एडिटर्स पिक: वर्ष 2021 में भारत की दस श्रेष्ठ खोजी खबरें
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हाल के वर्षों तक दुनिया में भारत की पहचान एक जीवंत लोकतंत्र की रही है। आर्थिक विकास की बढ़ती दर के साथ ही सशक्त और स्वतंत्र मीडिया की मौजूदगी भी इसकी विशेषता रही है। लेकिन आक्रामक हिंदू राष्ट्रवाद ने इस धारणा को तोड़ा है। भाजपा के उदय और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में आधुनिक लोकतंत्र के अधिकांश संकेतकों में गिरावट आई है। नौकरशाही, न्यायपालिका और केंद्रीय एजेंसियों से लेकर स्वायत्त संस्थाओं का कमजोर होना, लोकतंत्र के कमजोर होने की साफ निशानी के तौर पर दिख रहा है। इस सच को सामने लाने वाले पत्रकारों को ‘देशद्रोही‘ करार दिया जाना आम बात हो गई है। सरकारी और गैर-सरकारी शक्तियों द्वारा मीडियाकर्मियों पर हमले, ऑनलाइन उत्पीड़न और उन्हें कानूनी मामलों में उलझाना सामान्य बात हो गई। इस प्रक्रिया में परंपरागत और मुख्यधारा का अधिकांश मीडिया, खासकर टीवी समाचार माध्यम, वस्तुतः सत्ताधारी दल की प्रचार शाखा में बदल गया।
स्थापित समाचार संगठनों का बड़ा हिस्सा फिलहाल चुपचाप सरकारी लाइन पर चल रहा है। इस वातावरण में कुछ नए डिजिटल मीडिया संस्थानों ने ‘स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता’ का बीड़ा उठाया है। इनसे जुड़े पत्रकार अदालतों में कानूनी उत्पीड़न से जूझ रहे हैं। इन पत्रकारों ने सत्ता समर्थक अभिजात्य ताकतों के नेतृत्व में ट्रोल सेना के गुप्त नेटवर्क का भी पर्दाफाश किया है। वर्ष 2021 में ऐसे निर्भीक खोजी पत्रकारों ने कई महत्वपूर्ण खबरें प्रकाशित की हैं। ऐसा करके उन्होंने अन्य मीडिया संस्थानों को अनुकरण करने योग्य राह दिखाई है। यहां इस वर्ष भारत की ऐसी दस बेहतरीन खोजी खबरों तथा उनसे जुड़े पत्रकारों, संस्थानों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है। – दीपक तिवारी, संपादक, जीआईजेएन (हिंदी)
निगरानी राष्ट्र : हर भारतीय पर नजर रखने की मोदी सरकार की योजना
(Surveillance Nation: Inside Modi’s Plan To Monitor Every Indian)
रिपोर्टर्स कलेक्टिव – यह एक गैर-लाभकारी मीडिया संगठन है। इसे कुछ समान विचारधारा वाले खोजी पत्रकारों द्वारा सार्थक उद्देश्यों के तहत चलाया जा रहा है। इस टीम से जुड़े पत्रकार कुमार संभव ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत महत्वपूर्ण दस्तावेज हासिल किए। इन दस्तावेजों से भारत सरकार द्वारा विभिन्न कल्याण कार्यक्रमों की निगरानी के बहाने एक व्यापक डेटाबेस के जरिए सभी नागरिकों पर नजर रखने की योजना का खुलासा हुआ। दस्तावेजों से पता चला कि प्रधानमंत्री मोदी की यह आक्रामक निगरानी योजना हरेक भारतीय पर जन्म से लेकर मृत्यु तक हर कदम पर नजर रखने का प्रयास है। ऐसी योजना, जिसके तहत हमारे जीवन के हर हिस्से को जोड़ा और रिकॉर्ड किया जा सके और हर पल निगरानी की जा सके।
सोशल मीडिया का उपयोग करके दिल्ली दंगों की जांच
(Investigating the Delhi Riots by Scanning Social Media)
द वायर – यह भारत का प्रमुख गैर-लाभकारी डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म है। यह चार भाषाओं में प्रकाशित होता है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता का अग्रणी मंच है। इसके संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन सहित अन्य पत्रकारों को मानहानि और देशद्रोह जैसे मुकदमों सहित अन्य तरीकों से लगातार सरकारी उत्पीड़न का निशाना बनाया जा रहा है। इससे जुड़े कई पत्रकारों को अंतरराष्ट्रीय ‘पेगासस‘ जासूसी परियोजना के तहत भी निगरानी का निशाना बनाया गया है।
