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पत्रकार खोजी खबरों की फ़ैक्ट चैकिंग कैसे करें?

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जब आप कोई खोजी खबर करते हैं, तो उसके सभी तथ्यों की पूरी जांच करना जरूरी है। ऐसा करके ही ‘बुलेटप्रूफ‘ स्टोरी बनती है। दुश्मन की गोलियों से बचाव के लिए किसी सैनिक को बुलेटप्रूफ जैकेट की जरूरत होती है। उसी तरह, आपकी खबर को भी आरोप का शिकार होने से बचने के लिए तथ्यों पूरी जांच जरूरी है। एक खोजी पत्रकार को सही तथ्य जुटाना जितना आवश्यक है, उतना ही महत्वपूर्ण अपनी स्टोरी की तथ्य-जांच करना भी है। इस गुणवत्ता नियंत्रण के लिए शुरू से ही एक सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण लेकर चलना सही रणनीति है।

इस आलेख में ‘तीन चेकपॉइंट सिस्टम‘ की जानकारी प्रस्तुत है। इसे हमारे न्यूज रूम ‘मिशन इन्वेस्टिगेट‘  ने वर्ष 2004 में विकसित किया था। यह स्वीडन के राष्ट्रीय सार्वजनिक प्रसारक ‘एसवीटी‘  के तहत खोजी टेलीविजन कार्यक्रम है। विगत वर्षों में ‘मिशन इन्वेस्टिगेट‘ ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित अनगिनत बड़ी खबरें निकाली हैं। इनमें अंतरराष्ट्रीय रिश्वत और संगठित अपराध से लेकर कैथोलिक चर्च और संयुक्त राष्ट्र तक से जुड़ी महत्वपूर्ण खबरें शामिल हैं। इस दौरान हमारी टीम ने खबरों को तथ्यों की गल्तियों से बचाना सीखा है। हमने यह सुनिश्चित करना सीखा है कि हमारी खबरों को प्रकाशन से पहले ही ‘चुनौती‘ मिले, प्रकाशन के बाद नहीं। उम्मीद है, इससे आपको भी त्रुटि-रहित, बुलेटप्रूफ खबरें बनाने की प्रेरणा मिलेगी।

तीन चेकपॉइंट सिस्टम

इमेज: अन्सप्लैश / कैनवा

चेकपॉइंट क्यों? यह तो अनावश्यक रूप से नौकरशाही जैसी चीज लगती है। लेकिन यदि हम तथ्य-जांच की प्रक्रिया को औपचारिक रूप नहीं देंगे, तो इस काम के कुछ जरूरी हिस्से नजरअंदाज हो सकते हैं। यह एक बड़ा जोखिम होगा। चूंकि आपकी खोजपूर्ण खबर का त्रुटिरहित होना एक बड़ी जरूरत है, इसलिए इस तथ्य-जांच में आपकी साख और प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। इसे देखते हुए आवश्यक सावधानी बरतना ही उचित है। संभव है कि इसमें आपका कुछ अतिरिक्त समय लगेगा। आपकी टीम को कुछ घंटे बैठक करनी होगी, तथ्य-जांच में एक दिन लग सकता है। लेकिन किसी न्यूजरूम, खोजी रिपोर्टर या फ्रीलांसर को इतना समय बचाने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। आपकी खबर प्रकाशित होने के बाद उसके त्रुटिरहित होने के कारण आपको मन की बड़ी शांति मिलेगी। यह आपके लिए एक बड़ा इनाम होगा।

पहला चेकपॉइंट : प्रारंभिक मीटिंग

किसी खोजपूर्ण खबर का विषय फाइनल होने के बाद रिपोर्टर को उस पर पूर्व-शोध करना चाहिए। इसके बाद रिपोर्टर के साथ प्रारंभिक मीटिंग होगी। इसमें यह तय किया जाता है कि यह स्टोरी आइडिया काम करने लायक है या नहीं। इस मीटिंग में रिपोर्टर अपने पूर्व-शोध के आधार पर हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार रहे। जैसे, क्या उस स्टोरी आइडिया की केंद्रीय परिकल्पना सही है? क्या इसके आधार पर जांच होनी चाहिए? उस परिकल्पना के खिलाफ क्या चीजें हैं?

