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विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 2022: पत्रकारों पर बढ़ते डिजिटल और शारीरिक हमले
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लोकतंत्र की तरह प्रेस की स्वतंत्रता भी मौजूदा सदी में अपने सबसे निचले पायदान पर है। जबकि पत्रकारों पर हमलों और उनके खिलाफ निगरानी का ग्राफ अपने उच्चतम स्तर पर जा पहुंचा है।
ऐसे चिंताजनक माहौल में तीन मई 2022 को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस‘ मनाया गया। यूनेस्को एवं दुनिया के विभिन्न समूहों ने इसे प्रायोजित किया। इस वेबिनार में मीडिया पर बढ़ते कानूनी उत्पीड़न और निरंकुशता की बात सामने आई। लगातार कम होते राजस्व और व्यापक दुष्प्रचार के कारण मीडिया को काफी प्रतिकूल स्थिति से गुजरना पड़ रहा है। इसके बावजूद, यूक्रेन से लेकर सर्बिया और मैक्सिको तक, स्वतंत्र मीडिया संस्थाओं और फ्रीलांस पत्रकारों ने बहादुरी से तथ्यों की खुदाई करके खोजी रिपोर्टिंग जारी रखी है। इसके कारण लोकतंत्र विरोधी ताकतों और प्रवृतियों को उजागर करने में सफलता मिली है।
लोकतंत्र की पक्षधर ताकतों में भी प्रतिरोध का जुनून है। ऐसे पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच आपसी सहयोग पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है। यहां तक कि प्रतिद्वंद्वी मीडिया संगठनों के बीच भी परस्पर सहयोग बढ़ा है। निर्वासित पत्रकारों द्वारा तस्करी के वीडियो क्लिप शेयर किया जाना भी एक उदाहरण है। सीरिया के अनुभवी युद्ध पत्रकारों ने यूक्रेन के पत्रकारों को सलाह दी। ऐसी चीजें मीडिया का आपसी सहयोग बढ़ने का संकेत है।
‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस‘ 2022 पर आयोजित वेबिनार में चर्चा का एक विषय था- ‘खतरनाक दौर में पत्रकारिता‘। जीआईजेएन के सदस्य संगठन ‘इंटरनेशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट्स‘ (आईसीएफजे) ने यह पैनल प्रस्तुत किया। इसमें ऐसे दिग्गज पत्रकार शामिल थे, जो दुनिया के चार सबसे खतरनाक क्षेत्रों को कवर करते हैं।
‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस‘ पर आयोजित अन्य कार्यक्रमों में भी इसी तरह के निस्वार्थ साहस की गूंज सुनाई देती है। जैसे, बेलारूसी पत्रकार संघ (बीएजे) को यूनेस्को का गिलर्मो कैनो ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम प्राइज‘ दिया गया। वर्ष 1986 में निर्भीक पत्रकारिता के दौरान शहीद कोलंबियाई पत्रकार गिलर्मो कैनो इसाजा के सम्मान में यह पुरस्कार दिया जाता है। इस वर्ष ‘बीएजे‘ को यह पुरस्कार मिला। ‘बीएजे‘ ने निरंकुश सत्ता द्वारा प्रतिबंध और कार्यालयों पर छापेमारी के बावजूद स्वतंत्र पत्रकारिता जारी रखने का हौसला दिखाया।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संकट इतना बढ़ चुका है कि अब पत्रकारिता पुरस्कार भी असुरक्षित हैं। अप्रैल 2022 में हांगकांग के ‘विदेशी संवाददाता क्लब‘ ने अपने ‘मानवाधिकार प्रेस पुरस्कार‘ को निलंबित करने का निर्णय लिया। कारण यह डर था कि व्यक्तिगत स्टोरीज को उजागर करने से हांगकांग के नए, दमनकारी ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून‘ का उल्लंघन हो सकता है।
जहां अभिव्यक्ति पर पहरे हैं
वेबिनार के चारों पैनलिस्टों ने लैटिन अमेरिका, रूस, अफगानिस्तान और अफ्रीका के अनुभव साझा किए। सबने कहा कि पत्रकारों के आपसी सहयोग और गैर-लाभकारी स्वतंत्र पत्रकारिता की कोशिशों से सकारात्मक बदलाव आ रहा है। वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) और मुफ्त ‘सेंसरशिप सरकमवेंशन ऐप‘ जैसे नए टूल भी मदद कर रहे हैं। इनके अलावा शॉर्टवेव रेडियो जैसी पुरानी एवं निम्न-तकनीकी वितरण विधियों का भी उपयोग है। हालांकि इन पत्रकारों ने दुनिया में स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ मौजूद तानाशाही ताकतों की भयावह तस्वीर पेश की।
