Comparing different archive photos of buildings near Freibrug cathedral in Germany. Image: Rijksmuseum archive
पुरानी तस्वीरों की इंटरनेट पर जांच कैसे करें
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पुरानी तस्वीरों के संग्रह का अध्ययन करके इतिहास की कई महत्वपूर्ण चीजों का पता लगाया जा सकता है। ऐसी तस्वीरें कहां मिलेंगी और उनका किस तरह अध्ययन किया जाए, यह जानना पत्रकारों के लिए उपयोगी है। उन तस्वीरों के भौगोलिक स्थान, फोटोग्राफर का नाम और फोटो लेने की समय अवधि का पता भी लगाया जा सकता है। इसके लिए कई प्रकार के नई तकनीक और ऑनलाइन संसाधन उपलब्ध हैं। इस आलेख में इन बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी दी गई है।
फोटोग्राफी के आविष्कार के लगभग 30 साल बाद, 1860 के दशक में यूरोप और भारत में बड़ी संख्या में महत्वपूर्ण तस्वीरें ली गई थीं। कई प्रसिद्ध फोटोग्राफरों ने प्रमुख स्थलों को अपने कैमरों में कैद किया था। उनमें कई तस्वीरों के बारे में स्पष्ट नहीं है कि वे तस्वीरें कहाँ, कब और किसके द्वारा ली गई थीं।
नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में स्थित ‘रिज्क्स म्यूजियम’ के पास पुरानी तस्वीरों के सैकड़ों एलबम मौजूद हैं। दुनिया भर में फोटो गैलरियों द्वारा अपने संग्रह को डिजिटाइज़ करने का प्रयास किया जा रहा है। ‘रिज्क्स म्यूजियम’ इस मामले में दुनिया का अग्रणी संग्रहालय बन गया है। उपरोक्त एल्बम में 60 तस्वीरें हैं। इसे यहां ऑनलाइन देखा जा सकता है। इनमें से अधिकांश तस्वीरें शेफर्ड और रॉबर्टसन की जोड़ी तथा सैमुअल बॉर्न जैसे चर्चित फोटोग्राफरों ने खींची थीं। इनमें से 21 तस्वीरों के स्थान और फोटोग्राफर का पता नहीं चल सका।
अब आधुनिक उपकरणों का दौर है। ओपन सर्च रिसर्च से नए सुराग मिल सकते हैं। अब हमारे पास नए उपकरणों और ऑनलाइन डेटा का खजाना है। इसके कारण 150 से अधिक वर्षों के विकसित परिदृश्य, शहरों, इमारतों और सड़क के नामों का पता लगाना आसान हो सकता है। रिवर्स इमेज सर्च, गूगल लेंस, डिजिटल अखबार, विरासत और नीलामी वेबसाइट, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस द्वारा तस्वीरों को रंगीन बनाने, और पीकविजर जैसे उपकरण काफी महत्वपूर्ण हैं। इनसे हमें ऐतिहासिक एवं अमूल्य कला संग्रह के बारे में उचित जानकारी पाने और नई समझ विकसित करने में मदद मिल सकती है।
किसी तस्वीर के स्थान का पता लगाना
उस एलबम की ऐतिहासिक तस्वीरें किन स्थानों की है, यह पता लगाना एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन आधुनिक उपकरणों और नई विधियों के कारण हमें उनमें से कई तस्वीरों के स्थान का पता लगाने में सफलता मिली। हमने यह कैसे किया? आप भी ऐसी जांच कैसे कर सकते हैं? यहां इसकी जानकारी प्रस्तुत है।
