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जीआईजेसी 21: खोजी पत्रकारों से आह्वान – सहयोगी खोजें और खबरें निकालें

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फोटो – काटा मैथ / रिमार्कर

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दो खोजी संपादकों को नोबेल शांति पुरस्कार 2021 का मिलना दो महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित करता है। लोकतांत्रिक जवाबदेही के निर्माण में खोजी पत्रकारों की भूमिका पर भरोसा बढ़ा है और यही कारण है कि खोजी पत्रकारों पर अभूतपूर्व हमले भी हो रहे हैं।

बारहवीं ग्लोबल इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म कॉन्फ्रेंस (जीआईजेसी 21) के उद्घाटन सत्र में चर्चा का यही विषय था। खोजी पत्रकारिता पर दुनिया का यह प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन एक से पांच नवंबर 2021 तक ऑनलाइन सम्पन्न हुआ। इसमें 148 देशों के 1800 संपादक, पत्रकार और सिविल सोसाइटी प्रतिनिधि शामिल हुए। एक नवंबर 2021 को पूर्ण-सत्र (प्लेनरी सेशन) में 100 देशों के 500 से अधिक पत्रकार शामिल हुए। इस सत्र में पांच दिग्गज संपादकों ने दुनिया भर में लोकतांत्रिक आदर्शों की रक्षा और स्वतंत्र प्रेस का अस्तित्व बचाने की लड़ाई की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि दुष्प्रचार और सार्वजनिक मोहभंग के कारण लोकतांत्रिक संस्थानों पर खतरा बढ़ रहा है। साथ ही, विभिन्न निरंकुश ताकतों और ‘निर्वाचित कट्टरपंथियों‘ के कारण भी मीडिया की स्वतंत्रता पर खतरा बढ़ा है।

फ्रांस के मीडिया संस्थान मीडियापार्ट के संपादक एडवी प्लेनेल  ने इतालवी दार्शनिक एंटोनियो ग्राम्स्की के हवाले से कहा – “पुरानी दुनिया मर रही है और नई दुनिया के जन्म लेने का संघर्ष जारी है। अब यह राक्षसी ताकतों का समय है और हम राक्षसों से लड़ रहे हैं। हमें समाज के साथ एक नया गठबंधन बनाना चाहिए। हम अपनी खोजी खबरों के जरिए समाज को जगाते हैं। लेकिन इससे उजागर होने वाली सच्चाई को समझते हुए समुचित बदलाव लाना समाज पर निर्भर है। हमारा पहला मिशन नागरिकों के जानने के अधिकार की रक्षा करना है।“

इस सत्र की मॉडरेटर शीला कोरोनेल (निदेशक, स्टेबल सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म, कोलंबिया जर्नलिज्म स्कूल) ने कहा- “दुनिया भर में लोकतंत्र के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा है। हम पत्रकारों पर मुकदमा चलाए जा रहे हैं, जेल में डाला जा रहा है, हत्या की जा रही है। दुनिया भर में पत्रकारों को डिजिटल निगरानी और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। चारों तरफ झूठ और अफवाहों की बाढ़ दिखती है। ऐसे संकट के बीच हमें कोविड-19 से भी जूझना पड़ रहा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने मीडिया पर बड़ा खतरा कहा है।“

शीला कोरोनेल  ने पूछा- “क्या हम खोजी पत्रकारों को अपनी महत्वाकांक्षाएं सीमित करके सिर्फ अस्तित्व बचाने की चिंता करनी चाहिए, या हमें लोकतंत्र का झंडा बुलंद करते हुए जवाबदेही और सबके लिए न्याय की लड़ाई लड़नी चाहिए?“ इसके जवाब में सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा- “हम लड़ेंगे!“

