Asia Focus environmental exploitation
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Illustration=: Nyuk for GIJN

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एशिया में घटती प्रेस की स्वतंत्रता के बावजूद पर्यावरण अपराधों पर साझा पत्रकारिता कैसे हो रही है

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रेत (बालू) को आम तौर पर छुट्टियों में समुद्र किनारे घूमने के बतौर देखा जाता है। इससे हमें विश्राम के क्षणों की याद आती है। लेकिन यह पर्यावरण से जुड़ा एक प्रमुख मुद्दा है। कंक्रीट बनाने में यह एक प्रमुख पदार्थ है। शहरी निर्माण योजनाओं तथा भूमि सुधार परियोजनाओं के लिए भारी मात्रा में रेत का खनन किया जाता है।

रेत के नीचे – वर्ष 2022 में पत्रकार बुधी नर्गियांतो (इंडोनेशिया) और नबीला सैद (सिंगापुर) ने अवैध रेत उत्खनन की संयुक्त जांच की। उसमें इंडोनेशिया के आचेह और भारत के कश्मीर से जुड़े स्थान शामिल थे। अवैध ड्रेजिंग की यह जांच सिंगापुर और चीन की परियोजनाओं से जुड़ी थी। इस जांच ने उजागर किया कि भूमि पुनर्ग्रहण प्रक्रिया किस तरह बड़ी मात्रा में रेत सोख लेती है। इससे पर्यावरण को भारी क्षति होती है। अवैध रेत का व्यापार करने वाले अंतरराष्ट्रीय आपराधिक गिरोहों को इससे काफी लाभ होता है।

यह एक व्यापक सीमा-पार जांच का हिस्सा थी। इसे वर्ष 2024 में सोसाइटी ऑफ़ पब्लिशर्स इन एशिया ने ‘एक्सीलेंस इन जर्नलिस्टिक इनोवेशन’ का पुरस्कार दिया।

पूरे एशिया में जलवायु और पर्यावरण मामलों पर रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार सीमाओं के पार आकर साझेदारी कर रहे हैं। यह रणनीति उन्हें पर्यावरणीय नुकसानों का पता लगाने, इसके कारण और प्रभाव की पड़ताल में सक्षम बना रही है। ज़मीनी स्तर पर इसके लिए जिम्मेदार शक्तिशाली ताकतों को उजागर करने में भी मदद मिल रही है।

एशिया महाद्वीप का आकार विशाल है। इसकी जनसंख्या भी अधिक है। इसलिए इसे वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की सर्वाधिक मात्रा के लिए दोषी समझा जाता है। इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन या पर्यावरणीय अपराधों से जुड़ी प्रमुख वस्तुओं का उपभोग भी होता है। जैसे, जीवाश्म ईंधन, पाम ऑयल, सोयाबीन इत्यादि। इन व्यापारों के साथ काफी बड़ा धन जुड़ा है। इस क्षेत्र को अवैध गतिविधियों और तस्करी का एक प्रमुख माध्यम बनाने वाले लोग पर्दे के पीछे से छिपे रहते हैं।

ऐसी कहानियों को उजागर करने वाले पत्रकार काफी चुनौतीपूर्ण माहौल में काम कर रहे हैं। इन क्षेत्रों के खोजी पत्रकारों को प्रेस की स्वतंत्रता में गिरावट का सामना करना पड़ रहा है। पूरे एशिया में पर्यावरण संबंधी रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को सेंसरशिप और गिरफ्तारी का खतरा है। ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने एशिया को पर्यावरण पत्रकारों के लिए ‘खतरनाक क्षेत्र’  बताया है।

कई पर्यावरण पत्रकारों को लंबी जेल की सज़ा भुगतनी पड़ी है। कुछ को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। भारत में रेत माफिया की जांच कर रहे पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी की 2020 में गोली मारकर हत्या कर दी गई। म्यांमार में दुर्लभ मृदा खनन का व्यापक विस्तार हो रहा है। वहां संघर्ष वाले क्षेत्रों के पत्रकारों को अपनी स्टोरी के साथ अपना नाम लिखना तक जोखिम भरा लगता है।