उस एलबम की सभी 21 तस्वीरें मौलिक प्रतीत होती हैं। लेकिन कई मामलों में एक समान दिखने वाली फोटो की जांच के लिए ‘रिवर्स इमेज सर्च’ का उपयोग किया जाता है। इससे उस फोटो के स्थान और समय के बारे में अधिक विवरण मिल सकता है। ‘रिवर्स इमेज सर्च’ का उपयोग करने के लिए उस फ्रेम में वही एकमात्र फोटो होनी चाहिए। अनावश्यक हिस्से को ‘क्रॉप’ करने की आवश्यकता हो सकती है।
इस क्रॉप्ड फोटो की यांडेक्स में रिवर्स इमेज सर्च करने से मिले ताजा नतीजों के अनुसार यह बवेरियन आल्प्स स्थित कोनिगसी झील की तस्वीर प्रतीत होती है।
रिज्क्स म्यूजियम की इस तस्वीर की तुलना मई 2018 में ‘ट्रिप एडवाइजर’ पर अपलोड की गई एक फोटो से करें।
जर्मनी की दिशा से आल्प्स की एक और तस्वीर का मिलान एक पुराने पोस्टकार्ड से किया जा सकता है। कैमरे की भिन्न स्थिति और पोस्टकार्ड वाली फोटो में नई इमारतों और चर्च टावरों के कारण दोनों में कुछ फर्क जरूर दिखता है। लेकिन इसके बावजूद, पृष्ठभूमि में पर्वत श्रृंखला को देखकर उन जगहों की पहचान की जा सकती है, जो यांडेक्स रिवर्स इमेज सर्च से मिलती है। सर्च इंजन को वर्ष 1911 का बर्कटेसगाडेन का एक पोस्टकार्ड मिला। इसे ऑनलाइन बिक्री के लिए डाला गया था। दोनों की तुलना नीचे है।
ये दोनों स्थान कोनिगसी झील के पास हैं। इसलिए हम अनुमान लगा सकते हैं कि झील की तस्वीर (नीचे वाली) भी उसी जगह खींची गई थी।
दिलचस्प बात यह है कि तीनों प्रमुख ‘रिवर्स इमेज सर्च इंजन’ (गूगल इमेज, यांडेक्स और बिंग) इस स्थान की पहचान नहीं कर पाए। इसके बाद ‘गूगल लेंस’ का उपयोग करने से तुरंत कोनिगसी झील का सही स्थान मिल गया। ब्राउज़र के माध्यम से भी ‘गूगल लेंस’ तक पहुँचा जा सकता है।
‘पीकवाइज़र’ एक वेब एवं ऐप सेवा है। यह परिदृश्य को पहचानती है। इसका उपयोग करके इस चित्र वाले स्थान में पहाड़ की लकीरों और बनावट से मिलान किया जा सकता है।
रिज्क्स म्यूजियम के एल्बम की एक अन्य तस्वीर में एक पहाड़ी गांव को दिखाया गया है। इस तस्वीर को ‘रिवर्स इमेज सर्च’ में डाला गया। इसकी मैचिंग एक नीलामी वेबसाइट द्वारा वर्ष 2017 में बेची गई एक फोटो से हुई। उसी वेबसाइट ने इसके फोटोग्राफर का नाम चार्ल्स सॉलियर और स्थान शैमॉनिक्स (फ्रांस) बताया था।
नीलाम की गई इस बड़े आकार की फोटो के साथ काफी समानता दिखती है। नीचे देखने पर सभी इमारतें मिलती-जुलती दिखाई देती हैं। केवल इसका कोण थोड़ा अलग है। दोनों में मुख्य अंतर यह है कि ग्लेशियर के ऊपर पहाड़ पर दिखाई देने वाली बर्फबारी का स्तर अलग है। वेबसाइट में तस्वीर के विवरण साथ इस ग्लेशियर का नाम ‘ग्लेशियर डेस बॉसन्स’ लिखा गया है।
गूगल इमेज सर्च के द्वारा यह साबित हुआ कि उस नीलामी वेबसाइट ने सही स्थान लिखा है। वर्ष 2013 में एक पर्यटक द्वारा पोस्ट की गई ‘ट्रिप एडवाइजर फोटाग्राफ’ की यह तस्वीर शैमॉनिक्स वाले उस ग्लेशियर के जैसी ही दिखती है।
रिज्क्स म्यूजियम एल्बम में एक गॉथिक चर्च की तीन तस्वीरें भी हैं। पहली फोटो में एक नदी के पार का दृश्य है। दूसरी फोटो चर्च का टॉवर दिखाती है। तीसरी फोटो में चर्च का मुख्य दरवाजे दिखता है।