लेकिन सवाल यह है कि बेहद कम संसाधनों वाला खोजी पत्रकार समुदाय अपना यह काम कैसे करे? उसे तो सरकारों द्वारा ‘दुश्मन‘ या ‘जासूस‘ के रूप में बदनाम किया जाता है। ऐसे राजनीतिक और आर्थिक दबावों का मुकाबला करते हुए पत्रकार किस तरह लोकतांत्रिक संस्थानों के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ा रहे, यह आज एक बड़ी चुनौती है।

पैनल के वक्ताओं ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए स्पष्ट रास्ते बताए। खोजी पत्रकारों को अब नए कौशल और आधुनिक उपकरणों से खुद को लैस करना होगा। उन्हें व्यापक स्तर पर सहयोगियों की तलाश करनी होगी। इसमें शिक्षकों और नागरिक समाज संगठनों के अलावा प्रतियोगी न्यूज रूम के साथ भी साझा प्रयास करना शामिल हो।

फोटो: मारिया टेरेसा रोन्डरोस ने खोजी पत्रकारों को नागरिक समाज के साथ सहयोग की सलाह दी। छवि- रोन्डरोस के सौजन्य से

लैटिन अमेरिकन सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म (सीएलआईपी) की सह-संस्थापक और निदेशक मारिया टेरेसा रोन्डरोस ने कहा- “हमें दूसरों की ताकत के साथ अपनी शक्ति जोड़ने की जरूरत है। हम सामूहिक शक्ति का उपयोग करें, नागरिकों और नागरिक समाज के साथ मजबूत रिश्ते बनाएं। हमें सच्चाई को सामने लाने के लिए और भी अधिक दृढ़ होने की जरूरत है। नागरिकों को यह बताना जरूरी है कि उन्हें क्या चीजें नहीं दिखाई जा रही हैं। जब आप ऐसा करेंगे, तो बहुत से लोग आपसे जुड़ेंगे। कुछ लोग आपके दुश्मन भी बनेंगे, लेकिन आपको बहुत सारे दोस्त मिलते जाएंगे।“

पत्रकार विरोध करें, लेकिन पत्रकारों की तरह

इस सत्र में कई वक्ताओं ने ‘निर्वाचित निरंकुश‘ और ‘सत्तावादी लोकतंत्र‘ जैसी शब्दावली का उपयोग किया। लोकतांत्रिक संस्थानों के क्षरण, ध्रुवीकरण और लोकलुभावन राजनीति के उदय और सत्तावादी प्रवृतियों पर चिंता व्यक्त की गई। इस परिप्रेक्ष्य में शीला कोरोनेल ने पूछा- “क्या स्वतंत्र पत्रकार ही अब प्रतिरोध की नई ताकत हैं?“

पैनल के वक्ताओं में इस बात पर सर्वसम्मति थी कि पत्रकारिता को किसी राजनीतिक विरोध का हिस्सा नहीं बनना चाहिए और न ही मुद्दों से प्रेरित सक्रियता होनी चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि खोजी पत्रकारों को दुनिया भर में लोकतंत्र-विरोधी प्रवृतियों के खिलाफ तथा अभिव्यक्ति की रक्षा के लिए आवाज बुलंद करने को विवश होना पड़ा है।

भारत की प्रमुख खोजी पत्रिका ‘द कारवां‘ के कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस  ने कहा, “पत्रकारिता पर हमले का जवाब और अधिक पत्रकारिता है।“

नाइजीरिया के प्रीमियम टाइम्स के मुख्य कार्यकारी दापो ओलोरुनोमी  ने कहा – “हमारे सामने जो चुनौतियां आई हैं, उस हद तक हम प्रतिरोध कर रहे हैं। लेकिन हम पत्रकारिता के अपने पेशे के डीएनए को नहीं छोड़ सकते।“

इस पर सहमति जताते हुए मारिया टेरेसा रोन्डरोस कहती हैं- “हम कार्यकर्ता बनने की होड़ में न उलझें। किसी भी विषय पर लोगों को तथ्यों के आधार पर अपनी राय बनाने दें। हमें अपने राजनीतिक विचारों के आधार पर नहीं बल्कि प्रोफेशनल मापदंड पर टिके रहना चाहिए।“

