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वन्यजीव तस्करी पर रिपोर्टिंग: जीआईजेएन की नई गाइड

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वन्य जीवों और पौधों की अवैध तस्करी से दुनिया भर में जैव विविधता को नुकसान हो रहा है। इसके कारण कई बीमारियां भी फैल रही हैं। यह एक अंतरराष्ट्रीय चुनौती है। दुनिया के हर देश के पत्रकारों के लिए इस पर खोजी पत्रकारिता के व्यापक अवसर हैं।

जीआईजेएन ने अवैध वन्यजीव तस्करी (आईडब्ल्यूटी) पर गहन रिपोर्टिंग को बढ़ावा देने के लिए एक नई गाइड प्रकाशित की है। यह विषय काफी महत्वपूर्ण है। वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में जानवरों और पौधों की दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है। जानवरों की तस्करी के कारण ‘जूनोटिक रोग‘ के प्रसार का खतरा भी बढ़ रहा है। यह रोग जानवरों और लोगों के बीच फैलने वाले कीटाणुओं के कारण होता है।

वन्यजीव तस्करी के पीछे भ्रष्टाचार और आपराधिक नेटवर्क की बड़ी भूमिका है। लेकिन इसके अन्य पहलू भी हैं। जैसे, ‘गरीबी’ के कारण इस अवैध धंधे में आपूर्ति बढ़ती है। जबकि कई प्रकार के ‘झूठ‘ के कारण ‘मांग‘ बढ़ती है।

इस अवैध व्यापार के कई रूप हैं। जैसे, ‘चिली में कैक्टस की तस्करी‘, ‘ब्राजील में गाने वाले पक्षियों का अवैध व्यापार‘, , ‘मेडागास्कर में गिरगिट की तस्करी‘ , ‘पाकिस्तान में बाज का अवैध व्यापार‘, ‘एशिया से पालतू मछली की तस्करी‘। वन्यजीव तस्करी संबंधी खबरें अक्सर हाथी के दांत जैसे बड़े मामलों तक केंद्रित रहती हैं। लेकिन खोजी पत्रकारों को कम ज्ञात प्रजातियों के व्यापार पर भी ध्यान देना चाहिए।

यहां जीआईजेएन की नई गाइड के मुख्य अंश दिए गए हैं। इसमें शिकारियों पर स्रोत खोजने और रिपोर्ट करने, जांच के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने, दस्तावेजों का पता लगाने, वन्यजीव तस्करी को नियंत्रित करने वाले कानूनों और डेटा पर जानकारी पाने संबंधी अध्याय शामिल हैं। हमने एक स्प्रेडशीट भी तैयार की है। इसमें अवैध वन्यजीव तस्करी, इस क्षेत्र में काम करने वाले प्रमुख समूहों, जांच के लिए प्रासंगिक डेटाबेस और खोजी पत्रकारिता के अच्छे उदाहरण संकलित हैं।

रिपोर्टिंग की शुरुआत कैसे करें

अवैध वन्यजीव व्यापार का जाल काफी व्यापक और जटिल हैं। इसमें काफी लोग अपराधी या संरक्षक के रूप में जुड़े हैं। इस विषय पर खोजी पत्रकारिता की शुरुआत के लिए आपको इस नेटवर्क के बारे में समझना होगा।

सादिक नकवी  भारत के एक स्वतंत्र खोजी पत्रकार हैं। उन्होंने गैंडों के अवैध शिकार पर रिपोर्टिंग की है। उन्होंने कहा: “ऐसे मामलों में सही जानकारी के लिए स्थानीय लोगों से संपर्क करना जरूरी है। आम लोगों से बात करके समझ में आया कि ऐसे अवैध शिकार में कोई रहस्य नहीं है। फील्ड में जाने पर आपको पूरी जानकारी मिल सकती है।”

आपके स्रोत कौन हैं?

