इमेज: मैसूर में एक मतदाता सहायता केंद्र पर जानकारी लेते हुए भारतीय नागरिक, अप्रैल 2024, इमेज - शटरस्टॉक
इमेज: मैसूर में एक मतदाता सहायता केंद्र पर जानकारी लेते हुए भारतीय नागरिक, अप्रैल 2024, इमेज - शटरस्टॉक

Indian citizens in Mysuru getting help at a voter assistance booth, April 2024. Image: Shutterstock

आलेख

भारतीय चुनावों में फ़ैक्ट चेकिंग के सबक

इस लेख को पढ़ें

दुनिया भर के देशों में गलत सूचना (मिस-इनफोरमेशन) बहुत बड़ा खतरा है। वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम की ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2024 में यह बात कही गई है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है। यह दुष्प्रचार और गलत सूचनाओं के जोखिम वाला प्रमुख देश है। अप्रैल-मई 2024 में भारतीय संसद के लिए राष्ट्रीय चुनाव हुए हैं। दुनिया भर के पचास से अधिक अन्य देशों में भी इसी वर्ष चुनाव होने वाले हैं। इसलिए विश्व स्तर पर लोकतंत्रों के लिए यह अभूतपूर्व समय है। पत्रकारों के लिए भी यह एक परीक्षा का दौर है।

भारतीय चुनावों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। खासकर इस संदर्भ में, कि गलत सूचना किस तरह विभिन्न प्रारूपों, भाषाओं और क्षेत्रों में ऑनलाइन प्रसारित होती हैं। भारत में मीडिया और सूचना परिदृश्य तेजी से विकसित हो रहा है। बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। अधिकतर लोग अपने फोन के माध्यम से इंटरनेट से जुड़ रहे हैं। आज आधे से अधिक भारतीय, यानी लगभग 87 करोड़ लोग इंटरनेट के सक्रिय उपयोगकर्ता हैं। इसने एक नई चुनौती पैदा कर दी है। ऑनलाइन असत्यापित सूचनाओं के कारण अक्सर समाचारों के भरोसेमंद स्रोत नजरअंदाज हो जाते हैं।

दुनिया भर के चुनावों में गलत सूचनाओं का विपरीत प्रभाव देखने को मिल रहा है। इनका उपयोग मतदाताओं को धोखा देने के लिए किया जाता है। इसके कारण चुनावी प्रक्रिया में नागरिकों का भरोसा कम हो रहा है। मानव इतिहास में पहले की तुलना में अब नागरिकों के पास जानकारी के लिए अनगिनत विकल्प हैं। यह एक बड़ी चुनौती है। अब लोगों को सच्ची और झूठी जानकारी के बीच अंतर करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। शोध से पता चलता है कि लोग झूठ के संपर्क में जितना अधिक आते हैं, उसे सच मान लेने की उतनी ही अधिक संभावना होती है। भले ही यह जानकारी उनकी मौजूदा मान्यताओं के विपरीत हो। ऐसे परिदृश्य में चुनाव के दौरान गलत सूचना प्रसारित करने की नकारात्मक होड़ देखने को मिलती है। लोकतंत्र के लिए यह एक कठिन परीक्षा है।

लोकतंत्र के मूल्यों को बनाए रखने के लिए तथ्यों के आधार पर मतदाताओं को निर्णय लेने का अवसर मिलना आवश्यक है। इसके लिए ‘शक्ति‘ – इंडिया इलेक्शन फैक्ट चेकिंग कलेक्टिव का निर्माण किया गया। https://projectshakti.in/ वेबसाइट पर इसका विवरण देख सकते हैं। इस प्रोजेक्ट में गूगल न्यूज इनीशिएटिव की मदद मिली। इस पहल का नेतृत्व डेटालीड्स ने किया। इसके साझेदारों में मिस-इनफॉर्मेशन कॉम्बैट एलायंस (एमसीए), बूम, द क्विंट, विश्वास न्यूज, फैक्टली, न्यूजचेकर तथा अन्य प्रमुख फैक्ट चेकिंग (तथ्य-जांच) संगठन शामिल थे। इंडिया टुडे और प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) जैसे मीडिया संस्थानों ने भी इसमें भागीदारी निभाई।