यांडेक्स, बिंग और गूगल इमेज सर्च में पहली तस्वीर खोजने से तत्काल कोई मिलान नहीं होता है। लेकिन ‘गूगल लेंस’ का उपयोग करने पर कई शहरों के बड़े चर्च का रिजल्ट आता है। इनमें चर्च स्पष्ट रूप से अलग दिखते हैं।
यह दुनिया का सबसे ऊंची चर्च की इमारत है। यह आज भी जर्मनी के उल्म शहर में मौजूद है। लेकिन मूल तस्वीर से यह चर्च कुछ अलग दिखता है। इसका कारण यह है कि एल्बम वाली फोटो लेने के लगभग 30 साल बाद चर्च में एक नया शिखर स्तंभ जोड़ा गया था।
रिज्क्स म्यूजियम आर्काइव की अगली फोटो की जांच के लिए हमने गूगल इमेज सर्च, यांडेक्स, और बिंग – इन तीनों में सर्च किया। लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। तब गूगल लेंस का उपयोग करने पर परिणाम सामने आया। हम उन तीनों सर्च इंजनों के एल्गोरिदम की मदद कर सकते हैं, जो फोटो को कलर करके उसकी पहचान नहीं कर सके।
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस (एआई) के द्वारा फोटो को रंगीन करके बेहतर किया जा सकता है। इसके लिए हॉटपॉट डॉट एआई (Hotpot.ai) जैसी साइट मुफ्त ऑनलाइन उपलब्ध है। इसका परिणाम नीचे देख सकते हैं।
फोटो को रंगीन करने के बाद ‘यांडेक्स रिवर्स इमेज सर्च’ करने पर स्पष्ट परिणाम सामने आया। इससे मिलती-जुलती अन्य तस्वीरें स्विस के बर्न शहर को दिखाती हैं।
लेकिन गूगल लेंस की भी अपनी सीमाएं हैं। अन्य रिवर्स इमेज सर्च टूल की तरह यह भी निम्नलिखित फोटो को नहीं पहचान सका।
इस तस्वीर को एक किले और एक घाटी में ली गई चर्च की दो अन्य तस्वीरों के साथ एलबम में रखा गया था। दूसरी ओर, उन दो तस्वीरों के बारे में गूगल लेंस के माध्यम से जानकारी मिल जाती है। ये तस्वीरें पूर्वी स्विटजरलैंड स्थित ग्रिसन्स के कैंटन में दो शहरों ‘टारसप’ के महल और ‘स्कुओल’ के चर्च को दिखाती हैं।
मानचित्र पर पिछली दो तस्वीरों का पता लगाकर, हम पहली छवि के संभावित स्थान की जानकारी के लिए ‘गूगल अर्थ’ पर परिदृश्य की जांच कर सकते हैं।
यह इमारत ‘टारसप’ के पास ‘बुवेटा ड्रिंकिंग हॉल’ के बतौर सामने आई। यह 1870 के दशक में आगंतुकों के लिए प्रसिद्ध खनिज पानी का आनंद लेने के लिए बनाई गई संरचना है।
गूगल लेंस के रिकग्निशन एल्गोरिथम ने पुरानी तस्वीरों के समान फोटो खोजने के लिए ‘रिवर्स इमेज सर्च’ की क्षमता को बढ़ाया है। पीकविजर, गूगल अर्थ और एआई रंगीनीकरण जैसे अन्य टूल के साथ अब किसी अज्ञात मौलिक फ़ोटो के भौगोलिक स्थान का पता करना आसान हो गया है।
फोटो की तिथि का निर्धारण करना
कोई तस्वीरें कब ली गई थी, इसका पता लगाना भी उपयोगी है। अगर लेखक या फोटोग्राफर अज्ञात है और तस्वीर पर कोई तारीख नहीं लिखी है, तो भौतिक विशेषताओं के आधार पर उसकी समय अवधि का निर्धारण किया जा सकता है।