पर्यावरण संबंधी ज़रूरी मुद्दे स्वाभाविक तौर पर देशों की सीमाओं से परे होते हैं। इसलिए अच्छी जांच के लिए विभिन्न देशों में काम करना आवश्यक है। लेकिन भाषा, दूरी, प्रेस की स्वतंत्रता से जुड़े मामलों और संसाधनों की कमी के कारण साझा पत्रकारिता काफी चुनौतीपूर्ण है। इसके बावजूद, स्थानीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण विषयों पर खोजी पत्रकारिता के उदाहरण देखने को मिलते हैं। इनमें अवैध रेत खनन, मृदा स्वास्थ्य, समुद्र के स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसे मामले शामिल हैं। ऐसी जांच के लिए पत्रकारों द्वारा आपस में सूचनाएं साझा करने का अच्छा लाभ हुआ है।

जीआईजेएन ने इस विविधतापूर्ण भौगोलिक क्षेत्र में पर्यावरण संबंधी महत्वपूर्ण विषयों की साझा जांच की बाधाओं को दूर करने के तरीके खोज रहे संगठनों, संपादकों और पत्रकारों से बात की है।

एशिया के लिए सहयोगी मॉडल

सैम श्राम्स्की (विशेष परियोजना संपादक, अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क- (EJN)) कहते हैं – “एशिया में सीमा पार साझा पर्यावरण रिपोर्टिंग की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन इसमें कई चुनौतियां हैं। ऐसी ज़्यादातर रिपोर्टिंग यूरोप या संयुक्त राज्य अमेरिका में होती हैं। जबकि कई कारणों से ऐसे प्रयोग एशिया-प्रशांत क्षेत्र में लागू नहीं हो पाते हैं।”

दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विकास, लोकतांत्रिक शासन या प्रेस की स्वतंत्रता के स्तर में भारी अंतर देखने को मिलता है। हरेक देश के अंदर भी दर्जनों भाषा, अलग-अलग धार्मिक या जातीय समूह मिलते हैं। ये सभी कारक ज़मीनी रिपोर्टिंग या डेटा संग्रह को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।

ईजेएन ने ऐसी चुनौतियों का हल निकालने का प्रयास किया है। इसके लिए इस क्षेत्र में मीडिया विकास कार्य के इतिहास को आधार बनाकर और हरेक देश में समन्वयकों का एक मज़बूत नेटवर्क बनाया है। पत्रकारों व मीडिया संस्थानों के विविध समूहों के साथ मौजूदा संबंधों का लाभ उठाया जा रहा है।

सैम श्राम्स्की बताते हैं- “हमने अपने विभिन्न साझेदारों के साथ मिलकर इसमें हाथ आजमाने का प्रयास किया है। ये लोग जो अपने स्तर से साझेदारी आधारित जांच नहीं कर पाए थे। हमारे लिए यह अपने मौजूदा नेटवर्क पर आधारित एक सहकारी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने जैसा है।”

ईजेएन ने विगत एक दशक में कई जांच आधारित रिपोर्टिंग की हैं। उनकी नवीनतम रिपोर्ट, ग्राउंड ट्रुथ्स को 2025 एसओपीए पर्यावरण रिपोर्टिंग उत्कृष्टता पुरस्कार में सम्मानजनक स्थान मिला। इसके तहत एशिया के 11 मीडिया संस्थानों को मृदा क्षरण से जुड़े विषयों पर शोध करने के लिए एक साथ लाया गया।

सैम श्राम्स्की कहते हैं- “हमने कई पत्रकारों से सुना था कि मृदा क्षरण के बारे में वास्तव में अब तक बहुत कम जानकारी सामने आई है।”

