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वर्ष 2024 की भारत से सर्वश्रेष्ठ खोजी खबरें
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है। दस साल पहले तक इसे सत्ता पर अंकुश रखने वाली अपनी शक्तिशाली संस्थाओं और स्वतंत्र प्रेस पर गर्व था। लेकिन उसके बाद से स्थिति क्रमशः बिगड़ती गई। इसके कारण प्रेस की स्वतंत्रता में अभूतपूर्व गिरावट आई। इस दौरान अनगिनत पत्रकारों को उत्पीड़न अथवा दमनकारी कानूनों का शिकार होना पड़ा। इसके बावजूद वर्ष 2024 में भारत के खोजी पत्रकारों ने अनगिनत शक्तिशाली खोजी खबरें पेश की हैं।
वर्ष 2024 में हमने डिजिटल समाचार संगठनों को चुनावी बांड घोटाले जैसे मुद्दों पर साझेदारी आधारित रिपोर्टिंग करते देखा। इसने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को हिलाकर रख दिया। मुख्यधारा के अखबारों और टेलीविजन चैनलों ने खामोश रहकर सरकारी निर्देशों का पालन किया। जबकि मुट्ठी भर डिजिटल न्यूज़रूम और यूट्यूब पत्रकारों ने सरकार से सवाल करने और आलोचना करने की हिम्मत दिखाई। इस दौरान सरकार ने स्वतंत्र ऑनलाइन पत्रकारों पर अंकुश के लिए कठोर कानून लाने का प्रयास किया। लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थकों ने इसके खिलाफ परस्पर सहयोग आधारित लहर पैदा कर दी। अंततः बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सरकार के ऐसे प्रस्तावों को रद्द कर दिया। यह भारत में स्वतंत्र प्रेस के लिए एक छोटी, लेकिन महत्वपूर्ण जीत थी।
इसी वर्ष सुप्रीम कोर्ट ने भारत के निर्वाचन आयोग को चुनावी बांड के रिकॉर्ड सार्वजनिक करने का आदेश दिया। इसने सत्तारूढ़ सरकार के संभावित अनैतिक और अवैध कार्यों पर रिपोर्टिंग का खजाना खोल दिया। भारत के तीन प्रमुख डिजिटल समाचार संगठनों – न्यूज़लॉन्ड्री, स्क्रॉल और द न्यूज़ मिनट – ने स्वतंत्र पत्रकारों के साथ मिलकर प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बॉन्ड बनाया। यह भारत में अपनी तरह का पहला रिपोर्टिंग कंसोर्टियम है। इस साझेदारी आधारित रिपोर्टिंग के कारण भारत सरकार, चुनाव आयोग और भारत के बड़े व्यापारिक घरानों के बीच अपवित्र गठबंधन को उजागर करने वाली दर्जनों इन्वेस्टिगेटिव खबरें सामने आईं। कुछ स्थापित मीडिया संगठनों ने भी शक्तिशाली लोगों और कानून का दुरुपयोग करने वालों को बेनकाब करने वाली कुछ दिलचस्प खबरें पेश कीं।
प्रोजेक्ट इलेक्टोरल बॉन्ड
इस साझेदारी परियोजना में तीन प्रमुख डिजिटल न्यूज़ रूम और कई स्वतंत्र पत्रकार शामिल थे। इस परियोजना ने मित्र पूंजीपतियों और सरकार के बीच छिपे संबंधों को उजागर किया। बीस दिनों के भीतर पत्रकारों के इस समूह ने 40 से अधिक इन्वेस्टिगेटिव खबरें तैयार कर लीं। राजनीतिक दलों को मिले भारी चंदे से जुड़े दस्तावेजों और अन्य सबूतों के आधार पर बड़ी खबरें सामने आईं। लगभग 31 पत्रकारों ने चौबीसों घंटे मेहनत करके यह सफल प्रयोग किया। ऐसी साझेदारी के बगैर चुनावी चंदे में छुपे भ्रष्टाचार की इस पहेली को इतने कम समय में उजागर करना संभव नहीं था। इस प्रोजेक्ट की प्रत्येक इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी को तीनों वेबसाइटों ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया। इस प्रोजेक्ट ने भारत के राजनीतिक दलों पर कुछ सबसे बड़े व्यवसायिक घरानों की मजबूत पकड़ को उजागर किया।
भारत की अवैध स्वर्ण अर्थव्यवस्था उजागर