भारतीय तथ्य-जांचकर्ताओं (फैक्ट चेकर्स) और मीडिया संस्थानों का यह गठबंधन भारत में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के पहले बनाया गया था। इसका मकसद चुनाव संबंधी गलत सूचनाओं और डीपफेक का तत्काल पता लगाकर तथ्य-जांच रिपोर्ट अंग्रेजी, हिंदी तथा विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारित करना था। गलत सूचनाओं से लड़ने के लिए तथ्य-जांचकर्ताओं और प्रकाशकों का भारत में यह अब तक का सबसे बड़ा सहयोगी मंच था।

भारत में गलत सूचना के बड़े खतरे के खिलाफ यह ‘शक्ति‘ समूह बनाया गया। विभिन्न प्रतिस्पर्धी मीडिया संगठनों का इस एक मंच पर आना महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसमें देश के लगभग 50 से अधिक छोटे-बड़े संगठन शामिल हुए। प्रमुख तथ्य-जांचकर्ता और स्थापित न्यूज़ रूम एक साथ जुड़े। सारे संगठन सामूहिक प्रयास का हिस्सा बन गए। तीन माह तक हरेक दिन 260 से अधिक तथ्य-जांचकर्ताओं, पत्रकारों और संपादकों ने एक टीम के रूप में काम किया। उन्होंने गलत सूचनाओं की पहचान करने और हानिकारक और भ्रामक सामग्रियों, साजिश के तरीकों, फर्जी चुनाव सर्वेक्षणों और एआई-जनित डीपफेक से निपटने में सहयोग किया। मीडिया संगठनों ने इसमें शामिल होकर तथ्य-जांच सामग्री को प्रकाशित प्रसारित करके लाखों मतदाताओं को चुनाव-संबंधी गलत सूचनाओं से बचाया।

इस चुनावी तथ्य-जांच प्रयास को डीपफेक और सिंथेटिक मीडिया विशेषज्ञों का भी साथ मिला। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जैसे प्रसिद्ध संस्थान और प्रमुख एआई संगठनों की भी मदद मिली। इन विशेषज्ञों ने प्रमाणित किया कि गलत सूचनाओं, विशेषकर डीपफेक को खारिज करने में उपकरणों और प्रौद्योगिकी का काफी उपयोग है।

छवि: स्क्रीनशॉट, शक्ति

डेटालीड्स विगत कई वर्षों से गलत सूचना के खिलाफ लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इस दिशा में हमारे द्वारा पहले ही शुरू किए गए काम से देश में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम शुरू हुए हैं। गूगल न्यूज इनीशिएटिव की मदद से यह दुनिया के सबसे बड़े प्रशिक्षण नेटवर्क में से एक है। इससे पूरे भारत में दस से अधिक भाषाओं के सैकड़ों मीडिया संगठनों और हजारों पत्रकारों को लाभ हुआ है। इसने देश में एक मजबूत तथ्य-जांच पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद की है।

इस नेटवर्क के भीतर पत्रकारों को एक खुले आमंत्रण की प्रक्रिया के माध्यम से चुना गया। इसके बाद देश भर में विभिन्न भाषाओं में ‘ट्रेनिंग ऑफ ट्रेनर‘ (टीओटी) कार्यक्रम चलाया गया। इसके कारण पूरे भारत में फैले ऐसे पत्रकार गलत सूचनाओं को खारिज करने और एक मजबूत सूचना पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिए समर्पित नेटवर्क के राजदूत के रूप में उभरे हैं। भारत के सबसे बड़े मीडिया साक्षरता नेटवर्क FactShala ने विभिन्न समुदायों और व्यक्तियों को टूल और दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्हें गंभीर और इन जानकारियों का उपयोग करने में सक्षम बनाया है।

