आर्थिक असमानता पर रिपोर्टिंग हेतु कुछ टिप्स
आर्थिक असमानता पूरी दुनिया के लिए प्रमुख चिंता का विषय है। विभिन्न प्रकार के आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। उनमें गैर-बराबरी इतनी साफ दिखती है जो नीति निर्माताओं को सोचने के लिए मजबूर करे। इस आलेख में आर्थिक असमानता पर रिपोर्टिंग करने वाले खोजी पत्रकारों के लिए उपयोगी सुझाव दिए गए हैं।
वर्ष 2017 में ऐसा ही चौंकाने वाला एक आंकड़ा सामने आया। ‘द बोस्टन ग्लोब‘ की एक खबर में आर्थिक असमानता का भयावह दृश्य दिखाई दिया। बोस्टन में श्वेत परिवारों की औसत कुल संपत्ति 247,500 डॉलर थी। जबकि गैर-प्रवासी अश्वेत परिवारों की औसत कुल संपत्ति मात्र आठ डॉलर थी। यह ‘एकल अंक‘ भयावह था। रिपोर्ट में लिखना पड़ा कि ‘आठ डॉलर‘ का अंक कोई टाइपिंग की गलती नहीं है, बल्कि यही लिखा गया है। इस रिपोर्ट का व्यापक असर पड़ा । उस क्षेत्र के लिए ‘ब्लैक इकोनॉमिक काउंसिल‘ बनाई गई। कई नीतिगत कदम भी उठाए गए।
इस तरह, ‘द बोस्टन ग्लोब‘ की रिपोर्ट से दुनिया में आर्थिक असमानता पर गंभीर और खोजपूर्ण पत्रकारिता का महत्व सामने आया। आम तौर पर अमीरी-गरीबी के आंकड़े निकालना मुश्किल है। समाज में विशेष अधिकार प्राप्त लोगों और हाशिए के लोगों के बीच काफी गहरा अंतर है। लेकिन ऐसे डेटा को फाइलों में दफन कर दिया जाता है। जनता की आमदनी तथा संपत्ति का अनुपात सही तरह से बताया नहीं जाता है। इसलिए आर्थिक असमानता पर कोई पत्रकार रिपोर्टिंग करना चाहे, तो उसे दूसरे तरीके अपनाने होंगे।
आर्थिक असमानता आज की दुनिया में एक बड़ा मुद्दा बन गई है। इसके कारण राजनीतिक आंदोलन होते हैं और बदलाव की मांग होती है। दुनिया भर में खेल का मैदान सबके लिए समतल करने की जरूरत समझी जाती है।
ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 के कारण दुनिया के लगभग हर देश में आर्थिक असमानता बढ़ी है। विश्व के 1000 अमीर लोगों ने इस महामारी से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई कर ली है। लेकिन गरीब लोगों को अपनी दशा सुधारने में दस साल से अधिक समय लग सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस महामारी से महिलाओं को ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है। छह करोड़ 40 लाख महिलाओं ने नौकरी गंवाई है। उनकी लगभग 800 बिलियन डॉलर से अधिक की आय का नुकसान हुआ है।
आर्थिक असमानता की रिपोर्टिंग के लिए आप एक वैकल्पिक दृष्टिकोण का उपयोग कर सकते हैं। इसके लिए नया ‘विजुअलाइजेशन टूल‘ काफी उपयोगी है। इसके जरिए आप प्रमुख डेटा को हाइलाइट करके अमीरी-गरीबी की खाई दिखा सकते हैं।
