रेल सेवा बंद है। बड़ी संख्या में श्रमिकों को अपनी मजदूरी से भी वंचित होना पड़ा क्योंकि कोविड-19 के कारण उनके मालिकों की आय भी ठप हो गई थी।  रोली श्रीवास्तव कहती हैं: “हममें से किसी ने भी ऐसे भयावह पलायन की कल्पना नहीं की थी। सरकार द्वारा तालाबंदी की घोषणा के बाद हमने सोचा नहीं था कि ऐसा होगा।“

एनी केली  विश्व में मानवाधिकार हनन पर केंद्रित एक गार्जियन प्रोजेक्ट  की संपादक हैं। उन्होंने कई विषयों पर काम किया है। जैसे: दक्षिण पूर्व एशियाई महिलाओं की मानव तस्करी, कतर विश्वकप के निर्माण स्थलों पर श्रमिक दासता , वस्त्र उद्योग में जबरन श्रम इत्यादि।

एनी केली कहती हैं: “ऐसी जांचपूर्ण रिपोर्टिंग उन लोगों की पीड़ा सामने लाती है, जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया है। हमें उन लोगों की आवाज उठानी चाहिए, जो अक्सर हमारी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और सरकारों द्वारा जानबूझकर छिपा दिए जाते हैं?“

जबरन मजदूरी पर रिपोर्टिंग को पिच कैसे करें?

ऐसे विषयों पर कोई पत्रकार रिपोर्टिंग करना चाहे, तो उसे प्रकाशित करने के लिए संपादक को राजी करने की प्रक्रिया को ‘पिच‘ करना या पिचिंग कहते हैं। एनी केली ने जबरन श्रम स्टोरीज को पिच करने के उपयोगी तरीके बताए:

  • आप जिस विषय पर स्टोरी करना चाहते हैं, उसके साथ आपके पाठकों का क्या रिश्ता है? इस पर गंभीरता से विचार करके कोई सीधा लिंक या कोई रोचक नेरेटिव प्रस्तुत करें। पाठक के साथ तालमेल बिठाने के लिए किसी ऐसी चीज का उल्लेख कर सकते हैं, जिसका लोग प्रतिदिन उपयोग करते हैं।
  • श्रमिकों का शोषण उजागर करने वाली अपनी स्टोरी में ऐसे तत्वों को शामिल करें, जिनसे पता चले कि इसके लिए मानवता को कितनी कीमत चुकानी पड़ रही है।
  • जिन नए और अज्ञात तथ्यों को आप सामने ला रहे हैं, उनकी व्याख्या भी करें।
  • हाशिए के लोगों और वंचित समूहों की आवाज बनें।
  • कोशिश हो कि आपकी न्यूज स्टोरी से सिस्टम में सुधार आए, संबंधित अधिकारियों को किसी प्रकार का परिवर्तन करने के लिए बाध्य होना पड़े, जवाबदेही आए।

जबरन श्रम पर रिपोर्टिंग के तरीके

रॉबिन मैकडॉवेल और रोली श्रीवास्तव ने जबरन मजदूरी पर रिपोर्टिंग के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए:

  • अधिकतम डेटा निकालकर अपनी रिपोर्ट में उनका उपयोग करें। इन विषयों पर संसदीय समितियों की रिपोर्ट, वेब-पोर्टलों पर उपलब्ध डेटा तथा अन्य सभी स्रोतों से जानकारी लेकर उनकी समुचित व्याख्या करें।
  • गैर-लाभकारी संगठनों और हेल्पलाइन सेवा एजेंसियों से भी संपर्क करें।
  • विशेषज्ञों और शिक्षाविदों का साक्षात्कार लेकर अपने विषय के आर्थिक सामाजिक संदर्भों की प्रस्तुति करें।
  • अन्य पत्रकारों के साथ मिलकर काम करें। जबरन श्रम की स्टोरीज व्यापक कवरेज, बड़ी संख्या में स्रोतों और विभिन्न जगहों पर रिपोर्टिंग की मांग करती हैं।
  • प्रारंभ में ही संपादकों से परामर्श करके उनके सुझाव लें। यदि कोई समस्या आती है, तो उन्हें तत्काल बताएं। ऐसी किसी समस्या को न छुपाएं जो प्रकाशन के बाद आ सकती है।
  • स्टोरी प्रकाशित होने के बाद भी अपने स्रोतों के संपर्क में रहें।

पत्रकारों और श्रमिक संघों के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला करने वाले एक फ्रांसीसी सलाहकार चार्ल्स ऑथमैन  जबरन श्रम की रिपोर्टिंग के लिए एक टूलकिट  साझा किया। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के लिए यह टूलकिट बनाया गया है। इसमें जबरन श्रम की स्टोरी को समझने, खोजने, रिपोर्ट करने और उनका फॉलो-अप करने के दिशा-निर्देश शामिल हैं। चार्ल्स ऑथमैन ने कहा कि इस टूलकिट को सभी आकार में फिट होने लायक उपकरण के रूप में डिजाइन किया गया है, ताकि पूरी दुनिया के लिए उपयोगी हो सके।

रॉबिन मैकडॉवेल कहती हैं: ”ऐसे विषयों पर रिपोर्टिंग के लिए आपको लोगों से मिलना तथा फिल्ड में जाना बहुत जरूरी है। हरेक खोजी रिपोर्टर के लिए काम करने का अपना तरीका होता है। कुछ लोग सूचना के अधिकार का भरपूर उपयोग करते हैं। कुछ लोग अन्य स्रोतों पर भरोसा करते हैं। कुछ पत्रकार अविश्वसनीय डेटाबेस से ही काम चला लेते हैं। लेकिन मुझे लगता है कि जब आप श्रमिकों के शोषण, मानव तस्करी, ऋण के बोझ तले दबे होने जैसे विषयों पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, तो आपको जमीन जाना होगा। श्रमिकों तक सीधी पहुंच के बिना ऐसी रिपोर्टिंग करना बहुत मुश्किल है।”

जीआईजेएन की इन्वेस्टिगेटिंग ऑर्गनाइज्ड क्राइम गाइड  में आप इस विषय पर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उसमें मार्था मेंडोजा ने मानव तस्करी पर अध्याय लिखा है। जीआईजेएन संसाधन केंद्र में मानव तस्करी और जबरन श्रम पर कई शोध सामग्री भी हैं। मानव तस्करी और आधुनिक दासता से संबंधित पत्रकारों को Journalismfund.eu द्वारा दिए जाने वाले एशिया और यूरोप में पत्रकारों के लिए अनुदान  को भी देखना चाहिए।

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