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जासूसी का शिकार होने से कैसे बचें पत्रकार?
यह लंदन में कड़ाके की ठंड का एक दिन है। गगनचुंबी इमारतों से होकर ठंडी हवा गुजर रही है। खिड़कियों से सूरज की रोशनी आ रही है। लोग अपने स्कार्फ कसकर ऊपर खींच रहे हैं।
ब्रिटेन और यूरोप के पत्रकारों का एक समूह पत्रकारों की निगरानी को समझने के लिए लंदन आया है। मैं भी इस समूह का हिस्सा हूं। हम जानना चाहते हैं कि क्या पत्रकारों को अपनी जासूसी के बारे में जानकारी मिल जाती है? अगर उन्हें मालूम हो, कि उनका पीछा किया जा रहा है, तो क्या वे उन लोगों को पहचान सकते हैं, जो उनका पीछा कर रहे हैं?
हमें दो-दो लोगों के जोड़े के रूप में बांट दिया गया। हमें ब्लूमबर्ग के कार्यालयों से नजदीकी मेट्रो स्टेशन तक खास रास्ते से जाने के लिए कहा गया। वहां से हमलोग सेंट पॉल कैथेड्रल तक मेट्रो से जाएंगे। फिर पैदल चलकर पास के एक मॉल तक जाएंगे। वहां हमें एक मिनट रुकना होगा। हम मात्र एक मील से भी कम दूरी की यात्रा कर रहे हैं। लेकिन हमारे पास देखने के लिए पांच रास्तों का मार्ग है।
हम जानते हैं कि हमारा पीछा किया जा रहा है। जो लोग उस दिन हमारा पीछा कर रहे थे, उन्हें सुबह में ही हमारी एक तस्वीर भेजी गई थी। वे जानते थे कि हमने क्या पहना है और हम किसके साथ हैं। उन्हें रास्ता भी पता है।
जबकि हमारा काम यह देखना है कि क्या हम उन्हें नोटिस कर सकते हैं? क्या हम उनकी पहचान करने लायक विशेषताओं को देख सकते हैं? उन्हें यह पता नहीं चलना चाहिए कि हमने उन्हें देखा है। यदि उन्होंने देख लिया कि हम उन्हें देख रहे हैं, तो हमें असफल मान लिया जाएगा। वास्तविक जीवन की स्थिति में आपको उस व्यक्ति से नज़रें नहीं मिलाना है, जो आपका पीछा कर रहा हो।
लगभग सोलह पत्रकारों के इस समूह में प्रसिद्ध मीडिया संस्थानों के पुरस्कार विजेता खोजी पत्रकार भी हैं। कुछ स्वतंत्र पत्रकार और संपादक हैं। इनमें कुछ पत्रकारों ने पहले ही शत्रुतापूर्ण वातावरण में काम करने का प्रशिक्षण पाया है। कुछ पत्रकारों को सुरक्षा तकनीकों में प्रशिक्षित किया गया है। पत्रकारों के ऐसे समूह से आप उम्मीद करेंगे कि उनमें से कुछ के पास छोटी-छोटी जानकारियों को उजागर करने की प्रतिभा होगी। वे किसी बिंदु पर स्वयं गुप्त हो सकते हैं। एक पेशेवर पत्रकार से उम्मीद की जाती है कि उनके पास लोगों, स्थितियों और परिदृश्यों का आकलन करने की कुशलता होगी? लेकिन कितने पत्रकारों ने उन जासूसों को देखा? किसी ने भी नहीं।
एक महिला पत्रकार का पीछा एक महिला जासूस ही कर रही थी। महिला पत्रकार कहती हैं- “मैंने सोचा, यह कोई लड़का या पुरुष है। यही बात मेरे दिमाग में थी।“
मैंने और मेरे साथी ने कुछ ऐसे लोगों की पहचान करने का प्रयास किया, जो संभवतः हमारी जासूसी कर रहे हों। कुछ लोग ऐसी जगहों पर तस्वीरें ले रहे थे, जो कोई फोटो लेने लायक लोकेशन नहीं थी। एक साधारण सड़क पर किसी ट्यूब स्टेशन के बाहर कुछ लोग थोड़े संदिग्ध दिख रहे थे। इसके बाद दो युवक हमारे पीछे-पीछे ट्रेन के प्लेटफार्म पर आए और पश्चिम की ओर जाने वाली उसी ट्रेन में बैठ गए। हम आखिरी डिब्बे में थे, इसलिए हमने उन्हें हमारे साथ ही ट्रेन से निकलकर प्लेटफ़ॉर्म पर इधर-उधर भटकते हुए अच्छी तरह से देखा। एक जगह जब उनकी नजर हम पर पड़ना मुश्किल था, तो ऐसे ब्लाइंड स्पॉट पर मैंने उनकी एक तस्वीर भी खींच ली। इस तरह हमें लगा कि अपने जासूसों की पहचान में हम सफल रहे।