आम तौर पर रिपोर्टर किसी मामले के कमजोर पहलुओं की उपेक्षा करते हैं। लेकिन मीटिंग में आपको उन कमजोर पहलुओं पर बात करनी चाहिए। इससे स्टोरी आइडिया को मजबूती मिलेगी। किसी स्टोरी आइडिया या परिकल्पना को विपक्षी वकील (डेविल्स एडवोकेट) की तरह चुनौती देनी चाहिए। यह काम संपादक या कोई अन्य रिपोर्टर कर सकता है। विपक्षी वकील की भूमिका निभाने वाला यह व्यक्ति शुरू से अंत तक गुणवत्ता नियंत्रण में प्रमुख भूमिका निभाएगा। इस प्रकार की आलोचनात्मक बहस के दौरान मीटिंग में थोड़ा तनाव हो सकता है। लेकिन अंततः, हर कोई समझता है कि ऐसी बहस अच्छे इरादों के साथ की गई है।

मीटिंग की चेकलिस्ट में ‘जवाबदेही‘ को भी एक आवश्यक चीज समझना जरूरी है। खबर के लिए तथ्य जुटाने के दौरान जांच के ‘पात्र‘ (व्यक्ति या सब्जेक्ट) से कैसे और कब संपर्क करना है, इसकी भी योजना बना लें। हमारा सामान्य नियम यह है कि हम इसे जल्द-से-जल्द करना चाहते हैं। इसका एक कारण यह सुनिश्चित करना है कि हमारे पास वाकई एक स्टोरी है। दूसरी बात यह कि ऐसा करने से अधिक निष्पक्षता की गुंजाइश होती है। बेशक, कुछ अपवाद भी हैं। जैसे, जिन देशों में दमनकारी शासन हो, या जहां आपको स्टोरी से जुड़े ‘पात्र‘ से संपर्क में कुछ जोखिम हो, वहां उससे संपर्क करने का काम अंतिम चरण में पहुंचने पर कर सकते हैं। ऐसे मामलों में आप स्टोरी के प्रकाशन से ठीक पहले तक प्रतीक्षा करने के बाद संबंधित ‘पात्र‘ का पक्ष लें। इससे उसे कोई प्रतिकूल कदम उठाने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल पाएगा।

दूसरा चेकपॉइंट : मिडपॉइंट मीटिंग

जब आपकी स्टोरी का पहला मसौदा तैयार हो जाए, तो एक ‘मिडपॉइंट मीटिंग‘ करना उपयोगी होगा। इस बैठक का उद्देश्य गुणवत्ता के मुद्दों पर चर्चा करना है। इससे आपको अपनी स्टोरी में महत्वपूर्ण बदलाव के लिए पर्याप्त समय और मार्गदर्शन मिल सकेगा।

इस मीटिंग में इन बिंदुओं पर बात करें:

  • निष्कर्ष: क्या परिकल्पना सही साबित हुई है, या उसमें कोई बदलाव करना है? क्या निष्कर्षों पर सवाल उठ सकते हैं या उन्हें खारिज किया जा सकता है? क्या अन्य सभी स्पष्टीकरणों को अलग रखा जा सकता है?
  • जवाबदेही: हमें जितना निष्पक्ष होना चाहिए, क्या हम उतने निष्पक्ष हैं? क्या कोई ऐसी हानिकारक चीजें हैं, जिन्हें कम किया जा सकता है?
  • बड़ी तस्वीर: क्या हम उस मामले की पूरी तस्वीर देख रहे हैं, या कोई पहलू छूट रहा है। या कहीं कुछ गलत तो नहीं? क्या हम चीजों को अत्यधिक काले या अत्यधिक सफेद के रूप में देखने की गल्ती कर रहे हैं?