समय के साथ तस्वीरों का आकार बदलता रहता है। तस्वीर बनाने की रासायनिक प्रक्रिया में भी बदलाव आता है। इसके आधार पर ‘ग्राफिक्स एटलस’ जैसी वेबसाइट किसी फोटो की एक समय अवधि बताने में मदद कर सकती हैं। लेकिन यह एक बारीक प्रक्रिया है। इसे विशेषज्ञों के लिए छोड़ देना बेहतर होगा। ‘रिज्क्स म्यूजियम’ की इन तस्वीरों को पहले ही ‘एलबुमेन पिक्चर्स’ के रूप में पहचाना गया है। यह वर्ष 1850 और 1900 के दशक के बीच प्रचलित फोटोग्राफी की एक लोकप्रिय विधि है। इस विधि के जरिए एलबम की तस्वीरों के लिए एक अनुमानित समय अवधि निर्धारित की गई है।
लेकिन तस्वीरों के दृश्यों का उपयोग करके अधिक सटीक रूप से पता लगाया जा सकता है कि उन्हें कब लिया गया था।
नीचे दी गई चर्च के सामने वाली तस्वीर देखें। इस तस्वीर को ‘रिवर्स इमेज सर्च’ के दौरान नदी के उस दृश्य में भी देखा गया था। उसे हमने गूगल लेंस रिवर्स इमेज सर्च का उपयोग करके पाया था। उसका परिणाम उल्म के आर्ट एसोसिएशन की वेबसाइट पर एक तस्वीर से मिल रहा था। यह फोटो वर्ष 1854 में ली गई। इसे उस चर्च की सबसे पुरानी ज्ञात तस्वीर के रूप में समझा जाता है। यह रिज्क्स म्यूजियम की बगैर तारीख वाली उस तस्वीर के लगभग समान है।
उक्त समानता के बावजूद हम कह सकते हैं कि रिज्क्स म्यूजियम की तस्वीर ज्यादा आधुनिक है। चर्च की इमारत में कई ऐसी संरचनाएं हैं जो उस पुरानी तस्वीर में मौजूद नहीं हैं। उस फर्क को नीचे लाल रंग के गोले में दिखाया गया है।
अब हमें यह पता लग चुका है कि यह तस्वीर उल्म से है। इसलिए अब हम उन तस्वीरों को मैन्युअल रूप से उल्म शहर के आर्काइव में खोज सकते हैं, जिन्हें सर्च इंजन में शामिल नहीं किया गया हो।
यह खोज अंततः हमें रिज्क्स म्यूजियम के उसी समान चित्र की ओर ले जाती है। हालांकि उल्म आर्काइव वाली फोटो की गुणवत्ता खराब है। उल्म आर्काइव ने उस फोटो की समय अवधि वर्ष 1860 और 1864 के बीच की बताई है। जबकि रिज्क्स म्यूजियम के अनुसार यह वर्ष 1865 से 1875 के बीच की फोटो है।
जिस इमारत में महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं हुए हों, उसके परिवेश का उपयोग करके यह निर्धारित किया जा सकता है कि कोई तस्वीर कब ली गई थी। जैसे, रिज्क्स म्यूजियम एल्बम से नीचे की बाईं तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च के जरिए खोजने पर आसानी से पता लग सकता है कि यह जर्मनी के फ्रीबर्ग की है। रिज्क्स म्यूजियम ने इसे वर्ष 1865 से 1875 के बीच की तारीख दी है।
इसके लिए सर्च के परिणामों में कई तस्वीरें काफी मिलती-जुलती हैं। लेकिन यह सटीक मिलान नहीं हैं। एक परिणाम ‘फ्रीबर्ग सिटी म्यूजियम’ की वेबसाइट पर भी मिला। इसमें उस फोटो के लिए एक जर्मन फोटोग्राफर गोटलिब थियोडोर हेस को श्रेय दिया गया। उन्होंने ऐतिहासिक कैथेड्रल शहर की तस्वीरें लेकर एक सीरिज बनाई थी। उनमें से एक तस्वीर को आर्टनेट पर देखा जा सकता है। वहां उस तस्वीर को वर्ष 2014 में नीलाम किया गया था। इसके कैप्शन के अनुसार वह तस्वीर वर्ष 1850 से 1859 के बीच ली गई थी।
