

साल 2023 की भारत की कुछ सर्वश्रेष्ठ खोजी खबरें: जीआईजेएन एडिटर्स पिक
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भारत में प्रेस को पिछले कुछ वर्षों में अभूतपूर्व खतरों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वार्षिक विश्लेषण के अनुसार, देश में प्रेस की स्वतंत्रता में हाल ही में काफी गिरावट आई है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता जो 2016 में दुनिया में 133वें स्थान पर थी आज घटकर 180 देशों में से 161वें स्थान पर आ गई। बीबीसी जैसे प्रमुख मीडिया घरानों पर छापे मारे गए और कई पत्रकारों पर आपराधिक आचरण के आरोप लगाए गए। इनमें समाचार संगठन न्यूज़क्लिक के पत्रकार भी शामिल थे, जिन्हें गिरफ्तार किया गया और उन पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया। यह कठोर कानून आम तौर पर आतंकवादी मामलों पर लागू होता है, लेकिन पिछले नौ वर्षों में 16 पत्रकारों पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाया गया और सात जेल में हैं।
परंपरागत मीडिया पर राज्य के दबाव के साथ-साथ कठिन कामकाजी परिस्थितियों के कारण भी खोजी खबरों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। जबकि परंपरागत मीडिया – जिसे अक्सर अपने प्रचारवादी स्वभाव के लिए “गोदी मीडिया” (लैपडॉग पत्रकारिता) कहा जाता है – सत्तारूढ़ सरकार के लिए चुनाव जीतने का एक महत्वपूर्ण उपकरण रहा है। हालाँकि डिजिटल पत्रकारिता साइटों की एक नई पीढ़ी ने इस प्रवृत्ति को नहीं अपनाया है और स्वतंत्र पत्रकारिता काफ़ी हद तक इन डिजिटल प्लेटफ़ार्मो पर हो पा रही है। ये साइटें, जिनमें YouTube पर चैनल भी शामिल हैं, प्रमुख राजनीतिक दलों की आलोचना करने को तैयार रहते हैं – और उन्हें लोकप्रियता भी मिल रही है। इनके पास उपलब्ध सीमित संसाधन खोजी पत्रकारिता को एक सतत चुनौती बनाते हैं, लेकिन कई लोग अभी भी सरकार से जुड़े शक्तिशाली लोगों को बेनकाब करने वाली खबरें करते हैं। यहां ऐसी ही खबरों की एक सूची दी गई है। ये सभी खबरें अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित हुईं हैं।

बीबीसी के अनुसार, ऑनलाइन, आसानी से मिलने वाले ऋण ऐप्स से उधार लिए गए पैसे चुकाने में विफल रहने पर दुर्व्यवहार और धमकी दिए जाने के बाद कम से कम 60 भारतीयों ने आत्महत्या कर ली। छवि: स्क्रीनशॉट, बीबीसी[/कैप्शन]
बीबीसी के अनुसार, इनमें से ऋण को चुकाने में विफल रहने पर दुर्व्यवहार और धमकी मिलने के बाद कम से कम 60 भारतीयों ने आत्महत्या कर ली। बीबीसी की एक गुप्त जांच ने भारत और चीन में घोटाले का पर्दाफाश किया और पता लगाया कि इस घोटाले से कौन लाभ उठा रहा था।
India’s Invisible Workforce Under Siege

Image: Screenshot, Elena Odareeva, iStockPhoto
भारतीय हस्तशिल्प को उसके जटिल काम और सुंदर डिजाइनों के लिए दुनिया भर में महत्व दिया जाता है। महिलाएं इस उद्योग की रीढ़ हैं। यह उद्योग संविदात्मक और अनौपचारिक दोनों श्रमिकों के नेटवर्क के माध्यम से चलाया जाता है। इन महिलाओं को अक्सर उपठेकेदारों के माध्यम से बड़ी कंपनियों द्वारा नियोजित किया जाता है, जो मध्यस्थ के रूप में काम करते हैं जो उन्हें कड़े श्रम कानूनों से बचने और सस्ते श्रम प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
जीआईजेएन के सदस्य इंडियास्पेंड ने इस क्षेत्र में खोजबीन की और पाया कि इन महिला श्रमिकों को बहुत कम भुगतान किया जाता है और उन्हें कोई कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती है। बड़े शहरों में घर-आधारित इन महिला श्रमिकों की कम मजदूरी और खराब कानूनी सुरक्षा घटिया आवास और झुग्गी-झोपड़ी जैसी कामकाजी परिस्थितियों में तब्दील हो जाती है। इंडियास्पेंड के अनुसार, कार्यस्थल पर महिलाओं का इस तरह से शोषण “उनके व्यवसाय और कल्याण दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।”
Chinese Encroachment on Indian Territory Documented With Satellite Imagery