इन चीजों पर विचार करने से आप एक अच्छी खोजपूर्ण स्टोरी की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। सच क्या है, इस पर अपना कोई निर्णय सुनाने के बजाय आप सही तथ्यों की रिपोर्ट करें। कई बार पत्रकार अक्सर अपनी जानकारी के पक्ष में अपने विचार के तौर पर पुष्टि करते हैं। इससे उनका पूर्वाग्रह झलकता है। इस दौरान वे कई विरोधाभासी तथ्यों की अनदेखी करते हैं। ऐसे निष्कर्ष में प्रासंगिक तथ्यों की अनुपस्थिति दिखती है और इस जांच को भ्रामक समझा जा सकता है।

अपनी खबर के लिए आप किन तथ्यों का चयन कर रहे हैं, इसकी पूरी जानकारी केवल रिपोर्टर के पास होती है। इसलिए, खबर लिखने की प्रक्रिया में निम्नलिखित प्रश्नों का ईमानदार उत्तर जरूरी है-

  • क्या कुछ अन्य तथ्य भी हैं, जिनसे इस खबर की सामान्य तस्वीर बदल जाएगी?
  • यदि पाठकों को मालूम हो कि खबर में हमने क्या छोड़ा है, तो क्या उन्हें निराशा होगी?
  • क्या हम विश्वसनीयता खोए बिना यह साबित कर सकते हैं कि खबर के लिए तथ्यों का सही चयन किया है?

उक्त बिंदुओं के अलावा अन्य दो पहलुओं पर भी जांच करें:

  • स्रोत: क्या जिन स्रोतों से आपको तथ्य मिले हैं, वे भरोसेमंद हैं? क्या हम प्रासंगिक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछ रहे हैं? क्या हमने उनकी पृष्ठभूमि की आवश्यक जांच कर ली है?
  • विशेषज्ञ:  क्या वाकई वे उस विषय के प्रतिनिधि हैं? जिस विशेषज्ञ पर हम भरोसा कर रहे हैं, क्या वह भरोसेमंद है?
तीसरा चेकपॉइंट: फैक्ट-चेकिंग

आपको अपनी खबर की पंक्ति-दर-पंक्ति फैक्ट-चेकिंग करना जरूरी है। लेकिन इससे पहले अपनी जांच के ‘पात्र‘ (व्यक्ति या सब्जेक्ट) का ‘पक्ष‘ आना जरूरी है। उस पर लगे आरोपों के संबंध में उसका जवाब क्या है? ध्यान रहे कि आप जिस मामले की जांच कर रहे हैं, उसकी सबसे अधिक जानकारी उसी व्यक्ति के पास है। यहां तक कि वह उस मामले में रिपोर्टर से भी अधिक जानता है।

इसलिए, आप भले ही कोई नकारात्मक खबर लिख रहे हों, लेकिन आपमें और जांच के ‘पात्र‘ में एक बात समान हो सकती है। यह कि आप दोनों चाहते हैं कि तथ्य सही प्रकाशित हों। संभव है कि जब आप उनसे संपर्क करते हैं, तो वह व्यक्ति आपको साक्षात्कार देने से मना कर दे। इसके बावजूद उसके पास तथ्यों पर प्रतिक्रिया देने का यह एक अच्छा अवसर होता है।

आप अपनी जांच के पात्र को आरोपों के बारे में विस्तृत जानकारी दें। अपनी तरफ से जितना संभव हो, उतना खुलापन दिखाना चाहिए। कुछ मामलों में उन्हें खबर में उपयोग किए गए शब्दों के बारे में बताना भी आवश्यक हो। लेकिन ऐसा करते वक्त ऐसा कोई भी विवरण न दें, जिससे आपके ‘स्रोत‘ की पहचान उजागर होती हो। अपने ‘स्रोत‘ का विवरण छुपाकर आप आरोपों के बारे में ‘पात्र‘ से जितना विस्तार से बात करेंगे, आपको उतनी ही भरोसेमंद जानकारी मिलेगी।