दो तस्वीरों में कैथेड्रल के आसपास की छतें अलग-अलग दिखती हैं। फोटोग्राफर गोटलिब थियोडोर हेस की तस्वीर में कैथेड्रल स्क्वायर के पास एक घर की छत में दो बड़ी डॉर्मर खिड़कियां हैं। लेकिन रिज्क्स म्यूजियम की तस्वीर में दो छोटी खिड़कियां दिखती हैं, जो आसपास की छतों की तरह एक ही स्थान पर हैं। इसे नीचे लाल घेरे में देख सकते हैं।
फोटोग्राफर गॉटलिब थियोडोर हेस के नाम के लिए फिर से सर्च करने पर फ्रीबर्ग कैथेड्रल की एक और तस्वीर भी मिलती है। उसे रिज्क्स म्यूजियम द्वारा डिजिटल भी किया जाता है। हालांकि 60 फोटो के उपरोक्त एलबम में यह शामिल नहीं है। यह तस्वीर क्षतिग्रस्त है तथा अन्य रिज्क्स म्यूजियम फोटो के समान है। इसमें दो बड़ी डॉर्मर खिड़कियां शामिल हैं, लेकिन इसे एक अलग कोण से लिया गया था। इसे नीचे लाल रंग के गोले में देखें। रिज्क्स म्यूजियम ने इस तस्वीर को हेस द्वारा वर्ष 1852 से 1863 के बीच लेने के रूप में निर्धारित किया है।
यह माना जा सकता है कि उन घरों के मालिकों ने नई डॉर्मर खिड़कियों को वापस पिछली वाली जैसी छोटी बनाने का अनावश्यक खर्च नहीं किया होगा। इसका मतलब है कि उसी इमारत में छोटी खिड़कियों को दिखाने वाली तस्वीरें पहले ली गई होंगी। इस आधार पर हम उन तीनों तस्वीरों के खींचे जाने के क्रम का अनुमान लगा सकते हैं। यानी कौन-सी तस्वीर पहले ली गई, और कौन-सी बाद में।
इसका मतलब यह है कि रिज्क्स म्यूजियम द्वारा डिजिटल की गई दो तस्वीरें (एक जिसके लिए हेस को श्रेय दिया गया और दूसरी अज्ञात फोटोग्राफर की) आर्टनेट वेबसाइट पर उपलब्ध तस्वीर के बाद ली गई होगी।
नीचे प्रस्तुत रिज्क्स म्यूजियम की दोनों फोटो में डॉर्मर विंडो (लाल रंग के गोले में) दिख रहे हैं। लेकिन नए बनाए गए डॉर्मर विंडो (नीले रंग के गोले में) अज्ञात फोटोग्राफर की ऊपर वाली तस्वीर में नहीं दिख रहे हैं।
इस प्रकार, भले ही हम किसी फोटो को खींचे जाने का कोई एक सटीक वर्ष स्थापित नहीं कर सकते हों, लेकिन इस जांच से कई मदद मिलती है। हम प्रत्येक तस्वीर में विभिन्न विशेषताओं की अनुपस्थिति या उपस्थिति के आधार पर उन्हें लिए जाने की तिथि के अनुक्रम का पता लगा सकते हैं।
इस पद्धति के माध्यम से किसी तस्वीर को खींचे जाने की अवधि का निर्धारण उसी समय के आसपास उस दृश्य की अन्य तस्वीरों पर निर्भर करता है। तस्वीर के संदर्भ को हटाकर उनकी अवधि का पता लगाया जा सकता है। यह काम जितनी जल्द होता है, उतना ही कठिन होता है, क्योंकि उपलब्ध तस्वीरों की संख्या कम होती है। रिज़ॉल्यूशन भी कम हो जाता है।
चित्र और पेंटिंग भी इसमें काम आ सकते हैं। हालांकि ये कम सटीक हो सकते हैं। ऐसे मामलों में अन्य ऑनलाइन स्रोतों का उपयोग करके यह निर्धारित किया जा सकता है कि कोई फ़ोटो कब ली गई थी। निम्नलिखित फोटोग्राफ के मामले में एक उपयोगी केस स्टडी देखें।
(मैक) कॉनवे हार्ट का मामला
रिज्क्स म्यूजियम एल्बम की एक तस्वीर में एक सड़क का नाम ‘ब्रोकेन अप’ (टूटी हुई) लिखा गया है।