लेकिन बाद में पता चला कि वे दोनों भी पत्रकार थे, जो हमारे ही इस समूह के साथ बिल्कुल वही अभ्यास कर रहे थे। मैं उनमें से एक पत्रकार को जानती भी थी, लेकिन उसका चेहरा नहीं देखा था। हम अपने ‘जासूसों‘ को देखकर इतने आश्वस्त हो गए कि हमने असल जासूसों की तलाश करना भी बंद कर दिया।
हमारी जासूसी एक फिल्म निर्माता कर रही थी। वह एक चेक वाला कोट और टोपी पहनी हुई थी। वह बिना किसी बाधा के आसानी से हमारा पीछा कर रही थी। उसने बताया कि मेरे हरे कोट ने मुझे पहचानना आसान बना दिया था। उसने वही पहना था, जो वह हमेशा पहनती है। इसलिए वह अन्य लोगों के साथ पूरी तरह से मिश्रित हो गई थी। वह अपने साथ अपना कुत्ता भी लाई थी क्योंकि किसी को संदेह नहीं होगा कि कुत्तों को घुमा रहे लोग कोई निगरानी का काम करेंगे।
हमारे समूह के दो पत्रकारों के एक जोड़े के साथ भी दिलचस्प मामला हुआ। लंबे दुपट्टे वाला एक युवक उनका पीछा कर रहा था। जबकि ऐसा लग रहा था वह किसी काम से बैंक जा रहा है। एक और बात यह है कि यह एक बूढ़ा, गंदा स्पॉटर था जिसे किसी ब्लॉकबस्टर फिल्म में एमआई6 एजेंट के रूप में नहीं लिया गया होगा।
इसके बाद जब वे सभी जासूस हमसे मिलने आए। तब हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया गया- यह मत समझिए कि आप जानते हैं कि आपके पीछे आने वाला व्यक्ति कैसा दिख सकता है।
जासूस का पता कैसे लगाएं
हमारे समूह के एक पत्रकार को संदेह था कि उनकी ताजा रिपोर्टिंग के कारण वह निगरानी का शिकार हो सकते हैं। उन्हें संदेह था कि अतीत में उनकी जासूसी की गई थी। वह कहते हैं कि मैं जिन विषयों की जांच कर रहा हूं, वैसे विषयों के कारण मेरी निगरानी होने की हमेशा चिंता है। इसलिए इससे बचने के लिए मैं हर संभव प्रशिक्षण ले रहा हूं।
एक अन्य पत्रकार को पता था कि उन पर पहले भी निगरानी होती रही है। उन्होंने ऐसे प्रशिक्षण की कभी आवश्यकता महसूस नहीं की थी। लेकिन कठिन तरीके से सीखा कि लोकतंत्र में भी ऐसे लोग हो सकते हैं जो आपकी गतिविधियों पर नज़र रखना चाहते हैं। जो लोग इस पर नजर रखते हैं कि आप किससे मिल रहे हैं।
इस परियोजना का संचालन फ्रैंक स्मिथ, कार्यकारी निदेशक (ग्लोबल जर्नलिस्ट्स सिक्यूरिटी) कर रहे थे। यह संस्था पत्रकारों को प्रतिकूल वातावरण प्रशिक्षण और सुरक्षा सलाह प्रदान करती है। वे कहते हैं- एक पत्रकार के रूप में आप जो कुछ भी करते हैं, उसमें सुरक्षा का ध्यान रखना ज़रूरी है। जागरूक होने और पागल होने के बीच एक महीन रेखा है।“
इस प्रयोग के लिए वॉक-थ्रू के दौरान हम एक खास मार्ग पर चल रहे थे। लेकिन वास्तविक जीवन में हम काम और घर के बीच अपने रास्ते पर ज्यादातर एक ही रास्ते पर चलते हैं। निकटतम ट्रेन या स्टेशन से लेकर हमारे पसंदीदा कैफे तक, कार्यालय और बच्चों के स्कूल तक एक ही रास्ता होता है। किसी निगरानी टीम को आपके प्रमुख मार्गों, समय और गंतव्यों को जानने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