  • स्थानीय नागरिक
  • वन संरक्षण अधिकारी
  • कानून प्रवर्तन अधिकारी
  • स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय एनजीओ, जो इन विषयों पर काम करते हैं
  • गैर सरकारी संगठनों द्वारा नियुक्त निजी जांचकर्ता
  • वैज्ञानिक शोधकर्ता
  • व्यापार और परिवहन से जुड़े सरकारी अधिकारी
  • वन्यजीव के कानूनी व्यापारी
  • सभी स्तरों पर परिवहन कर्मचारी
  • अवैध वन्यजीव व्यापार के आरोपी या सजाप्राप्त लोग
  • आपूर्ति श्रृंखला में विभिन्न स्तरों के विक्रेता
  • उपभोक्ता

अवैध वन्यजीव व्यापार के मामले में गिरफ्तारी और अदालती मामलों से संबंधित समाचार पढ़ने से आपको उपयोगी जानकारी मिलेगी। इससे आपको अच्छे स्टोरी आइडिया भी मिलेंगे।

प्रारंभिक जांच कैसे करें?

रेखांकन: जीआईजेएन के लिए मार्सेल लूव

अवैध वन्यजीव तस्करी हर एक देश और हर उत्पाद के अनुसार अलग-अलग किस्म की होती है। खबर के अनुसंधान के लिए जांच के कुछ सामान्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • जिन प्राणियों और पौधों की तस्करी हो रही है, उनकी विशेषताएं क्या हैं?
  • किस उपयोग के लिए इनकी खरीद-बिक्री हो रही है?
  • किन स्थानों पर ऐसा अवैध व्यापार हो रहा है?
  • किस तरह के अपराधी इसमें शामिल हैं?
  • इस धंधे का अर्थशास्त्र क्या है? कितना धन शामिल होने का अनुमान है?
  • तस्करी की तकनीक क्या है? ध्यान रहे कि ऐसे मामलों में चालाक रणनीति अपनाई जाती है और यह तेजी से बदल सकती है।
  • परिवहन के तरीके और प्रमुख मार्ग।
  • आपूर्ति श्रृंखला – शिकारी, मध्यवर्ती खरीदार, अंतिम उपभोक्ता।
  • भ्रष्टाचार की सबसे अधिक संभावना किस बिंदु पर है?
  • कानून प्रवर्तन एजेंसियां कौन-सी हैं? उनके पास क्या अधिकार क्षेत्र हैं? उनके पास कैसे संसाधन हैं?
  • इन मामलों पर राष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय समझौते क्या हैं?

खबर के अनुसंधान के लिए सोशल मीडिया का उपयोग

वन्यजीव तस्करी के धंधे में अब सोशल मीडिया का भी दुरुपयोग होता है। इसलिए सोशल मीडिया पर नजर रखकर आप ऐसे मामलों से जुड़े स्टोरी आइडिया, संदिग्ध लोगों के नाम और स्रोत के साथ ही तस्वीरें भी हासिल कर सकते हैं।

जिस तरह अवैध हथियार के धंधे में पिस्तौल और बम इत्यादि के लिए कोडवर्ड का उपयोग होता है, वैसा वन्यजीव तस्करी में भी है। आप पता लगाएं कि इस धंधे में किन गोपनीय शब्दों का प्रयोग होता है। जैसे, कुछ जगहों पर हाथी दांत कुछ जगहों पर ‘पीला सामान‘, ‘सफेद प्लास्टिक‘ या ‘जेली‘ कहा जाता है। जीआईजेएन ने इस पर विशेषज्ञों से बात की। उनका सुझाव है:

  • जिन प्राणियों अथवा पौधों की जांच कर रहे हैं, उनके ‘कोडवर्ड‘ का पता लगाएं।
  • इंटरनेट सर्च में लेन-देन के शब्दों का उपयोग करें। जैसे- खरीदना, ऑर्डर करना, बेचना आदि।
  • ध्यान से सोचें कि किन प्लेटफॉर्म्स पर आपको ऐसी जानकारी मिल सकती है।
  • सोशल मीडिया के जरिए अगर ऐसे लोगों से जुड़ते हों, तो अपनी पहचान गोपनीय रखें।