इस चित्र में फोटोग्राफर के नाम, तिथि या स्थान की कोई जानकारी नहीं है। इसे एलबम में शैमॉनिक्स, फ्रांस और दिल्ली (भारत) में ली गई तस्वीरों के बीच रखा गया है। इस तस्वीर में टूटी-फूटी सड़क के साथ कई इमारतें दिख रही हैं। इनका नाम ज्वैलरी जेम्स ब्राउन, माउंटेन्स होटल और फोटो स्टूडियो मैककॉनवे हार्ट है। इंटरनेट खोज करने पर इन नामों के लिए कोई उपयोगी परिणाम नहीं मिले।
‘फोटो स्टूडियो’ से उस तस्वीर के संभावित फोटोग्राफर के बारे में कोई जानकारी मिल सकती थी। लेकिन मैककॉनवे और हार्ट के संयोजन की इंटरनेट खोज से कोई उपयोगी परिणाम नहीं मिला।
लेकिन उस तस्वीर के बीच से दांए की ओर दूर में एक चर्च टावर दिख रहा था। इससे उस तस्वीर का भौगोलिक स्थान जानने के लिए एक उपयोगी संदर्भ बिंदु मिल गया।
यह चर्च टावर उस रिज्क्स म्यूजियम एलबम के अंतिम हिस्से की एक अन्य तस्वीर में मौजूद चर्च के समान दिख रहा था। वह दूसरी तस्वीर कलकत्ता (भारत) में टीपू सुल्तान शाई मस्जिद के लोकेशन की थी।
दोनों तस्वीरों में संरचना की तुलना से पता चलता है कि यह संभवतः एक ही चर्च टॉवर है।
मस्जिद और चर्च दोनों आज भी मौजूद हैं । इसलिए पुरानी तस्वीर के कोण का उपयोग गूगल मैप पर ‘ब्रोकेन अप’ (टूटी हुई) सड़क को खोजने के लिए किया जा सकता है। उस गली को सिदो कान्हू डहर कहा जाता है। यह सड़क एक भव्य इमारत की ओर जाती है। भारत की स्वतंत्रता से पहले उस इमारत को गवर्नमेंट हाउस कहा जाता था। अब इसमें पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हैं।
इस तरह उस सड़क की पहचान हो गई। इसके बाद क्या हम उस ‘फोटोग्राफी स्टूडियो’ के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं?
उस फोटो में दिखने वाले व्यावसायिक संस्थानों के नाम के आधार पर सर्च करने से उस सड़क के बारे में उपयोगी परिणाम नहीं मिलते हैं। लेकिन उस सड़क के नाम से खोज करने पर हमें एक विकिपीडिया पेज मिल गया। यह बताता है कि ‘सिदो कान्हू डहर’ को पहले ‘एस्प्लेनेड रो ईस्ट’ कहा जाता था।
‘हार्ट’ और ‘फ़ोटोग्राफ़ी’ के साथ सड़क के ऐतिहासिक नाम की सर्च करने पर हमें ‘फोटोग्राफी के इतिहास’ के बारे में एक वेबसाइट मिल गई। उसमें एक कॉनवे वेस्टन हार्ट का उल्लेख है। उसने सात नंबर, एस्प्लेनेड रो, कलकत्ता से अपना व्यवसाय चलाया था।
कॉनवे वेस्टन हार्ट एक ऑस्ट्रेलियाई चित्रकार और फोटोग्राफर थे। उनकी तस्वीरें और पेंटिंग दुनिया के कई प्रमुख म्यूजियम और गैलरी में हैं। जैसे- गेटी म्यूज़ियम (लॉस एंजिल्स, यूएस), यूके नेशनल पोर्ट्रेट गैलरी (लंदन), ऑस्ट्रेलियन नेशनल पोर्ट्रेट गैलरी (कैनबरा), नेशनल गैलरी ऑफ़ विक्टोरिया (ऑस्ट्रेलिया)।
कॉनवे वेस्टन हार्ट काफी चर्चित फोटोग्राफर और कलाकार थे। ऑस्ट्रेलियाना (ऑस्ट्रेलियाई पत्रिका) के अनुसार उनके ग्राहकों में गणमान्य व्यक्ति, राजनेता, न्यायपालिका के सदस्य और उनकी पत्नियां शामिल थीं। नीलामी वेबसाइटों के अनुसार वर्ष 2016 में उनकी एक पेंटिंग लगभग सवा लाख डॉलर में बिकी।
लेकिन उनके फोटो स्टूडियो का नाम कॉनवे हार्ट के बजाय मैक-कॉनवे हार्ट क्यों दिखाई देता है?