स्वर्ण आभूषण भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। वर्ष 2024 में भारत में सोने की कीमतों में 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई। सौंदर्य के लिए सोने का काफी महत्व होने के साथ ही कई भारतीय परिवार सोने में निवेश को शुभ मानते हैं। इस मांग ने अरब और अफ्रीकी देशों से भारत में बड़े पैमाने पर तस्करी को बढ़ावा दिया है। भारत की प्रमुख पत्रिका ‘द वीक‘ ने सोने के आयात के अवैध मार्गों और इसमें शामिल एजेंटों पर खोजपूर्ण खबर की। इसने ‘भारत में सोने की अर्थव्यवस्था की बिगड़ती स्थिति‘ को उजागर किया।
‘एल्गोरिदम‘ ने हजारों गरीबों को राशन से वंचित किया
दक्षिण भारत के एक राज्य तेलंगाना की सरकार ने वर्ष 2018 अपने कल्याणकारी कार्यक्रमों की निगरानी के लिए एआई के ‘एल्गोरिदम‘ का उपयोग शुरू किया। एल्गोरिदम की यह प्रौद्योगिकी सरकारी डेटाबेस की एक श्रृंखला से नागरिकों के डेटा को जोड़ती है। इसका उद्देश्य गलत तरीके से सरकारी वित्तीय सहायता लेने वाले परिवारों को योजना से बाहर करना था। लेकिन ‘अल जजीरा‘ की इस जांच के अनुसार इसकी दोषपूर्ण प्रणाली ने हजारों मौजूदा लाभार्थियों को वंचित कर दिया। लगभग 150,000 नए आवेदनों को बिना किसी सूचना के खारिज कर दिया गया। इसके कारण जरूरतमंद लोगों को कोविड-19 संकट के दौरान और उसके बाद राशन के लिए अनगिनत परेशानियों से जूझना पड़ा।
इस इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी ने इस तकनीक की कमियां उजागर कीं जिसका एल्गोरिदम ‘जनता के लिए अपारदर्शी‘ है। स्टोरी में बताया गया कि एल्गोरिदम ने एक विधवा को कार की मालिक बताया, जबकि उस परिवार के पास कोई कार नहीं थी। इसके बावजूद वह महिला और उसके बच्चे राशन से वंचित हो गए।
अखिल भारतीय परीक्षा लीक का बड़ा घोटाला
बढ़ती बेरोजगारी भारत के सामने प्रमुख चुनौती है। इसके कारण बड़ी संख्या में युवा सरकारी नौकरी को सबसे बेहतर कैरियर के रूप में देखते हैं। सरकारी नौकरी पाने की राह सरकार द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षाओं से निकलती है। लेकिन इस जांच के मुताबिक पिछले पांच साल के दौरान 41 से ज्यादा भर्ती परीक्षाएं लीक हो चुकी हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की टीम ने खुलासा किया कि भारत के 15 राज्यों में एक ‘परीक्षा-पेपर लीक माफिया’ सक्रिय है। यह एक सुचारू मशीन की तरह काम करते हुए गुप्त रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता को बेचता है। ऐसे पेपर लीक से 1.4 करोड़ से अधिक बेरोजगार प्रभावित हुए। रिपोर्ट के अनुसार परीक्षा के लिए जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर रिश्वत और भ्रष्ट भागीदारी के मामले सामने आए। इस खबर में भर्ती बोर्डों की स्थिति पर भी प्रकाश डाला गया है। पता चला कि कैसे प्रवर्तन अधिकारियों ने घोटाला करने वाले ताकतवर लोगों की रक्षा करते हुए उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई से इनकार कर दिया।
संसद ने घोटालों पर परदा डाला
मोदी सरकार के पहले और दूसरे, दोनों कार्यकाल में एक खास बात देखी गई। किसी भी विवादास्पद व्यवसायों में सरकार की भागीदारी पर संसद में सवाल आने पर उसकी सार्वजनिक जांच को यह बोलकर खारिज कर दिया कि उस मामले की जांच हो रही है। जीआईजेएन के सदस्य ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव‘ की टीम ने इन दावों की पड़ताल कर ली। पता चला कि कम से कम सात मामलों में सरकार ने जांच के उन वादों का पालन नहीं किया। इसके बजाय, हरेक संसद सत्र समाप्त होने और जनता का ध्यान कम होने के बाद सरकार जांच करने और संसद के माध्यम से नागरिकों को निष्कर्षों की रिपोर्ट करने के अपने वादों से पीछे हट गई। इस तरह, जवाबदेही के तमाम दायित्वों से मुंह मोड़ लिया गया।
राजनेता, धर्म और भूमि-हड़प
