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किसी प्राकृतिक आपदा के बाद पत्रकारों को ये दस सवाल ज़रूर पूछना चाहिए

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खोजी पत्रकारों को देखना चाहिए कि तुर्की में भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा में राजनीतिक फैसलों और नीतियों की क्या भूमिका रही। इमेज: शटरस्टॉक

तुर्की और सीरिया में छह फरवरी 2023 को विनाशकारी भूकंप आया। इसने दुनिया के पत्रकारों को याद दिलाया कि तेजी से बढ़ रही ‘प्राकृतिक आपदाएं’ पूरी तरह से प्राकृतिक नहीं हैं। मनुष्य के गलत कदमों, उपेक्षा या भ्रष्टाचार के कारण कई बार ‘प्राकृतिक आपदा’ की स्थिति बदतर हो जाती है।

तुर्की में ध्वस्त इमारतों से जुड़े दर्जनों भवन निर्माण ठेकेदारों को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन उनमें कई भवन संरचनाओं की कमजोरी के पीछे राजनेताओं और अन्य अधिकारियों द्वारा लापरवाह आम माफी कानून जिम्मेवार हैं।  जबकि ऐसे लोगों को भवनों की इस कमजोर संरचना के लिए जवाबदेह नहीं ठहराया गया।

फरवरी 2023 के इस भूकंप में कम-से-कम 40,000 लोगों की मौत हुई। विशेषज्ञों के अनुसार, विभिन्न प्रकार की लापरवाहियों के कारण भूकंप ज्यादा घातक हो गया। इसके कारण इतनी अधिक मौतें हुईं।

पिछले एक दशक में जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक संसाधनों की लूट एवं भ्रष्टाचार तथा लोकतांत्रिक संस्थानों का क्षरण होने का गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है। इसलिए खोजी पत्रकारों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। उन्हें बाढ़, भूकंप, सूनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और टाइफून के बाद समुचित जांच करके प्रमुख जिम्मेवार लोगों की तलाश करनी चाहिए। ऐसे लोग किसी दूरस्थ स्थान पर हों या फिर घटना के क्षेत्र में हों।

पत्रकार रजनीश भंडारी ने इस विषय में अनुकरणीय रिपोर्टिंग की है। वह नेपाल खोजी मल्टीमीडिया पत्रकारिता नेटवर्क के संस्थापक हैं। उन्होंने द न्यूयॉर्क टाइम्स, नेशनल जियोग्राफिक तथा अन्य मीडिया संस्थानों के लिए वर्ष 2015 के नेपाल भूकंप को कवर किया था। उस घटना में लगभग 9,000 लोगों की मौत हुई थी।

‘द टाइम्स‘ के लिए अपनी वीडियो स्टोरी को याद करते हुए उन्होंने कहा- “मुझे अपनी पहली स्टोरी बाहर भेजने के लिए एक ट्रैफिक पुलिस स्टेशन के इंटरनेट का उपयोग करना पड़ा।“

रजनीश भंडारी कहते हैं कि आपदा रिपोर्टिंग में डेटाबेस और रिमोट सेंसिंग टूल्स , सोशल मीडिया सर्च और पैसे का पीछा करने जैसे प्रमुख खोजी तरीकों का उपयोग करना चाहिए। किसी हादसे के बाद पुनर्निर्माण और राहत कार्यों के दौरान भ्रष्टाचार की काफी संभावना रहती है। ऐसी खबरों के लिए खोजी पत्रकारों को अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता होती है। घटना के क्षेत्र से रिपोर्ट करने के लिए उस क्षेत्र में किसी सहयोगी या भागीदार से मदद लेना उपयोगी है। आपकी रिपोर्टिंग में शोक संतप्त परिवारों तथा हादसे में बचे लोगों के प्रति सहानुभूति दिखनी चाहिए। हादसे के बाद के हफ्तों और महीनों में आपको नए- नए और रचनात्मक प्रश्न पूछकर उनके आधार पर खबरें निकालनी चाहिए।