‘मैक-कॉनवे‘ (McConway) नाम से किसी स्कॉटिश के प्रारंभ में लगे ‘मैक’ का भ्रम हो सकता है। इससे आगे की खोज अधिक जटिल हो सकती है। संभव है कि ’एमसी’ का मतलब ‘मास्टर क्राफ्ट्समैन’ हो। कॉनवे एक फोटोग्राफर और चित्रकार दोनों थे। इसलिए वह इस शब्द का अच्छी तरह से इस्तेमाल कर सकते थे। ऐसे पेशे और व्यवसाय के लिए संक्षिप्त अक्षर के बतौर इस शब्द का उपयोग अब नहीं होता है। लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों में ऐसा प्रयोग देखा जा सकता है।
‘डिज़ाइन एंड आर्ट ऑस्ट्रेलिया ऑनलाइन’ नामक शोध वेबसाइट के अनुसार कॉनवे हार्ट वर्ष 1861 में ऑस्ट्रेलिया छोड़कर अपनी पत्नी के साथ कलकत्ता आ गए। यहां उन्होंने अपना स्टूडियो स्थापित किया। भारत आने के तीन साल बाद ही हैजा से उनकी मृत्यु हो गई। भारत उस वक्त अंग्रेजों का उपनिवेश था। इसलिए ब्रिटिश समाचार पत्रों के ऑनलाइन संग्रह में कॉनवे हार्ट के नाम पर श्रद्धांजलि (मौत की सूचना) देखी जा सकती है।
डिजिटल समाचारपत्र और जन्म रजिस्ट्रेशन पंजी के अलावा माई हेरिटेज डॉट कॉम और एनसेस्ट्री डॉट कॉम जैसी पारिवारिक वंशावली साइटों से भी जानकारी निकाली गई। पता चलता है कि कॉनवे हार्ट को तीन बच्चे थे। उनकी मृत्यु के समय सबसे बड़ा बेटा पंद्रह वर्ष का था।
कॉनवे हार्ट की फोटोग्राफी की दुकान उनकी मृत्यु के बाद जारी नहीं रह सकी। व्यावसायिक पते का उपयोग करके आर्काइव अखबारों की इंटरनेट खोज करने पर एक अचल संपत्ति का विज्ञापन मिला। यह विज्ञापन कॉनवे की मृत्यु के एक वर्ष से अधिक समय के बाद 22 जून 1865 को छपा था। इसमें कॉनवे की दुकान का व्यावसायिक पता शामिल है। उस दुकान का उपयोग अब एक रियल एस्टेट एजेंट द्वारा किया जा रहा है।
नीचे दी गई फोटो को ‘ओल्ड इंडियन फोटोज’ वेबसाइट से निकाला गया है। यह फोटो दिखाती है कि इमारत का अगला भाग 1865 तक बदल गया था। ज़ूम-इन करके और मूल तस्वीर से तुलना करके हम देख सकते हैं कि जिस इमारत में कॉनवे हार्ट का फोटोग्राफी व्यवसाय हुआ करता था, वहां अब एक फ्रांसीसी मिलर ‘मैडम नेली’ का व्यवसाय है।
इससे पता चलता है कि कॉनवे हार्ट की मृत्यु के लगभग एक साल बाद वर्ष 1865 में उनका व्यवसाय पूरी तरह से बंद हो गया था, अथवा उसी परिसर से काम नहीं कर रहा था।
पूर्वजों की वेबसाइट ‘माई हेरिटेज डॉट कॉम’ में किसी की पारिवारिक वंशावली देखने को मिलती है। इस वेबसाइट पर कॉनवे हार्ट को तलाशकर उनके एक रिश्तेदार का पता लगाया गया। उस रिश्तेदार से कॉनवे हार्ट के पारिवारिक इतिहास की जानकारी मिली।
पामेला वेबस्टर नामक एक व्यक्ति ने कॉनवे हार्ट की एक तस्वीर ऑनलाइन अपलोड की थी, जो कहीं और नहीं मिल सकती है।
बेलिंगकैट की टीम ने पामेला वेबस्टर से संपर्क किया। वह कॉनवे हार्ट की परपोती और खुद भी एक कलाकार है। वह कॉनवे के बारे में एक किताब पर काम कर रही है। अपने स्टूडियो की तस्वीर के अस्तित्व के बारे में जानकर वह खुश हुई।
आर्काइव का उपयोग करें