अवैध जीव व्यापार को बढ़ावा देने में सोशल मीडिया के दुरुपयोग से संबंधित निम्नलिखित दो उल्लेखनीय स्टोरीज से आपको महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती है: दुबई में इंस्टाग्राम के सेलेब्रिटीज किस तरह अवैध जीव व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं (बेलिंगकैट डॉट कॉम में फोक पोस्तमा की रिपोर्ट)। पाकिस्तान में प्रवासी सारस पक्षियों को इंटरनेट द्वारा खतरे में डाला जा रहा है (पार्लियामेंट टाइम्स में रफीउल्लाह मंडोखाइल की रिपोर्ट)।

‘कैस्केड‘ (Cascade) एक इंटरनेट-स्क्रैपिंग टूल है। ऑनलाइन अवैध वन्यजीव तस्करी का पता लगाने के लिए यह काफी अच्छा उपकरण है। इसे ‘ग्लोबल इनिशिएटिव अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम‘ (जीआई-टीओसी) द्वारा विकसित किया गया है। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंचने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। यह कई भाषाओं में उपलब्ध है। इसमें दो प्रमुख प्रजातियों (अफ्रीकी ग्रे तोते और पैंगोलिन) से जुड़ी कुछ जानकारी लगातार अपलोड की जाती हैं। लेकिन कई डेटा वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं। अधिक जानकारी के लिए इसकी टीम से संपर्क करें।

एक अच्छी बात यह है कि अधिकांश प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों ने इस अवैध कारोबार को समाप्त करने में सहयोग का संकल्प लिया है। इसके लिए ये कंपनियां ‘ऑनलाइन वन्यजीव तस्करी उन्मूलन गठबंधन‘ में शामिल भी हुई हैं। लेकिन इस दिशा में उनके द्वारा वास्तव में क्या किया जा रहा है, इसकी समुचित जानकारी नहीं मिल पाती है।

अवैध व्यापार के स्रोत का पता लगाना

रेखांकन: जीआईजेएन के लिए मार्सेल लूव

दुर्लभ और लुप्तप्राय जानवरों को पकड़ने और मारने वालों के संबंध में फील्ड रिपोर्टिंग करना जोखिम भरा है। दुर्लभ पौधों को इकट्ठा करके अवैध कारोबार करने वाले रैकेट पर फील्ड रिपोर्ट करना भी खतरनाक हो सकता है। वर्ष 2021 की शुरुआत में बुर्किना फासो में अवैध शिकार पर एक वृत्तचित्र का फिल्मांकन कर रहे दो स्पेनिश पत्रकारों की हत्या कर दी गई थी। इसलिए ऐसे मामलों में सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। ऐसी जानकारियों और फील्ड रिपोर्टिंग के लिए वन्यजीव संरक्षकों और कानूनी अधिकारियों की मदद लेना बेहतर है। उनसे आपको ऐसे मामलों की मौलिक समझ और कुछ ग्राफिक या चित्र मिल सकते हैं।

फील्ड में जाकर निचले स्तर पर जांच करें। पता चल सकता है कि अवैध शिकार कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है। अवैध कारोबार के अगले पायदान पर कौन लोग शामिल हैं, इसका सुराग भी मिल सकता है।

अवैध शिकारियों पर कुछ रिपोर्ट देखें:  इंडोनेशिया के एक बहेलिये का कठिन जीवन (मुस्तफा सिललाही की रिपोर्ट) फ्लोरिडा में उड़ने वाली गिलहरी की तस्करी (डीना फाइन मैरोन की रिपोर्ट), गधा-चोरों ने वन्यजीव तस्करी मार्ग का लाभ उठाया (ऑस्कर नकाला की रिपोर्ट)।