खोजी पत्रकार सबसे पहले इस विचार को निकाल दें कि तुर्की में भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा केवल ‘प्राकृतिक कृत्य‘ का परिणाम है। इसके बजाय इसे खतरनाक हादसे और मानवीय क्रियाओं के मिश्रण के बतौर देखें। इसके बाद फोरेंसिक जांच शुरू करें। जैसे, पैसा, लोग, अप्रत्याशित जरूरतें, जवाबदेह अधिकारी। आपकी जांच से पता चल सकता है कि वास्तव में क्या हुआ था। आपकी रिपोर्टिंग के कारण भविष्य में ऐसे हादसों से बचा जा सकता है।

उक्त आलोक में खोजी संपादकों और पत्रकारों के लिए यहां 10 सवाल दिए हैं। इन्हें आप अपने स्रोतों से पूछें और खुद से भी।

इमेज: स्क्रीनशॉट, सेंटर फॉर इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म, नेपाल

1. राहत राशि कहां गई? फंड का प्रवाह कहां रूक जाता है?

किसी हादसे के बाद बड़ी मात्रा में आपदा सहायता राशि का प्रावधान किया जाता है। इसमें पुनर्निर्माण अनुदान और राहत संसाधनों में लाखों डॉलर का बजट होता है। पत्रकारों को इसमें भ्रष्टाचार की संभावना पर नजर रखनी चाहिए। साथ ही, इस राशि के उपयोग में वितरण संबंधी गलतियों और वितरण संबंधी प्रणालीगत विफलताओं का खुलासा करना चाहिए। राहत कार्यों के कार्यान्वयन की प्रक्रिया में कई खामियों के कारण उस राशि का सदुपयोग नहीं हो पाता। कई बार उस राशि को अन्य चीजों पर खर्च कर दिया जाता है। ‘सेंटर फॉर इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म‘ (नेपाल) ने वर्ष 2015 में नेपाल के विनाशकारी भूकंप के बाद पुनर्निर्माण राशि के चोक-पॉइंट पर खोजी रिपोर्ट तैयार की। इसमें बताया गया कि धनराशि का प्रवाह कहां रूक जाता है। रिपोर्ट के अनुसार हादसे के 21 महीनों के बाद केवल तीन प्रतिशत धनराशि का उपयोग करके बचे हुए विस्थापित लोगों की मदद की गई।

फंड के प्रवाह पर पूछने वाले योग्य प्रमुख सवाल हैं- वितरण श्रृंखला में प्रमुख जिम्मेवार व्यक्ति कौन हैं? इस कार्य में किसकी निगरानी है? आपातकालीन राहत सामग्री तथा राशन, वस्त्र, अनाज, दवा इत्यादि सामग्री का सही वितरण हुआ या नहीं? इन्हें चोरी करके कालाबाजारी तो नहीं कर दी गई? निजी वितरकों एवं एजेंसियों का चयन किस तरह किया गया? क्या उन एजेंसियों ने अनुबंध की शर्तों को पूरा किया?

 

2. क्या मनुष्यों के किन्हीं कार्यों के कारण हादसा और अधिक भयावह हो गया? मनुष्य के ऐसे कार्य उस हादसे से पहले हुए हैं या उसके बाद?

यह एक प्रश्न आपको खोजी रिपोर्टिंग के कई दृष्टिकोण उपलब्ध करा सकता है। आप जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभावों से निपटने की योजनाओं में विफलता और गलत संचार जैसी खबरों पर तत्काल काम कर सकते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो आम तौर पर अधिकांश प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। उनसे निपटने की योजना बनाकर संसाधन आबंटन करके हादसे से नुकसान कम किया जा सकता है। तूफान, ज्वालामुखी विस्फोट और सूनामी जैसे मामलों में सार्वजनिक चेतावनी देना उपयोगी है। ऐसे कदमों के माध्यम से नुकसान और जीवन की हानि को कम किया जा सकता है। वर्ष 2010 में न्यूजीलैंड में 7.1 तीव्रता के कैंटरबरी भूकंप के मामले में ऐेसे प्रयासों का लाभ देखा गया, जिसमें केवल एक व्यक्ति की मौत हुई थी।

3. आपदा के कारण आसपास के क्षेत्रों में रिसाव या विषैले प्रदूषण की क्या संभावना है?