फ्रैंक स्मिथ कहते हैं कि अपना रास्ता बदलते रहें। यह आपकी निगरानी को कठिन बनाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है। यह उन पत्रकारों के लिए खास जरूरी है, जो ‘स्थितिजन्य जागरूकता’ विकसित करने के लिए निगरानी में आ सकते हैं।

पत्रकारों में ‘स्थितिजन्य जागरूकता’ होनी चाहिए। किसी भी असामान्य चीज या व्यक्ति के प्रति सतर्क रहना चाहिए। इमेज : शटरस्टॉक
उन्होंने कहा- “हर महिला में स्थितिजन्य जागरूकता की स्पष्ट भावना होती है। कोई महिला रात में एक इलाके से अकेले गुजरती है, तो वह अपने परिवेश के बारे में जागरूक रहती है। किसी जोखिम की संभावना वाले पत्रकारों में भी यह जागरूकता होनी चाहिए। किसी जोखिम वाली संवेदनशील परियोजनाओं पर काम करते समय और अपने दैनिक जीवन में भी यही रवैया अपनाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि सभी पत्रकारों को डिजिटल और मोबाइल निगरानी के जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए। भौतिक निगरानी कैसे काम कर सकती है, इस पर विचार करना भी महत्वपूर्ण है। किसी के घर या कार्यस्थल पर स्थायी या स्टैटिक निगरानी से लेकर पीछा करके निगरानी तक। पैदल या सार्वजनिक परिवहन से साथ चलने वाले लोगों और वाहनों से सावधान रहें। स्टैटिक निगरानी में कहीं सीसीटीवी या गुप्त कैमरा लगाने से लेकर किसी व्यक्ति को एक ही जगह से लगातार नजर रखने जैसे तरीके शामिल हैं।
उन्होंने कहा- “निगरानी का मकसद जानकारी इकट्ठा करना या आपके संपर्कों के बारे में जानना हो सकता है। यही (हार्वे) विंस्टीन का लक्ष्य था। यह संपर्कों को डराना, सबूत नष्ट करना, यहां तक कि हमले, अपहरण या अपहरण से पहले टोह लेना भी हो सकता है। कई उदाहरण बताते हैं कि किसी पत्रकार की हत्या से पहले उन पर निगरानी रखी जा रही थी।“
2018 में स्लोवाकिया में एक खोजी पत्रकार जान कुसियाक तथा उनकी मंगेतर की हत्या हुई थी। एक आधिकारिक जांच में पाया गया कि हत्या से पहले कई अन्य पत्रकारों के साथ उन पर निगरानी हो रही थी।
बाल्कन इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग नेटवर्क की 2023 की एक जांच देखें । यह मध्य और दक्षिण-पूर्व यूरोप के 15 देशों में पत्रकारों के एक सर्वेक्षण पर आधारित थी। इसमें पाया गया कि मोबाइल फोन को निशाना बनाने वाले पेगासस जैसे नए जासूसी उपकरणों के बावजूद निगरानी के ’पारंपरिक’ तरीकों का अब भी काफी उपयोग हो रहा है। जैसे, वायरटैपिंग या भौतिक निगरानी। रिपोर्ट के अनुसार कुछ निगरानी करने वालों में सरकारी अधिकारी भी शामिल होते हैं। उनका प्रयास पत्रकारों के स्रोतों के बारे में पता लगाना या कुछ दबाव डालने योग्य सामग्री की तलाश करना होता है।
काउंसिल ऑफ यूरोप ने प्रेस की स्वतंत्रता पर 2024 की रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि निगरानी के कारण पत्रकारों के गोपनीय स्रोतों की आवश्यक सुरक्षा खत्म हो जाती है। ऐसी निगरानी पत्रकारों को डराती है और उन्हें संवेदनशील मामलों की जांच करने से रोकती है। यह निष्कर्ष पत्रकारों की सभी प्रकार की निगरानी पर आधारित थे।