इन्हीं प्रयासों की बदौलत आज भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा फैक्ट-चेकर्स हैं। ये लोग गलत सूचनाओं के खिलाफ वैश्विक लड़ाई की अग्रिम पंक्ति में हैं। वर्ष 2018 के दौरान भारत में केवल दो या तीन तथ्य-जांच संगठन थे। आज भारत में अंतर्राष्ट्रीय तथ्य-जांच नेटवर्क (आईएफसीएन) से प्रमाणित 17 तथ्य-जांच संगठन हैं। यह किसी भी अन्य देश से सबसे अधिक हैं। तुलनात्मक रूप से देखें तो संयुक्त राज्य अमेरिका में इनकी संख्या 12 है।

हमारे प्रयास गलत सूचना के विरुद्ध प्रतिरोध क्षमता विकसित करने पर केंद्रित रहे हैं। यह पत्रकारों, मीडिया संस्थानों और संलग्न नागरिकों को ग़लत सूचनाओं और दुष्प्रचार से लड़ने के लिए सशक्त बनाने के लिए था। शक्ति – ‘इंडिया इलेक्शन फैक्ट चेकिंग कलेक्टिव का लक्ष्य इस सहयोगी मिशन के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रोजेक्ट एक ऐसा समाज बनाने के लिए है, जो सूचना के महत्वपूर्ण उपभोग को महत्व देता है और विकसित होता है।

फैक्टशाला भारत का सबसे बड़ा मीडिया साक्षरता नेटवर्क है। इमेज: स्क्रीनशॉट, फैक्टशाला

आज मीडिया संगठनों की ज़िम्मेदारियां कई गुना बढ़ गई हैं। इसलिए उन्हें काफी अनिश्चित परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस-जनित सामग्री में वृद्धि की संभावना ने विशेष रूप से चुनावों के दौरान गलत सूचना के बारे में काफी चिंताएं पैदा कर दी थीं। सोशल मीडिया पर एआई-जनित गलत सूचना की मात्रा तुलनात्मक रूप से कम है। लेकिन यह निश्चित रूप से एक संकेत है कि डीपफेक हमारे समाज को कितना खतरा पहुंचा सकता है।

भारत में लोकतंत्र के भविष्य के लिए एक विकट चुनौती है क्योंकि गलत सूचनाओं का खतरा लोकतंत्र और इससे जुड़ी संस्थाओं पर विश्वास को लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। वर्ष 2024 में दुनिया के अनगिनत देशों में होने वाले चुनावों को देखते हुए एआई-जनित भ्रामक और हानिकारक सामग्री की समय पर पहचान करना और उसका मुकाबला करना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है। गलत सूचनाओं के तरीके एक देश से दूसरे देश तक तेजी से फैलते हैं। मीडिया संगठनों के लिए विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं की सामग्री की निगरानी और जांच करना एक चुनौती है। इसके लिए बड़े सूचना पारिस्थितिकी तंत्र के ऐसे पहलुओं को संबोधित करना होगा। एक ठोस और केंद्रित सहयोगात्मक प्रयास आवश्यक है। चुनाव संबंधी गलत सूचनाओं से लड़ने के लिए विभिन्न हितधारकों द्वारा हाथ मिलाकर सहयोगी मंच बनाना इतना महत्वपूर्ण पहले कभी नहीं था।

‘शक्ति‘ प्रोजेक्ट एक महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। यह विशेष रूप से भारत में चुनाव अवधि के दौरान चुनाव संबंधी गलत सूचनाओं के उभरते पैटर्न का खुलासा करता है। अधिकांश चुनावी गलत सूचनाएं इमेज और वीडियो जैसी दृश्य सामग्री के रूप में पाई गई। गलत सूचनाओं के लिए प्रमुख मशहूर हस्तियों और युवा आइकनों की क्लोन आवाज़ें भी शामिल थीं। इनका लक्ष्य पहली बार मतदान करने वाले युवाओं को प्रभावित करना था। गलत सूचना अभियान ने प्रमुख राजनीतिक नेताओं, दलों और उनके घोषणापत्रों तथा चुनाव प्रक्रियाओं को लक्षित किया। इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और मतदाता-सत्यापित ऑडिट ट्रेल्स से जुड़े विषय भी शामिल थे।