जापान में वर्ष 2011 की सूनामी के बाद फुकुशिमा परमाणु आपदा और इसमें शामिल तकनीकी और संचार त्रुटियां इसका सटीक उदाहरण है। लेकिन भूकंप, बाढ़ और सूनामी के कारण क्षतिग्रस्त तेल रिफाइनरियों, सैन्य ठिकानों और रासायनिक संयंत्रों से संदूषण जैसे तरंग प्रभाव का खतरा है। ऐसी चीजें अक्सर खोजी पत्रकारिता के माध्यम से ही सामने आती हैं।

4.क्या भ्रष्टाचार तथा भाई-भतीजावाद के कारण मृतकों की संख्या बढ़ी है?

नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार हाल के दशकों में भूकंप से ध्वस्त इमारतों से होने वाली मौतों में से 83 फीसदी मौत प्रणालीगत भ्रष्टाचार वाले देशों में हुईं। अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार घटिया निर्माण के कारण मध्यम स्तर के भूकंप भी बड़ी आपदा में बदल गए। कई मामलों में गैरजिम्मेदार नेताओं ने आपदा विभाग के महत्वपूर्ण पदों पर अयोग्य अधिकारियों को बिठा दिया जाता है। किसी आपदा के बाद राहत कार्य में भ्रष्टाचार के कारण मृतकों की संख्या बढ़ जाती है। वर्ष 2022 में पाकिस्तान की भारी बाढ़ के बाद ऐसी रिपोर्ट सामने आई थी।

5. आपातकालीन प्रबंधन एजेंसियों की समस्याओं तथा आपदा राहत में कमियों के बारे में डेटा से क्या पता चलता है?

वर्ष 2021 में वाशिंगटन पोस्ट के डेटा पत्रकार एंड्रयू बा ट्रान ने सरकारी डेटाबेस को गहराई से जांचा। पता चला कि यूएस फेडरल इमरजेंसी मैनेजमेंट एजेंसी (फेमा) से प्राप्त सहायता स्वीकृतियों की दर 2010 में 63 फीसदी थी। लेकिन वर्ष 2021 में यह गिरकर केवल 13 फीसदी रह गई। पत्रकारों की टीम ने जनगणना डेटा में नस्ल श्रेणियों के अनुसार सहायता डेटा की भी तुलना की। इसके जरिए यह दिखाने का प्रयास किया गया कि अमेरिका के ‘डीप साउथ‘ में ब्लैक डिजास्टर के बचे हुए लोगों यानी उत्तरजीवियों (सर्वाइवर्स) को सहायता वंचित कर दिया गया था।

6. हादसे के बाद पीड़ितों की अराजकता के संबंध में संतुलित रिपोर्ट कैसे करें?

कई बार किसी हादसे के बाद पीड़ितों द्वारा कई प्रकार की अराजकता के मामले सामने आते हैं। इनकी रिपोर्टिंग के दौरान घिसी-पिटी बातों और पूर्वाग्रहों से सावधान रहें। शोधकर्ता नादिया दविशा ने अमेरिका में वर्ष 2005 की कैटरीना तूफान आपदा के समाचार कवरेज का विश्लेषण किया। पता चला कि कुछ खबरों में अश्वेत लोगों को ‘अराजक‘ के तौर पर वर्णित किया गया। दूसरी ओर, श्वेत लोगों को ‘जरूरतमंद‘ के रूप में दिखाया गया था। एक दुकान से भोजन ले जाते हुए एक अफ्रीकी-अमेरिकी व्यक्ति को ‘लुटेरा‘ बताया गया। जबकि ऐसा करने वाले एक श्वेत व्यक्ति को ‘भोजन ढूंढ़ने वाला‘ बताया गया। पत्रकारों को ऐसे मामलों में घिसी-पिटी रूढ़िवादिता से बचते हुए प्रत्येक प्रभावित समुदाय के सामने मौजूद स्थितियों के संदर्भ में लूटपाट की घटनाओं पर संतुलित रिपोर्टिंग करनी चाहिए।

7. आपदा प्रबंधन के नए खिलाड़ियों से हम क्या सीख सकते हैं?