यह महज एक विशिष्ट, स्थानीय कहानी लगती थी। लेकिन उसके कई व्यापक क्षेत्रीय निहितार्थ हैं। पूरे एशिया में खराब मृदा प्रबंधन प्रणाली, तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण, विनाश की ओर बढ़ती कृषि, वनों की कटाई, मरुस्थलीकरण, खनन और जलवायु संकट ने मृदा क्षरण को और बदतर बना दिया है। गुयेन थू क्विन (वियतनामी पत्रकार) के अनुसार इस विषय की जांच के लिए साझेदारी करना एक अच्छा कदम साबित हुआ। जन स्वास्थ्य पर मृदा क्षरण के दुष्प्रभाव पर अब तक बेहद कम रिपोर्टिंग की गई है। हमने अपनी जांच में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों द्वारा मृदा, सतही जल और भूजल को दूषित करने जैसे कई मुद्दों को शामिल किया है।

अर्थ जर्नलिज़्म नेटवर्क (EJN) की बहु-भागीय खोजी पड़ताल ने महाद्वीप भर के 11 मीडिया संगठनों को साथ लाकर मिट्टी के स्वास्थ्य में गिरावट के कारणों और उसके दूरगामी प्रभावों की पड़ताल की। छवि: स्क्रीनशॉट, EJN

ईजेएन ने विभिन्न देशों में वैज्ञानिक आंकड़ों सहित स्रोतों को साझा करने की सुविधा प्रदान की। इसके कारण प्रमुख मुद्दों की तुलना करना और उनकी पहचान संभव हुई। इस जांच के तहत प्रत्येक मीडिया संस्थान को अपने पाठकों के लिए अपने अनुसार कहानी लिखने की अनुमति थी।

जैसे, गुयेन थू क्विन ने अपने देश वियतनाम संबंधी कहानी  में क्षेत्रीय रिपोर्टिंग, वैज्ञानिक विश्लेषण और आँकड़े एकत्र करने जैसे कामों को प्राथमिकता दी। उनकी जांच घनी आबादी वाले मेकांग नदी डेल्टा में घटती मिट्टी की सेहत और कृषि उत्पादकता पर केंद्रित थी। इसी तरह भारत में ‘डाउन टू अर्थ’ के लिए शगुन कपिल ने जांच-पड़ताल की। उनकी रिपोर्ट मिट्टी की उर्वरता के संकट और खाद्य सुरक्षा पर उसके प्रभावों पर केंद्रित थी। उन्होंने यह पता लगाने का प्रयास किया कि भारत का अन्न भंडार कहे जाने वाले पंजाब के समृद्ध कृषि क्षेत्रों में क्या हो रहा है।

शगुन कपिल कहते हैं कि मिट्टी “मनुष्यों, पशुओं, जैव विविधता और पर्यावरण के बीच एक साझा सूत्र” का प्रतिनिधित्व करती है। पत्रकार अपनी कहानियों को “मिट्टी की सेहत और व्यापक मुद्दों, जैसे मिट्टी में ज़िंक और आयरन जैसे सूक्ष्म और स्थूल पोषक तत्वों की उपलब्धता और किसी विशेष क्षेत्र के लोगों की पोषण स्थिति, के बीच महत्वपूर्ण संबंध को स्पष्ट करके” बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं।

स्थानीय-प्रथम की धारणा

पर्यावरण रिपोर्टिंग कलेक्टिव (ERC) वर्ष 2020 से, एशिया-केंद्रित सीमा-पार सहयोगी पत्रकारिता का नेतृत्व कर रहा है। यह एक अनूठा मॉडल विकसित कर रहा है। इयान यी (कार्यकारी निदेशक) के अनुसार यह एक जटिल और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में काम करने की वास्तविकता से मेल खाता है।