कैद में रखे गए अवैध शिकारियों और तस्करों से साक्षात्कार लेने का अवसर प्रयास करें। इनसे आपको काफी स्टोरी आइडिया मिल सकता है। ट्रैफिक (TRAFFIC) की रिपोर्ट देखें: ‘कैदियों से मिली जानकारी के आधार पर दक्षिण अफ्रीका में अवैध वन्यजीव तस्करी की आपूर्ति श्रृंखला का आकलन’

तस्करी के रास्तों पर रखें नजर

‘अर्थ लीग इंटरनेशनल‘ एक एनजीओ है। यह वन्यजीव अपराधों के खिलाफ ‘वाइल्ड लीक्स‘ नामक व्हिसल ब्लोअर अभियान चलाता है। इससे जुड़े एंड्रिया क्रॉस्टा कहते हैं- “हम जानते हैं कि अवैध शिकार की शुरुआत में क्या होता है। इस आपूर्ति श्रृंखला के अंत में क्या होता है, यह भी मालूम है। लेकिन बीच के स्तरों के बारे में बहुत कम जानकारी मिल पाती है।“

अवैध वन्यजीव तस्करी को ‘संगठित अपराध‘ कहा जाता है। लेकिन ‘वाइल्ड लाइफ जस्टिस कमीशन‘ नामक एनजीओ के जांच प्रमुख ‘स्टीफन कारमोडी‘ के अनुसार यह ‘असंगठित अपराध‘ है।

तस्करों को बेनकाब करने के लिए अपनी पहचान छुपाकर (अंडर कवर) जांच की जाती है। ऐसी जांच मुख्यतः कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा की जाती है। इन मामलों के विशेषज्ञ कुछ एनजीओ के शोधकर्ता भी ऐसा करते हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए कुछ मानक संचालन नियम और प्रक्रिया है। अगर कोई पत्रकार ऐसा करना चाहे तो उस प्रक्रिया को समझना और अत्यधिक सावधानी बरतना जरूरी है।

गैंडों के सींग के अवैध कारोबार पर ‘जूलियन राडेमेयर‘ की यह चर्चित पुस्तक है। उन्होंने कहा- “अंडर कवर जांच करना भी उपयोगी है। लेकिन इसे अंतिम उपाय के बतौर उपयोग करना चाहिए। ऐसा तभी करें, जब अन्य तरीकों से आपको पर्याप्त जानकारी नहीं मिल पाई हो।“

ऐसे कारोबार के विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार और डेटा पर आधारित रिपोर्टिंग में कम जोखिम होता है। लेकिन ऐसे तरीकों से भी आप महत्वपूर्ण स्टोरीज कर सकते हैं। यहां कुछ उदाहरण देखें: चीन के परंपरागत औषधि उद्योग के लिए अफ्रीकन पैंगोलिन्स का बढ़ता कारोबार (यूएस एनजीओ ‘सी फोर एडीएस‘ की रिपोर्ट) हाथी मूल्य निर्धारण घोटाला  (कार्ल अम्मान की रिपोर्ट) कैमरून में पैंगोलिन विलुप्त होने के कगार पर हैं  (अभिजीत मोहंती की रिपोर्ट)

ट्रैफिक (TRAFFIC) के इस संक्षिप्त विवरण  में इस अवैध कारोबार के तरीकों तथा फर्जी दस्तावेजों के उपयोग की अच्छी जानकारी मिलती है।