उल्लेखनीय है कि सीमित संसाधनों के बावजूद खोजी पत्रकारिता ने हाल के वर्षों में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। ऐसी पत्रकारिता के कारण दक्षिण अफ्रीका में एक भ्रष्ट राष्ट्रपति को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। दुनिया की 11 सरकारों द्वारा नागरिक अधिकारों पर हमला करते हुए स्पाइवेयर हैकिंग का खुलासा भी एक बड़ी उपलब्धि है।

फोटो: दुष्प्रचार के युग में सच्चाई सामने लाने की चुनौतियों पर शीला कोरोनेल ने प्रकाश डाला। इमेज – शीला कोरोनेल के सौजन्य से।

खोजी पत्रकारिता का क्या प्रभाव पड़ता है, इस मुद्दे पर भी चर्चा हुई। शीला कोरोनेल ने पूछा- “यदि लोकतांत्रिक संस्थाएं कमजोर हों और नागरिकों के बीच भ्रम की स्थिति हो, तो खोजी पत्रकारिता के निष्कर्षों से किसी परिवर्तन या न्याय की उम्मीद भी प्रभावित होगी। खोजी पत्रकारों का मानना है कि गलत कामों को उजागर करके दोषियों को अदालत के कठघरे तक पहुंचाना और सुधार लाना संभव है। लेकिन गलत सूचनाओं के इस कठिन दौर में ऐसा हो पाना कितना संभव है?“

शीला कोरोनेल ने पैनल के वक्ताओं के विचारों का सारांश इन चार बिंदुओं में प्रस्तुत किया:

  • इतिहास गवाह है कि उत्तरदायी संस्थानों के अभाव में भी खोजी पत्रकारिता का बड़ा असर होता है। भले ही समय के साथ इसमें कुछ देर हो। मारिया टेरेसा रोन्डरोस ने कहा- “जब पत्रकारों द्वारा किन्हीं गलत चीजों को उजागर किए जाने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती, जब भी मीडिया इन चीजों को सामने लाना जारी रखता है और इसका दूरगामी प्रभाव होता है।“ दापो ओलोरुनोमी ने जोड़ा- “इससे जनचेतना का भी विस्तार होता है।“
  • साहसपूर्ण रिपोर्टिंग के कारण सरकारों को अंततः जवाबदेह होना पड़ता है और कार्रवाई भी होती है। यहां तक कि जहां लोकतंत्र के अनुकूल सिस्टम न हो, वहां भी असर होता है। मारिया टेरेसा रोन्डरोस ने वेनेजुएला का एक उदाहरण दिया। वहां चार पत्रकारों ने एलेक्स साब द्वारा धन की हेराफेरी का मामला उजागर किया। लेकिन इसके कारण पत्रकारों को निर्वासन में रहने को मजबूर होना पड़ा। बाद में उनकी रिपोर्टिंग के कारण एलेक्स साब की गिरफ्तारी हुई और वित्तीय अपराधों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रत्यर्पण हुआ।
  • यदि खोजी पत्रकारिता के कारण वर्तमान में प्रभाव होना मुश्किल हो, तब भी पत्रकारों की मेहनत बेकार नहीं जाती। उनके द्वारा उजागर किए गए सबूत भविष्य में इतिहासकारों, कानूनी एजेंसियों और मतदाताओं के रिकॉर्ड में जुड़ते जाते हैं। सर्बिया में कई खोजी संपादकों ने तमाम जोखिम उठाते हुए अपना काम जारी रखकर इस बात को साबित किया है।
  • खोजी रिपोर्टिंग के कारण नागरिकों के मन में जवाबदेही के प्रति जागरुकता का स्तर बढ़ता है। साथ ही, यह एक सच्चा लोकतंत्र है, ऐसा मानकर निर्भीक रिपोर्टिंग करने से पत्रकारों को अपनी जांच में आत्म-सेंसरशिप से बचने में भी मदद मिलती है।