फरवरी 2020 में भारत की राजधानी दिल्ली में भयावह दंगे हुए। इसमें 53 लोग मारे गए। सैकड़ों घरों और दुकानों को जलाया अथवा नष्ट कर दिया गया। लेकिन दिल्ली पुलिस इन दंगों की समुचित जांच करने में विफल रही। ‘द वायर’ रिपोर्टर अलीशान जाफरी, शेहलात मकनून वानी और खुद सिद्धार्थ वरदराजन ने कई महीनों तक विभिन्न सोशल मीडिया अकाउंट्स से मिले तथ्यों का उपयोग करते हुए इन दंगों की जांच रिपोर्ट बनाई। रिपोर्ट से इस तथ्य का खुलासा हुआ कि दंगापीड़ित मुख्य रूप से अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोग थे। जांच रिपोर्ट ने नफरत फैलाने, भीड़ जुटाने और हिंसा भड़काने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले लोगों का भी खुलासा किया।
उपग्रह चित्रों के जरिए एनडीटीवी ने चीनी घुसपैठ का प्रमाण दिया
(Using Satellite Imagery, NDTV Verifies China’s Incursion into Indian Territory)
भारत और चीन लगभग 2000 मील लंबी सीमा साझा करते हैं। कई दशकों से दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर विवाद रहा है। दोनों देशों के बीच सन 1962 में भीषण युद्ध भी हुआ था। पिछले साल भी आपसी झड़प में कई सैनिकों की मौत हुई।
मोदी की अति-राष्ट्रवादी सरकार ने इस बात से लगातार इंकार किया है कि भारतीय क्षेत्र में कोई चीनी घुसपैठ हुई है। लेकिन भारत के प्रमुख समाचार चैनल एनडीटीवी ने उपग्रह चित्रों का उपयोग करके इस दावे का झूठ उजागर किया। खबरों की एक श्रृंखला में एनडीटीवी ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश के अंदर चीन द्वारा किए गए निर्माण कार्य का प्रमाण सामने रख दिया। इस रिपोर्टिंग के बाद में अमेरिकी रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि कर दी।
पेगासस जासूसी का भारत पर प्रभाव
(Pegasus Project’s Impact in India)
द वायर ने अतंरराष्ट्रीय ‘पेगासस‘ जासूसी परियोजना की जांच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस खुलासे ने भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को हिलाकर रख दिया। लेकिन मोदी सरकार ने इस बात से इंकार कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और अन्य लोगों की जासूसी हो रही है। इस मामले के खुलासे के बाद भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन कर दिया।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार इजरायली कंपनी ‘एनएसओ ग्रुप‘ की जासूसी सूची में लगभग 300 भारतीयों के मोबाइल फोन नंबर शामिल थे। इनमें मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, कानूनी समुदाय, व्यवसायियों, सरकारी अधिकारियों, वैज्ञानिकों, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं सहित अन्य लोगों के मोबाइल नंबर शामिल थे। रिपोर्ट के अनुसार एक छोटे सैंपल के फोरेंसिक विश्लेषण से पता चला कि जिन 37 मोबाइल फोन को पेगासस स्पाइवेयर द्वारा निशाना बनाए जाने के स्पष्ट संकेत मिले, उनमें से 10 भारतीय लोगों के थे।
हिंदू आईटी सेल की आक्रामकता
(Inside the Hindu IT Cell)
न्यूजलॉन्ड्री – यह भारत का ऐसा प्रमुख मीडिया प्लेटफॉर्म है, जो नागरिकों के सहयोग से चलता है। न्यूजलॉन्ड्री ने रिपोर्टर्स कलेक्टिव के दो पत्रकारों सृष्टि जसवाल और श्रीगिरीश जलिहाल द्वारा लिखी गई खबर को अपने यहाँ प्रकाशित किया। इन दो रिपोर्टरों ने दक्षिणपंथी हिंदू ट्रोल समूहों की आक्रामकता संबंधी पड़ताल की। ऐसे समूह सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर उन लोगों को निशाना बनाते हैं जिन्हें वे कथित तौर पर ‘हिंदू विरोधी’ समझते हैं। ये लोग अपने नेटवर्क के सदस्यों को कथित तौर पर ‘हिंदू से नफरत करने वाले सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के खिलाफ कानूनी शिकायतें दर्ज करने और पुलिसिया कार्रवाई के लिए प्रयास करने हेतु प्रेरित करते हैं। ऐसे लोगों को सबक सिखाने की कसम भी खिलाई जाती है। इस ऑनलाइन उत्पीड़न को अंजाम देने के लिए इन ट्रोल्स ने वकीलों और ‘साइबर स्वयंसेवकों’ की टीम भी बना रखी है।
तीन कृषि कानून बनाम निजी कंपनियों के हित