जब्ती के रिकॉर्ड देखें

कानूनी एजेंसियों से आपको कई प्रकार के जब्ती रिकॉर्ड मिल सकते हैं। इनमें आपको कई उपयोगी सुराग और सबूत मिल जाएंगे। ट्रैफिक (TRAFFIC) का एक उपकरण है: ‘द वाइल्ड लाइफ ट्रेड पोर्टल‘। यह एक इंट्रेक्टिव टूल है। इसमें वन्यजीवों की जब्ती और घटनाओं का डेटा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है। यह पोर्टल देखने योग्य है, लेकिन इसके लिए अनुरोध करना पड़ता है। इसमें डेटा और परिणाम एक सूची के रूप में प्रदर्शित होते हैं। साथ ही इन्हें एक डैशबोर्ड प्रारूप में भी प्रदर्शित किया जाता है। किसी विशिष्ट घटना के बारे में अधिक गहन जानकारी भी मिल सकती है, जैसे प्रजाति, वस्तुएँ, स्थान इत्यादि।

‘वाइल्ड लाइफ सीजर डेटाबेस‘ भी एक अच्छा स्रोत है। इसका रखरखाव ‘सी फोर एडीएस‘ नामक एनजीओ द्वारा किया जाता है। यह वाशिंगटन, डीसी में स्थित है। इसमें वर्ष 2009 के बाद से अब तक हाथीदांत, गैंडे के सींग, पैंगोलिन बरामदगी के 5,000 से अधिक रिकॉर्ड हैं। साथ ही, वर्ष 2014 से बाघ और तेंदुए की बरामदगी संबंधी डेटा भी शामिल हैं। यहां इसकी पूरी जानकारी पढ़ सकते हैं। लेकिन डेटा तक पहुंचने के लिए आपको अनुरोध करना होगा

‘द इनवॉयरनमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (ईआईए) ने यूके में वन्यजीवों की बरामदगी और मुकदमों का डेटा सार्वजनिक रूप से पोस्ट किया है। इसमें आपको हाथियों, गैंडों, पैंगोलिन, बाघों, तेंदुओं, हिम तेंदुओं, बादल वाले तेंदुए, टोटोआबा मछली और लकड़ी की विभिन्न प्रजातियों से जुड़ी काफी जानकारी मिल सकती है।

अधिकांश देशों की सरकारें ऐसे जब्ती रिकॉर्ड को डिजिटल या कागजी दस्तावेजों में सुरक्षित रखती हैं।

जब्ती संबंधी डेटा का उपयोग करके आप अच्छी रिपोर्ट कर सकते हैं। ‘जोआन ली‘ का लेख: Impunity and Incompetence Fuel Illegal Mexico-China Seahorse Trade देखें। यह मेक्सिको और चीन के अवैध समुद्री घोड़ा व्यापार पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि अपराधियों को सजा नहीं मिलने और कानूनी एजेंसियों की अक्षमता के कारण यह अवैध किस तरह फैल रहा है।

साइट्स ट्रेड डेटाबेस‘ इसमें विलुप्त और विलुप्तप्राय प्रजातियों के ‘कानूनी‘ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का डेटा मिलता है। ‘कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर्ड स्पेसीज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा‘ द्वारा इसके नियमों का निर्धारण किया गया है। यह दुनिया भर के विभिन्न देशों के बीच का एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है।

पत्रकार कैलिस्टस बोसालेत्सवे  ने ‘साइट्स ट्रेड डेटाबेस‘ का इस्तेमाल करके शेरों के व्यापार पर रिपोर्टिंग की। वह दक्षिण अफ्रीका के ‘ऑक्सपैकर्स सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव एनवायरनमेंटल जर्नलिज्म‘ से जुड़े हैं। इसमें उन्होंने पड़ोसी देश बोत्सवाना से शेरों और उनसे जुड़े अन्य उत्पादों के आयात संबंधी व्यापार की जांच करके रिपोर्ट लिखी।

कुछ अन्य स्टोरीज पर भी विचार करना उपयोगी होगा। एक बात ध्यान में रखें। वन्यजीवों के कानूनी व्यापार की आड़ में कुछ लोग अवैध तस्करी करते हैं। कुछ देशों में जब्त किए गए सामानों के मूल्यवान भंडार का सही प्रबंधन नहीं किए जाने के कारण काफी नुकसान होता है। खोजी रिपोर्टिंग के लिए आप ऐसे विषयों पर काम कर सकते हैं।