इयान यी कहते हैं- “हम प्रत्येक देश के इन मुद्दों में रुचि रखते वाले पत्रकारों को जोड़ते हैं। हम उनकी मदद करते हैं। उन्हें कहानी को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक उपकरण और धन प्रदान करते हैं। फिर सहयोगात्मक रूप से कुछ बड़ा बनाते हैं। हम एक ऐसी संस्कृति बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, जहां सहयोग का माहौल विकसित हो। हम इसे पूरी तरह से नहीं कर पाए हैं। लेकिन हमें लगता है कि हम सही रास्ते पर हैं। हमारी प्राथमिकता यह है कि कहानियां संबंधित क्षेत्र के मीडिया संस्थानों में प्रकाशित हों। यह पर्याप्त होना चाहिए।”

पुरस्कार विजेता सीमा-पार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट बिनीथ द सैंड्स (Beneath the Sands) ने उजागर किया कि किस तरह बड़े पैमाने पर की जा रही रेत की खुदाई (सैंड ड्रेजिंग) स्थानीय आबादी पर गहरे पारिस्थितिक असर डालती है और इसके गंभीर मानवीय परिणाम भी सामने आते हैं। छवि: स्क्रीनशॉट, ERC

ईआरसी का एशिया मुख्यालय आधिकारिक तौर पर इंडोनेशिया में है। लेकिन इसकी मुख्य टीम के सदस्य पूरे एशिया महाद्वीप में फैले हुए हैं। यह अधिकांश वैश्विक खोजी रिपोर्टिंग संगठनों से एक स्पष्ट अंतर है, जो मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका या यूरोप में स्थित हैं। यह समूह हर साल एक एकल, सीमा-पार सहयोग कार्यक्रम चलाता है। यह आमतौर पर नेटवर्क सदस्यों की एक वैश्विक बैठक में तय किए गए विषय पर होता है। इसने अब तक ‘बेनीथ द सैंड्स’ के अलावा तीन पुरस्कार विजेता शोध प्रकाशित किए हैं-

  1. पैंगोलिन रिपोर्ट्स  – इसमें उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से दक्षिण-पूर्व एशिया होते हुए चीन और हांगकांग तक पैंगोलिन के व्यापार को जोड़ने वाले पहलुओं की पड़ताल की गई।
  2. ओशन्स इंक  – दक्षिण चीन सागर में अत्यधिक मछली पकड़ने की जांच।
  3. ग्रीड ऑफ ग्रीन – स्वच्छ तकनीक के लिए महत्वपूर्ण खनिज खनन में उछाल के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की जांच।

2023 में प्रकाशित ‘बेनीथ द सैंड्स’ ने चीन, वियतनाम, श्रीलंका, नेपाल, फिलीपींस और भारत में रेत से संबंधित अपराधों का दस्तावेजीकरण किया। इसकी कहानियां छह एशियाई मीडिया संस्थानों में प्रकाशित हुईं। इसने समुद्र तटों या नदियों में रेत खनन जैसे एक स्थानीय मुद्दे चीन और वियतनाम जैसे स्थानों में बड़ी निर्माण कंपनियों और परियोजनाओं से जोड़ दिया। इसके कारण पत्रकारों को विदेश में अन्य  पत्रकारों के साथ सीधे काम करने का अवसर मिला।

ईआरसी प्रत्येक जांच पर आधारित सहयोगात्मक वैश्विक कहानियों को अंग्रेजी में प्रकाशित करता है। ऐसी कहानियां एशिया भर में ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे विभिन्न पत्रकारों के मुख्य विषयों को एक साथ जोड़ती हैं। ऐसी साझा कहानियों पर काम करने वाली टीमों को ईआरसी द्वारा संपादकीय, वित्तीय और रसद सहायता भी उपलब्ध कराई जाती है। फ्रीलांसर और मीडिया संस्थान अपने स्थानीय मीडिया या स्थानीय भाषाओं में अपनी कहानियां प्रकाशित करने के लिए स्वतंत्र हैं।