वेबिनार के मॉडरेटर पैट्रिक बटलर (वरिष्ठ उपाध्यक्ष, आइसीएफजे) ने कहा – “यूक्रेन के युद्धक्षेत्रों से लेकर मेक्सिको की सीमाओं और चीन, तुर्की में जेल की कोठरियों तक, मीडिया के लिए मौजूदा स्थिति अच्छी नहीं है। विभिन्न देशों की सरकारें स्वतंत्र समाचारों को दबाने का हर संभव प्रयास कर रही हैं।“
सिरवन काज्जो (रिपोर्टर, वॉयस ऑफ अमेरिका) ने कहा – “रूस में नई सेंसरशिप लागू कर दी गई है। यूक्रेन पर रूस के अकारण आक्रमण के बाद दोनों देशों में मीडिया के लिए काफी प्रतिकूल माहौल है। कम-से-कम नौ पत्रकारों की मौत हो चुकी है। इनमें कई पत्रकार सीधी गोलीबारी में मारे गए हैं। रूस ने नया कानून पारित करके कुछ ही शेष बचे स्वतंत्र मीडिया को भी युद्ध की निष्पक्ष रिपोर्टिंग से रोक दिया है।“
सिरवन काज्जो ने कहा – “यूक्रेन में भी पत्रकारों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कई पत्रकार महीनों से अपने परिवारों से अलग हो गए हैं। कई पत्रकारों को चौबीसों घंटे काम करना पड़ रहा है। किसी को यह आशंका नहीं थी कि रूस वास्तव में आक्रमण करेगा। मीडिया संगठनों ने ऐसी युद्ध रिपोर्टिंग की तैयारी नहीं की थी और इतने बड़े पैमाने पर हमले की तैयारी तो बिल्कुल नहीं थी।“
निर्वासित होकर भी रिपोर्टिंग कर रहे हैं पत्रकार
काज्जो ने रूस और यूक्रेन युद्ध के इस अंधकार में रोशनी की एक किरण का उल्लेख किया। बताया कि स्वतंत्र पत्रकारिता की कमी को पूरा करने में ‘निर्वासित पत्रकार‘ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस तरह दुनिया में निर्वासित पत्रकारिता का उदय हुआ है।
सामी महदी (संस्थापक, पीएवाइके इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म सेंटर, अफगानिस्तान) ने कहा – “निर्वासित पत्रकारों ने अफगानिस्तान में रहने वाले पत्रकारों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाकर खोजी पत्रकारिता को जीवित रखा है।“
उल्लेखनीय है कि तालिबान ने पिछले साल काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसके कारण सामी महदी को अपने मूल देश अफगानिस्तान से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन निर्वासित पत्रकार के बतौर उन्होंने अपना काम जारी रखा।
सामी महदी कहते हैं – “ताजा आंकड़े बताते हैं कि 15 अगस्त, 2021 को काबुल पर तालिबानी कब्जे के बाद से अब तक अफगानिस्तान में 6000 से अधिक पत्रकारों ने अपनी नौकरी खो दी है। लगभग 40 फीसदी मीडिया संस्थान बंद हो गए हैं। लगभग 85 फीसदी महिला पत्रकारों ने अपनी नौकरी खो दी है। लगभग 80 से अधिक पत्रकारों को तालिबान द्वारा जेल में कैद और प्रताड़ित किया गया। अब सेल्फ-सेंसरशिप भी बढ़ रही है। बंदूकधारी हमारे न्यूज रूम में आकर तालिबानी नीतियों के अनुसार रिपोर्ट संपादित करने का दबाव डालते हैं।“
सामी महदी ने कहा – “अफगानिस्तान में स्थिति बेहद खतरनाक है। स्थानीय अफगान पत्रकारों को यह दावा करने के लिए मजबूर किया जाता है कि निर्वासित पत्रकार आलोचनात्मक रिपोर्टिंग के लिए दोषी थे। तालिबान द्वारा समाचार साइटों को अवरुद्ध करने की गति थोड़ी धीमी जरूर है, लेकिन डिजिटल सेंसरशिप का खतरा दिख रहा है। तालिबान ने अफगानिस्तान में टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाया है। इसके कारण अनफिल्टर्ड समाचार और सूचना प्रसारण के लिए बाकी बचा एक प्लेटफार्म कम हो जाएगा। ऐसा समझा जाता है कि लोगों के पास तकनीकी ज्ञान नहीं है। लेकिन अब समय बदल रहा है।“
मीडिया पर तानाशाही नियंत्रण और हिंसा
पिछले साल का ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स‘ देखें। पूर्वी अफ्रीका के इरिट्रिया में पत्रकारिता पर गंभीर खतरा नजर आएगा।
