कुआलालंपुर में आयोजित 2025 ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज़्म कॉन्फ्रेंस (GIJC25) की शुरुआत नई तकनीक और एआई पर आधारित एक उच्च-स्तरीय कार्यशाला के साथ हुई। इसके दौरान यह स्पष्ट किया गया कि बिग टेक की जांच करते समय ध्यान केवल उनके उत्पादों या उद्योग के दावों पर नहीं होना चाहिए। विशेषज्ञों ने बताया कि असली मुद्दा उन कुछ कंपनियों और व्यक्तियों की बढ़ती ताकत है, जो दुनिया भर के समाजों और लोकतंत्रों पर निर्णय लेने की क्षमता रखती हैं।
विशेषज्ञों ने आग्रह किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता की चमकदार छवि और “परदे के पीछे की जादूगरी” पर मोहित नहीं होना चाहिए. उन्होंने पत्रकारों से आग्रह किया कि वे इस तेजी से फैलती तकनीक के पीछे छिपी मानवीय पसंद, नीतियाँ और उसके वास्तविक, भौतिक प्रभावों पर ध्यान दें।
‘द इन्वेस्टिगेटिव एजेंडा फॉर टेक्नोलॉजी जर्नलिज्म’ शीर्षक वाले इस पूरे दिन चले कार्यक्रम में पाँच महाद्वीपों से आए वरिष्ठ संपादकों, रिपोर्टरों और फोरेंसिक विशेषज्ञों ने भाग लिया। सत्र में बार-बार यह बात सामने आई कि तकनीक की तेजी से आगे बढ़ती सीमाओं ने गलत इरादों वाले लोगों के लिए नए रास्ते खोले हैं, जबकि पत्रकारों के सामने उन्हें जवाबदेह ठहराने की चुनौतियाँ कई गुना बढ़ गई हैं। कार्यशाला में डीपफेक वीडियो, स्वायत्त हथियारों का दुरुपयोग, एल्गोरिदम में पक्षपात, और ऑनलाइन नफरत जैसे खतरों के बारे में बताया गया। इन ख़तरों से निपटने के लिए नई डिजिटल क्षमताओं, पारंपरिक पत्रकारिता तकनीकों और सहयोगी नेटवर्क की जरूरत होती है।
ब्राज़ील की प्रतिष्ठित गैर-लाभकारी न्यूज़रूम एजेंसिया पब्लिका की सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक नतालिया वियाना ने कहा कि बड़ी तकनीकी कंपनियों की रिपोर्टिंग केवल टेक्नोलॉजी की रिपोर्टिंग नहीं होनी चाहिए। उनके अनुसार, पत्रकारों को उन लोगों की जांच करनी चाहिए जो एल्गोरिदम के पीछे फैसले लेते हैं और वैश्विक बाजारों में हलचल पैदा करते हैं। उन्होंने कहा कि ये कंपनियाँ इतिहास की सबसे शक्तिशाली संस्थाएँ हैं। इनके उत्पाद हमारी जिंदगी तथा लोकतंत्र के हर हिस्से को प्रभावित करते हैं। उनके अनुसार, यह शक्ति का ऐसा असंतुलन है, जिसमें फैसले लेने वाले लोग बहुत कम हैं। इनमें से अधिकांश पुरुष हैं, जिनकी रणनीतियाँ दुनिया भर की तकनीकी संस्कृति में दोहराई जाती हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता की निगरानी करने वाले प्रमुख वैश्विक विशेषज्ञ और “एम्पायर ऑफ एआई” पुस्तक के लेखक करेन हाओ ने कहा कि टेक्नोलॉजी को समझने के लिए पत्रकारों को ताक़तवर समूहों को केंद्र में रखना चाहिए। उनके अनुसार, बहुत छोटा समूह अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले ले रहा है। जिनका असर आपूर्ति श्रृंखलाओं, पर्यावरण और दुनिया भर की समुदायों पर पड़ रहा है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि बिग टेक की असली ताकत नैरेटिव पर नियंत्रण रखने में है। ऐसी कहानियाँ और दावे गढ़ने में, जो उन्हें बिना रोक-टोक संसाधनों तक पहुंच देते हैं और विस्तार जारी रखने की अनुमति देते हैं।
जनरेटिव एआई की सीमाएँ। जैसे मनगढ़ंत जवाब और पक्षपात। कई पत्रकारों ने कहा कि बड़े भाषा मॉडलों का सावधानी से और तथ्य-जांच के साथ उपयोग शुरुआती जांच में महत्वपूर्ण सुराग दे सकता है। एक वरिष्ठ संपादक ने सुझाव दिया कि चूंकि दुनिया भर में पूर्णकालिक इन्वेस्टिगेटिव पत्रकारों की संख्या 10,000 से भी कम है। इसलिए पत्रकार समुदाय को अपने स्वयं के भाषा मॉडल विकसित करने की दिशा में सोचना चाहिए। ताकि दक्षता बढ़ सके और आम नागरिक भी जवाबदेही की प्रक्रिया में भाग ले सकें।