भारत के उत्तरकाशी के सामने नई चीनी निर्माण गतिविधियों का चित्र। छवि: प्लैनेट लैब पीबीसी/स्क्रीनशॉट के सौजन्य से
भारत के सीमावर्ती राज्यों सिक्किम, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में चीनी घुसपैठ को भारत सरकार द्वारा बार-बार नकारा गया है। स्थानीय रिपोर्टों और विपक्ष के दावों के बावजूद, देश का मीडिया भी सीमा पार चीनी सैन्य गांवों के निर्माण की वास्तविकता को रिपोर्ट करने से कतरा रहा है। हालाँकि, भारत के प्रमुख मीडिया हाउस इंडिया टुडे की खोजी रिपोर्टिंग ने भारत सरकार के झूठे दावों को उजागर कर दिया।
सैटेलाइट इमेजरी का उपयोग करते हुए, इंडिया टुडे ने एक खबर प्रकाशित की जो “सैन्य गांवों के निर्माण के हालिया दावों की पुष्टि करने वाले अकाट्य सबूत प्रदान करती है।” रिपोर्टिंग के अनुसार, चीन ने केवल एक महीने की अवधि में भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन करते हुए लगभग 100 संरचनाओं का निर्माण किया। सत्तारूढ़ सरकार के लिए एक शर्मनाक रहस्योद्घाटन, ये चीनी चौकियाँ रणनीतिक चिंता का एक स्पष्ट कारण हैं, क्योंकि भारतीय सेना ने चेतावनी दी है कि वे “क्षेत्र की लाभप्रद स्थलाकृति का लाभ उठाते हुए, सैनिकों की बढ़ी हुई तैनाती को समायोजित करने में सक्षम हैं।”
Fortified Deals: Behind the Questionable Decision to Feed Half of India Fortified Rice

झारखंड के कुचियाशोली की प्रतिमा मुंडा, गांव में बच्चों को मध्याह्न भोजन योजना के तहत परोसे जाने वाले फोर्टिफाइड चावल की एक प्लेट रखती हैं। फोटो: श्रीगिरिश जलिहाल/रिपोर्टर्स कलेक्टिव
रिपोर्टर्स कलेक्टिव – खोजी पत्रकारों का एक समूह, और एक जीआईजेएन सदस्य – ने एक सरकारी योजना को उजागर करते हुए तीन-भाग की श्रृंखला प्रकाशित की। इसके योजना के अन्तर्गत बच्चों पर इसके संभावित प्रतिकूल प्रभाव के बारे में विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद फोर्टिफाइड चावल आधे भारत को खिलाया गया था। जांच से पता चला कि नीदरलैंड स्थित कंपनी रॉयल डीएसएम एनवी, जो फोर्टिफाइड राइस प्रीमिक्स पाउडर के दुनिया के सबसे प्रमुख उत्पादकों में से एक है, ने भारत सरकार को प्रभावित करने के लिए छह संगठनों, मुख्य रूप से गैर-लाभकारी संस्थाओं के जाल का इस्तेमाल किया। अंततः सरकारी घोषणा की बदौलत, कंपनी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं और वित्त मंत्रालय द्वारा इस कदम को “समयपूर्व” बताए जाने के बावजूद, अपने उत्पाद के लिए एक बड़ा बाजार सुनिश्चित किया।
Indian Military Purchases of Pegasus Spyware Revealed

अबू धाबी में 2021 अंतर्राष्ट्रीय रक्षा प्रदर्शनी और सम्मेलन में एक बूथ। छवि: स्क्रीनशॉट, कॉग्नाइट, द हिंदू
पिछले साल, पेगासस स्पाइवेयर घोटाले ने कई देशों की नींव हिला दी, जब खोजी पत्रकारों के सहयोग से राजनेताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और प्रेस को लक्षित करने के लिए ख़ुफ़िया स्पाइवेयर की व्यापक तैनाती का खुलासा हुआ था। रिपोर्टिंग से यह भी पता चला कि शीर्ष पत्रकारों सहित भारत में कई विपक्षी नेताओं को भी स्पाइवेयर द्वारा निशाना बनाया गया था, जिससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति द्वारा जांच की गई। पूरे दौरान मोदी सरकार ने इस बात से इनकार किया कि इजराइली कंपनी एनएसओ के सॉफ्टवेयर की खरीद से उसका कोई लेना-देना है।
हालाँकि, द हिंदू अखबार के एक खोजी पत्रकार ने भारतीय सेना द्वारा समान उत्पादों की खरीद का पता लगाने के लिए व्यापार डेटा का उपयोग किया। कहानी के अनुसार, एक ज्ञात स्पाइवेयर निर्माता तीन साल से अधिक समय से भारतीय सेना के सिग्नल इंटेलिजेंस निदेशालय (एसआईडी) को कंप्यूटर गियर की आपूर्ति कर रहा था।
The Ugly Side of New Delhi Hosting the G20