इयान यी कहते हैं – “एशिया जैसे विविध क्षेत्र में इन सबका समन्वय करने के लिए काफी धैर्य की आवश्यकता होती है। अपेक्षाओं का प्रबंधन शायद सबसे महत्वपूर्ण बात है। हमें लचीला होने और सहयोगियों के प्रति सहानुभूति रखने की आवश्यकता है।”

एशिया क्षेत्र में रहने से इयान यी को यह भी पता चला कि खोजी रिपोर्टिंग कितनी कठिन हो गई है। हालांकि एशिया दुनिया का एकमात्र हिस्सा नहीं है, जो प्रेस की स्वतंत्रता की चुनौतियों का सामना कर रहा है। म्यांमार, चीन, वियतनाम या फिलीपींस जैसे देशों में अक्सर अनोखी स्थानीय परिस्थितियाँ भी स्थानीय दृष्टिकोण को और भी महत्वपूर्ण बना देती हैं, जहां राज्य पत्रकारों को बहुत अलग तरीकों से नियंत्रित करता है। वह कहते हैं- “ऐसे पत्रकार हैं, जो धन की कमी, बढ़ते जोखिमों और चुनौतियों के बावजूद काम करना जारी रखे हुए हैं। इस क्षेत्र के लिए यह वाकई एक ज़रूरी समय है। हमें समर्थन करने की ज़रूरत है। हमें और मदद करनी चाहिए।”

चीन की भूमिका पर रिपोर्टिंग

एशिया में एक बड़ी चुनौती यह है कि चीन पर रिपोर्टिंग कैसे की जाए। यह दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है। यह एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन कई देशों का व्यापारिक साझेदार और निवेशक भी है। इसके बावजूद प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में चीन दुनिया में तीसरे सबसे निचले पायदान पर है। यहां एक सच्चे, स्वतंत्र मीडिया का अभाव है। कई मामलों में चीन के अंदर पत्रकारों के सामने जोखिम हैं। ज़मीनी स्तर पर रिपोर्टिंग करने में विदेशी पत्रकारों की क्षमता को सीमित करने वाली बाधाएं भी हैं। इसके कारण साझा जांच के लिए चीन के बाहर के पत्रकारों पर निर्भर रहना पड़ता है।

सौर ऊर्जा उपकरणों के उत्पादन के प्रमुख केंद्र उइगरों के गृह क्षेत्र शिनजियांग और तिब्बत में चीन का लिथियम का एक बड़ा भंडार है। यहां बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियां संचालित होती हैं। लेकिन ऐसे क्षेत्रों की रिपोर्टिंग लगभग असंभव साबित हुई है। दोनों क्षेत्र विदेशी या स्वतंत्र चीनी पत्रकारों के लिए लगभग पूरी तरह से दुर्गम बने हुए हैं। स्थानीय लोगों को पत्रकारों से बात करने या डेटा साझा करने पर भी प्रतिशोध का खतरा रहता है।

ईआरसी और ईजेएन सहित कई सहयोगी संगठनों ने चीनी भाषा के साझेदार मीडिया संस्थान के रूप में ‘द इनिशियम’ को साथ लिया। सिंगापुर स्थित इस संस्था की स्थापना 2015 में हुई थी। यह दुनिया भर के चीनी भाषा के पाठकों के लिए दीर्घकालिक और खोजी पत्रकारिता करने वाला मीडिया संगठन है।

‘द इनिशियम’ की लंबे समय से संपादक और अब प्रकाशक लुलु निंग हुई कहती हैं- “चीन की मुख्य भूमि हांगकांग और ताइवान में हमारी जड़ें बहुत मज़बूत हैं। इसलिए अगर किसी प्रोजेक्ट में चीनी दृष्टिकोण हो, तो अक्सर हम उनकी खोज में शामिल होते हैं। अगर हमें कोई ऐसी चीज़ मिलती है जो हमें रिपोर्टिंग के लायक हो और हमारे पाठकों के लिए दिलचस्प लगती है, तो हम उसमें निवेश करने का फैसला करते हैं।”