मियामी विश्वविद्यालय के डेटा विजुअलाइजेशन विशेषज्ञ अल्बर्टो कैरो ने डेटा-रेपर (Datawrapper) नामक उपकरण की मदद से स्कैटर-प्लॉट ग्राफ बनाया है। उन्होंने जीआईजेएन को बताया कि इसके माध्यम से किसी देश में संपत्ति और जीवन प्रत्याशा के बीच के संबंध को प्रभावी ढंग से दिखाया जा सकता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने ‘फ्लूड मोबिलिटी चार्ट का उपयोग कर के बताया कि कैसे अमेरिका में संपन्न परिवारों में पैदा होने वाले अश्वेत लोग भी प्रणालीगत नस्लवाद के कारण गरीब होते जाते हैं।
मैट कोरोस्टॉफ का यह ‘स्क्रॉलिंग ग्राफ‘ शानदार प्रयोग है। इसमें अमेरिका के अमीरों और गरीबों के बीच संपत्ति का अंतर दिखाया गया है। इस ग्राफ को आप अपने मोबाइल या लैपटाप में खोलकर देख सकते हैं। उस ग्राफ को मोबाइल या लैपटाप स्क्रीन पर दाहिनी तरफ स्क्रॉल करना होगा। स्क्रीन को सरकाते हुए आप देख सकते हैं कि अमीर लोगों के हिस्से का ग्राफ कितनी दूर तक जाता है और गरीबों का कितनी दूर। गरीबों को दिखाने के लिए स्क्रीन को नीचे की तरफ स्क्रॉल करने का भी निर्देश मिलेगा। अमीरों के पास जमा अकूत संपत्ति से महज दस फीसदी लेकर जनहित के काम किए जाएं, तो कितने बड़े-बड़े काम हो सकते हैं, यह भी बताया गया है।
बीबीसी ने अत्यधिक असमान संख्याओं को समझाने के लिए ऑडियोग्राफ का उपयोग किया। इसमें ‘टू-टोन‘ नामक टूल का उपयोग करके डेटा बिंदुओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए ध्वनि का उपयोग किया गया। इसमें दिखाया गया कि वर्ष 2009 से अब तक अमेरिका में श्रमिकों का वेतन कितना बढ़ा। इस दौरान कॉरपोरेट के मुनाफ़े में कितनी वृद्धि हुई। दोनों के बीच आश्चर्यजनक विसंगति दिखाने के लिए सोने की ईंटों की ‘क्लिंक‘ ध्वनि का इस्तेमाल किया गया। अमीरी-गरीबी का फासला दिखाने के पत्रकारों को ऐसे रचनात्मक तरीके अपनाने चाहिए।
गरीबी पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को अपने न्यूज़रूम में विविधता लाने की जरूरत है। आर्थिक रूप से विपन्न परिवेश के दो पत्रकारों ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में द जर्नलिस्ट्स रिसोर्स नामक टिपशीट तैयार की है। इसके अनुसार, ‘गरीबी का शिकार‘ जैसी शब्दावली अपमानजनक है। ऐसे विषयों पर रिपोर्टिंग करते समय पुराने घिसे-पिटे तरीकों से बचना चाहिए। साथ ही, पत्रकारों को उन लोगों के साथ कुछ समय बिताना चाहिए, जो आपसे बहुत अलग हैं।
आकाश से दिखाएं ‘गैर-बराबरी‘
समाज में अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। इसे उजागर करने के लिए हवाई फोटोग्राफी काफी शक्तिशाली तरीका है। ब्राजील के फ्रीलांस फोटोग्राफर तुका विएरा द्वारा वर्ष 2004 में खींची गई एक फोटो दुनिया भर में चर्चित हुई। यह ‘फोल्हा डे साओ पाउलो‘ अखबार में प्रकाशित हुई। यह तस्वीर एक हेलीकाप्टर से ली गई। इसमें एक तरफ स्विमिंग पूल के समीप भव्य अपार्टमेंट और आलीशान इमारतें थीं। दूसरी ओर भीड़भाड़ वाले छोटे-छोटे घर और स्लम जैसा दृश्य। यह साओ पाउलो के मोरुम्बी क्षेत्र की फोटो थी।