पत्रकारों के लिए सुझाव
यदि किसी रिपोर्टर को लगता है कि वे भौतिक निगरानी में है, तो उन्हें क्या करना चाहिए? इस पर अलग-अलग स्थिति के अनुसार अलग सुझाव होंगे। यदि आप लंदन, वाशिंगटन या मॉस्को में हैं तो अलग तरीका होगा। फ्रैंक स्मिथ के अनुसार सामान्य तौर पर कभी ऐसे व्यक्ति से न उलझें, जिस पर यह संदेह हो कि वह आपका पीछा कर रहा है। उसके साथ आँख से संपर्क करने से बचें।
“यदि आप 2000 के दशक की शुरुआत में सीरिया में होते और आप किसी जासूसी करने वाले से आँख मिलाते, तो वे तुरंत आपका अपहरण कर लेते। इसलिए आप कभी उसकी ओर आँख उठाकर न देखें। अगर आपका पीछा किया जा रहा हो, तो अपने परिवेश को ध्यान से देखने के बजाय लापरवाही से “स्कैन“ करने का प्रयास करें, ताकि आपको पहचाना न जा सके। फोन एक अच्छा सहारा है, लेकिन अगर आप ओवरएक्टिंग करेंगे तो उन्हें पता चल जाएगा।“
यह सुनिश्चित करें कि आप किसी शांत, अंधेरे या अलग-थलग क्षेत्र में नहीं घूम रहे हैं। जितना संभव हो सके, आप अकेले न रहें। दो लोगों का अपहरण करना बहुत कठिन है। उन्होंने कहा- “अगर आपको लगता है कि आपका पीछा किया जा रहा है, तो किसी सुरक्षित स्थान – किसी दुकान या कैफे में चले जाएं। सड़क पर आपको घबराहट होगी। आपके पास सांस लेने का समय होगा। आप देखें कि क्या आपके पीछे उस व्यक्ति को भी रुकना पड़ा है, अथवा नहीं।“
फ्रैंक स्मिथ से अन्य सुझाव –
- अपने मार्ग का विश्लेषण करें। जहां आपको जाना है, उसके मानचित्र की समीक्षा करें। अपने फ़ोन पर मैप को लगातार देखना बंद करें। आसपास का परिवेश देखना जरूरी है।
- असामान्य चीजों पर ध्यान दें। अगर आप एक ही व्यक्ति को एक, दो या तीन बार देखते हैं तो सावधान हो जाएं।
- स्थितिजन्य रूप से जागरूक बनें। यदि आपको लगे कि निगाहें आप पर हैं, सतर्क रहें। लेकिन ऐसा न देखें कि उसे पता चल जाए कि आप सतर्क हैं।
- अगर आपको संदेह है कि आपका पीछा किया जा रहा है तो उसे घूरें नहीं। इससे उन्हें पहले कार्रवाई करने का समय मिलेगा। इससे बचकर आपको खतरे का विश्लेषण करने का अवसर मिलेगा।
- खुद को एक कठिन लक्ष्य बनाने के लिए अपने मार्गों में बदलाव करें।
- यदि आप आश्वस्त हैं कि आपका पीछा किया जा रहा है, तो सड़क से हट जाएं। सहकर्मियों से बातचीत करने के लिए सिग्नल का उपयोग करें।
- किसी ऐसे व्यक्ति का विवरण नोट करें जिस पर आपका पीछा करने का संदेह हो। उसका लिंग, जाति, ऊंचाई, उम्र, वजन, बालों का रंग, कपड़ों की शैली और विशिष्ट विशेषताएं आदि नोट करें। यदि वह कार में है, तो उसके मॉडल और नम्बर पर ध्यान दें।
लॉरा डिक्सन जीआईजेएन में एसोसिएट एडिटर और यूके की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उन्होंने कोलंबिया, अमेरिका और मैक्सिको से रिपोर्ट की है। उनकी रिपोर्ट्स का प्रकाशन द टाइम्स, द वाशिंगटन पोस्ट और द अटलांटिक में हुआ है। उन्हें आईडब्ल्यूएमएफ और पुलित्जर सेंटर से फ़ेलोशिप मिली है।
अनुवाद : डॉ. विष्णु राजगढ़िया