दुनिया भर में म्यूजियम (संग्रहालय) अपने संग्रह को डिजिटाइज़ कर रहे हैं। ऑनलाइन शोधकर्ता अब किसी फोटो या कलाकृति को आसानी से पा सकते हैं।
इसलिए जिस फोटो की जांच करनी हो, उससे जुड़े सभी बिंदुओं को जोड़ने का प्रयास करें। ऐसा करके आप किसी ऐतिहासिक तस्वीर के स्थान, अवधि और फोटोग्राफर के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे तरीकों का उपयोग करके अन्य कलाओं से जुड़ी कृतियों के बारे में भी उपयोगी तथ्य मिल सकते हैं। यह आपको सही जानकारी पाने में भी मदद कर सकता है। संभव है, कुछ बिंदु आपस में न जुड़ पाने के कारण शायद अन्य लोग किसी महत्वपूर्ण जानकारी को नहीं निकाल पाए हों।
इस प्रक्रिया में हम दूसरों की कई गल्तियों को सुधार भी सकते हैं। जैसे, हम यह जान चुके हैं कि कॉनवे हार्ट की मृत्यु वर्ष 1864 में हो गई थी। इसलिए 1870 के दशक की किसी फोटो के लिए कॉनवे हार्ट को श्रेय नहीं दिया जा सकता है। जैसे, लंदन की नेशनल पोर्ट्रेट गैलरी ने ऐसी गल्ती की है। इस फोटो को 1870 के दशक की बताते हुए कॉनवे हार्ट को श्रेय दिया है। अगर हमने सारे बिंदुओं को जोड़कर पहले ही पता लगा लिया है कि उनकी मृत्यु कब हुई थी, तब ऐसी गल्तियों को सुधार सकते हैं।
एक अन्य उदाहरण देखें। मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम (न्यूयॉर्क) में 1850 के दशक की एस्प्लेनेड रॉ की एक तस्वीर है। इसमें फोटोग्राफर अज्ञात है। फोटो में ‘माउंटेन होटल’ लिखा गया है। जबकि यह ‘माउंटेन्स होटल’ है। इसमें सड़क का नाम भी नहीं लिखा गया है। केवल ‘कलकत्ता’ लिखा गया है। लेकिन ऊपर बताए गए तरीकों से विभिन्न बिंदुओं को जोड़ते हुए हम इसमें सड़क का नाम ‘एस्प्लेनेड रॉ’ भी जोड़ सकते हैं।
तस्वीरों की जांच के इस कौशल में जनहित का एक और मामला है। फोटो को ऑनलाइन कैसे खोजा जा सकता है, इसकी बेहतर समझ के जरिए हम किसी खोई हुई अथवा चोरी हुई कलाकृति की जांच भी कर सकते हैं। अमेरिका की कानून प्रवर्तन एजेंसी एफबीआई की वेबसाइट में संभवतः चोरी की गई कलाकृतियों की तस्वीरें हैं। जर्मन लॉस्ट आर्ट फाउंडेशन भी नाजी शासन के दौरान लूटी गई कलाकृतियों की तलाश करना चाहता है।
कई मामलों में आपको आर्काइव (अभिलेखागार) जाने की भी आवश्यकता पड़ सकती है। ऐसे केंद्रों में जाकर पारंपरिक शोध करने का भी अपना अलग महत्व है। ऑनलाइन शोध का मतलब यह नहीं है कि परंपरागत तरीकों को पूरी तरह छोड़ दिया जाए। ऑनलाइन टूल और नए खोजी तरीकों के विकास से कलाकृतियों, तस्वीरों और दस्तावेजों के बारे में नए सुराग मिल सकते हैं। जिन मामलों में लंबे समय से शोधकर्ताओं और कलाकारों में कोई भ्रम हो, उनकी भी बेहतर जांच अब संभव है।
यह पोस्ट मूलतः बेलिंगकैट द्वारा प्रकाशित की गई थी। इसे अनुमति लेकर यहां प्रस्तुत किया गया है। बेलिंगकैट जीआईजेएन का सदस्य है।
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फोके पोस्टमा बेलिंगकैट में एक शोधकर्ता और प्रशिक्षक हैं। उनके पास संघर्ष विश्लेषण और समाधान में विशेषज्ञता है। विशेष रूप से सैन्य, पर्यावरण और एलजीबीटी मुद्दों में रुचि रखते हैं।