भारत के चुनावों में बड़ी संख्या में चुनाव संबंधी डीपफेक की आशंका थी। लेकिन ऐसे मामले अपेक्षा से कम आए। चुनाव के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं में गलत सूचनाओं में बढ़ोतरी हुई। यह ज्यादातर ईवीएम में धांधली और हेरफेर से संबंधित थीं। इस बार चुनाव के दौरान तुलनात्मक रूप से कम हिंसा हुई। जबकि वर्ष 2019 में लोकसभा के मतदान के दौरान कुछ राज्यों में हिंसा देखी गई। उसने बड़े पैमाने पर दुष्प्रचार और घृणा अभियानों में योगदान दिया था। इसमें सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले गाने शामिल थे। लेकिन 2024 में ऐसे मामले अपेक्षाकृत कम देखे गए। इस बार गलत सूचना और दुष्प्रचार का स्वरूप बहुआयामी था। यह किसी एक राजनीतिक दल तक सीमित नहीं था। सत्तारूढ़ दल समेत सभी राजनीतिक दलों को इसका शिकार होना पड़ा।

वर्ष 2024 के भारतीय चुनावों से कई सबक सीखने को मिले हैं। किस तरह गलत सूचना फैलाने वाले एक मंच से दूसरे मंच पर जाते हैं। कैसे इन चीजों को वायरल किया जाता है। चुनावों के दौरान दुष्प्रचार से निपटने के लिए तकनीकी समाधान विकसित करने में यह अंतर्दृष्टि बेहद उपयोगी हो सकती है। अन्य देशों में ऐसी सामग्री की निगरानी और तथ्य-जांच के लिए भी यह उपयोगी है।

दुनिया भर के सूचना परिदृश्य में आज बड़ा बदलाव आया है। इसे देखते हुए अब समय आ गया है कि हम गलत सूचनाओं का प्रभाव कम करने के लिए परस्पर सहयोग, विश्वास और लचीलेपन का उदाहरण पेश करें। हमें एक अधिक सूचित और बेहतर प्रतिरोध क्षमता वाला समाज विकसित करना होगा। ‘शक्ति‘ प्रोजेक्ट के तहत हमारी प्रमुख कोशिश थी- गलत सूचनाओं के खिलाफ ढाल बनाने के लिए तथ्य जांच तक पहुंच बनाना और इसे व्यापक लोगों तक पहुंचाना। गलत सूचनाओं से लड़ना एक जटिल चुनौती बनी हुई है। इसके लिए तथ्य-जांच के क्षेत्र में नवाचार और सूचना उपभोग पैटर्न की गहरी समझ की आवश्यकता है। गलत सूचनाओं के दैत्य से लड़ने के लिए हमें एक साथ मिलकर लोकतंत्र के पवित्र द्वार पर पहरा देने की जरूरत है।

टोनी मॉरिसन का एक चर्चित कथन है- “जब किसी काम के लिए आपको शानदार ढंग से प्रशिक्षित किया गया हो, और यदि आप स्वतंत्र हों, तो आपका असली काम दूसरों को भी स्वतंत्र बनाना है। यदि आपके पास कुछ शक्ति है, तो आपका काम दूसरों को भी सशक्त बनाना है।”

यह प्रयास गलत सूचना के खिलाफ सामुदायिक निगरानी और जांच पड़ताल की क्षमता विकसित करने की भावना के तहत होना चाहिए। इसका उद्देश्य नागरिकों को सशक्त बनाना और उन्हें गुमराह करने वाली सामग्री से मुक्त करना हो। यह उनके विश्वास को कम करने वाली गलत सूचनाओं से बचाने के लिए हो। कुटिल साजिश करने वालों को बहुलवादी समाज में चुनाव की अखंडता को नष्ट करने का मौका नहीं मिलना चाहिए।


संपादकीय टिप्पणी: सैयद नज़ाकत जीआईजेएन बोर्ड के सदस्य हैं। लेकिन यहां उन्होंने एक भारतीय पत्रकार के बतौर यह रिपोर्ट लिखी है। यह पोस्ट सिंडिकेटेड है जिसे थोड़ा संपादित किया गया है।


सैयद नज़ाकत, डेटालीड्स के संस्थापक और सीईओ हैं। यह नई दिल्ली स्थित वैश्विक मान्यता प्राप्त एवं पुरस्कार विजेता मीडिया संस्थान है जो तकनीक आधारित तथ्य-जांच, डिजिटल सुरक्षा और सूचना साक्षरता पर काम करती है।