वर्कशॉप में विशेषज्ञों ने इस धारणा को चुनौती देने की भी जरूरत बताई कि तकनीक तटस्थ होती है। उन्होंने कहा कि हर तकनीक मानव-निर्मित है। यह मानव निर्णयों, विचारधाराओं और स्वार्थों से प्रभावित होती है। इसी तरह, यह मिथक भी गलत है कि एआई ‘क्लाउड’ में मौजूद किसी अदृश्य शक्ति की तरह काम करता है। सच्चाई यह है कि इसके पीछे भारी ऊर्जा और पानी खपत करने वाले डेटा सेंटर्स, और ऐसे प्रोजेक्ट्स होते हैं जिनमें श्रम और मानवाधिकार हनन की घटनाएँ सामने आती हैं। उदाहरण के तौर पर, विशेषज्ञों ने बताया कि केप टाउन जैसे शहर, जहाँ पानी और बिजली की भारी कमी है, वहाँ भी नए डेटा सेंटर्स को अनुमति मिल रही है। इस पर पत्रकारों को सवाल उठाने चाहिए।
ऑनलाइन नफरत और कट्टरपंथ के बढ़ते खतरे
विशेषज्ञों ने बताया कि अल्पसंख्यकों और कमजोर समुदायों के खिलाफ घटनाएँ पहले से अधिक बढ़ गई है। इसका कई सरकारें राजनीतिक लाभ उठाती हैं। आमतौर पर मीडिया केवल इसके हिंसक परिणामों को कवर करता है। विशेषज्ञों ने कहा कि पत्रकारों को नफरत फैलाने वाले अभियानों, उनके स्रोतों और इस उद्योग के आर्थिक मॉडल को समझना और उजागर करना चाहिए।
वक्ताओं ने नफ़रती अभियानों की जांच के कई तरीके सुझाए। जैसे विभिन्न प्लेटफार्मों पर नफरत फैलाने वाले संदेशों की आवाजाही को ट्रैक करना। कंटेंट विश्लेषण करना, Maltego और Gephi जैसे टूल्स का उपयोग कर नेटवर्क की पहचान करना, और यह जानना कि नफरत फैलाने वाले लोग कहाँ से पैसा कमा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नीति-निर्माता तभी कार्रवाई करते हैं जब उन्हें बड़े पैमाने पर फैलाई जा रही नफरत और उसके आर्थिक संबंधों के सबूत दिखते हैं।
इन सबके बावजूद, पत्रकारों के सामने एक नाजुक जिम्मेदारी, नफरत को अनजाने में बढ़ावा न देने की है। पैनलिस्टों ने सुझाव दिया कि पत्रकारों को नफरत भरे संदेशों को संदर्भ सहित रिपोर्ट करना चाहिए। उनका प्रसार कम से कम रखना चाहिए। निशाने पर आए समुदायों की आवाज़ को प्रमुखता देनी चाहिए और गालियों या नफरत भरी भाषा को सीधे दोहराने से बचना चाहिए।
सत्रों में हाल के कई चौंकाने वाले मामलों पर चर्चा हुई। जैसे यूक्रेन की महिला पत्रकारों की पहचान चुराकर उनके नकली डीपफेक वीडियो बनाए जाना। मेक्सिकन सेना द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गुप्त जासूसी। इज़राइल की सेना द्वारा मशीन लर्निंग के ज़रिए सैकड़ों नए टार्गेट तैयार करना। जिनका घातक प्रभाव नागरिकों पर पड़ा।
एक अफ्रीकी डेटा पत्रकार ने इस बात पर भी जोर दिया कि तकनीक की रिपोर्टिंग करते समय पत्रकारों को उन समुदायों के बारे में सोचना चाहिए जिनके लिए ‘एल्गोरिदम’ जैसा शब्द भी नया है। उन्होंने कहा कि बुज़ुर्ग लोग किसी भी लिंक पर क्लिक कर देते हैं और ठगों का शिकार हो जाते हैं। पत्रकारों की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि इस तकनीकी दुनिया में कमजोर समुदाय पीछे न छूट जाएं।
विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि टेक्नोलॉजी पत्रकारिता का भविष्य उन लोगों, फैसलों और ढांचों की जांच में है, जो इस तेजी से बदलती दुनिया को दिशा दे रहे हैं। इनका असर समाज के हर हिस्से पर पड़ रहा है। सम्मेलन के पहले आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन चैथम हाउस रूल (Chatham House Rule) के तहत किया गया था। जिससे प्रतिभागी खुलकर बातचीत कर सकें।
रोवन फ़िलिप जीआईजेएन के ग्लोबल रिपोर्टर और इम्पैक्ट एडिटर हैं। दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स के पूर्व मुख्य रिपोर्टर रहे रोवन ने दुनिया के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्टिंग की है। वह ब्रिटेन, अमेरिका और अफ्रीका की कई न्यूज़रूम में असाइनमेंट एडिटर के रूप में भी काम कर चुके हैं।