कानूनी तरीक़ों पर रिपोर्टिंग

रेखांकन: जीआईजेएन के लिए मार्सेल लूव

अवैध वन्यजीव तस्करी के मामलों में गिरफ्तारियों के बाद भी आरोपियों के खिलाफ अभियोजन और दोषसिद्धि में ज्यादातर असफलता ही मिलती है। इसके कारण ऐसे लोगों को दंड और जेल की सजा मिलना मुश्किल हो जाती है। ऐसे मामले भी आपके लिए खोजी रिपोर्टिंग का व्यापक अवसर प्रदान करते हैं।

‘ऑक्सपैकर्स‘ ने कई डेटाबेस बनाए हैं। इनमें तस्करी संबंधी मामलों की कानूनी प्रणाली के कामकाज के डेटा होते हैं। यह काफी हद तक अदालती दस्तावेजों पर आधारित होते हैं।

  • WildEye – ‘वाइल्ड आई‘ – यह ऑक्सपैकर्स का टूल है। इसे यूरोप में वन्यजीव अपराधों पर नजर रखने के लिए पत्रकारों की मदद से डिजाइन किया गया है।
  • WildEye Asia – ‘वाइल्ड आई एशिया‘ – इसे भी ऑक्सपैकर्स ने पूरे एशिया महाद्वीप में वन्यजीव अपराधों पर नजर रखने के लिए बनाया गया है।
  • Rhino Court Cases – ‘राइनो कोर्ट केसेस‘ – यह दक्षिणी अफ्रीका में ऐसे मामलों पर ऑक्सपेकर का डेटाबेस है।

कुछ देशों में मुकदमों की रिपोर्टिंग के उदाहरण देखें:  वियतनामचीनदक्षिण अफ्रीकानेपाल, पूर्वी यूरोप

ऑक्सपेकर्स ने डेटाबेस बनाने के तरीकों का एक टेम्पलेट भी उपलब्ध कराया है।

‘वाइल्डलाइफ क्राइम डेटाबेस‘ इसमें भारत के वन्यजीव संबंधी 33,300 से अधिक कानूनी मामलों और 27,000 कथित वन्यजीव अपराधियों का विवरण है। इस डेटाबेस को ‘वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी ऑफ इंडिया‘ ने बनाया है।

कई बार डेटा की कमी के कारण भी कोई बड़ी खबर निकल सकती है। जैसे, वैनेसा रोमो ने बोलिविया में तेंदुओं की बरामदगी से नए माफिया के उदय का संदेह बढ़ने पर यह रिपोर्ट लिखी।

इसी तरह, आपको यह समझने का प्रयास भी करना चाहिए कि ऐसे मुकदमों में विफलता क्यों मिलती है? अधिकतर अभियुक्तों को सजा क्यों नहीं मिल पाती? इसके पीछे अपने देश के कमजोर कानूनों और ढीले प्रवर्तन पर भी महत्वपूर्ण स्टोरी कर सकते हैं। ऐसे नीतिगत मामलों पर रिपोर्टिंग भी काफी पसंद की जाती है।

मांग को कम करना जरूरी

अवैध वन्यजीव तस्करी का मुकाबला करने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका ऐसी चीजों की मांग को कम करना है। लेकिन पारंपरिक मान्यताओं, गलत धारणाओं और सामाजिक कुरीतियों के कारण ऐसा करना आसान नहीं है। मशहूर हस्तियों के संदेशों का उपयोग करते हुए ऐसे जागरुकता अभियान चलाकर वन्यजीवों और उनसे बने पदार्थों का उपयोग नहीं करने की अपील की जाती है। इसके बावजूद पुरानी मान्यताएं बरकरार हैं।