‘द इनिशियम’ चीन में काम करने की कुछ चुनौतियों का सामना करने में सक्षम है। उसके पास फ्रीलांसरों का एक नेटवर्क है, जो साझा जांच में शामिल होते हैं। जलवायु और पर्यावरण उनके मुख्य विषयों में से एक है। लुलु निंग हुई के अनुसार यह विषय अक्सर अन्य मुद्दों से जुड़ा होता है। वह कहती हैं- “जलवायु परिवर्तन हमारी रिपोर्टिंग के प्रमुख विषयों में से एक है। यह हमारे द्वारा कवर की जाने वाली हर चीज़ से संबंधित है। जैसे लिंग, तकनीक, आव्रजन, राजनीति या समाज।”

चीन में डूबते शहरों और समुद्र-स्तर के खतरे पर डेटा-आधारित जांच करने वाली संस्था ‘द इनिशियम’ की एक स्टोरी को पिछले वर्ष SOPA पुरस्कार मिला। इस स्टोरी पर लुलु निंग हुई को विशेष गर्व है। वह कहती हैं- “मुझे लगता है कि एक जटिल विषय को पाठकों तक आसान तरीके से पहुंचाने का शानदार उदाहरण है।”

सिंगापुर स्थित चीनी समाचार वेबसाइट दि इनिशियम (The Initium) को हाल ही में समुद्र-स्तर में बढ़ोतरी और डूबते चीनी शहरों पर अपनी रिपोर्टिंग के लिए सोपा (SOPA) अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। छवि: स्क्रीनशॉट, इनिशियम मीडिया

हालांकि ‘द इनिशियम’ सीमित संसाधनों वाला एक छोटा मीडिया संगठन है। दुनिया भर में चीन की बढ़ती भूमिका को कवर करने की भारी मांग को पूरा करना इसके लिए संभव नहीं।

लुलु निंग हुई कहती हैं- “मैं समझती हूँ कि चीन की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए हमारी पहुंच और हमारी समझ शायद बहुत दुर्लभ हो सकती है। मैं चाहती हूँ कि चीनी पत्रकारों और अन्य पत्रकारों के बीच सहयोग के लिए एक समृद्ध परिदृश्य हो। हम इसे बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।”


नितिन कोका एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह मुख्य रूप से एशिया के बारे में गहन फ़ीचर और जाँच-पड़ताल प्रकाशित करते हैं। उनका काम अक्सर अंतर्संबंधित मुद्दों पर केंद्रित होता है। जैसे, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार, या आपूर्ति श्रृंखलाएँ, जिसे वह पूरे क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षरण से जोड़ते हैं। उन्हें सॉल्यूशंस जर्नलिज्म नेटवर्क, द पुलित्जर सेंटर और जर्नलिज्म फंड ईयू से फेलोशिप प्राप्त हुई हैं। उनके फीचर लेख वॉक्स, द फाइनेंशियल टाइम्स, फॉरेन पॉलिसी, अल जज़ीरा, द नेशन और कोडा स्टोरी में प्रकाशित हुए हैं।

चित्रांकन: न्युक का जन्म 2000 में दक्षिण कोरिया में हुआ था। वे वर्तमान में सियोल स्थित हानयांग विश्वविद्यालय के एप्लाइड आर्ट एजुकेशन विभाग में अध्ययन कर रहे हैं और वहीं इलस्ट्रेटर के रूप में कार्य भी करते हैं। 2021 में हिडन प्लेस प्रदर्शनी से शुरुआत करने के बाद उन्होंने कई चित्रांकन प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया है। उनकी मुख्य रुचि हाथ से चित्रकारी करने  में है, जो उनके कला संसार के मूल्यों को अभिव्यक्त करती है।

अनुवाद: डॉ. विष्णु राजगढ़िया

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