Hongkongers protest for press freedom and against violence by riot police. Credit: Shutterstock.

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प्रेस की स्वतंत्रता को कम करना अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है

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प्रेस की स्वतंत्रता और पुलिस हिंसा के खिलाफ 2019 में हांगकांग में विरोध-प्रदर्शन। फोटो साभार : शटरस्टॉक

दुनिया के कई देशों खासकर भारत में इन दिनों प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर व्यापक चर्चा हो रही है। सरकार की नीतियों की आलोचना और सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाने पर बड़ी संख्या में पत्रकारों पर केस दर्ज़ हो रहे हैं। साल 2021 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक (World Press Freedom Index) में भी भारत की रैंकिंग में कोई सुधार न होना इसका प्रमाण है। मीडिया की स्वतंत्रता किसी भी लोकतंत्र को मज़बूत बनाती है।

मीडिया की स्वतंत्रता महज लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी गति देती है। यह बात सुनने में अटपटी लग सकती है, लेकिन अब यह प्रमाणित हो रहा है कि मीडिया की स्वतंत्रता से भी अर्थव्यवस्था का सीधा सम्बन्ध है।

हमारे शोध में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले, जैसे पत्रकारों को जेल में डालना, घरों पर छापा मारना, प्रिंटिंग प्रेस को बंद करना, या डराने-धमकाने के लिए मानहानि के मुकदमे दायर करना आदि आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

हमारी शोध टीम में अर्थशास्त्र, पत्रकारिता और मीडिया जगत के लोग शामिल हैं। हमने 1972 से 2014 तक 98 देशों के आर्थिक विकास के आंकड़ों  और अमेरिका स्थित फ्रीडम हाउस (Freedom House) की प्रेस फ्रीडम रैंकिंग का विश्लेषण किया।

विश्लेषण में हमने देखा है कि जिन देशों ने मीडिया की स्वतंत्रता कम हुई है, वहां वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भी 1 से 2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।

अर्थव्यवस्था मुश्किल से पटरी पर लौटती है

हमारे परिणाम, अन्य आर्थिक अध्ययनों की तरह दिखाते हैं कि,  “कानून के शासन” को बनाए रखने वाली संस्थाएं मजबूत आर्थिक प्रदर्शन के साथ दृढ़ता से जुड़ी हुई हैं। हमारा शोध शिक्षा, श्रमशक्ति और भौतिक बुनियादी ढांचे की पूंजी को ध्यान में रखता है।

मीडिया की स्वतंत्रता के संकुचन और दीर्घकालिक आर्थिक प्रभाव के बीच सम्बन्ध ही शायद हमारी सबसे महत्वपूर्ण और अप्रत्याशित खोज रही थी।

फ्रीडम हाउस का अपना अध्ययन कहता है, अवसर दिए जाने पर मीडिया की स्वतंत्रता लंबे समय तक दमन के बाद भी पलट सकती है।”

ईमानदार और सूचना आधारित पत्रकारिता जैसी लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की बुनियादी आकांक्षाओं को कभी भी पूरी तरह से दबाया नहीं जा सकता है।

हालांकि, अर्थव्यवस्था के मामले में यह देखने को नहीं मिलता है। जिन देशों में प्रेस से स्वतंत्रता छीन ली गई है और बाद में लौटा दी गई है, वहां अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर नहीं आ पाई है।

जब आर्थिक निराशा लोकतंत्र में विश्वास को कम कर रही है, पारंपरिक मीडिया का अविश्वास बढ़ रहा है, और मीडिया को नियंत्रित करने के लिए एक लोकलुभावन और सत्तावादी सरकारें उभर रही हैं ऐसे समय में यह परिणाम महत्वपूर्ण हैं।

पूरे एशिया में प्रेस की स्वतंत्रता पर नियंत्रण थोपने की प्रवृत्ति है।

हांगकांग में नए सुरक्षा कानून स्वतंत्र मीडिया के लिए खतरा बन गए हैं। म्यांमार में विभिन्न प्रकाशन बंद कर दिए गए हैं और पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है। मलेशिया में सरकार की आलोचना करने पर पत्रकारों को परेशान किया गया और जेल में डाल दिया गया। फिलीपींस में एक सम्मानित खोजी पत्रकार मारिया रेसा को दो साल में 10 बार गिरफ्तार किया गया है और विवादास्पद कानून के तहत “साइबर मानहानि” का आरोप लगाया गया है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में मोदी सरकार ने मीडिया की आजादी में कटौती  की है।