वन्यजीव उत्पादों का उपयोग करके स्वास्थ्य और यौन लाभ का काफी बड़ा व्यापार है। लेकिन कई पत्रकारों ने ऐसे दावों की जांच करके पूर्णतया निराधार कहा है। मेडिकल साइंस के विशेषज्ञों तथा पारंपरिक चीनी चिकित्सकों के साथ साक्षात्कार के आधार पर पत्रकारों ने ऐसी रिपोर्टिंग की है।

कुछ उदाहरण देखें:  ‘चीन के डॉक्टरों के अनुसार पारंपरिक चीनी चिकित्सा प्रणाली में किसी वन्यजीव के किसी अंग का उपयोग नहीं होता है‘ (यूएक्सुआन चेन की रिपोर्ट)  ‘चीन में कोविड-19 के पारंपरिक उपचार से वन्यजीव व्यापार को बढ़ावा मिल रहा है‘ (डेस्पिना पार्थेमोस की रिपोर्ट)

पत्रकारों को ऐसे मामलों में सरकारी नीतियों पर भी सवाल उठाना चाहिए। जिन चीजों के उपयोग से कोई मेडिकल लाभ होना ‘सिद्ध‘ नहीं हुआ हो, वैसे उत्पादों के उपयोग की सुविधा नहीं मिलनी चाहिए। भले ही ऐसा करना कानूनी हो।

अरबों डॉलर के इस व्यापार से पर्यावरण को नुकसान

रेखांकन: जीआईजेएन के लिए मार्सेल लूव

जीआईजेएन ने वन्य जीव विशेषज्ञों से चर्चा करके यह जानने का प्रयास किया कि वन्यजीव तस्करी का अनुमानित मौद्रिक मूल्य कितना होगा? इससे संबंधी आंकड़े पुराने और अस्पष्ट हैं। फिर भी कहा जा सकता है कि यह अरबों डॉलर का बाजार है। इतने बड़े व्यापार का दुनिया के पर्यावरण पर क्या असर पड़ रहा है, यह भी खोजी पत्रकारों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।

अवैध व्यापार के कारण पौधों और जानवरों की आबादी पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कई प्रमुख अध्ययनों ने जैव विविधता में भारी गिरावट का दस्तावेजीकरण किया है। ऐसे विषयों पर रिपोर्ट करके आप बड़े सवालों को सामने ला सकते हैं।

यह रिपोर्ट बहुत सारे पहलुओं को समेटती है: ‘जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर आईपीबीईएस की वैश्विक आकलन रिपोर्ट‘ देखें। ‘द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज‘ में प्रकाशित एक विश्लेषण देखें। इसमें बताया गया है कि कशेरुकी जीवों की 500 से अधिक प्रजातियां अब विलुप्त होने के कगार पर हैं।

‘वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड‘ के ‘लिविंग प्लैनेट इंडेक्स‘ से पता चलता है कि 1970 और 2016 के बीच कशेरुकी प्रजातियों की संख्या में औसतन 68 प्रतिशत की गिरावट आई है।

संकटग्रस्त प्रजातियों के बारे में जानकारी देने वाले कई संसाधन मौजूद हैं। जैसे चेकलिस्ट ऑफ साइट्स स्पेसीज,    रेडलिस्ट ऑफ थ्रेटेन्ड स्पेसीज

कानून की मूल बातें समझें

वन्यजीवों के अवैध कारोबार को नियंत्रित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संधि है। हर देश के अपने राष्ट्रीय कानून भी हैं। लेकिन ऐसे कानून कितने पर्याप्त और कितने प्रभावी हैं, इसे लेकर काफी बहसें होती हैं।