‘द न्यू ह्यूमैनिटेरियन‘ के कार्यकारी संपादक जोसेफिन श्मिट के साथ जीआईजेएन ने बात की। उन्होंने बताया कि आपदा प्रबंधन और ‘तीस बिलियन डाॅलर का मानवीय सहायता उद्योग‘ अब सिर्फ सरकारों, संयुक्त राष्ट्र और बड़े दानदाताओं में सीमित क्षेत्र नहीं रह गया है। अब इनमें निजी व्यक्ति, ऑनलाइन समुदाय और स्वयंसेवी अग्निशामक भी शामिल हैं, जो खुद अपने खर्च पर आपदा प्रबंधन के प्रयास करते हैं। ऐसे खिलाड़ी किसी पत्रकार के लिए महत्वपूर्ण और विश्वसनीय स्रोत हैं। उनसे आपको स्वतंत्र तथ्य और मूल्यवान पहुंच मिल सकती है। यहां तक कि ऐसे लोग आपके मुखबिर के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।

8. आपदा के बाद लोगों के स्वास्थ्य पर कैसे खतरे हैं?

आपदाओं के कारण निर्मित नई परिस्थितियाँ कई प्रकार की स्वास्थ्य चुनौतियों को जन्म देती हैं। विशेष रूप से दूषित पेयजल और स्वच्छता में कमी के कारण ऐसा होता है। इसलिए प्राकृतिक आपदाओं के बाद बीमारी से होने वाली मौतों की नई लहरें पैदा होती हैं। साथ ही, महत्वपूर्ण सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान पैदा होता है। पत्रकार को इन पहलुओं पर नजर रखनी चाहिए। तपेदिक की गोलियों से लेकर प्रसव पूर्व देखभाल और वेंटिलेटर तक हर चीज की बारीकी से जांच करने की आवश्यकता है।

9. आपदा का फायदा कौन उठा रहा है?

पिछले दिनों कई आपदाओं के बाद कई प्रकार के अवसरवादी उभर कर सामने आए हैं। ठगी के नए तरीके भी देखने को मिले हैं। विचारधारात्मक कुप्रचार करने वालों से लेकर भ्रष्ट अधिकारी और ऑनलाइन चंदा जुटाने के लिए फर्जी पीड़ितों के नाम पर घोटाला करने वाले भी शामिल हैं। वर्ष 2010 में हैती में आए भूकंप के कुछ सप्ताह बाद पोर्ट-ओ-प्रिंस के क्षतिग्रस्त अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक ऑफ-ड्यूटी अधिकारी ने इस रिपोर्टर और एक निजी पायलट को छोड़ने के हमारे अधिकार के बदले में जबरन वसूली करने का प्रयास किया। पायलट को विमान को टैक्सी से दूर ले जाना पड़ा। उस अधिकारी ने एक हिंसक गिरोह को बुला लिया। पत्रकारों को किसी आपदा के बाद अनुचित लाभ उठाने वाले ऐसे ठगों के बारे में भी सचेत रहना चाहिए।

10. इसमें जो बात छूट गई हो, उस पर सुझाव दें।

आपदा के कारण पीड़ित गरीब समुदायों को राहत देने और फिर से बसाने हेतु पुनर्निर्माण परियोजनाओं के लिए आवश्यक कुशल लोगों की अब भी काफी कमी है। आपदा के बाद आने वाले मुद्दे और चुनौतियां काफी अधिक हैं। इसलिए पत्रकारों को ऐसे विषयों पर नियमित रूप से खबरें और संपादकीय लिखकर जनजागरूकता फेलाना आवश्यक है। इसलिए अगर यहां कोई बात छूट गई हो तो कृपया हमें बताएं। यदि आपके पास इसमें जोड़ने के लिए कोई विचार है तो हमें बताएं। हम एक विस्तृत आपदा जांच मार्गदर्शिका पर हम काम कर रहे हैं। आपके सुझावों को उसमें समाहित किया जाएगा।

अतिरिक्त संसाधन

How to Report on Disasters

Resources for Finding and Using Satellite Images

Climate Crisis: Ideas for Investigative Journalists


रोवन फिलिपRowan Philp, senior reporter GIJN जीआइजेएन के वरिष्ठ रिपोर्टर हैं। पहले वह दक्षिण अफ्रीका के ‘संडे टाइम्स‘ के मुख्य संवाददाता थे। एक विदेशी संवाददाता के रूप में उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं को कवर किया है। इनमें मोजाम्बिक में 2000 की बाढ़, श्रीलंका में 2004 की सुनामी और 2010 में हैती में आया भूकंप जैसे हादसे शामिल हैं।

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