इस तरह देखें, तो आपकी खबर का ‘पात्र‘ ही उस मामले का ‘असली विशेषज्ञ‘ है। इसलिए उसका पक्ष लेने के दौरान आप प्रकारांतर से अपने सभी तथ्यों की जांच कर रहे होते हैं। इसका अन्य लाभ भी है। आपको उसके स्पष्टीकरण की जांच करने का समय मिलेगा। खबर में जो पहलू छूट गए हों, उन्हें भरने के लिए नई जानकारी प्राप्त होगी। किसी भी खबर के प्रकाशन से पहले ही प्रतिक्रिया लेेना निश्चित रूप से बेहतर है, बजाय कि बाद में।

कई मामलों में ऐसी पारदर्शी पद्धति का उपयोग संभव नहीं होगा। जैसे, हिंसक समूहों या सत्तावादी सरकारों के मामले में। वैसे मामलों में एक अलग तरीका अपनाना होगा। उसकी जानकारी जीआईजेएन के आलेख ‘टिप्स फॉर द नो सरप्राइज लेटर‘  में दी गई है। हालांकि, हिंसक या खतरनाक लोगों के मामले में भी आपको उतना ही सटीक और निष्पक्ष होना जरूरी है। बल्कि वैसे मामलों में तो यह और भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

‘पंक्ति-दर-पंक्ति जांच‘ की प्रक्रिया भी महतवपूर्ण है।

इसका सिद्धांत बेहद सरल है। आपकी न्यूज स्टोरी की प्रत्येक सत्यापन योग्य जानकारी के संबंध में किसी स्रोत से पता लगाना चाहिए। प्रकाशित करने से पहले इस तथ्य-जांच को पर्याप्त समय लेकर करना चाहिए। विपक्षी वकील (डेविल्स एडवोकेट) की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति को इस प्रक्रिया में सबसे आगे रहना चाहिए।

इस प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए सारे शोध दस्तावेज आसानी से उपलब्ध होने चाहिए। प्रत्येक स्क्रिप्ट के पृष्ठ या अनुभाग के अंत में लिंक और फुटनोट का उल्लेख हो। तब संबंधित दस्तावेजों के आधार पर पुनः जांच करके तथ्यों की पुष्टि करना आसान होगा।

फैक्ट-चेकिंग पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता होती है। लेकिन लंबे समय तक पूरी जांच करना कठिन हो सकता है। इसलिए, केंद्रीय और ज्यादा जटिल मुद्दों से शुरुआत करना बुद्धिमानी है। हर खबर में हमेशा कुछ ऐसा होता है, जिस पर सवाल उठाया जा सकता है। इसलिए, आपको अन्य विवरण की जांच की ओर जाने से पहले आवश्यक चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

यह पूछना न भूलें – क्या सभी निष्कर्षों का पर्याप्त आधार मौजूद है? क्या कुछ बिंदुओं को अधिक धारदार करने या नरम करने की आवश्यकता है।

यदि न्यूज स्टोरी जटिल हो, तो तथ्य-जांच शुरू होने से पहले ही रिपोर्टर द्वारा पूरी शोध सामग्री सौंपी जानी चाहिए। उसे अपने निष्कर्ष तक पहुंचने के तरीके के संबंध में स्पष्टीकरण भी देना चाहिए। कई मामलों में ऐसा करने से ज्यादा आसान उसे कहना होता है। उदाहरण के लिए, आपके निष्कर्ष जटिल शोध दस्तावेजों पर आधारित हो सकते हैं, जैसे बड़े डेटासेट या वित्तीय रिपोर्ट के आंकड़े।

ऐसे मामलों में किसी आमंत्रित विशेषज्ञ के साथ एक प्रारंभिक, पंक्ति-दर-पंक्ति जांच सत्र कर सकते हैं। यदि आवश्यक हो, तो तथ्यों की दोबारा जांच करने या कार्यप्रणाली की समीक्षा करने के लिए बाहरी निशुल्क सहायता ले सकते हैं।

फोटो: अनस्प्लैश

अन्य प्रश्नों का उत्तर भी जरूरी:

  • क्या न्यूज स्टोरी निष्पक्ष है? क्या इससे उठने वाले सवालों का जवाब इसमें मिलता है?
  • क्या आपके पास सभी आरोपों का समुचित जवाब है? साक्षात्कार की दुबारा पूरी जांच करके देख लें कि हर बात वही लिखी गई है, जो कही गई हो।
  • क्या जांच के ‘पात्र‘ के खिलाफ सभी नकारात्मक विवरण आवश्यक हैं? क्या कोई अनावश्यक विवरण हटाकर उसे कम नकारात्मक बनाने की गुंजाइश है?