फोटोग्राफर तुका विएरा कहते हैं- “मेरी तस्वीरों का इस्तेमाल कई जगहों पर किया जाता है। इनका इस्तेमाल स्कूली किताबों में भी किया जाना मुझे काफी अच्छा लगता है। पहले भी बहुत असमानता थी। लेकिन कोरोना महामारी के बाद यह और भयावह हो गई है। कुछ अरबपतियों ने इस दौरान काफी नई संपत्ति जुटा ली है।“
दुनिया भर में बीसवीं सदी के शहरी योजनाकारों ने मजदूरों को शहरों के बाहरी इलाकों में बसाया। इसके कारण मजदूरों के कस्बे बन गए। फोटोग्राफर तुका विएरा के अनुसार उन शहरों और कस्बों के बीच में रिक्त स्थान में अवैध स्लम बस्तियां बन गईं। इनमें अमीर और गरीब को केवल एक सड़क के फासले से अलग देखा जा सकता है। कोई फोटोग्राफर एक ही फोटो में अमीर-गरीब का फर्क दिखा सकता है।
उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत जीवन की वास्तविकताओं और असमानता को दिखाने के लिए हवाई तस्वीरों को जमीन पर आधारित छवियों के साथ प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। तुका विएरा ने असमानता को दिखाने वाली तस्वीरों का दस्तावेजीकरण किया है। हाल ही में 200 से अधिक तस्वीरों वाली उनकी एक पुस्तक प्रकाशित हुई है। इसमें दिखाया गया है कि शहरों में अलग-अलग समुदाय के लोग कैसे रहते हैं।
तुका विएरा कहते हैं- “असमानता केवल आर्थिक नहीं है। इंसान की गरिमा, स्वास्थ्य और सम्मान में भी काफी असमानता है। यदि आप चाहते हैं कि लोग आपकी फोटो देखकर कुछ सोचें, तो आपकी फोटो में वैसा प्रभाव होना चाहिए। यह एक अच्छे संदर्भ और डेटा के साथ हो।“
उन्होंने कहा – “यह धारणा बनाई जाती है कि योग्यता की पूछ है। कहा जाता है कि यदि आप कड़ी मेहनत करें, तो सफल हो सकते हैं। ऐसी बातें सुनने में अच्छी लगती हैं। लेकिन यह सच नहीं है। हमारा सिस्टम काफी अन्यायपूर्ण है। मुझे लगता है कि फोटोग्राफी के जरिए हम यह सच दिखा सकते हैं।“
हवाई फोटोग्राफी काफी उपयोगी है। लेकिन हेलीकॉप्टर का उपयोग काफी महंगा है। उपग्रह चित्र में कम रिजॉल्यूशन होता है और उन्हें सही दिशा में निर्देशित करना भी कठिन है।
अब कम लागत वाले ड्रोन का नया युग आ गया है। इनसे पत्रकारों को हवाई फोटोग्राफी में काफी आसानी हुई है। इनके जरिए डेटा एकत्र करना भी आसान है। यह थ्री-डी मॉडलिंग के लिए एक शक्तिशाली मंच भी प्रदान करता है।
अन-इक्वल सीन्स नामक एक गैर-लाभकारी संगठन सामाजिक न्याय पर काम करता है। उसने ड्रोन इमेजरी का उपयोग करके असमानता दिखाने वाली तस्वीरें ली हैं। इस संगठन ने शहरों में लंबे समय से चली आ रही असमानता के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा की है और नीतिगत समाधान पर संवाद शुरू किया है।
इसके संस्थापक जॉनी मिलर ने सिएटल से मुंबई और मैक्सिको सिटी तक दो दर्जन से अधिक शहरों की तस्वीरें पेश की हैं। उन्होंने आसमान से अमीर और गरीब समुदायों की फोटो खिंचवाई। दक्षिण अफ्रीका की ऐसी ही एक तस्वीर मई 2019 में टाइम मैगजीन के कवर पेज पर प्रकाशित हुई।