पैनलिस्ट सलेम सोलोमन (संपादक, वीओए) कहती हैं – “अफ्रीका के हॉर्न-क्षेत्र (सोमाली प्रायद्वीप) में प्रेस स्वतंत्रता को काफी पीछे धकेल दिया गया है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण से ठीक पहले, इरिट्रिया और इथियोपिया में भयानक संघर्ष चल रहा था। मीडिया को उस युद्ध और मानवाधिकारों के मुद्दों को कवर करने से रोक दिया गया था। वर्ष 2021 में इथियोपिया में 46 पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया। अफ्रीका में इथियोपिया अब पत्रकारों के लिए सबसे कुख्यात जेल है।“
सलेम सोलोमन कहती हैं – “इंटरनेट पर सरकारी नियंत्रण के कारण अफ्रीका के हॉर्न-क्षेत्र में पत्रकारों, खासकर निर्वासित पत्रकारों को काफी जटिलता का शिकार होना पड़ा है। इंटरनेट पर इन सरकारों का स्वामित्व होने के कारण सूचना के प्रवाह पर काफी नियंत्रण है। इथियोपिया में अभी सूचना का ब्लैकआउट है।“
मीडिया पर नए खतरों का उल्लेख करते हुए सलेम सोलोमन कहती हैं – “सरकारों ने अभिव्यक्ति पर नियंत्रण के लिए इसे अन्य कानूनों से जोड़ दिया है। अब मीडिया के खिलाफ ‘आतंकवाद विरोधी कानून‘ का दुरूपयोग हो रहा है। विद्रोही समूहों को कवर करने वाले पत्रकारों पर मुकदमा होता है। यदि आप किसी विद्रोही का साक्षात्कार करते हैं, तो आतंकवादी समूह को बढ़ावा देने का आरोप लग जाएगा।“
लैटिन अमेरिका के कई देशों में भी प्रेस को इन्हीं खतरों से गुजरना पड़ रहा है। मैक्सिको अब पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश है। वर्ष 2022 के प्रथम चार महीनों में ही वहां आठ पत्रकारों की हत्या कर दी गई।
अलीजा एपेलबाउम (लैटिन अमेरिका के लिए वरिष्ठ कार्यक्रम निदेशक, आईसीएफजे) कहती हैं- “हैती, कोलंबिया और निकारागुआ में भी चिंताजनक स्थिति है। दिसंबर 2018 से प्रेस की स्वतंत्रता में लगातार गिरावट आई है। अनगिनत स्वतंत्र पत्रकारों को निर्वासन में जाना पड़ा है। हालांकि बड़ी बात यह है कि उनमें से कई निर्वासित पत्रकारों ने अब भी रिपोर्टिंग का काम जारी रखा है। निकारागुआ अब भी सूचनाओं के लिए रेडियो पर बहुत अधिक निर्भर है। आप रेडियो पर बाहर से रिपोर्टिंग कर सकते हैं।“
अलीजा एपेलबाउम कहती हैं – “तानाशाह लोग भोले-भाले नागरिकों का भावनात्मक शोषण करते हैं। लोगों की पूर्वकल्पित धारणाओं के विपरीत कोई बात आने पर लोग उसे अस्वीकार कर देते हैं, भले ही वह तथ्य-आधारित रिपोर्टिंग हो। आम लोगों के लिए यह स्वीकार करना वाकई मुश्किल है कि वे गलत चीजों पर भरोसा कर रहे थे। इसलिए तानाशाहों ने एक तरीका निकाला कि वह आगे बढ़कर कोई भी दावा देंगे तो लोग उन पर भरोसा करेंगे। भले ही वह बात सही न हो।“
सिरवन काज्जो ने कहा कि दमनकारी समाजों में दर्शकों तक पहुंच के लिए ‘मिररिंग साइट सर्विसेस‘ जैसी नई प्रौद्योगिकियां काफी प्रभावी हैं। लेकिन सलेम सोलोमन जोर देकर कहती हैं कि हमें पुराने संचार माध्यमों को नहीं भूलना चाहिए। शॉर्टवेव रेडियो का अब अफ्रीका में काफी महत्व है। जहां इंटरनेट की पहुंच कम है, वहां आप दूरस्थ स्थानों तक पहुँच सकते हैं।
वेबिनार के सभी पैनलिस्ट से पूछा गया कि प्रेस स्वतंत्रता के इस अंधकारमय माहौल में उम्मीद की किरण क्या है? सबने यही रास्ता बताया कि पत्रकार अपना काम करते रहें, हिम्मत न हारें। सामी महदी ने कहा कि इतने खतरों के बावजूद पत्रकार लगातार रिपोर्टिंग कर रहे हैं और यही आशा की किरण है।
अतिरिक्त संसाधन
On World Press Freedom Day 2021, Recognizing “Information as a Public Good”
The Economic Costs of Curbing Press Freedom
10 Ways to Track Press Freedom during the Pandemic
रोवन फिलिप जीआईजेएन के संवाददाता हैं। वह पूर्व में दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स (Sunday Times) के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्ट दी है।