इंडियन एक्सप्रेस की इस जांच से पता चला कि भारत की सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने के लिए अयोध्या में बने विशाल राममंदिर के निकट सस्ती जमीन खरीदने के लिए हिंदू धार्मिक आंदोलन का लाभ उठाया। अयोध्या उत्तरी भारत का एक शहर है। इसे भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है। यह हिंदुओं के वेटिकन के समान है। 1990 के दशक में एक भीड़ ने यहां सदियों पुरानी बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था। पांच साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने इसके पिछले स्वामित्व को रद्द कर दिया। इस तरह, उस स्थान पर एक विशाल हिंदू मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। वर्ष 2024 की शुरुआत में भारत के आम चुनाव के लिए मंदिर को खोला गया इसके कारण यहां काफी तीर्थयात्रियों का आना शुरू हो गया। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार कई राजनेताओं और प्रभावशाली लोगों ने विगत वर्षों में अयोध्या के आसपास सस्ती दरों पर ज़मीनें खरीदीं। मंदिर के पास के पचीस गांवों में ढाई हजार से अधिक भूमि रजिस्ट्री दाखिलों की रिपोर्टर द्वारा समीक्षा की गई। पता चला कि क्षेत्र का महत्व बढ़ने से ठीक पहले रियल एस्टेट लेनदेन में तीस प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
सुरंग ढही : घोटाले और कमजोर कानून उजागर
भारत के सर्वाधिक प्रसार वाले हिंदी अखबार ‘दैनिक भास्कर‘ ने खोजपूर्ण खबरें प्रकाशित करना शुरू किया है। यह एक उत्साहजनक प्रवृत्ति है। वर्ष 2024 में इसने कार्यस्थल पर त्रासदी के बाद खबरों की एक श्रृंखला प्रस्तुत की। इनमें कई प्रकार की सरकारी अनियमितताओं और श्रम सुरक्षा कानूनों की कमजोरियों को उजागर किया गया। खबरों की यह श्रृंखला उत्तरी राज्य उत्तराखंड में एक निर्माण स्थल दुर्घटना पर आधारित थी। वहां राजमार्ग निर्माण के दौरान एक मील लंबी सुरंग ढह जाने से 41 श्रमिक 17 दिनों तक भूमिगत सुरंग में फंसे रहे। कई दिनों की अथक खुदाई के बाद उन सबको मलबे की 60 मीटर मोटी दीवार के पीछे से बचाया गया। लेकिन सुरंग ढहने के कारण पर बाद की रिपोर्टिंग में निर्माण में कई अनियमितताओं और सुरक्षा प्रोटोकॉल के उल्लंघन की ओर इशारा किया गया। इसके अलावा, निर्माण से जुड़ी कंपनी का 2024 की एक अन्य बड़ी खबर से भी रिश्ता उजागर हुआ। चुनावी बांड खुलासे में यह सत्तारूढ़ पार्टी की एक दाता कंपनी के बतौर सामने आई थी।
आगे-आगे मोदी, पीछे-पीछे सौदे
पिछले दिनों एक प्रमुख भारतीय घराने ‘अदानी समूह‘ को अमेरिकी अदालत ने उच्च दरों पर सौर ऊर्जा बेचने के लिए भारतीय अधिकारियों पर रिश्वत देने के मामले में अभियोग चलाया गया । इस कंपनी के अरबपति मालिक गौतम अडानी भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने दोस्त हैं। ‘द स्क्रॉल‘ ने इस रिश्ते को समझने का प्रयास किया। विश्लेषण किया कि इस दोस्ती ने दुनिया भर में अदानी के व्यावसायिक हितों को किस तरह लाभ पहुंचाया है।
‘द स्क्रॉल‘ ने कई देशों में मोदी की यात्रा के तुरंत बाद अदानी के साथ आकर्षक सौदों के बीच बिंदुओं को जोड़ा। पता चला कि अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और एशिया के देशों के राजनेताओं के साथ मोदी की मुलाकात के कुछ ही दिनों बाद अडाणी के व्यापारिक समझौतों की घोषणा हुई। ऐसी कुछ मुलाकातों में अडानी भी शामिल थे। इस कहानी ने सरकार की विदेश नीति और निजी उद्यम के बीच अपवित्र सांठगांठ के बारे में बहस छेड़ दी।
दीपक तिवारी जीआईजेएन के हिंदी संपादक हैं। वह एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति हैं। उनके पास संवाददाता, उप-संपादक, टेलीविजन कमेंटेटर, मीडिया सलाहकार और एक मीडिया स्टार्टअप के प्रबंध संपादक के रूप में 31 से अधिक वर्षों का अनुभव है। वह भारतीय राज्य ‘मध्यप्रदेश‘ के राजनीतिक इतिहास पर दो पुस्तकों के लेखक भी हैं।