जॉनी मिलर एक गैर-लाभकारी संगठन ‘अफ्रीकन-ड्रोन‘ के सह-संस्थापक भी हैं। यह संगठन अफ्रीका में ‘ड्रोन्स फ़ॉर गुड‘ नामक अभियान चलाता है। यह मीडिया संगठनों और नागरिक समाज संगठनों को ड्रोन संबंधी स्थानीय लाइसेंस नियमों को समझने, पोस्ट-प्रोडक्शन विशेषज्ञता खोजने, ड्रोन की लागत कम करने और ‘सिविक ड्रोन पायलट‘ से जुड़ने में मदद करता है। इस संगठन ने दक्षिण अफ्रीका में न्यूज-24, कार्टे ब्लैंच और संडे टाइम्स की खोजी परियोजनाओं में सुरक्षित ड्रोन फुटेज उपलब्ध कराने में मदद की है।
जॉनी मिलर कहते हैं- “मुझे लगता है कि ‘अन-इक्वल सीन्स‘ परियोजना एक गेम-चेंजर साबित हुई। इसने पत्रकारों को बताया कि फोटो के जरिए असमानता कैसे दिखा सकते हैं। अमीरी-गरीबी को एक साथ दिखाने वाले दृश्य सड़कों से छिप सकते हैं, लेकिन हवाई फोटोग्राफी में आसानी से दिख जाते हैं।“
जॉनी मिलर बताते हैं- “इस परियोजना का मकसद असमानता को चुनौती देने वाली पत्रकारिता करना है। हम असमानता को छिपाने वाली पारंपरिक सत्ता संरचना के खिलाफ हैं। यदि तस्वीरों से भय, निराशा, या तनाव की अनुभूति जैसी असहज भावना पैदा होती है, तो ऐसा होना अच्छा है।“
छिपी हुई असमानता : एक व्यक्तिगत अनुभव
जॉनी मिलर कहते हैं- “मैं अपना व्यक्तिगत अनुभव बताना चाहता हूं। मुझे पता नहीं था कि मैं भी एक भयानक सामाजिक अन्याय का हिस्सा हूं। कुछ साल पहले मैंने दक्षिण अफ्रीका में पपवा सेवगोलम गोल्फ कोर्स में भाग लिया। मुझे रंगभेद विरोधी एक नायक के सम्मान में एक कोर्स पर अपना गोल्फ कौशल दिखाने का अवसर मिला था। वर्ष 1965 में सेवसंकर पपवा सेवगोलम नामक भारतीय मूल के एक स्वयं-प्रशिक्षित खिलाड़ी ने एक प्रांतीय टूर्नामेंट में महान गैरी प्लेयर को हरा दिया था। लेकिन उसे अपनी ट्रॉफी बाहर बारिश में लेनी पड़ी क्योंकि क्लब हाउस में अश्वेत लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। इसलिए, छठे होल पर, मैंने पेड़ों की ओर अपनी ड्राइव को झुकाने के बाद बस दो पेनेल्टी स्ट्रोक लिए और खेलना जारी रखा।“
‘अन-इक्वल सीन्स‘ परियोजना के तहत हमने प्रभावशाली तस्वीरों का महत्वपूर्ण संकलन किया है। गरीबी और असमानता की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों द्वारा इन तस्वीरों का काफी उपयोग होता है। इन पर काफी चर्चा भी होती है। मैं दक्षिण अफ्रीका के गोल्फ कोर्स वाली उस छठे होल की एक हवाई फोटो को देखकर हैरान था। उसमें एक तरफ झुग्गी झोपड़ियां दिख रही थी। दूसरी ओर विशाल हरा-भरा खेल का मैदान था।