पंक्ति-दर-पंक्ति संपादन करते समय, सभी तथ्यों की जाँच करना आवश्यक है। यहाँ तक कि जो चीजें हानिरहित लगती हों, उनकी भी फिर से जांच कर लें। वरना आपकी जरा-सी चूक का फायदा ऐसे लोग उठाएंगे, जो आपको बदनाम करना चाहते हैं। ‘मुझे पता है कि यह सच है‘ – ऐसा कहना किसी अपवाद को सही नहीं ठहराता है।

अंत में, आप सभी नाम, शीर्षक, तिथियां, आंकड़े और अन्य चीजों को फिर से जांचें जिन्हें सत्यापित किया जा सकता है। इसमें उद्धरण शामिल हैं। यदि कोई साक्षात्कार देने वाला गलत है, तो आपको इसके बारे में पता होना चाहिए।

तथ्य-जांच के दस तरीके

  1. मूल दस्तावेजों का उपयोग करें: जब मूल दस्तावेज पाना संभव हो, तो अन्य कुछ भी स्वीकार न करें।
  2. किसी को उद्धृत या ‘कोट‘ करने से पहले जांच लें: अन्य मीडिया संगठनों द्वारा प्रकाशित तथ्यों पर भरोसा न करें, चाहे वे कितने भी विश्वसनीय संस्थान क्यों न हों। अपनी जांच पर ही भरोसा करें।
  3. संख्याओं के प्रति सटीक रहें: अतिशयोक्ति से दूर रहें। यदि 12 लोग प्रभावित हैं, तो आप ‘कई‘ लोग या ‘काफी‘ लोग जैसा अस्पष्ट अनुमान लिखने के बजाय वास्तविक संख्या 12 लिखें। यह एक ‘तथ्य‘ है, अनुमान नहीं।
  4. पीड़ितों से एक दूरी अवश्य बनाए रखें: आप पीड़ितों पर चाहे जितना भी विश्वास करते हों, लेकिन सत्यापन के बगैर उनकी किसी बात को ‘तथ्य‘ के रूप में न लें। उनकी बातों की प्रस्तुति के तरीके में भी सावधानी बरतें। जैसे- अगर आप लिखते हैं, कि ‘उसे कुछ भी याद नहीं है‘ तो यह आपकी ओर से कही गई बात होगी। इसका सत्यापन करना मुश्किल होगा। लेकिन अगर आप लिखते हैं कि ‘वह कहता है कि उसे कुछ भी याद नहीं है‘ तो यह उसका कथन है। यह एक तथ्य है। इन दोनों पंक्तियों के फर्क को समझें।
  5. ऐसे निर्णय सुनाने से बचें, जिसे साबित करना मुश्किल हो: किसी भी मामले में अपनी तरफ से ज्यादा निष्कर्ष न निकालें। ऐसा करना अनावश्यक समस्याएं पैदा कर सकता है। जैसे, आप लिखते हैं कि ‘उद्योगपति ने सुरक्षा नियमों की अनदेखी की‘, तो आपको यह साबित करना होगा कि उसने जानबूझकर ऐसा किया। लेकिन, यदि आप लिखते हैं कि ‘उद्योगपति ने सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया‘, तो आप सिर्फ एक तथ्य बता रहे हैं। आपको यह साबित करने की आवश्यकता नहीं होगी कि उसने जानबूझकर ऐसा किया।
  6. अपनी न्यूज स्टोरी की कमियों पर पारदर्शी रहें: किसी भी न्यूज स्टोरी की जांच के दौरान आपको सारे तथ्यों का मिलना जरूरी नहीं। इसलिए आप जो नहीं जानते हैं उसके बारे में पूरी तरह पारदर्शी रहें। पाठकों को साफ बता दें कि इन बिंदुओं पर समुचित जानकारी नहीं मिल सकी है। पारदर्शिता आपकी विश्वसनीयता को मजबूत करती है। जिसे आप साबित नहीं कर सकते, वैसी चीजों से बचें।
  7. लोगों की पहचान उजागर करने वाले विवरणों को हटा दें: अपनी न्यूज स्टोरी के तथ्यों, ग्राफिक्स, फोटो और वीडियो सामग्री से लोगों की अनावश्यक निजी जानकारी को हटा देना जाना चाहिए। दस्तावेजों पर लोगों के नाम और अन्य विवरण, लाइसेंस प्लेट, स्ट्रीट नंबर और लेटरबॉक्स पर नाम, मोबाइल नंबर इत्यादि भी हटा दें। इन्हें तभी उजागर करें, जब ऐसा करना न्यूज स्टोरी के लिए जरूरी हो।
  8. फ्रेम-बाय-फ्रेम विश्लेषण करें:  तस्वीर असली है या नकली? फैक्ट-चेकिंग में फोटो को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, क्योंकि वे स्क्रिप्ट या टेक्स्ट में नहीं होते हैं। हालाँकि, गूगल इमेज, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म में अब फोटो की जांच करना आसान है। इमेज रिवर्स सर्च और अन्य टूल का उपयोग करके मूल फोटो की जांच कर सकते हैं। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए, जीआइजेएन का संसाधन देखें: फोटो को सत्यापित करने के चार त्वरित तरीके
  9. आत्मनिरीक्षण के साथ समाप्त करें: क्या अब भी किसी को कोई बात सूझ रही है? क्या अब भी कोई संदेह हैं? कृपया बोलें, क्योंकि यह अंतिम मौका है!
  10. सुनिश्चित करें कि तथ्य-जांच में बताए गए परिवर्तन लागू कर दिए गए हैं: स्क्रिप्ट और टेक्स्ट में किए गए सभी परिवर्तन, जैसे नामों की सही वर्तनी के अनुसार ग्राफिक्स और प्रकाशन के अन्य हिस्सों में भी संशोधन होना चाहिए। इसलिए, इसे सुनिश्चित करना आवश्यक है।