‘कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर्ड स्पेसीज ऑफ वाइल्ड फौना एंड फ्लोरा‘ (साइट्स) यह दुनिया की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संधि है। इसके घोषणापत्र पर 183 देशों  ने हस्ताक्षर करके स्वीकार किया है। इसके प्रावधानों का उल्लंघन करके अवैध व्यापार करने वालों को दंडित करने की आवश्यकता है। लेकिन ‘साइट्स‘ के पास इसकी क्षमता नहीं है। इसके तहत राष्ट्रीय कानूनों को निर्देशित नहीं किया जा सकता है।

‘साइट्स‘ ने आवश्यक सुरक्षा की डिग्री के आधार पर 32,800 से अधिक पौधों और लगभग 5,950 जानवरों की तीन तरह की सूची बनाई है। लगभग 1,000 प्रजातियों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

‘साइट्स‘ से जुड़े 183 देशों के प्रतिनिधि हर दो या तीन साल पर सम्मेलन करते हैं। अगला सम्मेलन वर्ष 2022 में कोस्टा रिका में होगा। इसमें अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण की ताकत मजबूत करने पर गर्मागर्म बहस की उम्मीद है।

अंतरराष्ट्रीय संधि (साइट्स) का पालन करने वाले राष्ट्र अपने देश के भीतर व्यापार संबंधी अपने अलग नियमों पर चलते हैं। इसलिए विभिन्न देशों के कानूनों में व्यापक रूप से भिन्नता है। इसे समझने के लिए कानूनी एटलस  एक अच्छा स्रोत है।

किसी भी खोजी पत्रकार के लिए इन संसाधनों का उपयोग करके ऐसे विषयों पर रिपोर्टिंग के काफी अवसर हैं। यहां कुछ संसाधन की जानकारी दी जा रही है:

‘चीन में वन्यजीवों के भविष्य को आकार देने वाले कानूनी प्रस्ताव‘ (वांग चेन और जियांग यिफान द्वारा) ‘चीन के वन्यजीव खाद्य व्यापार का खेल खत्म, लेकिन क्या प्रतिबंध अब भी दूर हैं?‘ (जेन कै और गुओ रुई द्वारा)  ‘कोलंबिया में वन्यजीव तस्करी के खिलाफ कार्रवाई में कोताही‘ (एबी गुएन द्वारा)

जुलाई 2021 में, जीआईजेएन ने ‘वन्यजीव तस्करी‘ पर एक वेबिनार आयोजित किया। नीचे देखें:

अतिरिक्त संसाधन

GIJN Resource Center: Illegal Wildlife Trafficking (Full Guide)

10 Lessons from Our Global Collaboration on Pangolin Trafficking

Powering Up Geo-Journalism for Investigative Environmental Reporting

Investigating Environmental Crimes and Climate Change


टोबी मैकिन्टोश जीआईजेएन रिसोर्स सेंटर के वरिष्ठ सलाहकार हैं। वह वाशिंगटन में ब्लूमबर्ग बीएनए के साथ 39 साल तक महत्वपूर्ण पदों पर रहे। वह ‘फ्रीडम इन्फो डॉट ओआरजी’ (FreedomInfo.org) के पूर्व संपादक (2010-2017) हैं। उन्होंने दुनिया भर में सूचना का अधिकार संबंधी नीतियों पर लिखा है। वह इस अधिकार की एडवोकेसी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क एफओआईएनेट की संचालन समिति के सदस्य हैं।

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दीर्घकालिक खोजी रिपोर्टिंग को जारी रखने या रोकने का निर्णय कैसे लें?

संपादकों के अनुसार न्यूनतम स्टोरीज प्रकाशित करने का भी काफी महत्व है। ऐसी स्टोरी आने के बाद विस्सल-ब्लोअर सामने आते हैं। किसी संगठन के भीतर के लोग आकर कोई बड़ी जानकारी देते हैं। संपादकों के अनुसार ऐसी खबरें प्रकाशित करने के दौरान पारदर्शिता महत्वपूर्ण है। पाठकों को स्पष्ट रूप से बताना सुनिश्चित करें कि क्या साबित किया जा सकता है और क्या नहीं।

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