वर्ष 2018 में जॉनी मिलर के ड्रोन से ली गई एक अन्य फोटो भी काफी चर्चित है। इसमें पाल्मिट रोड के समीप एक स्लम बस्ती का दृश्य दिखता है। उनमें समुचित स्वच्छता की सुविधा तक नहीं थी। दूसरी ओर संपन्न लोगों की बसावट में भरपूर जगह थी। कई एकड़ जमीन में फैली घास में ताजा पानी पंप किया गया था। गोल्फ की गेंद किसी झोंपड़ी पर गिर सकती थी। इस क्षेत्र में असमानता और गरीबी पर कई वर्षों की रिपोर्टिंग के बावजूद जॉनी मिलर को उस स्लम बस्ती की जानकारी नहीं थी। हवाई फोटोग्राफी के जरिए इन चीजों को देखना और दिखाना दोनों संभव हो सका।
जॉनी मिलर का कहना है कि इस परियोजना के तहत फोटोग्राफी के जरिए समाज में अलगाव के बारे में गलत धारणाओं को सामने लाने और असमानता वाले समाज में अभाव दिखाने का प्रयास किया गया है। हमारे निकट के क्षेत्रों में कितना अभाव है, यह जानना भी जरूरी है।
वर्ष 2005 में कैटरीना तूफान के कारण भारी तबाही हुई। इसके कारण न्यू ऑरलियन्स में बड़ी संख्या में अमेरिकियों पर गहरा संकट आया। इसे समझने के लिए हवाई फोटोग्राफी का उपयोग किया गया।
वर्ष 2017 में श्रमिकों के एक आवासीय भवन ‘ग्रेनफेल टॉवर‘ में विनाशकारी आग लगने के कारण 72 लोगों की मृत्यु हो गई। मीडिया की जांच से पता चला है कि स्थानीय अधिकारियों ने उस ‘ग्रेनफेल टॉवर‘ की अग्नि-सुरक्षा पर पर्याप्त पैसा खर्च नहीं किया। यहां तक कि अमीर पड़ोसियों ने अधिकारियों पर दबाव डाला कि वे ‘ग्रेनफेल टॉवर‘ को आवंटित कुछ राशि का उपयोग उसके बाहरी हिस्से की सजावट पर खर्च करें। इस तरह आवश्यक अग्नि सुरक्षा उपायों की उपेक्षा की गई।
जॉनी मिलर के अनुसार, कम लागत वाले ड्रोन के जरिए समाज में असमानता और अन्याय के दृश्य दिखाये जा सकते हैं। जिन जगहों पर मीडिया को हेलिकाप्टर से उड़ान भरकर फोटोग्राफी की अनुमति नहीं मिल सकती, वहां के लिए भी ड्रोन कैमरे काफी उपयोगी हैं।
उनका कहना है कि असमानता दिखाने वाली ड्रोन इमेजरी का काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। ऐसी तस्वीरें व्यापक दर्शकों को प्रभावित कर सकती हैं। इनमें दूर से दिखने के कारण महज भावनात्मक प्रतिक्रिया के बजाय वैचारिक समझ भी उत्पन्न होती है।
जॉनी मिलर कहते हैं- “सामाजिक न्याय कार्यकर्ताओं से लेकर रूढ़िवादी सोच वाले लोगों तक सबके साथ असमानता पर बात करने की जरूरत है। किसी रोते हुए बच्चों की भावनात्मक फोटो काफी असर कर सकती है। एक बेघर व्यक्ति के बगल में किसी अमीर बैंकर को दिखा सकते हैं। ड्रोन इमेजरी के जरिए आप किसी चीज को एक पहेली की तरह प्रस्तुत कर सकते हैं। लोग इसे अपने ढंग से समझ सकते हैं।“
फ्रीलांस शोधकर्ता और लेखिका मोनिका सेंगुल-जोन्स के अनुसार ड्रोन ने पत्रकारों को खतरनाक मामले कवर करने में मदद की है। जहां फोटोग्राफर व्यक्तिगत रूप से नहीं पहुंच सकता, वहां की फोटो भी ले सकता है। तथ्यों की जांच करने, डेटा-आधारित कहानियों की हीट-मैपिंग, 3-डी मॉडलिंग और रिमोट सेंसिंग के साथ ड्राइव करने जैसे खतरनाक काम भी ड्रोन की मदद से संभव हैं। हालांकि वाणिज्यिक ड्रोन का उपयोग करने में भारी खर्च आता है। इसलिए जिन देशों में सूचना का अधिकार कानून लागू है, वहां के पत्रकार सरकारी एजेंसियों द्वारा लिए गए ड्रोन फुटेज हासिल कर सकते हैं।