इस प्रक्रिया को अपनाने से आपकी न्यूज स्टोरी की तमाम गलतियों का पता चल जाएगा। इससे खबर की विश्वसनीयता बनेगी। इसमें लापरवाही करने से एक खोजी रिपोर्टर के रूप में आपकी छवि को नुकसान होगा। सही जांच के अभाव में आपकी खबर में जांच के ‘पात्र‘ को भी अनुचित नुकसान हो सकता है।

इस तरह पंक्ति-दर-पंक्ति संपादन का आपको तत्काल इनाम मिलेगा। आप तथ्यों की त्रुटियों से चिंतित होकर आधी रात को उठकर परेशान नहीं होंगे। इसके बजाय, आप इस भरोसे के साथ चैन की नींद ले सकते हैं कि जिस हद तक तथ्य-जांच करना संभव है, उतना आपने कर लिया है।


निल्स हैनसन  एक पुरस्कार विजेता स्वतंत्र खोजी संपादक हैं। वह 14 साल (2018 तक) ‘मिशन इन्वेस्टिगेशन‘ के कार्यकारी निर्माता रहे। उनके पास 30 से अधिक वर्षों का अनुभव है। उन्होंने लगभग 500 जांचों को कवर किया है। उनके नेतृत्व के विगत दो वर्षों में संचालित कार्यक्रम ने दस अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। उनकी पुस्तक ‘हैंडबुक ऑन इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म‘ को स्वीडन में पढ़ना बेहद जरूरी समझा जाता है।

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