अनुवाद: डॉ विष्णु राजगढ़िया

क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के तहत हमारे लेखों को निःशुल्क, ऑनलाइन या प्रिंट माध्यम में पुनः प्रकाशित किया जा सकता है।

आलेख पुनर्प्रकाशित करें


Material from GIJN’s website is generally available for republication under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International license. Images usually are published under a different license, so we advise you to use alternatives or contact us regarding permission. Here are our full terms for republication. You must credit the author, link to the original story, and name GIJN as the first publisher. For any queries or to send us a courtesy republication note, write to hello@gijn.org.

अगला पढ़ें

Seven people and a dog are illustrated in watercolour standing against a light blue background, in a variety of poses but all intently looking at their mobile phones. They are coloured in blue with yellow detail, and cast blue shadows. Their phones are all connected via a web like network in the air, showing various connection points. The image is portrait shape and allows space for text in the top left hand corner.

साइबर सुरक्षा: आठ गलतियों से बचें पत्रकार

मीडिया में व्हाट्सएप का बहुत इस्तेमाल होता है। पत्रकार इसका उपयोग अपने पाठकों से जुड़ने के साथ ही स्रोतों से जुड़ने के लिए भी करते हैं। व्हाट्सएप एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का उपयोग करता है। इसलिए केवल मूल प्रेषक और अंतिम प्राप्तकर्ता ही संदेश देख सकता है। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक फ्रंटियर फ़ाउंडेशन की निगरानी आत्मरक्षा (एसएसडी)  गाइड के अनुसार व्हाट्सएप और उसकी मूल कंपनी मेटा की गोपनीयता नीतियां चिंताजनक हैं।

whistleblower support journalist

व्हिसल ब्लोअर, पत्रकार और वकील एक दूसरे के मददगार क्यों कहलाते हैं

आम तौर पर मीडिया का पूरा ध्यान व्हिसल ब्लोअर पर केंद्रित करता है। लेकिन उनके मददगार की अक्सर अनदेखी हो जाती है। जबकि ऐसे मददगारों का समर्थन काफी महत्वपूर्ण होता है। खासकर ऐसे युग में, जब दुनिया भर में सच बोलने वाले कर्मचारियों की सुरक्षा खतरे में पड़ रही है।

A 2019 protest in southern Africa against gender-based violence. Image: Shutterstock

यौन अपराधियों को बचाने वाले सिस्टम पर कैसे रिपोर्टिंग करें

अपनी जांच के लिए सबसे उपयोगी जानकारी कहां मिलेगी? इसके लिए आपको यह पता लगाना होगा कि कहां खोजना है। थॉम्पसन कहते हैं- “परिकल्पना के बारे में सोचें। जानकारी कहां से एकत्र की जाएगी? यह कहां होगी?“

जैसे, यौन हिंसा के अपराधों से जुड़ी जानकारी कहां मिलेगी? इसके लिए मेडिकल रिकॉर्ड, पुलिस रिपोर्ट, मानसिक स्वास्थ्य सहायता डेटा से जानकारी मिल सकती है। सोशल मीडिया में पीड़ितों ने अपनी कहानी सुनाई होगी। हम जानकारी के ऐसे स्रोतों का चयन करें, जिन्हें बुद्धिमानी से जुटाया गया है।

people walking along bridge across the Thames River in London

रिपोर्टिंग टूल्स और टिप्स सुरक्षा और बचाव

जासूसी का शिकार होने से कैसे बचें पत्रकार?

हमारे समूह के दो पत्रकारों के एक जोड़े के साथ भी दिलचस्प मामला हुआ। लंबे दुपट्टे वाला एक युवक उनका पीछा कर रहा था। जबकि ऐसा लग रहा था वह किसी काम से बैंक जा रहा है। एक और बात यह है कि यह एक बूढ़ा, गंदा स्पॉटर था जिसे किसी ब्लॉकबस्टर फिल्म में एमआई6 एजेंट के रूप में नहीं लिया गया होगा।