मोनिका सेंगुल-जोन्स ने कहा कि पत्रकारों को यह बात याद रखनी चाहिए कि ड्रोन का निर्माण सेना द्वारा जासूसी, निगरानी और लक्षित हत्या के लिए किया गया है ।
जॉनी मिलर कहते हैं- “शुरू में ड्रोन का भयानक तरीकों से इस्तेमाल होता था। लेकिन अब ड्रोन एक लोकतांत्रिक क्रांति है। जैसे मोबाइल फोन पर कैमरे का हर कोई उपयोग कर सकता है। शहर के ऊपर से उड़ान भरकर जमीन का दृश्य दिखाने की ऐसी क्षमता इतिहास में पहले कभी नहीं थी। वर्ष 2012 तक सिर्फ सरकारों और अमीरों के लिए ऐसा करना संभव था। लेकिन अब कम लागत वाले ड्रोन बाजार में आ चुके हैं। आप सिर्फ जीपीएस पोजीशन में प्लग-इन करके ड्रोन के जरिए आकाश से जमीन की तस्वीरें ले सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि कम-संसाधन वाले मीडिया संगठनों के लिए अफ्रीकन-ड्रोन की कम दरों वाली सेवा का मॉडल बनाया जा सकता है। यहां तक कि निशुल्क सेवा भी मिल सकती है। साथ में ड्रोन के नियमों से संबंधित सलाह भी उपलब्ध कराई जाएगी। डेटा-उपयोग के विभिन्न विकल्प भी मिल जाएंगे।
जॉनी मिलर के अनुसार अफ्रीकन-ड्रोन को काफी सफलता मिली है। वह कहते हैं कि हमने दक्षिण अफ्रीका में ड्रोन पत्रकारिता का बीड़ा उठाया है। हमने पश्चिमी केप में अवैध घुड़दौड़ पर रिपोर्टिंग की थी। वहां खेतों से घोड़ों को चुराकर रेसकोर्स में लगाकर पैसे कमाए जाते थे। हमारे पास ऐसे पायलट थे, जो खुद को भावी खोजी पत्रकार के रूप में देखते थे। उन्होंने बाहर जाकर घोड़े चुराने वाले इन लोगों पर नजर रखी और घुड़दौड़ का कवरेज किया। इसे कार्टे ब्लैंच की खोजी टीवी रिपोर्टिंग श्रृंखला में दिखाया गया।
जॉनी मिलर कहते हैं कि पायलटों, गैर-लाभकारी संस्थाओं और मीडिया संगठनों के बीच इस बात पर सहमति है कि ड्रोन उड़ान पथ में सुरक्षा सबसे जरूरी है। खासकर आम लोगों की सुरक्षा सर्वोपरि है।
वह कहते हैं कि मैंने पाया है कि अधिकांश संपादक चीजों के कानूनी पक्ष को लेकर ज्यादा चिंता नहीं करते हैं। हालांकि संपादक चाहते हैं कि चीजें सुरक्षित रहें। जमीन पर सभी को सुरक्षित रखना हमारा दायित्व है।
‘अन-इक्वल सीन्स‘ की अगली परियोजना न्यूयॉर्क शहर में असमानता और लोगों को हाशिए पर धकेले जाने की रिपोर्टिंग का एक सहयोगी प्रोजेक्ट है। उन्होंने कहा- “न्यूयॉर्क शहर में ड्रोन का उपयाग करना अवैध है। इसलिए अन्य माध्यमों से असमानता को कैसे दिखाया जाए, मैं अभी यही सोच रहा हूं।“
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रोवन फिलिप जीआईजेएन के संवाददाता हैं। पहले वह दक्षिण अफ्रीका के संडे टाइम्स के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने दुनिया भर के दो दर्जन से अधिक देशों से समाचार, राजनीति, भ्रष्टाचार और संघर्ष पर रिपोर्टिंग की है।