एक राजस्व रिकॉर्ड पर, एक सरकारी कर्मचारी एक महरौली भूखंड का उल्लेख करता है, जिस पर कई “अतिक्रमण” दर्ज किए गए हैं। छवि: स्क्रीनशॉट, मुक्ता जोशी, आर्टिकल 14
पिछले वर्ष G20 शिखर सम्मेलन के प्रतिभागियों के लिए भारत की राजधानी नई दिल्ली को एक चमकदार-स्वच्छ, विश्व स्तरीय शहर के रूप में प्रदर्शित करने के प्रयास का एक छिपा हुआ, बदसूरत पक्ष था। सौंदर्यीकरण के प्रयासों के तहत, 1,600 घरों और इमारतों को बिना किसी पूर्व सूचना या वैकल्पिक व्यवस्था के ध्वस्त कर दिया गया। एक रात में लगभग सवा लाख से अधिक लोग बेघर हो गए। आर्टिकल 14 के पत्रकारों ने चार इलाकों में अवैध विध्वंस की कहानी बताने के लिए जमीनी स्तर पर शोध किया। ये बड़े पैमाने पर निष्कासन केवल तीन महीने की अवधि में किए गए, जो सरकार के दावों का खंडन करते हैं कि वह कानून का पालन करते हैं।
Easy Access to Acid Via Online Sellers Amplifies Threat to Indian Women

चित्रण: स्क्रीनशॉट, रजत बरन, द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट
भारत में एसिड हमले नियमित रूप से सुर्खियाँ बनते हैं। इन हमलों का कारण अक्सर ज़बरदस्ती प्रेम, असफल रिश्ते, या स्त्री द्वेष होता है। इन हमलों के परिणामस्वरूप अक्सर कमजोर महिलाओं को नुकसान होता है। साल 2013 में, सार्वजनिक आक्रोश के बाद, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एसिड की बिक्री के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए, जिसमें कहा गया कि उत्पादों के विक्रेताओं को खरीदारों के विवरण, उनके पते और बेची गई मात्रा सहित एक रजिस्टर बनाए रखना होगा। लेकिन इस कानून के बावजूद, ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों ने एसिड बेचना जारी रखा है, जिससे इस तक आसान पहुंच उपलब्ध हो रही है। द मॉर्निंग कॉन्टेक्स्ट के एक खोजी रिपोर्टर ने ऑनलाइन प्लेटफार्मों के माध्यम से एसिड की उपलब्धता की जांच की और दस्तावेज किया कि कैसे महिलाओं को निशाना बनाने का लोकप्रिय हथियार लगभग सभी शॉपिंग प्लेटफार्मों पर उपलब्ध रहता है – बिना किसी जांच या कानूनी रूप से आवश्यक रिकॉर्ड के।
India’s Cough Syrup Testing Regime Has Alarming Blind Spot

छवि: पिक्टो/स्क्रीनशॉट, scroll.in
पिछले साल पश्चिमी अफ्रीकी देश गाम्बिया में 70 बच्चों की भारत में बने कफ सिरप पीने से मौत हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन मौतों को एक भारतीय निर्माता से जोड़ा है जिसने कथित तौर पर विषाक्तता का परीक्षण किए बिना अपने कफ सिरप में एक हानिकारक रासायनिक घटक का इस्तेमाल किया था। द स्क्रॉल के एक खोजी रिपोर्टर ने इस मुद्दे की गहराई से जांच की और पाया कि वह कंपनी अकेली नहीं थी। कई अन्य फर्मों को अपनी विनिर्माण लागत कम करने के लिए उचित परीक्षण के बिना इसी औद्योगिक ग्लिसरीन का उपयोग करते हुए प्रलेखित किया गया था।
दीपक तिवारी जीआईजेएन के हिंदी संपादक हैं। वह एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति हैं। रिपोर्टर, उप-संपादक, टेलीविजन कमेंटेटर, मीडिया सलाहकार और एक मीडिया स्टार्टअप के प्रबंध संपादक के रूप में 29 वर्षों से अधिक के अनुभव के साथ, वह मध्य प्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर दो पुस्तकों के लेखक भी हैं।