दुनिया के देशों में प्रेस फ़्रीडम की स्थिति Image: Freedom House

 

ये सिर्फ दूसरे देशों के मुद्दे नहीं हैं।

पड़ोसी देशों की तुलना में, ऑस्ट्रेलिया अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्र लग सकता है। लेकिन वहां भी, हाल के वर्षों में, नए प्रतिबंधात्मक राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लागू किए गए हैं और ऑस्ट्रेलियाई संघीय पुलिस को पत्रकारों के घरों पर छापेमारी करते देखा गया है। पत्रकार संघ, मीडिया एंटरटेनमेंट एंड आर्ट्स एलायंस ने संघीय सरकार के इस कदम को “war on journalism.” “पत्रकारिता के खिलाफ युद्ध” करार दिया है।

मर्यादाओं को स्वीकार करना

हम स्वीकार करते हैं कि हमारा शोध विशुद्ध रूप से सामूहिक स्तर से किया गया है; यहां केवल बड़े आंकड़ों के बीच समानताएं पाई गई हैं और कई रिश्ते ऐसे भी हैं जिनमें 1 प्रतिशत तक हेरफेर की संभावना है। यह विशिष्ट संदर्भों, संस्कृतियों या मीडिया मॉडल के आधार पर सूक्ष्म विश्लेषण के लिए विशिष्ट संदर्भ नहीं हो सकता है और न ही ऐसा होना चाहिए।

हम यह भी स्वीकार करते हैं कि फ्रीडम हाउस कई अंतरराष्ट्रीय निकायों में से एक है जो राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता तक लोगों की पहुंच पर नज़र रखता है। यह संगठन विशिष्ट रूप से अमेरिका पर केंद्रित दृष्टिकोण से स्वतंत्रता को परखता है है, जैसे कि मतदान का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के समक्ष समानता। इस तरह वे यह निर्धारित करते हैं कि राज्य या गैर-राज्य गतिविधियों से प्रभावित हो रहे हैं या नहीं।

लेकिन, यह वास्तव में जनहित में पत्रकारों की स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करने की क्षमता को बाधित करता है और आर्थिक विकास के संबंध दिखाने की क्षमता का कारक है।

स्वतंत्र प्रेस नागरिकों को बता सकती है कि उनके नेता कितने सफल या असफल हैं, लोगों की आकांक्षाओं को अधिकारियों तक पहुंचा सकते हैं, सूचनाओं और विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक मंच के रूप में कार्य कर सकते हैं। जब मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है, तो इस महत्वपूर्ण गतिविधि के लिए जगह खत्म हो जाती है। नतीजतन, कमजोर निर्णय किए जाते हैं, जिसके परिणाम नेतृत्व और नागरिकों दोनों के लिए हानिकारक होते हैं।

आंकड़ों पर अभी और कार्य किया जाना है, लेकिन हमारा विश्लेषण इस बात का पुख्ता सबूत देता है कि मीडिया की आजादी और बेहतर शिक्षा आर्थिक प्रगति में अहम भूमिका निभाती है।

शायद इसी प्रेरणा से ऑस्ट्रेलिया समेत कई अन्य देशों की सरकारें प्रेस की आजादी के बारे में नए सिरे से सोचने लगीं हैं और जनहित की पत्रकारिता को अधिक वित्तीय सहायता प्रदान करने लगी हैं, जैसा कि ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन और स्पेशल ब्रॉडकास्टिंग सर्विस द्वारा किया जा रहा है।

लेख पहली बार क्रिएटिव कॉमन्स लाइसेंस के तहत The Conversation में प्रकाशित हुआ था। मूल लेख यहां पढ़ें

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एलेक्जेंड्रा वेक मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया में आरएमआईटी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग में प्रोग्राम मैनेजर हैं। अब्बास वलादखानी मेलबर्न में स्वाइनबर्न प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं;  एलन नेवेन आरएमआईटी विश्वविद्यालय में मीडिया अध्ययन में व्याख्याता हैं और जेरेमी नेवेन, स्वाइनबर्न प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में वरिष्ठ व्याख्याता हैं।

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