(Remaking India’s Agricultural Economy for the Private Sector)
द कारवां – इस पत्रिका के प्रख्यात खोजी पत्रकार हरतोष सिंह बल की यह खोजी स्टोरी काफी चर्चित रही। इसमें उन्होंने भारतीय संसद द्वारा पारित (अब निरस्त) तीन कृषि कानूनों और मोदी की करीबी दो औद्योगिक कंपनियों के बीच संबंधों को उजागर किया। देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के बीच फरवरी 2021 में यह निर्भीक रिपोर्टिंग आई। किसानों ने भारत में बाजार की ताकतों को लाभ पहुंचाने वाले तीनों कृषि कानूनों का जबरदस्त विरोध किया था।
भारतीय जेल के भीतर ट्रांसजेडर्स की जिंदगी
(Being Trans Inside an Indian Prison)
‘बार्ड – द प्रिजन प्रोजेक्ट‘ के तहत यह महत्वपूर्ण खोजी रिपोर्ट आई। ‘पुलित्जर सेंटर ऑन क्राइसिस रिपोर्टिंग‘ के साथ साझेदारी में पत्रकार सुकन्या शांता ने भारतीय जेलों में ट्रांसजेंडर लोगों के जीवन की पड़ताल की। रिपोर्ट के अनुसार भारतीय कानूनी व्यवस्था के अनुसार ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को भी समान अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन प्रणालीगत त्रुटियों, लैंगिक आधार पर उनके साथ अपमान, उत्पीड़न और यौन हिंसा के काफी उदाहरण पाए गए।
कोविड-19 के आंकड़ों की विसंगतियां सामने आईं
(Fact-checking India’s Official COVID-19 Figures)
न्यूजलॉन्ड्री के दो पत्रकारों चिंतन पटेल और विवेक कौल ने भारत की केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा जारी कोरोना वायरस संबंधी डेटा की जांच करके विश्लेषण किया। उन्होंने आधिकारिक आंकड़ों में कई तरह की अस्पष्टता और विसंगतियों का पता लगाया। रिपोर्ट से पता चला कि मोदी सरकार ने मृतकों की संख्या छिपाने के लिए आधिकारिक आंकड़ों में हेरफेर किया और कम दिखाया।
टीकाकरण के बाद कोरोना संक्रमण का सच उजागर
(Exposing the Truth About COVID-19 Breakthrough Infections)
इंडिया स्पेंड – यह डेटा विश्लेषण की एक स्वतंत्र संस्था और जीआईजेएन सदस्य है। इसके डेटा ने टीकाकरण के बाद कोरोना संक्रमण का सच उजागर किया। नागरिकों को भारत में बने दो टीकों कोविशील्ड और कोवैक्सिन में कोई एक टीका लगाया गया। भारत सरकार के दावों के अनुसार जिन्हें कोविड-19 का टीका लगा, वैसे प्रत्येक 10,000 लोगों में केवल दो से चार लोगों को ही टीका लेने के बावजूद कोरोना संक्रमण हुआ। लेकिन रिपोर्टर रुक्मिणी एस ने इस रिपोर्ट में बताया कि स्वास्थ्य अधिकारी इन टीकों की प्रभावकारिता पर नजर रखने की सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन करने में विफल रहे। इसकी वजह से जनता को यह भ्रामक तस्वीर दिखाई गई कि टीकों ने अच्छी तरह काम किया।
मोदी सरकार की विफलता से कोविड-19 की तबाही
(How the Modi Government’s Failure Led to India’s COVID-19 Catastrophe)
द कारवां के लिए इस कवर स्टोरी में रिपोर्टर चाहत राणा ने कोविड-19 से निपटने में भारत सरकार के कदमों की गहराई से जांच की। विस्तृत जांच से पता चला कि कोविड-19 की दूसरी लहर से निपटने में मोदी सरकार बुरी तरह नाकाम रही। इसे एक बड़ी तबाही में बदल दिया गया। इसके परिणामस्वरूप ऑक्सीजन की कमी के कारण अस्पतालों के बाहर हजारों लोगों की मौत हो गई।
अतिरिक्त संसाधन
How Local Reporters in India Exposed the Pandemic’s True Death Toll
The Story of India’s COVID-19 Pandemic, as Told by Its Women Journalists
How Advertising Fuels Media Capture in India
दीपक तिवारी जीआईजेएन के हिंदी संपादक और वरिष्ठ भारतीय पत्रकार हैं। वह भोपाल स्थित ‘माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय’ के पूर्व कुलपति हैं। उनके पास एक संवाददाता, उपसंपादक, टेलीविजन कमेंटेटर, मीडिया कंसल्टेंट और मीडिया स्टार्ट-अप के मैनेजिंग एडिटर के रूप में 25 से अधिक वर्षों का अनुभव है। वे दो पुस्तकों के लेखक हैं।