इस सत्र ने खोजी पत्रकारिता के लिए नई ऊर्जा और आशा का संचार किया। एडवी प्लेनेल ने कहा- “मैं अब 69 वर्ष का हूं, लेकिन अपने काम के लिए 15 साल पहले से अधिक युवा हूं, क्योंकि यह लड़ने का समय है! तमाम सीमाओं से परे जाकर हमें राष्ट्रवाद और नस्लवाद के उदय के खिलाफ प्रतिरोध करना होगा। सहकारी पत्रकारिता अब नई एकजुटता पैदा कर सकती है, और यह अच्छी खबर है!“

मारिया टेरेसा रोन्डरोस कहती हैं- “लैटिन अमेरिका में खोजी पत्रकारिता के लिए यह एक स्वर्ण युग है।“

उन्होंने कहा- “हमें ध्रुवीकरण और मीडिया पर अविश्वास जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन नई डिजिटल तकनीक ने खबर देने के नए-नए के माध्यम उपलब्ध कराए हैं। पॉडकास्ट से लेकर सोशल मीडिया तकनीक ने न्यूजरूम को नए दर्शकों तक पहुंचने का मौका दिया है। इनके जरिए हम अपने पुराने पाठकों के साथ फिर से जुड़ सकते हैं। एक ध्रुवीकृत दुनिया में यदि आप उसी पुरानी पैकेजिंग का उपयोग करते हैं, तो लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे।“

जीआईजेसी 21 में आपका स्वागत है

उद्घाटन सत्र में जीआईजेएन वेबसाइट पर संगठित अपराध की जांच संबंधी गाइड का विमोचन किया गया। सम्मेलन के दौरान चार प्रमुख गाइड और टूल का विमोचन किया गया। इनमें ‘गाइड टू फैक्ट-चेकिंग इन्वेस्टिगेटिव स्टोरीज‘, ‘छोटे न्यूजरूम में वीडियो टीम का निर्माण‘ और ‘जर्नलिस्ट सिक्योरिटी असेसमेंट टूल‘ शामिल हैं। यह जीआईजेसी 21 के दूसरे दिन जारी एक महत्वपूर्ण स्व-मूल्यांकन सुरक्षा उपकरण है।

जीआईजेसी का पहली बार केवल ऑनलाइन आयोजन हुआ। इसमें शामिल लोगों का स्वागत करते हुए जीआईजेएन के कार्यकारी निदेशक डेविड ई. कपलान  ने ऐतिहासिक चुनौतियों को रेखांकित करते हुए पैनल के कुछ वक्ताओं की ही तरह सकारात्मक उम्मीदों पर जोर दिया। उन्होंने कहा- “पत्रकारों और खासकर महिला सहयोगियों पर शारीरिक हमलों, बढ़ती निगरानी, धमकी, कानूनी उत्पीड़न और ऑनलाइन ट्रोलिंग जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद खोजी पत्रकारिता जीवित है और हम आगे बढ़ रहे हैं। हमारे पांच दिनों के इस सम्मेलन में 65 देशों के 200 वक्ता हैं। इनके पास अत्याधुनिक पत्रकारिता और नवीनतम तकनीक की अच्छी समझ है। जीआईजेएन का ध्यान हमेशा व्यावहारिक चुनौतियों पर केंद्रित रहता है। सत्ता के हमलों और जवाबदेही की कमी वाले माहौल में पत्रकारों की मदद करना हमारा काम है।”

जूडिथ निलसन इंस्टीट्यूट सिडनी के कार्यकारी निदेशक  मार्क रयान ने ऑस्ट्रेलिया में जीआईजेसी 22 के मेजबान-प्रायोजक के बतौर सबको आमंत्रण दिया। डेविड ई. कपलान ने भी इसमें अपना स्वर मिलाते हुए कहा- “हम अगले साल सिडनी में मिलेंगे, और हम लोग भौतिक रूप से वहां जुटने के लिए दृढ़संकल्प हैं।”

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